Author Topic: Muni ki reti Rishikesh Uttarakhand,विश्व का योग केन्द्र है। मुनि की रेती  (Read 46368 times)

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गरूड़ चट्टी जलप्रपात



नीलकंठ महादेव के रास्ते में मुनी की रेती से 5 किलोमीटरों की दूरी पर अवस्थित गरूड़ चट्टी जलप्रपात एक छोटा सा - लगभग 20 फीट ऊंचाई का - लेकिन अत्यन्त खूबसूरत जलप्रपात है। आपको जलप्रपात तक पहुंचने के लिए मुनी की रेती से लगभग 750 मीटरों की चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी।

गरूड़ चट्टी में गरूड़ को समर्पित एक मंदिर भी है। यहां हनुमान और भगवान शिव की प्रतिमाएं भी हैं। प्रवेश-स्थान में स्थित एक पट्टिका में दर्शकों को चेतावनी दी गई है कि मंदिर का दर्शन तभी सफल होगा जब वह (दर्शक) मंदिर में प्रवेश करने से पहले शराब, मांसाहारी भोजन और अंडों का सेवन बंद करने का प्रण लें।

 इस मंदिर में प्रतिदिन प्रातः 6 बजे और सायं 6 बजे आरती का आयोजन किया जाता है। गंगा के किनारे खडंजे से निर्मित घाट भी है जहां भक्तजन मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व स्नान कर सकते हैं।

अपुष्ट खबरों के अनुसार, टाइटैनिक की शीर्ष नायिका, केट विन्सलेट ने मई, 1998 में ऋषिकेश का भ्रमण किया था और इस जलप्रपात में स्नान किया था। इसके परिणामस्वरूप कई लोग इसे केट विन्सलेट जलप्रपात कह कर संबोधित करते हैं!

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नीड़गड्डु जलप्रपात

नीड़गड्डु जलप्रपात पहुंचना तो मुश्किल है लेकिन, अगर आपके पास शारीरिक दमखम है तो यहां पहुंचा जा सकता है। यह मुनी की रेती से बद्रीनाथ के रास्ते में 15 किलोमीटरों की दूरी पर अवस्थित है। आखिर के 3 किलोमीटर चुनौती पेश करते हैं क्योंकि आपको आगे के ऊंचे-नीचे भू-भाग में चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी।

यह जलप्रपात पहाड़ियों की मनोरम हरियाली के बीच अवस्थित है। इसमें 60 से 70 मीटरों की ऊंचाई से पानी एक छोटे से जलाशय में गिरता है। पानी का कोहरेदार छिड़काव और प्रपात की जोरदार आवाज से इस स्थान की छटा और निराली हो जाती है।

 पर्यटक इस जलाशय में स्नान करते हैं तथा तैरते हैं तथा इसके किनारे पिकनिक मनाते हैं। उत्तराखंड सरकार निकट भविष्य में इस स्थान को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की योजना बना रही है।

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कुंजापुरी सिद्धपीठ,मुनि की रेती ऋषिकेश

स्कन्दपुराण के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री, सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। त्रेता युग में असुरों के परास्त होने के बाद दक्ष को सभी देवताओं का प्रजापति चुना गया। उन्होंने इसके उपलक्ष में कनखल में यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने, हालांकि, भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि भगवान शिव ने दक्ष के प्रजापति बनने का विरोध किया था। भगवान शिव और सती ने कैलाश पर्वत, जो भगवान शिव का वास-स्थान है, से सभी देवताओं को गुजरते देखा और यह जाना कि उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है।

 जब सती ने अपने पति के इस अपमान के बारे में सुना तो वे यज्ञ-स्थल पर गईं और हवन कुंड में अपनी बलि दे दी। जब तक शिव वहां पहुंचते तब तक वे बलि हो चुकी थीं।

भगवान शिव ने क्रोध में आकर तांडव किया और अपनी जटाओं से गण को छोड़ा तथा उसे दक्ष का सर काट कर लाने तथा सभी देवताओं को मार-पीट कर भगाने का आदेश दिया। पश्चातापी देवताओं ने भगवान शिव से क्षमा याचना की और उनसे दक्ष को यज्ञ पूरा करने देने की विनती की।

 लेकिन, दक्ष की गर्दन तो पहले ही काट दी गई थी। इसलिए, एक भेड़े का गर्दन काटकर दक्ष के शरीर पर रख दिया गया ताकि वे यज्ञ पूरा कर सकें।

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भगवान शिव ने हवन कुंड से सती के शरीर को बाहर निकाला तथा शोकमग्न और क्रोधित होकर वर्षों तक इसे अपने कंधों पर ढोते विचरण करते रहें। इस असामान्य घटना पर विचार-विमर्श करने सभी देवतागण एकत्रित हुए क्योंकि वे जानते थे कि क्रोध में भगवान शिव समूची दुनिया को नष्ट कर सकते हैं।

आखिरकार, यह निर्णय लिया गया कि भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग करेंगे। भगवान शिव के जाने बगैर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 टुकड़ों में विभक्त कर दिया। धरती पर जहां कहीं भी सती के शरीर का टुकड़ा गिरा, वे स्थान सिद्ध पीठों या शक्ति पीठों (ज्ञान या शक्ति के केन्द्र) के रूप में जाने गए।

उदाहरण के लिए नैना देवी वहां हैं, जहां उनकी आंखें गिरी थीं, ज्वाल्पा देवी वहां हैं, जहां उनकी जिह्वा गिरी थी, सुरकंडा देवी वहां हैं, जहां उनकी गर्दन गिरी थी और चंदबदनी देवी वहां हैं, जहां उनके शरीर का नीचला हिस्सा गिरा था।

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देवी कुंजापुरी मां को समर्पित मां कुंजापुरी देवी मंदिर से दर्शनार्थी गढ़वाल पहाड़ियों के रमणीय दृश्य को देख सकते हैं।

आप कई महत्वपूर्ण चोटियों जैसे उत्तर दिशा में स्थित बंदरपंच (6,320 मी.), स्वर्गारोहिणी (6,248 मी.), गंगोत्री (6,672 मी.) और चौखम्भा (7,138 मी.) को देख सकते हैं। दक्षिण दिशा में यहां से ऋषिकेश, हरिद्वार और इन घाटी जैसे क्षेत्रों को देखा जा सकता है।



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जगन्नाथ रथ यात्रा

प्रतिवर्ष अक्टुबर में मुनि की रेती में उड़ीसा के पुरी की प्रसिद्व जगन्नाथ रथ यात्रा का लघुरुप मनाया जाता है। यह यात्रा मधुबन आश्रम से शुरु होती है, जहां भगवान को रथ पर बिठाया जाता है और यह स्थानीय निवासियों तथा आगन्तुक भक्तों के भीड़ के साथ धीरे-धीरे मुनि की रेती होती हुई ऋषिकेश की ओर बढ़ती है।

 सम्पूर्ण यात्रा में पूजा-पाठ चलता रहता है एवं रथ को रस्सियों से भक्तगण द्वारा खींचा जाता है। लोग इस उत्सव में रथ पीछे-पीछे त्योहार के वस्त्र पहनकर नाचते-गाते हुऐ चलते हैं।

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विकास मेला,MUNI KI RETI

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिन प्रतिवर्ष 23 जनवरी को मेला के रुप में मनाया जाता है। यह उत्सव जो अराजनीतिक युवा वर्ग द्वारा आयोजित किया जाता है में लोकनृत्य तथा संगीत का कार्यक्रम भी होता है। साथ ही व्यापार वृद्वि के लिए कई स्टॉल भी लगाए जाते हैं।

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