Author Topic: Mention about Uttarakhand Places in Epics-धार्मिक ग्रंथो में उत्तराखंड का वर्णन  (Read 9990 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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                       बाहुमा भोगीन कृत्वा मुखे तस्य जनार्दना:!
                       प्रवेश्यामाम तदा केशिनो दृष्ट वाजिन :!!


विष्णुप पुराण -- मैं वर्णित है कि-केशी नामक राक्षस ने कृषण के सखा ग्वाबालाओं को जब बल से त्राण दिया तब श्री कृष्ण ने इस अश्वमुखी राक्षस को अपनी लीला से मार गिराया था ! उपरोक्त केशिवध प्रदर्सन  मैं भगवान् श्री कृष्ण केशी को अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर दाहिने हाथ से मारते हुए प्रस्तुत किये गए !अश्मुखी राक्षस ने अपने दांत कृष्ण कि बाएं गाथ की कोहनी पर गडाए हैं !

ऐतिहासिक पुरातत्व से सम्बंधित सबसे नई और महत्वपूर्ण खोज पुरोला की इष्टिका वेदिका है !इस वेदिका का आकार एवं स्वरुप उड़ाते हुए गरुड़ पक्षी के समान है! इसकी लम्बाई २४ मीटर तथा चोडाई १८ मीटर है !इसका मुख पूएव दिशा की ओर है ! व दो चौड़े पंख उत्तर दक्षिण मैं है !इसके निर्माण मैं विभिन्न आकार की इंटों को प्रयोग मैं लाया गया है ! इस वेदिका के निर्माण मैं इंटों के ग्यारह रद्दों का इस्तेमाल किया गया है

दैदिक का पिछ्ला भाग पूंछ एवं उत्तरी पंख यमुना की सहायक कमल नदी की बाढ़ के प्रकोप के कारण नष्ट हो गए हैं !
उत्खनन के उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इस वेदिका की पहचान श्येनचितया  या गरुड़ चिति से की गई है !गरुड़ भारतीय धर्म एवं दर्शन मैं एक पवित्र पक्षी के रूप मैं वर्णित किया गया है! तथा इसे ऋग्वेद,ब्राहमण  साहित्य एवं सूत्र साहित्य मैं सम्पूर्ण नाम से भी जाना जाता है !

जिसका अर्थ है सोने के पंखों वाला,गरुड़ को सूर्य एवं अग्नि प् प्रतीक भी माना गया है,ऋग्वेद मैं सम्पूर्ण तथा गरुड़ का उल्लेख हुवा ! इस आकार की पवित्र गरुड़ पक्षी वेदिका मैं प्राचीन काल मैं अग्निचयन,अश्वमेघ,सोम पुरुष मेघ इत्यादि यज्ञों का अम्पन्न करना उपयुक्त माना जाता है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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About Nand Prayag
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नन्दों नाम महाराजो धर्मात्मा सत्यसंगर
यज्ञ चकार विघिवधवाहन्न भूरी दक्षिणयम
तत्र ब्रहादयो देवा भागं swa swa puraddyu
murti Manto Mahatmaano bhaktya tasya Mahipate !
 
Kedar Khand  - Adhyay 58 2-3)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नारायण नमस्क्रत्व नरंचैव नरोतम:!
देवी सरस्वती चैव, ततो जय मुदीरयेत !

महाभरत के प्रारंभ में महामुनि व्यास ने नर नारायण की स्तुति इस प्रार्थना से की है ऋषि नारायण की प्रथम तपस्थली का नाम आदि बद्री पड़ा !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कर्ण यज्ञे समायाता शतशो वरवनिनी!
सूर्य मारधयामास यज्वा यज्ञे स भूमियः!!
ततः कतिपयाहैस्तु वरं प्रादानमहात्मने !
कवचं च तथाम्भेघं तूणीर च तथाक्षयम!!   

केदार खंड अध्याय (८१)
कर्ण प्रयाग के बारे में !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Devprayag Mentioned in Kedarkhand.

क.    ^ यत्र ने जान्हवीं साक्षादल कनदा समन्विता।
यत्र सम: स्वयं साक्षात्स सीतश्च सलक्ष्मण॥
सममनेन तीर्थेन भूतो न भविष्यति।[७]
ख.    ^ पुनर्देवप्रयागे यत्रास्ते देव भूसुर:।
आहयो भगवान विष्णु राम-रूपतामक: स्वयम्॥[८]
ग.    ^ राम भूत्वा महाभाग गतो देवप्रयागके।
घ.    ^ विश्वेश्वरे शिवे स्थाप्य पूजियित्वा यथाविधि॥
इत्युक्ता भगवन्नाम तस्यो देवप्रयाग के।
लक्ष्मणेन सहभ्राता सीतयासह पार्वती॥


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गंगा जी कहती हैं*******
जहां स्नान के समय मेरा कोई स्मरण करेगा मैं वहाँ के जल में आ जाउंगी !
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा!
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी!!
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी !
...द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय!!
स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम!!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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केदारखंड, गढ़वाल हिमालय ही रहा है. इस प्रकार इस स्थान का कण-कण पवित्र एवं पुण्य है. स्कंध पुराण के अध्याय ५७ श्लोक १० के अनुसार-

कण्वाश्रम समारभ्य यावनन्दगिरीभेवेत.
तावत्क्षत्रं परं पुण्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम.
कण्वो नाम महातेजा महर्षिलोकविश्रुतः.
तस्याश्रमपदे नत्वा भगवंत रमापरितम

अर्थात कण्वाश्रम से लेकर नंदगिरी तक जितना क्षेत्र है वह परम पवित्र एवं भुक्ति मुक्तिदायक है.लोक में बिख्यात कण्व नामक महातेजस्वी महर्षि ने उस आश्रम में भगवान रमापति बिष्णु को नमस्कार करके इस क्षेत्र में निवास करने के लिए प्रार्थना की जो प्रार्थना स्वीकृत हुई. महर्षि कण्व का आश्रम मालनी नदी के तट पर कोटद्वार क्षेत्र तक फैला हुआ था. इस कोटद्वार कस्बे के समीप चारो तरफ से द्वारपाल की तरह घिरी पर्वत श्रेणियों में पवित्र धाम श्री सिद्धबली मंदिर स्थित है. जिसके चरणों में खोह नदी बहती है. कुछ बिद्वानो ने स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित अध्याय ११५ श्लोक २५ में वर्णित-

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बिद्वानो ने स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित अध्याय ११५ श्लोक २५ में वर्णित-

गंगाद्वारोत्तरेभागे गंगाया: प्राग्वीभागके.
नदी कोमुद्दुती सर्वदारिदनाशिनी.

अर्थात गंगाद्वार हरिद्वार के उत्तरपूर्व यानि इशान कोण के कोमुद तीर्थ के किनारे कोमुदी नाम की प्रसिद्ध दरिद्रता हरने वाली नदी निकलती है. जिस प्रकार गंगाद्वार माया क्षेत्र व वर्तमान में हरिद्वार एवं कुब्जाम्र ऋषिकेश के नाम से प्रचलित हुए, उसी प्रकार कौमुदी वर्तनाम में खोह नदी नाम से जानी जाने लगी. जो कौमुदी का अपभ्रंश है. जो डाडामंडी क्षेत्र एवं हेमवंती हूयूल नदी के दक्षिण से निकली है इस पोराणिक नदी के तट पर श्री शिद्धबली धाम पोराणिक सिद्धपीठ के रूप में विराजमान है. इस पवित्र धाम में जो साक्षात शिव द्वारा धारण, जिस पर शिवजी ने स्वयं निवास किया है, अपने आप में पूजनिय है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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About Sidhibali Temple at Kotdwar.

श्री सिद्धबली नाम की महत्ता एवं पोराणिकता के बिषय में कई जनश्रुतियां एवं किवंदंतियाँ प्रचलित है. कहा जाता है. स्कन्द पुराण में वर्णित जो कौमुद तीर्थ है उसके स्पष्ट लक्षण एवं दिशाए इस स्थान को कौमुद तीर्थ होने का गौरव देते है. स्कन्द पुराण के अध्याय ११९ श्लोक ६ में कौमुद तीर्थ के चिहन के बारे में बताया गया है कि-

तस्य चिहनं प्रवक्ष्यामि यथा तज्जायते परम.
कुमुदस्य तथा गन्धो लक्ष्यते मध्यरात्रके.

(Sabhar-sidhibali.org).

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अस्त्युत्तरस्याम दिशी देवतात्मा .हिमालयो नाम नगाधिराज :,
पूर्वापरो तोयनिधि वगाह्या ,स्थित :पृथिव्याम एव मानदंड : ||

 

महाकवि कालिदास के कुमारसंभव के उपरोक्त श्लोक पर्वत राज हिमालय की अजर -अमर और विस्तृत प्राकृतिक ,बोधिक ,सामाजिक और सांस्करतिक विरासत की महता को समझने के लिये भले ही पर्याप्त हो परन्तु नगाधिराज हिमालय के विविध और बहुआयामी सांस्करतिक सोपानों का वास्तविक रसपान करने हेतु हिमालयी संस्कर्ति और जीवन शैली के सागर में ठीक वैसे ही गोता लगाना होगा जैसे की महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने लगाकर अनुभव किया था शायद उन्हे और " चातक " जैसे प्रकृति के हर चितेरे को हिमालय की हर श्रृंखला पर ,हर नदी घाटी पर और हर एक मठ -मंदिर पर जीवन और संस्कृति के विविध रंगों का रंग देखने को मिला हो | इस हिमालय की झलक ही ऐसी है ,ना जाने कितने लोग यहाँ आकर इसके देवत्व में लींन होकर घुमक्कड् और बैरागी हो गए तो ना जाने कितने लोगौं में यहाँ आकर फिर से जीने की शक्ति का संचार हुआ

 

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