ठंडे बस्ते में मंशादेवी पहाड़ियों की जांच
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रुड़की। खतरनाक होती जा रही मंशादेवी पहाड़ियों की जांच फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है। दो साल पहले जांच और सुरक्षा के लिए बनाई कमेटी एक-दो बैठकों तक ही सीमित होकर रह गई। दूसरी ओर न सिर्फ आमजन बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी यह चिंता का विषय है। आईआईटी अर्थ साइंस वैज्ञानिक की मानें तो अगर शीघ्र इस दिशा में सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाए तो समस्या पैदा हो सकती है।
हजारों साल पुरानी मंशादेवी पहाड़ियों पर फिलहाल खतरे के बादल हैं। हर बरसात में मलबा गिरने और लैंड स्लाइड होने से काफी तबाही होती है। इस बरसात में भी लैंड स्लाइड से रेलमार्ग जाम हो गया था, इसके बावजूद शासन-प्रशासन की नींद नहीं खुल रही है। हालांकि दो वर्ष पहले संभावित खतरों को देखते हुए सुरक्षात्मक उपाय के लिए कवायद आरंभ की थी। इसके तहत दून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट निदेशक के नेतृत्व में अर्थ साइंस वैज्ञानिकों की एक कमेटी बनाई थी। उसमें आईआईटी अर्थ साइंस के सीनियर प्रो. आरएन बालागन को भी शामिल किया गया था। लेकिन यह कमेटी सिर्फ चंद बैठकों तक ही सीमित होकर रह गई। नतीजतन दिनोंदिन समस्या गंभीर होती जा रही है। इससे न सिर्फ आमजन बल्कि अर्थ साइंस के वैज्ञानिक भी चिंतित हैं।
निश्चित रूप से मंशादेवी पहाड़ियों की रक्षा एक चुनौती है। इसके लिए शीघ्र ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। अगर एक बार पहाड़ियों में दरार पड़ गई तो इसे बचाना मुश्किल होगा।
प्रो. आरएन बालागन आईआईटी वैज्ञानिक
मंशादेवी पहाड़ियों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। हाल ही में इस संबंध में मुख्य सचिव से भी वार्ता की गई है। शीघ्र ही बैठक कर इस दिशा में ठोस योजना बनाई जाएगी।
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