Author Topic: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी  (Read 138700 times)

पंकज सिंह महर

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नन्दा जी जब ससुराल जाती हैं तो अपरिचित देश के लिये विदा होने वाली बेटी नन्दा अपने माता-पिता के पास क्या रुनेड़ा लगाती है-

यकुली यकुली बाबा जी मी लगदी डर
यकुली यकुली मी कनी कैकि जोऽलू।

बेटी के आंसू पोंछते हुये माता-पिता उसे समझाते हैं-

आगि द्यूंलो बेटी त्वे सकल जनीत,
पीछी द्यूंलो बेटी त्व हसती व घोड़ा,
आगे जाला हाथी ब्वे पिछी जाला घोड़ा,।
गोरु को गोठ्यार ब्वे बाखरयूं की नांदी,
त्वे दगड़ी जाला सीं तेरा दीदी भूला,
त्वे दगड़ी जाल सीं पौणा दासी दास।
त्वेंते मेरा धिया ब्वे एकुली ना भेजूं,
त्वेकूं द्यूलो धिया ब्वै गंगाड़ समौण।
काखड़ी मुंगरी ब्वै च्यूड़ी रे भुजजी,
त्वीकूं द्यूंलो लाड़ी मी बावन रस्याल,
गंगाडू समौण मी कैलास पोछोलू,
त्वेकूं मेरी लाड़ी मी एकूली नी भेजू,
तेरो भाई लाटू ब्वै बाटा कू अग्वालू,
ज्येठू भै वजीर ब्वै औंसी कू झड़वालू,
त्वेकूं मेरी लाड़ी मी एकूली नी भेजू,
त्वेकूं मेरी लाड़ी मी एकूली नी भेजू॥


यह अश्रुपूर्ण विदाई का दॄश्य सबके हृदय को करुणा से भर देता है और सबके आंखों में आंसू ला देता है।

पंकज सिंह महर

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जैसा मैंने पहले बताया था कि यह यात्रा १९ पड़ावों से होकर गुजरती है तो अब इन पड़ावों की संक्षिप्त जानकारी आपके सम्मुख प्रस्तुत है-

प्रथम पड़ाव- ईड़ाबधाणी

नौटी में यात्रा के शुभअवसर पर अपार भीड़ होती है, गाजे-बाजे व भंकोरों सहित भगवती नन्दा को हजारों लोग विदा करते हैं। भगती वचन निभाने के लिये ईड़ाबधाणी में पूजा लेने आती है। मार्ग में छंतोली, ल्यूइसा, सिलिंगी, चौड़ती, हेलुती आदि होते हुये आती है तथा नन्दा छतोली व खाड़ू का नौटी से चलकर प्रथम रात्रि विश्राम ईड़ाबधाणी में ही होता है



पंकज सिंह महर

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दूसरा पड़ाव-नौटी

ईड़ा बधाणी से यात्रा दूसरे दिन वापस नौटी के लिये रवाना होती है। मार्ग में रिठोली,जाख, दियारकोटी, कुकुड़े, पुड़ियाणी, कनोठ, झड़कण्डे व नैणी गांवों में पूजा लेकर रात्रि विश्राम नौटी में होता है।

पंकज सिंह महर

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तीसरा पड़ाव-कांसुवा

नौटी से नन्दादेवी राजजात की कैलाश के लिये विदाई के समय गांव के नर-नारी बच्चे नम आंखों से विदा करते हैं। नैणी, देवल  गढ़सारी की छ्तोलियां वैनोली गांव से पहले यात्रा में शामिल होती है। मलैड़ी व नौना की छतोलियां भी यात्रा में शामिल होकर राजजात की शोभा बढ़ाती है। यात्रा गढ़वाल के राजवंशी कुंवरों के मूल गांव कांसुवा पहुंचती है। यहां पर परम्परागत रुप से यात्रियों का भव्य स्वागत होता है। राजा के छोटे भाई (कान्सा) के गांव कांसुवा में नन्दादेवी, भराड़ी देवी व कैलापीर देवताओं के मन्दिर हैं। भराड़ी के चौक में सर्वप्रथम चार सींग वाले मेढे़ और पवित्र राज छतौली की पूजा-अर्चना होती है।

पंकज सिंह महर

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चौथा पड़ाव- सेम

कांसुवा से सेम रवाना होने पर कांसुवा गांव में नन्दादेवी की छतोली ड्यूंडी ब्राहमणों को सौंपी जाती है। तत्पश्चात गढ़वाल नरेशों की प्रथम राजधानी चांदपुर गढ़ी में गढ़्वाल नरेश के वंशजों द्वारा शाही पूजा करवायी जाती है। जिसे देखने गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र से यात्री बड़ी संख्या में आते हैं। यहीं पर कैलीपीर में काली जी का भव्य मंदिर व चांद्पुर गढ़ी के गढ़वाल राज्य की प्रथम राजधानी के महल व किले हैं। नन्दा की जात यहां पर तोप की पूजा पाकर सेम पहुंचती है, यहां पर गरौली व चमोला की छतोलियां भी जात में शामिल होती हैं। सेम में नन्दा देवी का प्राचीन मंदिर भी है।

पंकज सिंह महर

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पांचवा पड़ाव- कोटी

सेम से कोटी जाने के लिये धारकोट तक थोड़ी चढ़ाई है, धारकोट, घण्डियाल व सिमतौली गांवों में पूजा पाकर यात्रा सितोली धार पहुंचती है। यहां पर भगवती से कोटिशः प्रार्थना की जाती है, इसलिये इसका गांव का नाम कोटी पड़ा । यात्रा नन्दादेवी मंदिर कोटी व मैती पहुंचती है। यहां पर विशेष पूजा होती है। यहीं पर खण्डुरा, रतूडा़, चूलाकोट, थापली व बगोली के लाटू यात्रा में शामिल होते हैं। रात में मंदिर में जागरण होता है, यहां पर पत्थर की अतिप्राचीन मूर्तियां और मंदिर हैं।

पंकज सिंह महर

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छठवां पड़ाव- भगोती

कोटी से भगोती रवाना होने पर धतोड़ा के खेतों में भगवती के पहलवानों का मल्ल युद्ध होता है। इस युद्ध को देखने के लिये सम्पूर्ण क्षेत्र का विशाल मेला यहां पर लगता है। कोटी, धतोड़ा, बम्याला, कंडवाल गांव, चौरीखाल, छैकुड़ा और मनोड़ा की छतोलियां राजजात में शामिल होती हैं। भगोती पहुंचने पर नन्दाजात दल का भव्य स्वागत होता है, यह भगवती के मायके क्षेत्र का अंतिम पड़ाव होता है।

पंकज सिंह महर

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सातवां पड़ाव- कुलसारी

भगोती से केदारु देवता की छ्तोली भी यात्रा में शामिल होती है। भगोती गांव की सीमा पर क्यूर गधेरे पर किमोली नैणी की छ्तोलियों का मिलन होता है। यहां पर भगवती कई घंटों की अनुनय-विनय के बाद मायके से ससुराल क्यूर गधेरे को पार कर प्रवेश करती है। यहां से बुटोला थोकदारों, सयाणों का सहयोग प्राप्त होता है। रास्ते में नारायणबगड़, पन्ती, बैनोली, मींग गधेरा, हरमनी, नगरकोटी में यात्रा का भव्य स्वागत होता है। कुलसारी पहुंचने पर भगवती के ससुराल क्षेत्र के प्रथम पड़ाव में पहुंचने पर भव्य स्वागत होता है। यहां पर राजजात हमेशा अमावस्या के ही दिन पहुंचती है। अमावस्या की कालरात्रि को कालीयंत्र भूमि से निकालकर पूजा-अर्चना की जाती है, फिर अगली यात्रा तक के लिये इसे भूमिगत किया जाता है। यहां पर दक्षिणकाली, त्रिमुखी शिव, लक्ष्मीनारायण, हनुमान और सूर्य भगवान का मंदिर है तथा बाहर के क्षेत्र में लक्ष्मी जी की चरण पादुका भी है।

कुलसारी की नंदा


पंकज सिंह महर

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आठवां पड़ाव- चेपडंयू

कुलासारी से चलने पर थराली में विशाल मेला लगता है। थराली के पास ही देवराड़ा गांग है, जहां बधाण की राजराजेश्वरी नन्दादेवी वर्ष में ६ महीने रहती है। शेष ६ महीना कुरुड़ दशोली में रहती है। यह गांव बुटोला थोकदारोम का गांव है, यहां पर नन्दा देवी की स्थापना घर पर ही की गयी है, रात्रि विश्राम के समय सभी लोग देवी का जागरण करते हैं।



पंकज सिंह महर

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नौवां पड़ाव- नन्दकेशरी

यहां पर बधाण की राजराजेश्वरी नन्दादेवी की डोली कुरुड़ से चलकर राजजात में शामिल होती है, साथ ही कुमाऊं से भारी संख्या में यात्री अल्मोड़ा, नन्दाकोट, डंगोली आदि स्थानों से छ्तोली-कटार आदि जात में शामिल होती है। किवदंती है कि नन्दकेशरी में सुराई के पेड़ पर केश अटक जाने के कारण देवी दैत्यों से बचने के लिये पेड़ में छइप गई और भैरव को याद किया और उसके बाद महादेव ने उनकी रक्षा की। जिस कारण इसका नाम नन्दकेशरी पड़ गया, यात्रा में नन्दकेशरी में ही मन्दिरों का समूह मिलता है। नन्दकेशरी सम्पूर्ण गढ़वाल और कुमाऊं के देवताओं का मिलन स्थल भी कहलाता है।



 

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