अगस्त्यमुनि के पास एक छोटा सा गाँवनुमा बाजार है सौड़ी। सौड़ी जितना छोटा है उतना ही उसका महत्व बड़ा। ऐतिहासिक रूप में कहूँ तो बहुत कम लोगो को शायद पता हो कि सौड़ी का एक नाम विनोवापुरी भी है। पहाड़ में सर्वोदयी आन्दोलन में सौड़ी मन्दाकिनी घाटी का वह सितारा था जिसे आचार्य विनोवाभावे के सर्वोदयी कार्यकर्ताओ ने विनोवापुरी नाम देकर ऐतिहासिक बना दिया। तब इसी सौड़ी से सर्वोदयी आन्दोलन पहाड़ में फैला और पहाड़ में व्यापक रूप से विनोवाभावे के विचार जागृति की धूरी बनने लगी।
सामाजिक रूप से सौड़ी केदारयात्रा का एक छोटा पड़ाव या कहे चट्टी थी जहाँ यात्री आम के पेड़ो के नीचे सुस्ताते थे। इन आम के झुरमुटे में ही था सौड़ी के प्राचीन महादेव। सौड़ी के बीचो बीचो कुमार कार्तिकेय की तपस्थली कार्तिकस्वामी उपत्यीआ से एक गंगधारा निकलती है। जिसमें आज भी सौकड़ो की संख्या में घराट है। जहाँ रोजमर्रा की जरूरतो के बनिस्पत हर दिन कई लोग चड़ते और उतरते रहते। इन घराटो में जीवन और समाज की कितनी कहानीयाँ गुथी होगी आप कल्पना कर सकते है।
सत्तुढुँगा
सत्तुढुँगा
पौराणिक रूप से सौड़ी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना ऐतिहासिक और सामाजिक रूप में। सौड़ी मन्दाकिनी के छोर पर बसा है। सौड़ी के खेतो से उतरकर एक रास्ता मन्दाकिनी के उन छोरो तक जाता है। जहाँ एक विशालकाय पत्थर मंदाकिनी की धारा को जोशीले अंदाज में थपथपाता रहता है। स्थानीय निवासी इसी पत्थर को कहते है सतढुँगा। इस नाम को पाण्डवो से जोड़ा जाता है। कहा जाता है महाभारत युद्ध के पश्चात पाण्डव मोक्ष के लिऐ स्वार्गारोहिणी की ओर इसी रास्ते से होकर आते है। कहते है जब वो यहाँ पहुँचे तो रात घिर आती है। थके हारे पाण्डव सत्तू खाकर अपनी भूख मिटाते है और सो जाते है। लेकिन विशालकाय भीम के लिऐ थोड़ा सा सत्तू पर्याप्त नही होता है। वो चुपचाप उठकर मन्दाकिनी के तट पर सत्तू पीसने चले जाते है। कहते है रात में मंद मंद बहती मंदाकिनी की मधुर आवाज उन्हे इतना मोहित कर देती है कि सत्तू का बड़ा ढेर कब तैयार हो गया उन्हे पता ही नही लगता है। भोर होती है तो पक्षियों का कलरव भीम की तंद्रा को भंग करता है। भीम के सामने सत्तू का बड़ा ढेर खड़ा होता है, यह इतना अधिक था कि इसे पूरा का पूरा साथ नही ले जाया जा सकता था। फिर भीम इस सत्तू को मन्दाकिनी के जल से भीगोकर बड़ी ढेरी बना लेता है। कहते है सत्तू की यही ढेरी जमकर पत्थर बन जाती है। जाते समय भीम इस ढेरी को तोड़ने के लिऐ मुष्टिका प्रहार करता है लेकिन यह ढेरी टूटती नही बस एक छोटी सी दरार इस ढेरी के बीचो बीच पड़ जाती है। आज भी वह दरार इस विशाल पत्थर शिला के बीचो बीच है जिसमे से होकर इसके शिखर तक जाया जा सकता है। इसके शिखर पर आसानी से 30-40 आदमी बैठ सकते है। भीम और पाण्डवो से जुड़े होने के कारण मन्दाकिनी के दोनो किनारो पर बसे गाँवो के पाण्डव पश्वा ( पाण्डव नृत्य के समय के वाहक ) यहाँ स्नान करने आते है।
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पाडव नृत्य
लोकमान्यता के अनुसार गोत्र हत्या के बाद महादेव के दर्शनो के लिऐ पाण्डव केदार घाटी में पहुचते है। कण कण में शंकर की भावना को सहेजे घाटी के गाँवो की पवित्र सुन्दरता उन्हे मोहित कर देती है। तब घाटी के निवासियो को अपनी स्मृति के प्रतीक के रूप में बाण और निशानो को सौपते है और पुकारे जाने पर प्रकट होने का वचन देते है। कहते है वो उस घाटी में कई मठ मंदिरो, धारा नौलो का निर्माण भी करते है, जो आज भी मौजूद है। तभी से यहाँ के निवासी पाण्डव नृत्य का आयोजन कर पाण्डवो को यहाँ आमंत्रित करते है।
Source -
https://dastakpahadki.in/