Author Topic: Mahabharat & Ramayan - उत्तराखंड में महाभारत एव रामायण से जुड़े स्थान एव तथ्य  (Read 66320 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,


उत्तराखंड मे कई तीर्थ स्थल इसे है जिनका जी महाभारत एव रामायण जैसे काव्यों से संभंध है! यहाँ पर हम इन धार्मिक स्थलों के बारे मे जानकारी देगे जिनका महाभारत एव रामायण काल संभंध है ! जैसे कहा जाता है की पांडवो ने अपना अज्ञात वास का समय उत्तराखंड के पहाडी भागो मे ही विताया था !



एम् एस मेहता 

खीमसिंह रावत

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द्वाराहाट के निकट पंडो खोली जिसका सम्बन्ध महाभारत काल से है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhimtal,

Bhimtal, earlier known as Bhimsarovar, is believed to be the stamping ground of the Pandavas. According to the locals the town is named so because when the Pandanvas had been exiled in this region they could not find a water body from which they could quench their thirst.

It was then that Bhima, the powerful, hit the ground with his "gada" or club thus creating a cavity in the ground, which was filled with an underground source of water.

The Bhimeshwar temple is said to have been set up by the Pandavas, who established a Shivling there.

Religious beliefs pertaining to the Saattal lakes go back to the times of the Mahabharata. The Nal Damayantital is named after King Nal. King Nal, one of the most famous kings of Hindu mythology, was sentenced to a fourteen year exile by his brother, Pushkar. Penniless and ostracised, he and his wife Damayanti sought refuge in Sattal, among other places.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Kukuchina:

Kukuchina: When the Pandavas were running from place to place hiding their true identity during the 1-year 'Agyatavas' period, the Kauravas were chasing them around in the hills of this region.

It is said that Kukuchina is the last point till which the Kauravas came, after which they returned. Hence, this placed was named 'Kauravchina' which in time, came to be called 'Kukuchina'.

5 kilometres from here is the Pandukholi. The Taragtal, believed to have been constructed by the Pandavas is also a mere 3 kilometres away. Both these places are trek routes reachable only by foot.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Vyas gufa near Badrinath and Mana border. It is believed Ved Vyas ji ne yahin pai rah kar Mahabharat likhi thi.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pandukholi: Situated at a distance of 27 kilometres from Dwarahat, are the caves of Pandukholi.

This cave is believed to have been one of the shelters of the Pandavs, the sons of Pandu during the 1-year 'Agyatavas' after their 14-year exile as mentioned in the Mahabharata.

The name Pandukholi is also derived from the legend, 'Pandu' meaning the sons of Pandu that is Pandav and 'kholi' meaning shelter.

This place is a 5 kilometre trek from Kukuchina which can be reached by a motorable road.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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केदारनाथ मंदिर का अस्तित्व पहले भी था क्योंकि स्वयं भगवान शिव ने भी यहां तप किया था। केदारनाथ के बारे में अधिक हाल की किंबदन्ती पांडवों से संबंधित है जो महाकाव्य महाभारत के नायक थे तथा भगवान शिव जो रूद्रप्रयाग तथा चमोली जिलों के इर्द-गिर्द संपूर्ण केदारनाथ क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित करता है।

यह समय महाभारत का उत्तरकाल है। पांडव विजयी हुए हैं, पर वे सगे संबंधियों से युद्ध कर उदास हैं इसलिए अपने भाईयों को मारने के पाप से मुक्ति पाने के लिए वे ऋषि वेदव्यास के पास जाते है। व्यास उन्हें भगवान शिव के पास भेजते हैं क्योंकि केवल वे ही क्षमा दान दे सकते हैं और केदारेश्वर के बिना मुक्ति या छुटकारा पाना संभव नहीं है। इसलिए पांडव शिव की खोज करते है। भावु शिव उन्हें क्षमा करने को तैयार नहीं हैं पर चूंकि वे ना भी नहीं कह सकते इसलिए भागे फिर रहे है और उनके सामने आना नहीं चाहते।

परंतु पांडवों को उन्हें ढूंढना ही था और इस प्रकार वे उनके पीछे-पीछे चलते रहे। शिव आगे-आगे और पांडव उनके पीछे-पीछे यत्र, तत्र, सर्वत्र चलते रहे। जब भगवान शिव काशी पहुंचे तो पांडवों ने उन्हें देख लिया और फिर शिव विलीन होकर गुप्तकाशी में प्रकट हुए। इस प्रकार गढ़वाल हिमालय में इस जगह का नाम ऐसा पड़ा तथा कुछ समय तक भगवान शिव इस निर्जनता में वेश बदलकर खुशी-खुशी रहे। परंतु कुछ समय बाद ही पांडवों को उनका सुराग मिल गया और फिर महाभाग-दौड़ शुरू हुआ।

अंत में भगवान शिव केदार घाटी पहुंच गये। जो एक चालाक विकल्प नहीं हो सकता था क्योंकि इसके और आगे कोई रास्ता नहीं था और केवल बर्फीली चोटियां क्षेत्र उनके लिए बाधा नहीं हो सकते थे। संभवतः उन्होंने तय कर लिया था कि पांडवों की काफी परीक्षा हो चुकी है।

केदारघाटी में प्रवेश एवं बाहर आने का एक ही रास्ता है, पांडवों को भान हुआ कि वे भगवान शिव के पहुंच के करीब हैं। पर शिव ने अभी भी सोचा या ऐसा बहाना किया कि वे खेल जारी रखना चाहते हैं। चूंकि उच्च पर्वतों पर कई चारागाह थे इसलिए शिव बैल का रूप धारण मवेशियों के साथ मिल गये ताकि उन्हें पहचाना नहीं जाय और इस प्रकार पांडवों के लिए यह इतना निकट पर कितने दूर साबित हो।

इतनी दूर आने के बाद पांडव इसे छोड़ देने को तैयार नहीं थे। निश्चित ही नहीं। शीघ्र ही उन्होंने भगवान शिव को फंसाने की कार्य योजना बनायी। भीम अपनी काया को विशाल बनाकर प्रवेश द्वार पर खड़े हो गये जिससे घाटी का रास्ता अवरूद्ध हो गया। पांडवों के अन्य भाईयों ने मवेशियों को हांकना शुरू किया। विचार यह था कि मवेशी तो भीम के फैले पैर के बीच से निकल जांयेंगे पर भगवान होने के नाते शिव ऐसा नहीं करेंगे और उन्हें जानकर वे पकड़ लेगें। भगवान शिव ने इस योजना को भांप लिया तथा अंतिम प्रयास के रूप में उन्होंने अपना सिर पृथ्वी में घुसा दिया। विशाल भीम को इसका भान हुआ तथा वे शीघ्र उस जगह पहुंचे। तब तक बैल कमर तक पृथ्वी में समा चुका था और केवल दोनों पीछे के पैर और पूछ ही जमीन के ऊपर थी। भीम ने पूछ पकड़ ली और उसे जाने नहीं दिया। उस क्षण शिव मान गये। वे अपने मूल रूप मे आकर पांडवों के समक्ष प्रकट हुए तथा उन्हें अपने सगे-संबंधियों की गोत्र हत्या से मुक्ति दे दी। जमीन के ऊपर बैल के पिछले भाग की पूजा करने उनके साथ वे भी शामिल हो गये और इस प्रकार वे केदारनाथ के प्रथम पूजक बने और उन्होंने ही केदारनाथ का मूल मंदिर बनवाया जिसके बाद मानव-भक्तों ने इसे बनवाया।

पृथ्वी के अंदर का धसा भाग विभिन्न जगहों पर फिर प्रकट हुआ जो नेपाल में पशुपतिनाथ तथा गढ़वाल के कपलेश्वर या कल्पनाथ में बाल, रूद्रनाथ में चेहरा (मुंह) तुंगनाथ में छाती तथा वाहे एवं मध-माहेश्वर में मध्य भाग या नाभि-क्षेत्र है और इसलिए इन जगहों पर शिव के लिंग की पूजा नहीं होती है उनके अन्य अंगों की पूजा होती है।

गढ़वाल में इन पांच स्थलों को पंच केदार कहा जाता है। माना जाता है कि जो भी तीर्थयात्री इन पांच मंदिरों में पूजा कर लेता है उसके जीवन भर के पाप धुल जाते हैं।

मम क्षेत्राणी पंचेवा भक्तिप्रीतिकारिणी वै

केदारम मध्यम तुंग थाता रूद्रालयम प्रियम

कल्पकम चा महादेवी सर्वपाप प्रनाशममं

कथितं ते महाभागे केदारेश्वर मंडलम

मेरे मात्र पांच स्थल हैं जो शिष्यों में प्रेम लाते हैं वे केदारनाथ, मध्यम (मधमाहेश्वर) तुंग (तुंगनाथ) रूद्रालय (रूद्रनाथ) तथा कल्पकार (कल्पेश्वर) हैं। हे महादेवी, ये सभी पाप धो डालते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चंपावत का संबंध महाभारत

चंपावत का संबंध महाभारत के प्रणेताओं पांडवों से भी है। माना जाता है कि अपने 14 वर्षों के निर्वासित जीवन के दौरान पांडव इस क्षेत्र में आये थे तथा यहीं भीम की मुलाकात राक्षसी हिडिंबा से हुई थी, जिसने भीम पर आसक्त होकर उनसे विवाह कर लिया। चंपावत में घटोत्कच्छ मंदिर भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच्छ को समर्पित है।
चंपावत तथा इसके आस-पास बहुत से मंदिरों का निर्माण महाभारत काल में हुआ माना जाता है। एक दूसरी प्रचलित किंवदन्ती ग्वाल देवता से संबंधित है, जिन्हें गोरिल या गोलु भी कहते हैं तथा जिन्हें न्याय का देवता माना जाता है। चंपावत के ग्वारैल चौर में इन्हें समर्पित एक मंदिर हैं जो हजारों-हजार तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है क्योंकि वे पद दलितों को न्याय प्रदान करते हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पिथौरागढ़ का संबंध

पिथौरागढ़ का संबंध पांडवों से भी है जो अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस क्षेत्र में आये थे। पिथौरागढ़ में सबसे छोटे पांडव नकुल को समर्पित एक मंदिर भी है।

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उत्तरकाशी se महाभारत se Sambhand.

उत्तरकाशी पौराणिक वैधता से ओत-प्रोत है। महाभारत के एक वर्णनानुसार महान मुनि जड़ भारथ ने उत्तरकाशी में तप किया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारत के एक प्रणेता अर्जुन की मुठभेड़ शिकारी रूप में भगवान शिव से यहां हुआ था। महाभारत के उपायन पर्व में उत्तरकाशी के मूलवासियों जैसे किरातों, उत्तर कुरूओं, खासों, टंगनासों, कुनिनदासों एवं प्रतंगनासों का वर्णन है।

 

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