Author Topic: PATAL BHUBANESHWAR CAVE & GANGOLI HAAT MAHA KALI TEMPLE IN PITHORAGARAH, UK  (Read 51070 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
पाताल भुवनेश्वर

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट तहसील से 14 किमी दूर पाताल भुवनेश्वर का मंदिर धार्मिक आस्था के साथ ही कौतूहल का भी केंद्र है। गुफा में मौजूद मंदिर भगवान शिव का है। कहा जाता है ब्रह्मा स्वर्ग के दूसरे देवताओं के साथ यहां शिव अराधना के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर संकरे पानी की धारा से होते हुए गुफा में जाना होता है। गुफा के अंदर जाने का मुख्य रास्ता भी कई छोटी गुफाओं का रास्ता दिखाता है। गुफा में घुसते ही शुरुआत में नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही चट्टान से बने शेषनाग नजर आते हैं।

शेषनाग की रीढ़ से होते हुए गुफा के मध्य तक जाया जा सकता है, जहां गणेश जी मिलते हैं। उनके ऊपर गुफा की छत में चट्टान से बना कमल का फूल है, जिससे पानी टपकते हुए मूर्ति पर पड़ता है। ये गुफाएं चूना पत्थर की चट्टानों से बनी हैं। इनसे टपकता पानी कई तरह के आकार बनाता है। कहा जाता है कि ये आकार देवी-देवताओं को प्रतिरूपित करते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम या टनकपुर जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होगा। दिल्ली से यह 550 किमी दूर है। रहने के लिए गंगोलीहाट में होटल और धर्मशालाएं हैं। साल में जब भी मन करे यहां जाया जा सकता है।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Mahar ji 1 baar jaane ki tamanna hai Paataal Bhuvneshwar caves aur Kali Maa ke mandir. Dekho kab prabhu ichha hoti hai.

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0
Pankaj Daa.... Jhaa paani Tapaktaa hai esaa khaa jaata hai ki pehle whaa se Doodh tapakta tha...
पाताल भुवनेश्वर

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट तहसील से 14 किमी दूर पाताल भुवनेश्वर का मंदिर धार्मिक आस्था के साथ ही कौतूहल का भी केंद्र है। गुफा में मौजूद मंदिर भगवान शिव का है। कहा जाता है ब्रह्मा स्वर्ग के दूसरे देवताओं के साथ यहां शिव अराधना के लिए आते हैं। मंदिर के अंदर संकरे पानी की धारा से होते हुए गुफा में जाना होता है। गुफा के अंदर जाने का मुख्य रास्ता भी कई छोटी गुफाओं का रास्ता दिखाता है। गुफा में घुसते ही शुरुआत में नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही चट्टान से बने शेषनाग नजर आते हैं।

शेषनाग की रीढ़ से होते हुए गुफा के मध्य तक जाया जा सकता है, जहां गणेश जी मिलते हैं। उनके ऊपर गुफा की छत में चट्टान से बना कमल का फूल है, जिससे पानी टपकते हुए मूर्ति पर पड़ता है। ये गुफाएं चूना पत्थर की चट्टानों से बनी हैं। इनसे टपकता पानी कई तरह के आकार बनाता है। कहा जाता है कि ये आकार देवी-देवताओं को प्रतिरूपित करते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम या टनकपुर जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होगा। दिल्ली से यह 550 किमी दूर है। रहने के लिए गंगोलीहाट में होटल और धर्मशालाएं हैं। साल में जब भी मन करे यहां जाया जा सकता है।


हलिया

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 717
  • Karma: +12/-0
Pankaj Daa.... Jhaa paani Tapaktaa hai esaa khaa jaata hai ki pehle whaa se Doodh tapakta tha...
 

और किसी बाबा ने उस दूध से खीर बना कर खाई थी उसी दिन से वह दिखता दूध जैसा है और नीचे आने पर पानी हो जाता है.. ऐसा हमारे को हमारे बुजुर्ग बताने वाले ठैरे. 8)

हलिया

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 717
  • Karma: +12/-0
जरूर हो कर आइये अनुभव जी, आपको बहुत अच्छा लगेगा।

Mahar ji 1 baar jaane ki tamanna hai Paataal Bhuvneshwar caves aur Kali Maa ke mandir. Dekho kab prabhu ichha hoti hai.

sagarcmi

  • Newbie
  • *
  • Posts: 1
  • Karma: +0/-0
TOURISM HAS HUGE POTENTIAL AS WE ALL NOW AND SAY IT OFTEN, BUT SADLY HARDLY ANYTHING CONCRETE HAS BEEN DONE, ALTHOUGH A LOT HAS BEEN DONE ON PAPER. FOR EXAMPLE PATAL BHUBNESHWAR CAN CHANGE THE LIFE OF ALL THE VILLAGES AROUND IT. IT CAN BE DONE BY PRESERVING THE ESSENCE OF THAT PLACE. NO BIG HOTELS OR FANCY RESORTS ARE NEEDED. I DON'T KNOW IF ANYTHING HAS COME UP NOW. LOCAL PEOPLE CAN BE ENTIRELY INVOLVED IN PROMOTING TOURISM. BASIC AMENITIES CAN BE PROVIDED, BUT THERE IS SO MUCH RED TAPISM THAT ITS FRUITLESS TO VENTURE THERE. IF ANYONE IS SERIOUSLY INTERESTED IN SETTING UP AMENITIES THERE TO PROMOTE ECO TOURISM PLEASE DO CONTACT sagarcmi@hotmail.com

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
मां हाट कालिका का महात्म्य
« Reply #37 on: July 14, 2008, 02:26:43 PM »
मां महाकाली महात्म्य

छठी शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जब जागेश्वर आये तो शिव प्रेरणा से उनके मन में यहां आने की इच्छा जागृत हुई, लेकिन यहां पहुंचने पर नरबलि की बात सुन कर दैवीय स्थल की सत्ता को स्वीकार करने से इंकार कर वे शक्ति के दर्शन करने से विमुख हो गये। कहा जाता है कि विश्राम के बाद जब शंकराचार्य जी ने देवी जगदम्बा की माया से मोहित होकर मंदिर के शक्ति परिसर में जाने की इच्छा व्यक्त की तो शक्ति स्थल पहुंचने से पहले स्थित गणेश प्रतिमा से आगे नहीं बढ़ पाये और अचेत होकर वहीं गिर गये। कई दिनों तक ऎसे ही पड़े रहने के कारण उनकी आवाज भी बंद हो गई, वे प्यास से भी बिलख रहे थे। तब उन्हें अपने अहं भाव व कटु वचनों के लिये पश्चाताप भी हो रहा था, पश्चाताप का भाव जागृत होने और मां भगवती का अन्तःमन से स्मरण करने पर देवी ने गुरु शंकराचार्य को दर्शन दिये और स्वयं उन्हें जल पिलाया।
       चेतन अवस्था में लौटने पर शंकराचार्य ने मंत्र शक्ति और योगसाधना के बल पर शक्ति के दर्शन किये और महाकाली के रौद्र रुप को शान्त कर लोहे के सात भदेलों (कड़ाही) से कीलन कर प्रतिष्ठित किया। ऎसा भी कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां पर श्री यंत्र की भी स्थापना की थी, जो शालिग्राम से ढका हुआ है, इसकी ऊपरी सतह तांबे की परत से ढकी है। पूरे उत्तराखण्ड में विख्यात इस शक्ति पीठ के विषय में कहा जाता है कि महिषासुर, चण्ड-मुण्ड और शुम्भ-निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का यह रौद्र रुप शांत नहीं हुआ तो उन्होंने महाकाल का भयंकर रुप ले लिया और यहां देवदार के वृक्ष में चढ़कर जागनाथ और भुवनेश्वर नाथ को आवाज लगाने लगीं। ऎसा भी कहा जाता है कि यह आवाज जिस किसी को भी सुनाई देती थी, उसकी मौत हो जाती थी। बाद में स्वयं शिव जी ने उनके रास्ते में लेट्कर  उनके गुस्से को शांत किया।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
मंदिर निर्माण के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व नागा पंथ के महात्मा जंगम बाबा ने रुद्र दत्त पंत के साथ आकर इस भूमि को अपनी कर्मस्थली बनाया। उन्होंने ही सर्वप्रथम यहां जगदम्बा भगवती के लिये मंदिर निर्माण का कार्य शुरु किया था।  किंतु मंदिर के निर्माण के लिये पत्थरों की आवश्यकता थी, यही सोचते हुये जब जंगम बाबा गहरी निद्रा में सोये थे तो उस समय देवी ने उन्हें सपने में देवदार के वृक्षों से घिरे उस स्थान का बोध कराया, जहां पत्थरों की खान थी। सपना भंग होने के उपरान्त बाबा ने अपने शिष्यों के साथ उस स्थान के लिये प्रस्थान कर रात्रि में ही मंदिर निर्माण के लिये पत्थर निकालने प्रारम्भ कर दिये और ऎसा कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद पत्थर की खान स्वतः ही समाप्त हो गई।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
मां महाकाली महात्म्य
« Reply #39 on: July 14, 2008, 02:49:04 PM »
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब रात में कालिका को डोला चलता है तो उसके साथ कालिका के आण-बाण भी चलते हैं। यदि कोई व्यक्ति उस डोले को छू ले तो दिव्य वरदान का भागी बनता है।
      प्रतिदिन सांध्य आरती के बाद महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है, प्रातःकाल बिस्तर पर पड़ी सलवटें देखकर ऎसा प्रतीत होता है कि जैसे देवी ने उस पर विश्राम किया हो।
       जनश्रुति है कि गंगोलीहाट संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान कालिदास की भी तपस्थली रहा है। कालिदास के वंशज कौश्लया गोत्र ब्राह्मण कैलाश यात्रा पथ पर रहते हैं। इनके घरों में कालिदास के मेघदूत व रघुवंश की पाण्डुलिपियां होना बताया जाता है।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22