Author Topic: Nag Devta Temples In Uttarakhand - उत्तराखंड में नाग देवता के मंदिर  (Read 43097 times)

Risky Pathak

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How to Reach Kalinag Temple:

From Haldwani To Bageshwar. Then Bageshwar To Chaukori. Then From Chaukori To Pankhu. After pankhu There is Steep Climb Of 20KM.

Kalinag Temple is at a very high altitude. It provides a greater view of far places. On Nag Panchami a Huge Fair is seen at this temple.

KALI NAAG TEMPLE



उ8ाराखंड की पावन धरती में भगवान शंकर सहित ३३ कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं। आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि पर ही पधारकर धन्य मानते हुए कहा कि इस ब्रह्मïांड में उ8ाराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र में श1ितपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्6य है।
 
इन्हें कोटगाड़ी देवी भी कहते हैं। कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठïा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्टï कार्य की सिद्धि होती है।
किवदंतियों के अनुसार, जब उ8ाराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थ मानते हैं और उनकी अधिकार परिधि शिव तत्व में विलीन हो जाती है। तब अनंत निर्मल भाव से परम ब्रह्मïांड में स्तुति होती है कोटगाड़ी देवी की। संसार में भटका मानव जब चौतरफा निराशाओं से घिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है, तो संकल्प पूर्वक कोटगाड़ी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से स्मरण किया जाता है, वहीं से निराशा केबादल हटने शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है। किसी के प्रति व्यर्थ में ही अनिष्टïकारी भावनाओं से मांगी गई मनौती हमेशा उल्टी साबित होती है। इस मंदिर में फरियादों के असं2य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेज कर मनौतियां मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं और समय व मैया के आदेश पर माता के दर्शन के लिए पधारते हैं।
दंत कथाओं के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण ने बालपन के समय में कालिया नाग का मर्दन किया और तब उसे परास्त कर जलाशय छोडऩे को कहा, तो कालिया नाग और उसकी पत्नियों ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि हे प्रभु, हमें ऐसा सुगम स्थान बताएं, जहां हम पूर्णत: सुरक्षित रह सकें। तब भगवान श्रीकृष्ण ने इसी कष्टï निवारिणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था। कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाड़ी से थोड़ी ही दूर पर पर्वत की चोटी पर स्थित है। इस मंदिर की श1ित लिंग पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निशान दिखाई देता है।
किंवदंतियों के अनुसार किसी ग्वाले की गाय इस श1ित लिंग पर आकर अपना दूध स्वयं दुहाकर चली जाती थी। ग्वाले का परिवार बहुत आश्चर्य में था कि आखिर गाय का दूध रोज कहां चला जाता है। एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पीछा किया। जब उसने यह दृश्य देखा, तो धारदार शस्त्र से श1ित पर वार कर दिया। कहा जाता है कि इस वार से खून की तीन धाराएं बह निकलीं, जो क्रमश: पाताल, स्वर्ग और पृथ्वी पर पहुंचीं। पृथ्वी पर आने वाली धारा यहां विमान है। वार वाले स्थान पर आज भी कितना भी दूध 1यों न चढ़ा दिया जाए दूध श1ित के आधे भाग में ही शोषित हो जाता है।

कैसे पहुंचें:
कोकिला देवी यानी कोटगाड़ी मंदिर उ8ाराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पाखू इलाके में स्थित है। कोकिला देवी मंदिर पहुंचने के लिए दिल्ली से हलद्वानी जाना पड़ता है। हलद्वानी से वाया बागेश्वर पाखू पहुंचा जा सकता 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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About Seven Nag (Snake) Temples:

Uttarakhand is called “Dev Bhoomi” means the land of Gods. Kumaon people have a strong tradition to worship of folk gods. Each people have a distinct god history attached to his name and each one is recalled in many different ways such as jagar (a form of folk ritual poem), nainang in peak temples.
The Nag Devatas (snake gods) are worshipped as Kul Devatas (family gods) among the many people of Kumaon. There are seven famous Nag temples in kumaon reason those are Bedinag, Kalinag, Peelinag, Moolnag, Ferinag, Dhoolinag, Basukinag. Those all temples are situated at the top of the hills.
BeriNag Temple:
Berinag Devta temple is situated in Berinag a beautiful hill station in Pithoragarh District. This hill station is named the cause of Bedinag Devta Temple. This temple is situated at the top of the hill 1.5Km trek from this town. In every year on Nag Panchami there is being a fair. Thousands of people come to pray on that place. All famous peaks of Himalayas such as Nandadevi, Panchachooli, and Trishool are easily viewable from that place. Sooner Berinag was very famous for tea garden. The famous Maa Kali Shakti Peeth “Hat Kalika Temple” and cave temple Patal Bhuvneshwar is also nearby to Berinag.
KaliNag Temple:
The way to reach Kalinag Devta Temple is from Chokodi the very charming hill station and tea state. This temple is situated on the top of the hill, near Kotmunia. Kalinag Devta is very famous to escape to any kind of natural threats.
PeeleNag Temple:
Peele Nag Devta temple has almost the same landmark and way as Kalinag Temple. As the people belief Peele Nag Devta helps to the rain properly and escapes their harvest to ruin. So every year after cut the crop they do pooja on the temple, make prasad for the new grain and distribute it among the persons. Maa Kotagadi Devi temple is also very near from this location.
MoolNag Temple:
MoolNag Devta is also called Mool Narayan Devta. It is very famous temple which is also known as Dhwaj Shikher Temple. This temple is situated on that point which extends a beautiful view of the valley and the hills around. Dhwaj Shikher to Bhanar is also a very famous and beautiful trek rout. On the returning way a hill station “Kotmuniya” comes which is famous for Sarla Behen Ashram and there is only one park in Uttaranchal where we found a number of Kasturi Mrag (Dear).
FeriNag Temple:
Ferinag Devta temple is situated near the top of the Kameredevi hill station in Begeshwar District.
This famous temple is surrounded by the beautiful forest of Buroons and Kafel. In every winter season there is being heavy snow fall. Ferinag Devta is very famous among the people for their true justice. This temple is situated 4Km trekking distance form the road head. The other nearest landmark of this temple is “Kanda” which is very famous for the soft stone mines. Maa Bhadrakali Temple and its wonderful cave is also nearby from this temple.
DhooliNag Temple: Dhoolinag Devta temple is situated near Bijaypur in Begeshwar Distritc. Bijaypur is also famous for its tea garden. All famous peaks of Himalaya’s also viewable from there. Every Nag Panchami there is also being a big fair. It is very peaceful place. People come here to do yoga and meditation.
BasukiNag Temple:
This temple is dedicated to Bhagwan Basuki. This Temple is situated in a very peaceful area that’s why many rishi muni come here to do Dhyan, Yoga and meditation. Earlier “Nantin Baba” came here every year and spent a lot of time on that place. This temple is very poplar in this reason

Jaunpur Rawain

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Samay Methaji,

I hope that you have not forgotten me.

To say the least, my family also is of the Nag Vanshi's.

This extreme corner of Tehri Garhwal has two vansh, one Shiv and the other Nag.

The only place I know, is Nag Thatt is the Jansar region, close to my village.

Jaunpur Rawain.

हेम पन्त

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Sir Saimanya,

We hope u will share some info about Nag Thatt with us...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the photo of Hari Naag Devta Temple. This temple is in village Papoli, Distt Bageshwar. A big fair held on Naag Panchmi day.


Devbhoomi,Uttarakhand

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                             नाग देवता का सेममुखेम
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सेममुखेम की यात्रा श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय होती है। इस  नागतीर्थ की जानकारी मुझे लखनऊ प्रवास के दौरान अपने बडे भाई विजय  गैरोला से मिली। उनके विस्तार से सुनाए इस तीर्थ यात्रा के संस्मरण ने  मुझे यहां जाने के लिए प्रेरित किया और मैं भी निकला सेमनाग राजा के  दर्शनों के लिए।
  दिल्ली से पहले पौडी और फिर श्रीनगर होते हुए हम पहुंचे गडोलिया नाम के  छोटे से कस्बे में। यहां से एक रास्ता नई टिहरी के लिए जाता है तो दूसरा  लंबगांव। हमने लंबगांव वाला रास्ता पकडा क्योंकि सेम नागराजा के दर्शनों  के लिए लंबगांव होते हुए ही जाया जाता है। घुमावदार सडकों पर टिहरी झील का  विस्तृत फलक साफ दिखाई दे रहा था।


पुरानी टिहरी नगरी इसी झील के नीचे दफन  हो चुकी है। हल्की धुंधली यादें पुरानी टिहरी की ताजा हो उठी, और मैं  चारों और पसरी झील के पानी में पुराने टिहरी को देखने की कोशिश करने लगा।  रास्ता जैसे-जैसे आगे बढता जा रहा था, मैं इस झील के पानी में पुरानी  टिहरी की संस्कृति को ढूंढने की कोशिश कर रहा था। अतीत में खोए हुए मुझे  पता नहीं चला कि कब में टिहरी झील को पीछे छोड आया और लंबगांव पहुंच गया।  खैर मेरे ड्राइवर ने मेरी तंद्रा तोडी। लंबगांव सेम जाने वाले यात्रियों  का मुख्य पडाव है।

पहले जब सेम मुखेम तक सडक नहीं थी तो यात्री एक रात  यहां विश्राम करने के बाद दूसरे दिन अपना सफर शुरू करते थे। यहां से  15 किलोमीटर की खडी चढाई चढने के बाद ही सेम नागराजा के दर्शन किए जाते  थे। अब भी मंदिर से मात्र ढाई किलोमीटर नीचे तलबला सेम तक ही सडक है। फिर  भी यात्रा काफी सुगम हो गई है। लंबगांव से आप 33 किलोमीटर का सफर बस या  टैक्सी द्वारा तय करने के बाद तबला सेम पहुंच सकते हैं।

जैसे-जैसे आप इस  रास्ते पर बढते हैं, प्रकृति और सम्मोहन के द्वार खुद-ब-खुद खुलते जाते  हैं। लंबगांव से 10 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद हम पहुंचे कोडार जो  लंबगांव से उत्तरकाशी जाते हुए एक छोटा सा कस्बा है। यहां हम बांई तरफ मुड  गए। अब गाडी घुमावदार और संकरी सडकों पर चलने लगी थी। हम प्रकृति का आनंद  उठाते चल रहे थे। यहां की मनभावन हरियाली आंखों को काफी सुकून पहुंचा रही  थी।
 पहाडों के सीढीनुमा खेतों को हम अपने कैमरे में कैद करते जा रहे थे।  कब 18 किलोमीटर का सफर कट गया पता ही नहीं चला। हम पहुंच गए मुखेम गांव-  सेम मंदिर के पुजारियों का गांव। गंगू रमोला जो रमोली पट्टी का गढपति का  था उसी का ये गांव है। गंगू रमोला ने ही सेम मंदिर का निर्माण करवाया था।

Devbhoomi,Uttarakhand

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मुखेम से आगे बढते हुए रास्ते में प्राकृतिक भव्यता और पहाड की चोटियां मन  को रोमांचित करती रहती हैं। रास्ते में ही श्रीफल के आकार की चट्टान की  खूबसूरती देखने लायक है। मुखेम से 5 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद हम  पहुंचे तलबला सेम। एक लंबा चौडा हरा भरा घास का मैदान, जहां पहुंचकर  यात्री अपनी थकान मिटाते हैं।

किनारे पर नागराज का एक छोटा सा मंदिर है।  पहले यहां के दर्शन करने होते है। यहां पर स्थानीय लोग थके-हारे यात्रियों  के लिए खान-पान की व्यवस्था करते हैं। यहां से सेम मंदिर तक तकरीबन ढाई  किलोमीटर की पैदल चढाई है। घने जंगल के बीच मंदिर तक रास्ता बना है।  बांज, बुरांश, खर्सू, केदारपती के वृक्षों से निकलने वाली खुशबू आनंदित  करती रहती है। घने जंगलों के बीच से गुजरना किसी रोमांच से कम नहीं।

पीछे  मुडने पर रमोली पट्टी का सौंदर्य देखते ही बनता है। मंदिर का द्वार काफी  आकर्षक है। यह 14 फीट चौडा और 27 फीट ऊंचा है जिसमें नागराज फन फैलाए हैं  और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन दिखते हैं। मंदिर  में प्रवेश करने के बाद यात्री नागराजा के दर्शन करते हैं। मंदिर के  गर्भगृह में स्वयं भू-शिला है।

 ये शिला द्वापर युग की बताई जाती है जिसकी  लोग नागराजा के रूप में पूजा-अर्चना करते है। मंदिर के दाईं तरफ  गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। सेम नागराजा की  पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The famous Dhaulinaag Devta Temple situated at Vijaypur in Bageshwar   District...

Dhaulinaag Temple at Vijaypur in Bageshwar Distt.

Video by Deepak Pant.

Devbhoomi,Uttarakhand

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डांडा नागराजा मंदिर में गौ कथा पोड़ी गढ़वाल

डांडा नागराजा मंदिर में गौकथा का आयोजन मंदिर समिति के साथ कई संगठनों ने मिलकर किया ! गौ क्रांति के अग्रदूत श्री गोपाल मणि महाराज द्वारा कथा का वाचन किया गया ! यह कथा दिनाक ६ जून से आरम्भ होकर १२ जून तक चली ! छ दिन तक चलने वाली गौ कथा में उत्तराखंड के कई विशिष्ठ अतिथियों ने नागराजा के दरबार में आयोजित इस गौ कथा में अपनी उपस्थिति दर्ज की ! विशिष्ठ अतिथियों में सर्ब श्री दिवाकर भट्ट खाध्य एबम नागरिक विकाश मंत्री, श्री तिर्वेंदर सिंह रावत कृषि एबम पशुपालन मंत्री, श्रीमती विजय बर्थवाल बाल विकास महिला सशक्तिकरन मंत्री, श्री मतवार सिंह कंडारी सिचाई मंत्री, डॉ बिहारीलाल जलंधरी उत्तराखंड की स्थानीय भाषा के "गऊं आखरों" के पहचान कर्ता व मुख्य सचेतक अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा, श्री सुन्दर लाल मंदर्वल, श्री धर्मेन्द्र शाह एबम श्री दीपेंदर शाह ज्योति दर्शनी ज्योलार्स नई दिल्ली, रेखा रावत आदि उपस्थित हुए ! विशिष्ठ अथितियों के उपस्थिति के आधार पर उन्हें संस्था द्वारा "देवभूमि गौरव सम्मान" से सम्मानित किया गया ! गौ कथा के अंतिम दिवस पर दिनाक १२ जून को उत्तराखंड सरकार में सिचाई मंत्री श्री मातबर सिंह कंडारी को, उत्तराखंड की गढ़वाली कुमाउनी भाषा के स्थानीय ध्वनियों की पहचान "गऊं आखरों" के रूप में करने वाले प्रखर समाज सेवी डॉ बिहारीलाल जलंधरी, उत्तराखंड की प्रत्येक संस्था को योगदान करने वाले ज्योति दर्शिनी ज्योलर्स से श्री धरमेंदर शाह और श्री दीपेंदर शाह को देवभूमि गौरव सम्मान से सम्मानित किया !
इस अवसर पर संगठन के अध्यक्ष श्री सुभाष चन्द्र देशवाल ने कहा कि यह पवन पावन स्थल है   डांडा नागराजा की कृपा दृष्ठि यहाँ  तक पहुँचने वालों पर हमेशा बनी रहती है ! इस स्थल पर पानी का बहुत बड़ा संकट है जिसका विकल्प ब्याश चट्टी से गंगा के पानी को पहुंचाकर ही हो सकता है ! डांडा नागराजा से कुछ ही किलोमीटर नीचे ब्यास चट्टी से गंगा प्रवाहित होती है ! यहाँ से पंपिंग योजना के द्वारा ही पानी डांडा नागराजा तक पहुँच सकता है ! यहाँ गंगा का  पानी पहुँचने पर ही इस सम्पूर्ण क्षेत्र में बसे हुए गाओं की पानी की कमी को दूर किया जा सकता है ! डांडा नागराजा परिसर में संस्कृत महाविद्यालय बनाने की योजना है ! इस महाविद्यालय के लिए स्थानीय लोगों ने अपनी जमीन भी दान दे दी है !
सिचाई मंत्री श्री कंडारी ने गौ की महत्ता बताते हुए गौशालाओं का निर्माण करने पर बाल दिया ! उन्हों ने क्षेत्रीय समष्याओं  के समाधान का आश्वासन दिया ! उन्हों ने डॉ निशंक के नेतृत्व में उत्तराखंड के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य कर रही टीम का उल्लेख किया ! कंडारी जी ने अपना उद्बोधन गढ़वाली भाषा में किया ! इस अवसर पर उत्तराखंड को स्थानीय भाषा की ध्वनियों को पहचान और नाम देने वाले डॉ बिहारीलाल जलंधरी ने कहा कि यह नागराजा की ही कृपा है कि हम हजारों लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर से चलकर यहाँ उनके दर्शन करने पहुंचे है और यह हमारा शोभाग्य है कि इस पावन डांडा नागराजा धाम में संस्था द्वारा हमें देवभूमि गौरव सम्मान देने के लिए चुना गया ! उन्हों ने कहा कि प्रत्येक उत्तराखंडी अपने गाँव में हो चाहे देश-प्रदेश में, वह अपनी जड़ों को अपने आप से दूर कर रहा है ! उन्हों ने कहा कि आज हमारी बोली केवल गाँव तक ही सीमित रह गयी है यदि गाँव का ब्यक्ति बाजार जाता है तो वह बाज़ार में अपनी स्थानीय (गढ़वाली-कुमाउनी) भाषा को छोड़कर हिंदी में बात करने लगता है ! अपनी भाषा के लिए इस प्रकार की प्रवृति दीर्घ कालीन समय में घातक साबित हो सकती है ! उन्हों ने सभी लोगों को अपनी भाषा में अधिक से अधिक बात करने का आवाहन किया ! उन्हों ने कहा कि भाषा के लिए इस प्रकार कि प्रवृति क्यों उभर रही है उसके निदान के लिए शासकीय स्थर पर प्रयास किये जा रहे हैं !उन्हों ने कहा कि हम चाहते हैं कि सबसे पहले उत्तराखंड की स्थानीय भाषाओँ को शासकीय संरक्षण मिलने चाहिए ! उत्तराखंड की गढ़वाली कुमाउनी में एक विशय तैयार कर उसे उत्ताराखंड के विद्यालयों में कक्षा ६ से पठान पाठन के लिए लगाया जाना आवश्यक है ! जबतक हमारी भाषा साहित्यिक भाषा के रूप में प्रयोग नहीं की जाती तब तक इन भाषाओँ को संरक्षित नहीं माना जा सकता ! डॉ जलंधरी ने कहा कि हमारे लिए यह शोभाग्य की बात है कि हमारे मुख्य मंत्री उत्तराखंड की भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार है वे उत्ताराखं कि गढ़वाली कुमाउनी के विकास के लिए कोइ रास्ता अवश्य निकालेंगे ! उन्हों ने आशंका जताई कि यदि उत्तराखंड की भाषाओं के विकास के लिए उत्तराखंड की भाषा के साहित्यकार डॉ निशंक के शासन काल में कुछ नहीं हो पाता तो उत्तराखंड की गढ़वाली कुमाउनी एक दिन अवश्य ही बिलुप्त हो जाएगी ! जिसका जिम्मेदार वर्तमानं में उत्तराखंडी भाषा के साहित्यकार ही होगा !
डांडा नागराजा के चमत्कारों के विषय में कुछ लोगों से चर्च हुई ! लोगों का कहना है कि नागराजा अभी भी साधू के भेष में गाओं भ्रमण करते है ! उनका कहना है कि बीमारी, दुःख, तकलीफ तथा किसी भी प्रकार की समश्या  में हम हमेशा नागराजा का स्मरण करते है ! उनके स्मरण मात्र से ही दुःख दर्द दूर हो जाते हैं ! मान्यता है डांडा नागराजा के इस मंदिर में आकर मिन्नत मांगने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता ! डांडा नागराजा उसकी मिन्नत अवश्य पूरी करते है !
यह आयोजन मुख्य रूप  से देवभूमि उत्तराखंड प्रवाशी संगठन चंडीगढ़ तथा ज्योति दर्शनी ज्योलर्स दिल्ली वालों के साथ डांडा नागराजा मंदिर समिति आदि ने मिलकर किया ! गौ कथा के इस आयोजन में श्री गोपाल मणि महाराज उत्तराखंड ने वृद्ध गायों को जंगलों में छोड़ने के बजाय पालने के लिए लोगों को आगे आने को कहा है ! इस अवसर पर अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा दिल्ली प्रदेश में पदाधिकारी श्री सुरेंदर सिंह रावत को भी सभा द्वारा समानित किया गया !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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    photo                                              Nagnath-
          Nag Temple at Nagnath Pokhri. (Uttarakhand)
       

 

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