Author Topic: Nanda Raj Jat Story - नंदा राज जात की कहानी  (Read 139405 times)

Risky Pathak

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जय चक्रबंदनी  जोग माया खप्परभरनी
तू ही चामुंडा शैलपुत्री नंदा इंगला पिंगला दैत्याधाविनी
महानारी चंद्रघंटिका महाकालरात्रि कालीमाता
जब देवतों को अत्यचार हुए तब त्येर माता को जन्म हुए 
राज राजेश्वरी गोरजा भवानी चमन्कोट चामुंडा
श्री शक्लेश्वर कार्तिकेय श्री देवी दैन्य संघारे
श्री गणेशाय नमः जाए नमः उद्हारिणी पिंगला महेश्वरी
महेश्वरी दैत्यधाऊ गेमन मिचाऊ तब त्वे देवी कै जाप सुनाऊ       

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
जय बोला तेरी जय बोला
जय बोला तेरी जय बोला 
बल गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला
हाँ  गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला


जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला


बेली बधान माता बल तेरा मैती होला
बेली बधान माता बल तेरा मैती होला
मल बधान जालू माँ नंदा जी को डोला
शिव कैलाश जालू माँ नंदा जी का डोला

सिद्धपीठ नौटी से चले राज जात
त्येर मैतार नौटी से चले राज जात
नन्द केसरी में हौला गढ़ कुमो का साथ
नन्द केसरी में हौला गढ़ कुमो का साथ

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

११  वर्षा पुजा हूनी  वैदिनी का ताल
११  वर्षा पुजा हूनी  वैदिनी का ताल
देख तेरा हाथून हवे राज्ञसू को काल
देख तेरा हाथून हवे राज्ञसू को काल

बारहू साल में त्येर चौसीघा हवे खांडू
बारहू साल में त्येर चौसीघा हवे खांडू
बान गो माँ भाई त्येरु देवता रे दुलातु
बान गो माँ भाई त्येरु देवता रे दुलातु

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

रजा कनकपाल न चंदपुरान बती
रजा कनकपाल न चंदपुरान बती
कन्नोज का राजा छाणी दैज देन भेटी
कन्नोज का राजा छाणी दैज देन भेटी

१ बार ऊ भी बल माला खून ग्येन
१ बार ऊ भी बल माला खून ग्येन
अरे येन भग्यान हवेन नि घर बोडी एइन
अरे येन भग्यान हवेन नि घर बोडी एइन 

जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

अध बाटा मलानी कुपुत्र हून ल्हेगे
अध बाटा मलानी कुपुत्र हून ल्हेगे
नर संहार ह्वेगे माता कुचील हवे गे
नर संहार ह्वेगे माता कुचील हवे गे

तब से नार का कालू  न बनी रूप कुंद
तब से नार का कालू  न बनी रूप कुंद
माँ कु श्राप ल्हेगे बची अस्थि और मुंड
माँ कु श्राप ल्हेगे बची अस्थि और मुंड

 जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

भद्रेस्वर निस्मा चा कडू रो को धाम
भद्रेस्वर निस्मा चा कडू रो को धाम
६ मेहना बवून ६ दसौली का नाम
६ मेहना बवून ६ दसौली का नाम

पडो हो नंदा कु बल पैलू कुल सारी माँ
पडो हो नंदा कु बल पैलू कुल सारी माँ
जख बिराज मान चा भगवती काली माँ
जख बिराज मान चा भगवती काली माँ

 जय हो नंदा देवी तेरी जय बोला
गढ़ कुमो की माता मेरी जय बोला

रूप कुंद पित्रू तर्पण दिए जांदु
रूप कुंद पित्रू तर्पण दिए जांदु
होम कुंद खाडू चौसिंघ पूजी जांदु
होम कुंद खाडू चौसिंघ पूजी जांदु

माता ९ दुर्गा की पुनि आरती पूजा देना
कैलाश की और चौसिंघ पाठी देना

पंकज सिंह महर

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नन्दा देवी उत्तराखण्ड के गांव-गांव में पूजी जाने वाली देवी है, उत्तराखण्ड में मां नन्दा देवी के कुल १७९ मंदिर हैं। यह उत्तराखण्ड के राजाओं की भी कुल देवी रही है, चाहे कत्यूरी नरेश हों या गढ़्वाल का पंवार राजवंश हो या कुमाऊं का चंद राजवंश सभी की कुल देवी मां नन्दा ही थी। कत्यूरी नरेशों की राजधानी पहले कार्तिकेयपुरम (जोशीमठ) थी, जिसे श्राप के कारण वैजनाथ स्थानान्तरित करना पड़ा था, वहां भी उन्होंने मां नन्दा की स्थापना की। उनके ताम्रपत्रों में आज भी इसका वर्णन मिलता है। निम्बर देव को कत्यूरी वंश का संस्थापक कहा जाता है, उनके ताम्र पत्र, जो पाण्डुकेश्वर में मिला था, में लिखा है-

"भूपाल ललिता कीर्तिः नन्दा भगवती चरण कमल सनाथ मूर्तिः श्री निम्बवरस्य"

इसी प्रकार महाराज सलोणादित्य के ताम्र पत्रों में उल्लेख है-
"नन्दा देवी चरणकमल लक्ष्मीतः समधिगताभि मतबर प्रसाद द्यौतित निखिल भवनादित्यः सलोणादित्यः"

दुर्गा सप्तशती में भी "ऊं नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दना" कहा गया है।

हेम पन्त

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पंकज दा!! सुन्दर जानकारी... बस इतना ही कहूंगा कि आपके ज्ञान भण्डार और फोरम के प्रति आपका समर्पण देखकर मैं नतमस्तक हूँ.

नन्दा देवी उत्तराखण्ड के गांव-गांव में पूजी जाने वाली देवी है, उत्तराखण्ड में मां नन्दा देवी के कुल १७९ मंदिर हैं। यह उत्तराखण्ड के राजाओं की भी कुल देवी रही है, चाहे कत्यूरी नरेश हों या गढ़्वाल का पंवार राजवंश हो या कुमाऊं का चंद राजवंश सभी की कुल देवी मां नन्दा ही थी। कत्यूरी नरेशों की राजधानी पहले कार्तिकेयपुरम (जोशीमठ) थी, जिसे श्राप के कारण वैजनाथ स्थानान्तरित करना पड़ा था, वहां भी उन्होंने मां नन्दा की स्थापना की। उनके ताम्रपत्रों में आज भी इसका वर्णन मिलता है। निम्बर देव को कत्यूरी वंश का संस्थापक कहा जाता है, उनके ताम्र पत्र, जो पाण्डुकेश्वर में मिला था, में लिखा है-

"भूपाल ललिता कीर्तिः नन्दा भगवती चरण कमल सनाथ मूर्तिः श्री निम्बवरस्य"

इसी प्रकार महाराज सलोणादित्य के ताम्र पत्रों में उल्लेख है-
"नन्दा देवी चरणकमल लक्ष्मीतः समधिगताभि मतबर प्रसाद द्यौतित निखिल भवनादित्यः सलोणादित्यः"

दुर्गा सप्तशती में भी "ऊं नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दना" कहा गया है।


Dinesh Bijalwan

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अति सुन्दर पन्कज जी , जब मै छोटा तब भी मुझे यह कथा इत नी ही दिल्कश लग्ती थी  टी सीरीज की नन्दा राज जात ने मुझे भावुक बना दिया था . आज फिर एक बार  दिल भर आया .  धन्यावाद

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Pankaj bhai aapne is yaatra ka itna sajeev varnan kiya hai ki humein to computer pai baithe hue hi yaatra main bhaag lene ka ahsaas ho raha hai :)

हेम पन्त

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नन्दा देवी की जागर को आप तक कडियों में पहुँचाने का प्रयास रहेगा.

इस भाग में सती (नन्दा) भगवान शिव से आग्रह कर रहीं हैं कि शिवजी उन्हें मायके जाने की आज्ञा दे दें. लेकिन भगवान शिव मायके से बुलावा आये बिना सती को मायके नहीं जाने देना चाहते.

चार दिन स्वामी जी, मैं मैत जयौन्दौऊ.
रात दिन गौरा त्वीकु कनो मैत होये?
व्याली सांझ बोदी मी मैत जयौंदो,
आज राति बोदि मी मैत जयौंदो.
सांझ को सबेर नंदा त्यारो कनो मैत होये?
भाई-भतीजों की स्वामी खुद लगी रैण,
बुड्या ब्वै-बाबू की भी स्वामी खुद लगी रैण.
कुई बैणी दिने बाबान सैणा सिरिनगर,
कुई बैणी दिने बाबान बांका वनगढ;
कुई बैणी दिने बाबान नौ लखा सलाण,
कुई बैणी दिने बाबान काली कुमौंऊं.
सबू से लाडली मी दिन्यूं ई त्रिसूली,
सबी दीदी भुली मेरि मैत पौंछी गैने.
तेरी दीदी भुली न्युति होलि तू नी न्यूति गौरा,
तू कन कैक बिना बुलायां मैत जाली?


Contd....

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Thanks Hem bhai is Jaagar ke liye.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Source: http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0018.htm

नंदादेवी मेला-अल्मोड़ा

समूचे पर्वतीय क्षेत्र में हिमालय की पुत्री नंदा का बड़ा सम्मान है । उत्तराखंड में भी नंदादेवी के अनेकानेक मंदिर हैं । यहाँ की अनेक नदियाँ, पर्वत श्रंखलायें, पहाड़ और नगर नंदा के नाम पर है । नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाभनार, नंदाघूँघट, नंदाघुँटी, नंदाकिनी और नंदप्रयाग जैसे अनेक पर्वत चोटियाँ, नदियाँ तथा स्थल नंदा को प्राप्त धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं । नंदा के सम्मान में कुमाऊँ और गढ़वाल में अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं । भारत के सर्वोच्य शिखरों में भी नंदादेवी की शिखर श्रंखला अग्रणीय है लेकिन कुमाऊँ और गढ़वाल वासियों के लिए नंदादेवी शिखर केवल पहाड़ न होकर एक जीवन्त रिश्ता है । इस पर्वत की वासी देवी नंदा को क्षेत्र के लोग बहिन-बेटी मानते आये हैं । शायद ही किसी पहाड़ से किसी देश के वासियों का इतना जीवन्त रिश्ता हो जितना नंदादेवी से इस क्षेत्र के लोगों का है ।

कुमाऊँ मंड़ल के अतिरिक्त भी नंदादेवी समूचे गढ़वाल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं । नंदा की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में मिलते हैं । रुप मंडन में पार्वती को गौरी के छ: रुपों में एक बताया गया है । भगवती की ६ अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है । नंदा को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है । भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं । शिवपुराण में वर्णित नंदा तीर्थ वास्तव में कूर्माचल ही है । शक्ति के रुप में नंदा ही सारे हिमालय में पूजित हैं ।

नंदा के इस शक्ति रुप की पूजा गढ़वाल में करुली, कसोली, नरोना, हिंडोली, तल्ली दसोली, सिमली, तल्ली धूरी, नौटी, चांदपुर, गैड़लोहवा आदि स्थानों में होती है । गढ़वाल में राज जात यात्रा का आयोजन भी नंदा के सम्मान में होता है ।

कुमाऊँ में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पौथी, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा के मंदिर हैं ।अनेक स्थानों पर नंदा के सम्मान में मेलों के रुप में समारोह आयोजित होते हैं । नंदाष्टमी को कोट की माई का मेला और नैतीताल में नंदादेवी मेला अपनी सम्पन्न लोक विरासत के कारण कुछ अलग ही छटा लिये होते हैं परन्तु अल्मोड़ा नगर के मध्य में स्थित ऐतिहासिकता नंदादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगने वाले मेले की रौनक ही कुछ अलग है ।

अल्मोड़ा में नंदादेवी के मेले का इतिहास यद्यपि अधिक ज्ञात नहीं है तथापि माना जाता है कि राजा बाज बहादुर चंद (सन् १६३८-७८) ही नंदा की प्रतिमा को गढ़वाल से उठाकर अल्मोड़ा लाये थे । इस विग्रह को वर्तमान में कचहरी स्थित मल्ला महल में स्थापित किया गया । बाद में कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने नंदा की प्रतिमा को वर्तमान से दीप चंदेश्वर मंदिर में स्थापित करवाया था ।

अल्मोड़ा शहर सोलहवीं शती के छटे दशक के आसपास चंद राजाओं की राजधानी के रुप में विकसित किया गया था । यह मेला चंद वंश की राज परम्पराओं से सम्बन्ध रखता है तथा लोक जगत के विविध पक्षों से जुड़ने में भी हिस्सेदारी करता है ।

पंचमी तिथि से प्रारम्भ मेले के अवसर पर दो भव्य देवी प्रतिमायें बनायी जाती हैं । पंचमी की रात्रि से ही जागर भी प्रारंभ होती है । यह प्रतिमायें कदली स्तम्भ से निर्मित की जाती हैं । नंदा की प्रतिमा का स्वरुप उत्तराखंड की सबसे ऊँची चोटी नंदादेवी के सद्वश बनाया जाता है । स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया गया है कि नंदा पर्वत के शीर्ष पर नंदादेवी का वास है । कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नंदादेवी प्रतिमाओं का निर्माण कहीं न कहीं तंत्र जैसी जटिल प्रक्रियाओं से सम्बन्ध रखता है । भगवती नंदा की पूजा तारा शक्ति के रुप में षोडशोपचार, पूजन, यज्ञ और बलिदान से की जाती है । सम्भवत: यह मातृ-शक्ति के प्रति आभार प्रदर्शन है जिसकी कृपा से राजा बाज बहादुर चंद को युद्ध में विजयी होने का गौरव प्राप्त हुआ । षष्ठी के दिन गोधूली बेला में केले के पोड़ों का चयन विशिष्ट प्रक्रिया और विधि-विधान के साथ किया जाता है ।

षष्ठी के दिन पुजारी गोधूली के समय चन्दन, अक्षत, पूजन का सामान तथा लाल एवं श्वेत वस्र लेकर केले के झुरमुटों के पास जाता है । धूप-दीप जलाकर पूजन के बाद अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भ की और फेंके जाते हैं । जो स्तम्भ पहले हिलता है उससे नन्दा बनायी जाती है । जो दूसरा हिलता है उससे सुनन्दा तथा तीसरे से देवी शक्तियों के हाथ पैर बनाये जाते हैं । कुछ विद्धान मानते हैं कि युगल नन्दा प्रतिमायें नील सरस्वती एवं अनिरुद्ध सरस्वती की हैं । पूजन के अवसर पर नन्दा का आह्मवान 'महिषासुर मर्दिनी' के रुप में किया जाता है । सप्तमी के दिन झुंड से स्तम्भों को काटकर लाया जाता है । इसी दिन कदली स्तम्भों की पहले चंदवंशीय कुँवर या उनके प्रतिनिधि पूजन करते है । उसके बाद मंदिर के अन्दर प्रतिमाओं का निर्माण होता है । प्रतिमा निर्माण मध्य रात्रि से पूर्व तक पूरा हो जाता है । मध्य रात्रि में इन प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा व तत्सम्बन्धी पूजा सम्पन्न होती है ।

मुख्य मेला अष्टमी को प्रारंभ होता है । इस दिन ब्रह्ममुहूर्त से ही मांगलिक परिधानों में सजी संवरी महिलायें भगवती पूजन के लिए मंदिर में आना प्रारंभ कर देती हैं । दिन भर भगवती पूजन और बलिदान चलते रहते हैं । अष्टमी की रात्रि को परम्परागत चली आ रही मुख्य पूजा चंदवंशीय प्रतिनिधियों द्वारा सम्पन्न कर बलिदान किये जाते हैं । मेले के अन्तिम दिन परम्परागत पूजन के बाद भैंसे की भी बलि दी जाती है । अन्त में डोला उठता है जिसमें दोनों देवी विग्रह रखे जाते हैं । नगर भ्रमण के समय पुराने महल ड्योढ़ी पोखर से भी महिलायें डोले का पूजन करती हैं । अन्त में नगर के समीप स्थित एक कुँड में देवी प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है ।

मेले के अवसर पर कुमाऊँ की लोक गाथाओं को लय देकर गाने वाले गायक 'जगरिये' मंदिर में आकर नंदा की गाथा का गायन करते हैं । मेला तीन दिन या अधिक भी चलता है । इस दौरान लोक गायकों और लोक नर्तको की अनगिनत टोलियाँ नंदा देवी मंदिर प्राँगन और बाजार में आसन जमा लेती हैं । झोड़े, छपेली, छोलिया जैसे नृत्य हुड़के की थाप पर सम्मोहन की सीमा तक ले जाते हैं । कहा जाता है कि कुमाऊँ की संस्कृति को समझने के लिए नंदादेवी मेला देखना जरुरी है । मेले का एक अन्य आकर्षण परम्परागत गायकी में प्रश्नोत्तर करने वाले गायक हैं, जिन्हें बैरिये कहते हैं । वे काफी सँख्या में इस मेले में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं । अब मेले में सरकारी स्टॉल भी लगने लगे हैं ।

Mukesh Joshi

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धन्यवाद  पन्त जी आशा है जल्द ही पुरा होगा ये जागर
मैने एक बार ये केसीट नंदा देवी राज जात सुनी थी ,
लेकिन टेप रिकॉर्डर न ही है  और यम पि ३  सायद मार्केट  में आई नही
अगर आप के पास इस की कुछ अन्य प्रस्तुतिया हो तो जरुर दे  जैसे .
१ जै.....- जै  बोंला, जै भगोती नंदा
 नंदा उचा कैलाश की ..जै.....- जै  बोंला
ईस्ट देवी नंदा , नंदा कुमो गढ़वाल की
 जै.....- जै  बोंला
२ स्वामी जी शंकर मै थकी गे यु भोता.....आ  .....थकी गे यु भोता
 बिसोन बिसोला स्वामी ,तिसली बुझोला ..... तिसली बुझोला
त्रिशूल हिवाळी मारे कुण्ड पैदा करे .कुण्ड पैदा करे ( माँ गोरा ने कुण्ड के जल से प्यास बुझाई व रूपनिहारा )
ये कुण्ड को स्वामी जी क्या नाम धरुला ....क्या नाम धरुला
जल रूप छाया देखि गोरा तिन ये कुण्ड
तेरा रूप से गोरा यो रूप कुण्ड होलो ...रूप कुण्ड होलो ......



savitanegi06

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bahut achha varnan kiya hai yatra ka, aap sabhi badhai ke paatra hain,  ;)

 

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