उत्तराखंड के उत्तरकाशी, जौनसार- बावर और रवाईं घाटी के बाशिंदे हों या पड़ोसी राज्य हिमाचल के सिरमौर, बिशैहर व जुब्बल जिलों के ग्रामीण, बड़े से बड़ा पुश्तैनी विवाद हो या घर का छोटा झगड़ा, कोई भी न्यायालय का रुख नहीं करता।
इन लोगों के हर तरह के झगड़ों पर सदियों से महासू देवता निर्णय करते हैं। उत्तरकाशी के हनोल स्थित महासू देवता की उत्तराखंड समेत हिमाचल में भी बड़ी मान्यता है। इन्हें यहां न्याय के देवता के तौर पर भी जाना जाता है। खास बात यह है कि दो पक्षों के बीच विवाद पर देवता का जो निर्णय हो, वही सर्वमान्य होता है और कोई भी पक्ष यहां से असंतुष्ट होकर नहीं जाता।
हिमाचल से सटे उत्तरकाशी जिले के सीमांत क्षेत्र हनोल में स्थित है महासू देवता का मंदिर। बावर परगना में टौंस नदी के बाएं तट पर स्थित मंदिर तक जाने के लिए उत्तरकाशी से बड़कोट, नौगांव, पुरोला व मोरी होते हुए 160 किमी तथा देहरादून से चकराता-त्यूनी होते हुए 170 किमी मोटर मार्ग से पहुंचा जा सकता है। स्थानीय उपलब्ध किंवदंतियों के अनुसार महासू देवता का आगमन इस क्षेत्र में करीब छह सौ वर्ष पूर्व हुआ था।
बताया जाता है कि यहां स्थित मैंद्रथ पर्वत पर तब हूणा भाट नामक ब्राह्मण रहता था। उस समय इस क्षेत्र में किरविर दानव नामक राक्षस का आंतक था। उसके अत्याचारों से त्रस्त हूणा कश्मीर चला गया। वहां वह सेड़ कुड़या से मिला, जिसने उसे अपने भाई महासू से मिलवाया। उन्होंने हूणा को राक्षस से निजात दिलाने का भरोसा दिलाया।