नन्दा जी जब ससुराल जाती हैं तो अपरिचित देश के लिये विदा होने वाली बेटी नन्दा अपने माता-पिता के पास क्या रुनेड़ा लगाती है-
यकुली यकुली बाबा जी मी लगदी डर
यकुली यकुली मी कनी कैकि जोऽलू।
बेटी के आंसू पोंछते हुये माता-पिता उसे समझाते हैं-
आगि द्यूंलो बेटी त्वे सकल जनीत,
पीछी द्यूंलो बेटी त्व हसती व घोड़ा,
आगे जाला हाथी ब्वे पिछी जाला घोड़ा,।
गोरु को गोठ्यार ब्वे बाखरयूं की नांदी,
त्वे दगड़ी जाला सीं तेरा दीदी भूला,
त्वे दगड़ी जाल सीं पौणा दासी दास।
त्वेंते मेरा धिया ब्वे एकुली ना भेजूं,
त्वेकूं द्यूलो धिया ब्वै गंगाड़ समौण।
काखड़ी मुंगरी ब्वै च्यूड़ी रे भुजजी,
त्वीकूं द्यूंलो लाड़ी मी बावन रस्याल,
गंगाडू समौण मी कैलास पोछोलू,
त्वेकूं मेरी लाड़ी मी एकूली नी भेजू,
तेरो भाई लाटू ब्वै बाटा कू अग्वालू,
ज्येठू भै वजीर ब्वै औंसी कू झड़वालू,
त्वेकूं मेरी लाड़ी मी एकूली नी भेजू,
त्वेकूं मेरी लाड़ी मी एकूली नी भेजू॥
यह अश्रुपूर्ण विदाई का दॄश्य सबके हृदय को करुणा से भर देता है और सबके आंखों में आंसू ला देता है।