महाकुंभ: विदेशियों ने ग्रहण किया संन्यास
हरिद्वार। सात भारतीय एवं 58 विदेशियों ने आज दुनिया का वैभव त्याग संन्यासी जीवन में पदार्पण किया। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर पायलेट बाबा के आश्रम में इन सभी को संन्यास की दीक्षा दी गयी। महाकुंभ की शेष अवधि में इन्हें संन्यासी जीवन की विशेषताओं से अवगत करा दिया जाएगा। इसके बाद ये संन्यासी देश दुनिया में धर्म प्रचार करेंगे।
सोमवार का दिन धर्मनगरी में खास रहा। अध्यात्म के महात्म्य का क्रेज विदेशों में भी कितना प्रभावी है, इसकी एक झलक आज देखने को मिली। नील धारा में चले रहे शिविर में भारत के सात लोगों के अलावा रूस, जापान, यूक्रेन व जार्जिया के 58 नागरिकों ने संन्यासी जीवन में पदार्पण किया। वैदिक मंत्रोच्चारण व धार्मिक अनुष्ठान के साथ जूना अखाडे़ के महामंडलेश्वर पायलेट बाबा के सानिध्य में पांच पंडितों ने इन सभी को संन्यास जीवन की दीक्षा दिलाई।
इस दौरान महंत रंगनाथ ने संबंधित भाषाओं में अनुवाद करते हुए विदेशियों को संन्यासी जीवन के संबंध में जानकारी दी। शिविर में अलग-अलग समूहों में इन्हें संन्यास की दीक्षा दी गई। रविवार को शिविर में इस आयोजन के लिए तैयारियां शुरू हो गई थीं। संन्यासी जीवन में पदार्पण करने वाले ये सभी पांच साल से जूना अखाडे़ के महामंडेलश्वर पायलेट बाबा से जुडे़ हुए हैं और समय-समय पर अध्यात्म का पाठ भी पढ़ते रहे हैं।
इस मौके पर जूना अखाडे़ के महामंडलेश्वर पायलेट बाबा ने कहा कि संन्यासी जीवन पूरी तरह अध्यात्म के लिए समर्पित होता है। सांसारिक सुखों से इनका कोई वास्ता नहीं होता है। इनका उद्देश्य भी समाज कल्याण ही होता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में आध्यात्मिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। आध्यात्मिक मूल्यों के अभाव में सृष्टि अस्तित्वविहीन हो जाती है। महंत पायलेट बाबा ने कहा कि समूचा विश्व अध्यात्म के महात्म्य को बखूबी जानता है।
उन्होंने कहा कि आज संन्यास लेने वालों को कुंभ काल तक संन्यासी जीवन की हर विधा में पारंगत कर दिया जाएगा। इसके बाद ये देश दुनिया में जाकर धर्म रक्षा के लिए कार्य करेंगे। उन्होंने कहा कि विश्व को अध्यात्म के बाबत जानकारी दी जाएगी ताकि सनातन धर्म की परंपरा को अक्षुण्ण रखा जा सके। पायलेट बाबा ने कहा कि इसी तरह का एक और शिविर मार्च में भी आयोजित किया जाएगा, जिसमें और विदेशियों को संन्यास की दीक्षा दी जाएगी। इस मौके पर स्वामी नारायण गिरि भी मौजूद थे।