Author Topic: Kameswer,shidheswer mandir Shrinar ,कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर श्रीनगर, गढ़वाल  (Read 5603 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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यह श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की आराधना की।

 उन्होंने उन्हें 1,000 कमल फूल अर्पित किये(जिससे मंदिर का नाम जुड़ा है) तथा प्रत्येक अर्पित फूल के साथ भगवान शिव के 1,000 नामों का ध्यान किया। उनकी जांच के लिये भगवान शिव ने एक फूल को छिपा दिया।

 भगवान विष्णु ने जब जाना कि एक फूल कम हो गया तो उसके बदले उन्होंने  अपनी एक आंख (आंख को भी कमल कहा जाता है)चढ़ाने का निश्चय किया। उनकी भक्ति        से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान कर दिया, जिससे उन्होंने असुरों का विनाश किया।
     
चूंकि भगवान विष्णु ने कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के चौदहवें दिन सुदर्शनचक्र प्राप्त किया था, इसलिये बैकुंठ चतुर्दशी का उत्सव यहां बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। यही वह दिन है जब संतानहीन माता-पिता एक जलते दीये को अपनी हथेली पर रखकर खड़े रहकर रात-भर पूजा करते हैं।


माना जाता है कि उनकी इच्छा        पूरी होती है। इसे खड रात्रि कहा जाता है और कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण        ने स्वयं इस मंदिर पर अपनी पत्नी जामवंती के आग्रह पर इस प्रकार की पूजा की        थी।


M S JAKHI



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कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मंदिर श्रीनगर, गढ़वाल का सर्वाधिक पूजित मंदिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की आराधना की।

 उन्होंने उन्हें 1,000 कमल फूल अर्पित किये (जिससे मंदिर का नाम जुड़ा है) तथा प्रत्येक अर्पित फूल के साथ भगवान शिव के 1,000 नामों का ध्यान किया। उनकी जांच के लिये भगवान शिव ने एक फूल को छिपा दिया।

 भगवान विष्णु ने जब जाना कि एक फूल कम हो गया तो उसके बदले उन्होंने अपनी एक आंख (आंख को भी कमल कहा जाता है)चढ़ाने का निश्चय किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान कर दिया, जिससे उन्होंने असुरों का विनाश किया।

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सिद्धेश्वर मंदिर, श्रीनगर, गढ़वाल,पौराणिक संदर्भ
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चूं[/color]कि भगवान विष्णु ने कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के चौदहवें दिन सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, इसलिये बैकुंठ चतुर्दशी का उत्सव यहां बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। यही वह दिन है जब संतानहीन माता-पिता एक जलते दीये को अपनी हथेली पर रखकर खड़े रहकर रात-भर पूजा करते हैं।

 माना जाता है कि उनकी इच्छा पूरी होती है। इसे खड रात्रि कहा जाता है और कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं इस मंदिर पर अपनी पत्नी जामवंती के आग्रह पर इस प्रकार की पूजा की थी।

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कहा जाता है कि इस मंदिर का ढ़ांचा देवों द्वारा आदि शंकराचार्य की प्रार्थना पर तैयार किया गया, जो उन 1,000 मंदिरों में से एक है, जिसका निर्माण रातों-रात गढ़वाल में हुआ था।

 मूलरूप में यह एक खुला मंदिर था जहां 12 नक्काशीपूर्ण सुंदर स्तंभ थे। संपूर्ण निर्माण काले पत्थरों से हुआ है, जिसे संरक्षण के लिये रंगा गया है। वर्ष 1960 के दशक में बिड़ला परिवार ने इस मंदिर को पुनर्जीवित किया तथा इसके इर्द-गिर्द दीवारें बना दी।


यहां का शिवलिंग स्वयंभू है तथा मंदिर से भी प्राचीन है। कहा जाता है कि गोरखों ने इस शिवलिंग को खोदकर निकालना चाहा पर 122 फीट जमीन खोदने के बाद भी वे लिंग का अंत नहीं पा सके। तब उन्होंने क्षमा याचना की, गढ़ढे को भर दिया तथा मंदिर को यह कहकर प्रमाणित किया कि मंदिर में कोई तोड़-फोड़ नहीं हो सकता।

 अन्य प्राचीन प्रतिमाओं में एक खास, सुंदर एवं असामान्य गणेश की प्रतिमा है। वे पद्माशन में बैठे है, एक कमंडल हाथ में है तथा गले से लिपटा एक सांप है। ऐसी चीजें जो उनके पिता भगवान शिव से संबद्ध होती हैं।



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मंदिर को पंवार राजाओं का संरक्षण प्राप्त था तथा उन्होंने 64 गांवों का अनुदान दिया, जिसकी आय से ही मंदिर का खर्च चलाया जाता था। बलभद्र शाह के समय (वर्ष 1575-1591) का रिकार्ड, प्रदीप शाह के समय (वर्ष 1755) का तांबे का प्लेट एवं प्रद्युम्न शाह (वर्ष 1787) तथा गोरखों का समय प्रमाणित करते हैं

 कि मंदिर का उद्भव एवं पवित्रता प्राचीन है। आयुक्त ट्रैल ने कोलकाता भेजे गये अपने रिपोर्ट में गढ़वाल के जिन पांच महत्त्वपूर्ण मंदिरों का वर्णन किया था उनमें से एक यह मंदिर भी था।

मंदिर के बगल में बने भवन भी उतने ही पुराने हैं तथा छोटे-छोटे कमरे की भूल-भुलैया जैसे हैं और प्रत्येक कमरे से दूसरे कमरे में जाया जा सकता है जिसे घूपरा कहते है। कहा जाता है कि जब गोरखों का आक्रमण हुआ तो प्रद्युम्न शाह यहीं किसी कमरे में तब तक छिपा रहा, जहां से कि सुरक्षित अवस्था में उसे बाहर निकाल लिया गया।

 मंदिर के पीछे, का वर्गाकार स्थल का इस्तेमाल परंपरागत रूप से श्रीनगर के प्रसिद्ध रामलीला के लिये होता रहा है।

वर्ष 1894 में गोहना झील में आए उफान से विनाशकारी बाढ़ में शहर का अधिकांश भाग बह गया लेकिन मंदिर को क्षति नहीं पहुंची।


कहा जाता है कि नदी का जलस्तर बढ़ता गया लेकिन ज्यों ही मंदिर के शिवलिंग से स्पर्श हुआ, जल स्तर कम हो गया। अगस्त 1970 में जब झील की दीवाल ढह गयी तो पुन: विशाल भू-स्खलन हुआ लेकिन मंदिर अछूता रहा।


मंदिर के महंथ आशुतोष पुरी के अनुसार मंदिर का प्रशासन सदियों से पुरी वंश के महंथों के हाथ रहा है। यहां गुरू-शिष्य परंपरा का पालन होता है तथा प्रत्येक महंथ अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने सबसे निपुण शिष्य को चुनता है।


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Prominent and popular todate and a very ancient Shiva temple enunciated by legendary accounts that Lord Rama worshipped Shiva here and offered lotus flower to him. Shiva tested Rama's devotion by stealing one of the lotus flower, and Lord Rama was ready to replace the lost flower with one of his eyes. On seeing this Lord Shiva was pleased and blessed him with Sudarshan Chakra. Hence the place is known as Kamleshwar.

http://www.srinagargarhwal.com/srinagar-temples.php

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History in Temples
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Temples, statues and idols are not mere craftsmanship and architecture. To perceive India and its culture, one needs to go through a rigorous process of understanding and relating rituals, deities, religion with symbols, design and architecture of such temples & monuments. Srinagar has that every aspect which compels you to absorb in this mystique yet simple relationship.


As you see in other places of India, Srinagar also has ample and in fact, a large number of temples and monuments of different scales, small to big. Many a times, the learned traveler of India, firstly the citizen of India, will find a commonness and some sort of replica in all the temples put together.


Difference lies there with the mythological and mystic importance it carries. The legend and the corresponding architecture it exhibits. Interestingly, having been destroyed and survived devastating natural calamities like earthquake and floods a number of times, the composite picture of a place, a site,

a temple gives you a reasonable idea of several layers of different times are present randomly in just one single structure. Partially it could be pre historic, partially it could be very ancient, partially it could be of not so distant past.

http://www.srinagargarhwal.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Details of Mahant worked in Shree Kamleshwar Temple

1)   Shree 108 Mahant Nirmalpuri Shishya keshav puri, 1787
2)   Shree 108 Mahant Prasadpuri Shishya Nimral Puri 1812
3)  Shree 108 Mahant shamsher Puri Shishya Peetambar Puri 1818
4)  Shree 108 Mahant Gambheer Puri Sshivya Prasad puri 1819
5)  Shree 108 Mahant Balbhadrapuri Shishya Shiv ram Puri 1840
6)  Shree 108  Mahant Hanumant Puri Shishya  Balbhdrapuri 1851
7)  Shree 108 Mahant Heera puri Shishya Daryav puri 1871
8)  Shree 108 Mahant Dayalpuri Shishya Hannmant PUri 1879
9)  Shree 108 Mahant Lalitanand Puri Shishya Dayalpuri 1919
10) Shree 108 Mahant Kamalanand Puri Shishya Gulab Puri 1931
11)  Shree 108 Mahant Govindpuri Shishya Kamalanand 1963
12)  Shree 108 Ashutosh Puri Shishya Govind puri san 2004 

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मंदिर समिति का पंजीकरण निरस्त
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जांच के उपरांत प्रदेश के निबंधक फ‌र्म्स सोसाइटीज ने कमलेश्वर मंदिर विकास समिति का पंजीकरण निरस्त कर दिया है। इस सम्बन्ध में निबंधक रमेश चंद्र अग्रवाल ने बीते 30 सितम्बर को आदेश जारी कर कहा गया है कि सम्बन्धित समिति के अध्यक्ष द्वारा समस्त तथ्यों को छिपाकर कपटपूर्ण तरीके से समिति का पंजीकरण कराया गया था। जांच में आरोप सिद्ध होने पर सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम की धारा 12 डी (1)(सी) के अंतर्गत पंजीकरण निरस्त कर दिया गया।

कमलेश्वर मंदिर के पुजारी महंत आशुतोष पुरी द्वारा इस समिति के खिलाफ 7 अगस्त 2010 को की गयी शिकायत के आधार पर यह जांच हुई थी। जांच में उपजिलाधिकारी श्रीनगर ने भी दी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कमलेश्वर मंदिर की देखरेख, उसका संचालन और पूजा अर्चना महंत श्री आशुतोष पुरी के द्वारा ही की जा रही है। मंदिर की देखरेख या संचालन किसी भी अन्य प्रबन्ध समिति या व्यक्ति के द्वारा नहीं किया जा रहा है।

 निबंधक ने अपने निर्णयों की प्रति महंत आशुतोष पुरी और समिति के अध्यक्ष रामेश्वर पुरी के साथ ही आयुक्त गढ़वाल मंडल, जिलाधिकारी पौड़ी, उप निबंधक पौड़ी को भी प्रेषित की है।

कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने सम्बन्धित समिति का पंजीकरण निरस्त होने को सत्य की जीत बताते हुए कहा कि मंदिर की संपत्ति पर हुए अवैध कब्जों को भी हटाया जाना जरूरी है। मंदिर के विकास के लिए श्रद्धालुजन द्वारा यदि कोई समिति बनायी जाती है तो उसका स्वागत है। लेकिन समिति को कमलेश्वर मठ मंदिर के विकास और अवैध कब्जों को हटाने का कार्य करना चाहिए।

 महंत आशुतोष पुरी ने कहा कि कमलेश्वर मठ मंदिर स्वयं में एक संस्था है और महंत इस संस्था का संरक्षक होने के साथ ही आमजन की भाषा में प्रबंधक भी होता है और यह परम्परा 1787 से चली आ रही है। 225 सालों पुरानी इस प्राचीन परम्परा को मंदिर हित और श्रद्धालुओं के विश्वास अनुसार समाप्त नहीं होने दिया जाएगा।


Source Dainik jagran

 

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