Author Topic: Pilgrimages In Uttarakhand - उत्तराखंड के देवी देवता एव प्रसिद्ध तीर्थस्थल  (Read 64934 times)

Risky Pathak

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Mehta Jee, Is Mandir Ke Baare me To nahi Suna.... Waise "Kamedi Devi" bhi 1 mandir hai.. Shayad Usi ko Bhadrakaali Mandir Kehte Ho...



Have u heard about Bhadrakali Temple. Even in following chant, name of this place is mentioned.

Jayanti Mangla Kali,
Bhadrakali Kapalani.

This place is in UK. Somewhere near Kamedi Devi (berinag side), pithoragarh Distt. Where a village is called Tangnaar where this temple is situated.


Risky Pathak

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There is also a Mandir.. "Kotgaari Devi" Mandir.. near Pankhu(Nearest Road Connectivity)..

Hope Mehta Jee, Mehar Jee.. Aap ne is Mandir ke baare me Sunaa hogaa...


Kuch Varsh phle tak Mandir me Bakre ki Bali di jaati thi.. But kuch varsh phle yhaa Kisi Manushya ki Goli Markar Hatya kar di gyi thi tab se yhaa Pashu Bali Varjit Hai.... Ab Bali ka kaam "Bhaneria Gaar"(500m Low to Kotgari Devi) par hota hai..

Next Visit par aap ko is mandir ki photo Uplabdh Karwaunga..

Risky Pathak

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Sangaad  Me "Nauling" Devtaa ka mandir hai

Bhanaar Me "Banjer" Devtaa ka mandir hai

Shikhar Me "Mool Narayan" Devtaa ka mandir hai

In Devtao or inke mandiro ke upar Rama Cassetes ka 1 Song bhi aa chuka hai...
Sangaadaa naulingaa... Bhanaaraa Banjeraa..
Shikharaa Muwenaa.... Meri Bhagwati Dainaa....




Mehargaadi Me "Nanda Devi" ka Mandir hai


Risky Pathak

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HARU Devta ki 1 or katha


Inka janma Bujurkot,Talla Salta, almora me 200 varsha purva hua tha.... Inka asli Naam "Har Singh Heet" Thaa....Inke Pita ka naam "Samar Singh Heet" Thaa....
Haru Singh Heet ke Isht Devta "Bala Goriya" the...
Ye ek Kushal or Nyay Priya raja The.....

Inka Vivah "Malla Saukyaad" ki "Maalu Rauteli" ke saath hua thaa....

Jai Haru Devta...


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स्थानीय देवता
 
सत्यनाथ :

यह संभव है कि सत्यनारायण से इनका संबंध हो।  यह सिद्ध सत्यनाथ या सिद्ध भी कहलाते हैं।  इनकी पूजा गढ़वाल में ज्यादा होती है।  कुमाऊँ में मानिला में ही एक मंदिर इस देवता का है।

भोलानाथ :

'भ्वालनाथ' कहे जाते हैं।  इनकी स्री बमी कहलाती है।  इनको कुछ लोग महादेव का अंग तथा बमी को शक्ति का अंश मानते हैं।  परन्तु इनके उत्पत्ति की कहानी इस प्रकार है - राजा उदयचंद की दो रानियाँ थी, जिनमें से प्रत्येक के एक पुत्र था।  जब दोनों बड़े हुए तो बड़ा राजकुमार बुरी संगति में पड़ने से राज्य से निकाला गया।  छोटा राजकुमार ज्ञानचंद के नाम से गद्दी पर बैठा।  थोड़े दिनों में बड़ा राजकुमार साधु के भेष में अल्मोड़ा आकर नैल पोखर में ठहरा।  वह पहचाना गया।  राजा ज्ञानचंद ने यह समझकर की कहीं गद्दी छिनने को न आया हो, एक बड़िया माली द्वारा उसको तथा उसकी गर्भवती स्री को मार डाला।  राजकुमार की स्री ब्राह्मणी थी।  उससे उन्होंने नियोग कर लिया था।  मृत्यु के बाद वह राजकुमार भोलानाथ केे नाम से भूत हो गया।  ये तीनों भूत अल्मोड़ा को लोगों को सताने लगे, ज्यादातर बड़िया लोगों को।  तब अल्मोड़ा में आठ भैरव मंदिरों का निर्माण हुआ -

१. काल भैरव

२. बटुक भैरव

३. भाल भैरव

४. शै भैरव

५. गढ़ी भैरव

६. आनंद भैरव

७. गौर भैरव

८. खुटकूनियाँ

दूसरी कहानी यह है कि कोई फकीर किसी प्रकार दरवाजा बंद होने पर भी रनवास में चला गया, जहाँ राजा व रानी बैठे थे।  राजा ने क्रोध में आकर उस फकीर को मार डाला।  राजा को भूत चिपट गया।  वह सो न सका, चारपाई से नीचे गिराया गया।  चारपाई ऊपर हो गई।  तब राजा ने पंडितों की राय से ये मंदिर बनवाये।

गंगानाथ :

यह शुद्रों का प्रिय देवता है।  डोटी के राजा वैभवचंद का पुत्र पिता से लड़कर साधु हो गया।  घूमता-घामता वह पट्टी सालम के अदोली गाँव में एक ब्राह्मण जोशी की स्री के प्रेम-पाश में फँस गया।  जोशी अल्मोड़ा में नौकर था।  जब उसे मालूम हुआ, तो उसने झपरुवा लोहार की सहायता से अपनी गर्भवती स्री तथा उसके राजकुमार साधु प्रेमी को मरवा डाला।  भोलानाथ की तरह ये तीन प्राणी भी भूत हो गये।  अत: उन्होंने इनका मंदिर बनवाया।

कहते हैं, गंगानाथ बच्चों व खूबसूरत औरतों को चिपटता है।  जब कोई भूत-प्रेत से सताया जावे या अन्यायी के फंदे में फँस जावे, तो वह गंगानाथ की शरण में जाता है।  गंगानाथ अवश्य रक्षा करते हैं।  अन्यायी को दंड देते हैं।  गंगानाथ को पाठा (छोटा बकरा), पूरी, मिठाई, माला, वस्र या थैली, जोगियों की बालियाँ आदि चीजें चढ़ाई जाती हैं।  उसकी स्री भाना को अंग (आंगड़ी), चदर और नथ और बच्चे को कोट तथा कड़े व हसुँली।

मसान खबीस :

ये शमशान के भूत हैं, जो प्राय: दो नदियों के संगम में होते हैं।  काकड़ीघाट तथा कंडारखुआ पट्टी में कोशी के निकट इनके मंदिर भी हैं।  जिस किसी को भूत लगने का कारण ज्ञात न हो, तो वह मसान या खबीस का सताया हुआ कहा जाता है।  मसान काला व कुरुप समझा जाता है।  वह चिता-भ से उत्पन्न होता है।  लोगों के पीछे दौड़ता है।  कोई उसके त्रास से मर जाते हैं, कोई बीमार हो जाते हैं, कोई पागल।  जब किसी को मसान लगा तो 'जागर' लगाते हैं।  कई लोग नाचते हैं।  भूत-पीड़ित मनुष्य पर उर्द व चाँवल जोर से फेंकते हैं।  बिच्छु घास भी लगाते हैं।  गरम राख से अंगारे फेंकते हैं।  भूत-पीड़ित मनुष्य कभी-कभी इन उग्र उपायों से मर जाता है।  खबिस भी मिसान ही सा तेज मिजाज वाला होता है।  वह अँधेरी गुफाओं, जंगलों में पाया जाता है।  कभी वह भैंस की बोली बोलता है कभी भेड़-बकरियों या जंगली सुअर की तरह चिल्लाता है।  कभी वह साधु भेष धारण कर यात्रियों के साथ चल देता है।  पर उसकी गुनगुनाहट अलग मालूम होती है।  यह ज्यादातर रात को चिपटता है।

ग्वाल :

इसको गोरिल, गौरिया, ग्वेल, ग्वाल्ल या गोल भी कहते हैं।  यह कुमाऊँ का सबसे प्रसिद्ध व मान्य ग्राम-देवता है।  वैसे इसके मंदिर ठौर-ठौर में है, पर ज्यादा प्रसिद्ध ये हैं।  बौरारौ पट्टी में चौड़, गुरुड़, भनारी गाँव में, उच्चाकोट के बसोट गाँव में, मल्ली डोटी में तड़खेत में, पट्टी नया के मानिल में, काली-कुमाऊँ के गोल चौड़ में, पट्टी महर के कुमौड़ गाँव में, कत्यूर में गागर गोल में, थान गाँव में, हैड़ियागाँव, छखाता में, चौथान रानीबाग में, चित्तई अल्मोड़ा के पास।

ग्वाल देवता गी उत्पत्ति इस प्रकार से बतायी जाती है - चम्पावद कत्यूरी राजा झालराव काला नदी के किनारे शिकार खेलने को गये।  शिकार में कुछ न पाया।  राजा थककर और हताश होकर दूबाचौड़ गाँव में आये।  जहाँ दो भैंस एक खेत में लड़ रहे थे।  राजा ने उनको छुड़ाना चाहा पर असफल रहे।  राजा प्यासा था।  एक नौकर को पानी के लिए भेजा, पर पानी न मिला, दूसरा नौकर पानी की तलाश में गया।  उसने पानी की आवाज सुनी, तो अपने को एक साधु के आश्रम के बगीचे में पाया।  वहाँ आश्रम में जाकर देखा कि एक सुन्दर स्री तपस्या में मग्न है।  नौकर ने जोर से पुकारा, और स्री की समाधि भंग कर दी।  औरत ने पूछा कि वह कौन है?  स्री ने धीरे-धीरे आँखे खोली और नौकर से कहा कि वह अपनी परछाई  उसके ऊपर न डाले, जिससे उसकी तपस्या भंग हो जाय।  नौकर ने स्री को अपना परिचय दिया, और अपने आने का कारण बताया।  तथा झरने से पानी भरने लगा। तो घड़े का छींट स्री के ऊपर पड़ा तब उस तपस्विनी ने उठकर कहा कि जो राजा लड़ते भैसों को छुड़ा न सका, उसके नौकर जो न करे, सो कम।  नौकर को इस कथन पर आश्चर्य हुआ।  उसने स्री से पूछा कि वह कौन है?  तपस्विनी ने कहा - "उसका नाम काली है, और व राजा की लड़की है।  वह तपस्या कर रही है।  नौकर ने आकर उसकी तपस्या भंग कर दी।' राजा उस पर मोहित हो गये, और उससे विवाह करना चाहा।  राजा उसके चाचा के पास गये। देखा - वह एक कोढ़ी था।  पर राजा काली पर मोहित थे।  उन्होंने उस कोढ़ी को अपने सेवा-सुश्रुषा से संतुष्ट कर लिया, और वह विवाह को राजी हो गया।  अपने चाचा की आज्ञास से उस स्री ने राजा से विवाह कर लिया।  काली रानी गर्भवती हुई। राजा ने रानी से कहा था कि जब प्रसव पीड़ा हो तो वह घंटी बजावे।  राजा आ जाएगा।  रानियों ने छल से घंटी बजाई।  राजा आये, पर पुत्र पैदा न हुआ।  राजा फिर दौरे में चले गए।  रानी के एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ।  अन्य रानियों ने ईर्ष्या के कारण पुत्र को छिपा लिया।  काली रानी की आँखों में पट्टी बाँधकर उसके आगे एक कद्दुू रख दिया।  रानियों ने लड़के को नमक से भरे एक पिंजरे में बन्द कर दिया। पर आश्चर्य है कि नमक चीनी हो गया।  और बच्चे ने उसे खाया।  इधर रानियों ने बच्चे को जिन्दा देखकर पिंजरे को नदी में फेंक दिया।  वहाँ वह मछुवे के जाल में फंसा।  मछुवे के सन्तान न थी।  ईश्वर की देन समझकर वह सुन्दर राजकुमार को अपने घर ले गया।  लड़का बड़ा हुआ और एक काठ के घोड़े पर चढ़कर उस घाट में पानी पिलाने को ले गया, जहाँ वे दुष्ट रानियाँ पानी भरने को जाती थीं।  उनके बर्तन तोड़कर कहने लगा कि वह अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाना चाहता है।  वे हँसी, और कहने लगी की क्या काठ का घोड़ा भी पानी पीता है?  उसने कहा कि जब स्री को कद्दुू पैदा हो सकता है तो काठ का घोड़ा भी पानी पीता है।  यह कहानी राजा के कानों में पहुँची।  राजा ने लड़के को बुलाया।  लड़के ने रानियों के अत्याचार की कहानी सुनाई।  राजा ने सुनकर रानियों को तेल की कढ़ाई में पकाये जाने का हुक्म दिया।  बाद में वह राजकुमार राजा बना।  वह अपने जीवन-काल में ही पिछली बातों को जानने के कारण पूजा जाता था।  मृत्यु के बाद तमाम कुमाऊँ में माना जाने लगा।  वह लोहे का पिंजरा गौरी-गंगा में फेंका गया था।

क्षेत्रपाल या भूमियाँ :

यह खेतों का तथा ग्राम सरहदों का छोटा देवता है।  यह दयालु देवता है।  यह किसी को सताता नहीं।  हर गाँव में एक मंदिर होता है।  जब अनाज बोया जाता है या नवान्न उत्पन्न होता है, तो उससे इसकी पूजा होती है, ताकि यह बोते समय ओले (डाल बायल) या जंगली जन्तुओं से उनका बचाव करे, और भंडार में जब अन्न रखा जाये, तो कीड़े और चूहों से उसकी रक्षा करें।  यह न्यायी देवता है।  यह अच्छे को पुरस्कार तथा धूर्त को दंड देता है।  गाँव की भलाई चाहता है।  विवाह, जन्म या उत्सव में इसकी पूजा होती है।  रोट व भेंट चढाई जाती है।  यह सीधा इतना है कि फल-फूल से भी संतुष्ट हो जाता है। जागीश्वर में क्षेत्रपाल का मंदिर है।  वहाँ वह झाँकर-क्षेत्र का रक्षक माना जाता है और झाँकर सैम कहलाता है।  (सैम शब्द स्वयंभू शब्द का अपभ्रंश है, जो नेपाल में बुद्ध का नाम है - अठकिन्सन) कभी यहाँ बकरे भी मारे जाते हैं।  बौरारौ में भी एक मंदिर है।  सैम व क्षेत्रपाल के कर्तव्यों में कुछ भेद है।  पर यह भी भूत-कक्षा मंे।  कभी-कभी वह लोगों को चिपट जाता है जिसका निशान यह है कि सिर के बालों की जटा बन जाती है।  काली कुमाऊँ में सैमचंद भूत हरु का अनुगामी माना जाता है।

ऐड़ी या ऐरी :

कुमाऊँ के जमींदारों में एक जाति ऐड़ी या ऐरी है।  इस जाति का एक मनिष्य बड़ा पहलवान व बली हुआ।  उसको शिकार खेलने का बहुत शौक था।  वह जब मरा, तो भूत हो गया।  बालकों व स्रियों को चिपटने लगा।  जब उनके बदन में नाचने लगा, तो कहने लगा कि 'वह ऐड़ी या ऐरी है।  उसको हलुवा, पूरी, बकरा वगैरह चढ़ाकर उसकी पूजा करो, तो वह बालको व औरतों को छोड़ देगा"  अब तमाम लोगों में वह इस प्रकार पूजा जाने लगा।  जगह-जगह में उसके मंदिर भी बन गये।  काली कुमाऊँ में इसके मंदिर बहुत हैं। लोग कहते हैं कि ऐड़ी डांडी में चढ़कर बड़े-बड़े मंदिरों में शिकार खेलता है।  ऐड़ी की डांडी ले जाने वाले 'साऊ भाऊ' कहलाते हैं।  जो उसके कुत्ते का भौंकना सुनेगा, वह अवश्य कुछ कष्ट पायेगा।  ये कुत्ते ऐड़ी के साथ में रहते हैं।  उनके गलों में घंटी लगी रहती है।  जानवरों को घेरने के लिए और भूत भी साथ चलते हैं, जिनको परी कहते हैं।  ये 'आँचरी कींचरी' भी कहलाती हैं।  हथियार ऐड़ी का तीर व कमान है।  कभी-कभी जंगल में बिना जख्म का कोई जानवर मरा हुआ पाया जाता है, तो उसे ऐड़ी का मारा हुआ बताते हैं।  यह भी कहते हैं कि कभी-कभी ऐड़ी का चलाया हुआ तीर आले (मकान से धुवाँ निकलने के छेद) में से मकान के भीतर घुस जाता है।  जब किसी मनुष्य को वह लगता है, तो कहते हैं कि लुंज-पुंज हो जाता है।  उसकी कमर टूट जाती है।  बदन सूख जाता है।  हाथ-पैर कांपने लगते हैं।  यह बाबत पहाड़ी किस्सा है। 'डालामुणि से जाणो, जाला मुणि नी सेणो"।  पेड़ के नीचे सो जाना, पर आले के नीचे न सोना चाहिए।

ऐड़ी की सवारी कभी-कभी लोग देखते भी है।  झिजाड़ गाँव का एक किसान किसी काम को गाँव से बाहर गया था।  चाँदनी रात थी।  एकाएक कुत्तों के गले में बँदी घंटी व जानवरों को घेरने की आवाज आई।  किसान ने पहचाना की वह ऐड़ी है।  उसने उसकी डांडी पकड़ ली।  छोड़ने को बहुत कहा, पर उस वीर किसान ने न छोड़ा।  तब वरदान मांगने को कहा।  उसने कहा कि यह वरदान माँगता हूँ कि देवता की सवारी उनके गाँव में नहीं आये।  ऐड़ी ने स्वीकार किया।  कहते हैं कि यदि किसी पर ऐड़ी की न पड़ गई, तो वह मर जाता है, पर ऐसा कम होता है, जो अस्र-शस्रों से सुसज्जित रहते हैं।  ऐड़ी का थूक जिस पर पड़ गया, तो विष बन जाता है।  इसकी दवा 'झाड़-फूँक' है।  ऐड़ी को सामने-सामने देखने से मनुष्य तुरंत मर जाता है, या उसकी आँखों की ज्योति भ हो जाती है, या उसे कुत्ते फाड़ डालते हैं, या परियाँ (आँचरी, कींचरी) उसके कलेजे को साफ कर देती है।  अगर ऐड़ी को देखकर कोई बच जावे, तो वह धनी हो जाता है।  ऐड़ी का मंदिर जंगल में होता है। वहाँ एक त्रिशूल गाड़ा रहता है, जिसके इधर-उधर दो पत्थर रहते हैं, जिन्हें माऊ कहते हैं, और आँचरी, कींचरी भी कहते हैं।  दो दफे नहाते व एक दफे भोजन करते हैं।  किसी को छूने नहीं देते।  इसको दूध, मिठाई, पूरी, नारियल वा बकरा चढ़ाया जाता है।  लाल वस्र खून में रंगाकर वहाँ पर झंडे को तौर पर गाड़ा जाता है।  पत्थरों की पूजा होती है, तब सभी लोग पूरी-प्रसाद खाते हैं।  कहीं-कहीं कुँवार (आश्विन) की नवरात्रियों में भी पूजन होता है।

कलविष्ट :

लगभग २०० वर्ष की बात है कि कोटयूड़ी का पुत्र कलू कोटयूड़ी नाम का एक राजपूत पाटिया ग्राम के पास कोटयूड़ा कोट में रहता था।  उसकी माता का नाम दुर्पाता (द्रोपदा) था।  उसके नाना का नाम रामाहरड़ था।  वह बड़ा वीर व रंगीला नौजवान था।  वह किसान था, पर राजपूत होने पर भी ग्वाले का काम करता था।  वह बिनसर के जंगल में गायें चराता था नदी में नहाने (खाल बैठने) को ब्रह्मघाट (कोशी) में जाता था।

उसके पास ये सामान बताया जाता है -'मुरली, बाँसुरी, मोचंग, परवाई, रमटा, घुंघरवालो, दातुले, रतना, कामली, झपुवा, कुत्तो लखमा, बिराली, खनुवा, लाखो रुमोली, घुमेली, गाई, झगुवा, रांगो (भैंसा), नागुली, भागुली भैंसी, सुनहरी दातुलो, बाखुड़ी भैंस।'

कलविष्ट मुरली खूब बजाता था।  बिनसर में सिद्ध गोपाली के यहाँ दूध पहुँचाता था, और साथ ही श्री कृष्ण पांडेजी की नौलखिया पांडेजी से लड़ाई थी।  वे देश से 'भराड़ी' नामक एक प्रकार के भूत को इस गरज लाये कि वह श्री कृष्ण पांडेजी के खानदान को नष्ट कर दे।  पर कलवृष्ट एक वीर पुरुष था।  वह भूतों को भगाता था।  'भराड़ी' को भी उसने एक नदी (त्यूनरीगाड़) में एक पत्थर के नीचे दबा दिया, और हर तरह से श्री कृष्ण की मदद करता था।  बाद में प्रार्थना करने पर 'भराड़ी' को छोड़ दिया।  नौलखिया पांडे इस प्रकार अपने कार्य में सफलीभूत न होने पर रुष्ट हुआ, और उसने एक चाल चली, जिससे श्री कृष्ण पांडे और कलविष्ट के बीच लड़ाई हो जाए।  उसने यह झूठी खबर उड़ाई कि कलविष्ट श्री कृष्ण पांडेसे गुप्त रुप से मिला है।  श्री कृष्ण दिल में जानता था कि उसकी स्री निर्दोष है, तथापि लोकापवाद को दूर करने के गरज से उसने कलविष्ट को मारने की ठहराई।  श्री कृष्ण राजा का पुरोहित था।  उसने राजा से कलविष्ट की शिकायत की, और उसे मारने को कहा।  राजा ने सभी जगह पत्र भेजे तथा पाँच पान के बीड़े भेजे कि देखें कौन कलविष्ट को मारने का बीड़ा उठाता है।

जयसिंह टम्टा ने बीड़ा उठाया।  राजा ने कलविष्ट को सादर दरबार में बुलाया।  उस दिन श्राद्ध था, उससे दही - दूध लेकर आने को कहा।  कलविष्ट बड़े-बड़े बर्तनों (ठेकों व डोकों) में इतना दही-दूध लेकर गया कि राजा चकित हो गया।  राजा ने कलविष्ट को देखा उसके माथे में त्रिशूल और पैर में पद्म का फूल था।  वह बड़ा वीर और सच्चरित्र पुरुष ज्ञात हुआ। राजा ने कहा, वह उसे न मारेगा।  उसने बड़ी-बड़ी करामते दिखाई। राजा ने एक दिन उसके तथा जयसिंह टम्टा के बीच कुश्त ठहराई।  नाक काटने की शर्त पर कुश्ती ठहरी। राजा, रानी तथा दरबारियों का सामने कुश्ती हुई। कलविष्ट ने जयसिंह टम्टा को चित्त कर दिया, और नाक काट डाली।  दरबार में धाक बैठ गई।  कलविष्ट से बहुत से लोग जलने लगे।  उन्होंने उसे मारने की ठहराई।

दयाराम पछाइ (पालीपछाऊँ के रहने वाले) ने कहा कि कलविष्ट अपने भैसों को लेकर चौरासी माल (तराई भावर) में जावे तो अच्छा हो, वहाँ भैसों के धरने के लिए अच्छा स्थान है।  पर दिल में यह कपट था कि वह (तराई भावर) में खत्म हो जाएगा, या वहाँ मुगलों द्वारा मारा जाएगा।

कलविष्ट नथुवाखान, रामगाड़, भीमताल होकर भावर में गया।  वहाँ १६०० मंगोली सेना उसे मिली।  उनके नेता सूरम व भागू पठान थे।  साथ ही श्री गजुबा ढ़ींगा तथा भागा कूर्मी भी उक्त पठानों से मिल गये।  सब ने उसे मारने की धमकी दी।  उन्होंने उसकी ताकत आजमाने को उससे एक बड़ी बल्ली (भराणे) उठाने को कहा।  उसने उठा दिया।  उन्होंने प्रपंच रचा।  मेला किया।  गुप्त रुप से हथियार एकत्र किये।  उसके बिल्ली-कुत्तों ने गुप्तचर का काम किया।  उसको सूचना दे दी।  मेले में कलविष्ट ने कहा कि वह पहाड़ी नाच दिखाएगा, उसने उस बड़ी बिल्ली को उठाकर चारों ओर घुमाया, और अपने दुश्मनों को ठंडा कर दिया।  तब वह चौरासी माल को गया।  कलविष्ट ने वहाँ के सब शेरों को जो ८४ की संख्या में थे मार डाला।  बड़े शार्दूल (गाजा केसर) को खनुवा लाखे ने मार डाला।

चौरसी से चलकर कलविष्ट पालीपछाऊँ दयाराम के यहाँ गया।  उसने कहा कि चौरासी तो अच्छी है, पर शेर बहुत हैं।  दयाराम ने पूछ-ताछ की, तो सब शेर मरे हुए पाए गये।  कलविष्य ने दयाराम को दगा करने के लिए श्राप दिया कि उसने छल करके उसे चौरासी माल भिजवाया था, पर वह बच गया।  अब यदि कपट से मारा जाएगा, तो वह भूत बनकर पालीपछाऊँ के लोगों को चिपटेगा।  इस समय कलविष्ट की पूजा पालीपछाऊँ में ज्यादा होती है।

फिर कलविष्ट कपड़खान में आया।  यहाँ काठघर में रहना शुरु किया।  वहाँ रात को 'दोष' एक प्रकार के भूत ने तंग किया।  भैंसो को दुहने न दिया।  रात भर कलविष्ट की 'दोष' से लड़ाई हुई।  'दोष' प्रात: काल हार गया।  कलविष्ट ने उससे वचन लिया कि वह किसी को तंग न करे, बल्कि भूले-भटके को रास्ता दिखाए।

जब अनेक प्रपंच करने पर भी वीर कलू कोटयूड़ी न मरा, तो श्री कृष्ण ने लखड़योड़ी नामक उसके साढ़ को बहकाया कि वह किसी तरह छल (चाला) करके उसे मारे।  लखड़योड़ी ने एक भैंस के पैर में कील ठोंक दी।  तब कलू कोटयूड़ी से मिलने गया।  कलू कोटयूड़ी ने आने का कारण पूछा, तो उसने कहा कि वह भैंस माँगने आया है।  इसने कहा कि जितने चाहिए लखड़योड़ी ले जावे।  पर लखड़योड़ी ने कहा कि भैंस के पै में क्या हो रहा है?  देखा, तो मेख ठुकी हुई थी।  कलू कोटयूड़ी ने दाँस से मेख निकालनी चाही, तो लखड़योड़ी ने खुकरी से कलू कोटयूड़ी के दोनों पैर काट दिए गये।  कोटयूड़ी ने भी लखड़योड़ी को मार डाला और श्राप दिया कि उसने दगाबाजी से मारा है, उसके खानदान में कोई नहीं रहेगा।

चौमू :

यह चौपायों की रक्षा तथा विनाश करने वाला छोटा ग्राम - देवता है।  इसका आदि स्थान स्यूनी तता द्वारसौं के बीच है। १५वीं शताब्दी के मध्य में एक ठा. रणबीर राना नाव देश्वर का लिंग लेकर चंपावत से अपने घर को आ रहे थे, जो कि रानीखेत के पास था।  किंरग राणा साहब की पगड़ी में बँधा था।  धारीघाट के पास उन्होंने पानी के निकट पगड़ी उतारी। हाथ-मुँह धोकर पगड़ी उठाने लगे, न उठी।  सभी लोग मिलकर कठिनाई से लिंग व पगड़ी को उठाकर एक बाँझ के पेड़ के खंडहर में रखा, ताकि उसा मंदिर बनाया जाए; पर लिंग उस जगह से असंतुष्ट होकर पहाड़ के ऊपर दूसरे पेड़ पर चला गया।  पहला पेड़ स्यूनी गाँव में था।  दुसरा स्यूनी-द्वारसौ की सरहद पर था।  अत: दोनों गाँव के लोगों ने मिलकर वह मंदिर बनाया और इसकी भेंट के हकदार भी दोनों गाँव हैं।  अल्मोड़ा के राजा रत्नचंद ने यह बात सुनी और वे लिंग के दर्शन को जाने को थे कि अच्छा मुहूर्त न मिला। तब सपने में चौमू ने राजा से कहा - मैं राजा हूँ, तू नहीं है। तू मेरी क्या पूजा करेगा!

चौमू के मंदिर में सैकड़ों घंटे चढ़ाये जाते हैं।  असोज व चैत्र की नवरात्रियों में सैकड़ों दीपक जलाये जाते हैं, और बड़ी पूजा होती है।  लिंग में दूध डाला जाता है।  बकरियाँ मारी जाती हैं।  उनके सिर (मुनी) स्यूनी व द्वारसौके लोग आपस मे बाँट लेते हैं।  चौमू के दरबार में कसमें ली जाती हैं।  अब कलिकाल में पुराना चमत्कार तो नहीं रहा, तथापि जिनकी गायें या डांगर खो जाते हैं, वे चौमू की पूजा देने पर उन्हें पा जाते हैं।  जिनकी गाय व भैंसे गाबिन हैं, वे चौमू की अराधन कर जीते बच्चे गाय-भैंस के हासिल करते हैं।  जो बुरा दूध चौमू को चढ़ाते हैं, उनके डंगर मर जाते हैं।  जो नहीं चढ़ाते या लिंग पूजा नहीं करते, उनके दूध का दही नहीं जमता (चुपड़ा नहीं होता) बछेड़ा होने पर १० दिन तक गाय का दूध चौमू पर चढ़ाना मना है।  शाम को बी गाय का दूध चढ़ाना वर्जित है।  जिन्होंने ऐसा दूध चढ़ाया है, उनकी गायें मर गयी हैं, उनके गायों के खूंटों की पूजा चौमू की तरह करनी चाहिए, अन्यथा डंगरों की हानि होगी।  स्यूनी द्वारसौं से गाय खरीदने वालों को चौमू की पूजा अनिवार्य है।  जो गाय चौमू को चढ़ाई हो, उसका दूध शाम को नहीं पिया जाता, पर और देवताओं को चढ़ाई हुई गायों का दूध पिया जा सकता है।

बधाणा :

चौमू की तरह यह भी गायों का देवता है।  वह किसी को चिपटता नहीं और न पूजने पर सताता है।   गाय के बच्चा होने के ११वें दिन उसका पूजन होता है।  पहले जल से उसकी मूर्ति साफ की जात है, फिर दूध चढ़ाया जाता है तब भात, पूरी, प्रसाद व दूध नैवेद्ध लगाया जाता है।  तभी गाय का दूध पिया जाता है।  यहाँ बलिदान नहीं होता।

हरु :

एक अच्छी प्रकृति का देवता है, और कुमाऊँ के ग्रामों में बहुत पूजा जाता है।  कहा जाता है कि वह चंपावत कुमाऊँ का राजा हरिशचन्द्र था।  वह राजा राजपाट छोड़ हरिद्वार में जाकर तपस्वी हो गया।  कहते हैं कि हरिद्वार में हर की पौड़ी उसी ने बनाई।  हरिद्वार से कहा जाता है कि उसने चारों धामों (बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामनाथ, द्वारिकानाथ) की परिक्रमा की।  चारों धामों से लौटकर चंपावत में राजा ने अपना जीवन धर्म-कर्म में ही बिताया, और अपना एक भ्रातृमंडल कायम किया।  उसके भाई लाटू तथा उनके नौकर स्यूरा, त्यूरा, रुढ़ा कठायत, खोलिया, मेलिया, मंगिलाया और उजलिया सब उनके शिष्य हो गये।  सैम व बारु भी चेले बने।  राजा उनका गुरु हो गया।
 


पंकज सिंह महर

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There is also a Mandir.. "Kotgaari Devi" Mandir.. near Pankhu(Nearest Road Connectivity)..

Hope Mehta Jee, Mehar Jee.. Aap ne is Mandir ke baare me Sunaa hogaa...


Kuch Varsh phle tak Mandir me Bakre ki Bali di jaati thi.. But kuch varsh phle yhaa Kisi Manushya ki Goli Markar Hatya kar di gyi thi tab se yhaa Pashu Bali Varjit Hai.... Ab Bali ka kaam "Bhaneria Gaar"(500m Low to Kotgari Devi) par hota hai..

Next Visit par aap ko is mandir ki photo Uplabdh Karwaunga..

हिमांशु,
     इस मन्दिर के बारे में मैंने काफी सुना है, जाने का मौका नहीं मिल पाया, मां कोटगाड़ी को न्याय की देवी माना जाता है और पिथौरागढ़ में इनकी काफी मान्यता भी है।
from pithoragarh.nic.in ---"Kot Gari Devi :  Situated  about  9 Kms from Thal the temple of  Kotgari  is held  to be the final divine court of appeal for the deprived and the victim of cruelty and injustice. "    देवी के प्रति श्रद्दा भी लोगों में काफी है, हमारे यहां जब जंगल कटने लगे और समाप्त होने लगे तो गांव के बुजुर्गों ने सारे जंगलों को मां कोटगाड़ी को ५ साल के लिये चढ़ा दिया, अब जंगल फिर से हरा-भरा हो गया है।

Risky Pathak

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चम्पावत मे झालराई नाम के एक राजा रहते थे| उनका १ पुत्र था हालराई| उनकी ७ रानिया थी|  लेकिन कोई  संतान नही थी|  संतान ना होने के कारण वो दुखी रहते थे| १ बार सपने मे उन्हें आकासवाणी हुई कि अगर तुम पंच नाम देवता कि बहिन के साथ विवाह करोगे तो  तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा| तत पश्चात राजा ने अपने कुल पुरोहित  से इस बारे मे विचार विमर्श किया| तब उनके कुल पुरोहित  ने भी कहा कि बफुराकोट मे बफुरा देव नामक १ राजा रहते है | उनके वहा पंच नाम देवता कि बहिन कलिंगा है, तुम जाओ और उसके साथ विवाह कर लो तुम्हारा सब कुछ ठीक हो जायेगा| तो पुरोहित जी के कहे अनुसार हालराई वहा पहुँच जाते है और विवाह भी कर लेते है| कुछ समय बाद कलिंगा गर्भ  धारण कर लेती है| और राजा के घर के साथ साथ पूरे राज्य मे खुशी कि लहर दौड़ उठती है| लेकिन इसी बीच ७ रानियों के मन मे कपट आ जाता है| उन्हें लगता है कि नए बालक के जन्म के बाद राजा उन ७ रानियों को कलिंगा से कम महत्त्व देंगे| सातों रानिया उस बालक को जन्म लेते  ही मार डालने कि इच्छा मन मे लिए हुए तरह तरह के षड्यंत्र रचती है| बाला गोरिया के जन्म से कुछ पूर्व सातों रानिया कलिंगा को यह कहके कि पहले पहले बच्चे  का मुख नही देखते आंखो मे पट्टी बाँध देती है| जन्म होते ही गोरिया को पाल काट कर गोठ(गौशाला) मे गिरा देती है| और बालक के स्थान पर सिल-बट्टा रख देती है| आंखो कि पट्टी खोलने पर वो कलिंगा को ये बताती है कि उसने सिल-बट्टे  को जन्म दिया है| यह सुनते ही राजा और कलिंगा दोनों दुःख के अपार सागर मे डूब जाते है| सातों रानिया जब गोठ मे बालक को देखने जाते है तो गोरिया बल्द(बैल)  के ऊपर बैठा होता है| सातों रानिया वहा से बालक को लेकर कही दूर जंगल मे अकेले छोड़ आते है| पर भगवान गोरिया कि ऐसी लीला थी कि अगले दिन जब सातों रानिया वहा देखने जाती है तो बालक वैसे का वैसा मंद-मंद मुस्करा रहा होता है| इस प्रकार से भी ना मरने पर रानिया उसे सिसून(बिछू-घास)  कि झाडियों मे डाल देते है|  लेकिन पंच नाम देवता कि कृपा से सिसून कि झाडी फूलों कि सेज मे परिवर्तित हो जाती है| इसी प्रकार से कई उपाय करने पर जब रानियों का उद्देश्य सफल नही होता तो अंत मे उन्हें एक उपाय सूझता है कि बालक को पिटार(बक्से) मे बंद करके नदी(गंग) मे बहा दिया जाए| पिटार बनाने के लिए वो कलिया लोहार के पास जाती है और कलिया लोहार को पिटार के बारे मे किसी को भी बताने के लिए मना करती है| पिटार बनने के बाद वो बाला गोरिया को उसमे बंद करके गंग मे बहा देती है| वो पिटार कई कोसो के सफर के बाद एक गरीब  मछुवारे  को मिलता है| पिटार को खोलने के बाद उसमे बालक सुरक्षित होता है| मछुवारे और उसकी पत्नी  की  कोई संतान नही  होती है| वो बालक को अपने घर मे ले आते   है| और भगवान की ऐसी लीला  होती है की बांझ स्त्री के स्तनों  से दूध निकलने लगता है| वो मछुवारा परिवार बालक को पाल पोश कर बड़ा करता है| बाला गोरिया गंग के किनारे खेलने जाते है| उनके खेल की वस्तुओ मे गुलेल और काठ का  घोडा  शामिल होता है| संयोग देखिये उसी गंग के किनारे सातों रानिया पानी भरने आती थी| बाला गोरिया रानियों को पानी नही भरने देते थे| वो कहते थे की पहले उनका काठ  का घोडा पानी पिएगा| सातों रानियों   ने ये कहकर उनका मजाक उड़ाया की क्या  काठ का घोडा भी पानी पीता है? तब उन्होंने उत्तर दिया की अगर किसी स्त्री के गर्भ से सिल-बट्टा पैदा हो सकता है तो काठ  का घोडा पानी क्यों नही पी सकता| यह सुनकर रानिया चकित हो जाती है कि इस बालक को ये सब  बातें कैसे पता है| वो दौड़कर  राजा के पास जाती है और राजा को बोलती है की १ बालक उन्हें रोज तंग करता है और उन्हें पानी नही भरने देता है| राजा अपने सिफाहियो को उस बालक और उसके पिता को पकड़ कर लाने को कहता है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते हुए उन दोनों को पकड़ के ले आते है| राजा उस बालक को दंड देने के लिए उद्यम  होता है कि तभी मछुवारा राजा को बता देता है कि ये उसकी संतान नही है| ये तो उसे गंग मे पिटार के अन्दर मिला था| राजा अपने सिपाहियों को आदेश देता है कि पता लगाओ कि वो पिटार किसने बनाया है| काफी खोज बीन के बाद पता चल जाता है कि वो पिटार कलिया लोहार ने बनाया है| कलिया लोहार को दरबार मे पेश किया जाता है| बहुत  प्रकार के यत्न देने पर वह बता  देता है कि राजा कि सातों रानियों के कहने पर ही उसने ये पिटारा बनवाया था| सातों रानियों को दरबार मे पेश किया जाता है| वो अपना अपराध मान जाती है और सब कुछ सत्य बखान कर देती है| राजा को यह सुनकर क्रोध आ जाता है और वो सातों रानियों को तेल कि कड़ाई मे भूनने कि आज्ञा दे देता  है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते है| अब कलिंगा बाला गोरिया को बोलती है कि अगर वो उनका सच्चा  पुत्र है तो उसकी एक परीक्षा ली जायेगी| कलिंगा कहती है कि बालक  गंग पार रहेगा और वो इस पार| और कलिंगा अपनी दूध कि धार छोड़ेगी| अगर धार सीधे गोरिया के मुख मे चली गयी तो वो उनका सच्चा पुत्र होगा| बाला गोरिया इस परीक्षा मे सफल हुए| राजा और रानी उन्हें  अपने घर ले आए| प्रत्यांतर मे गोरिया ने राज्य का भली  प्रकार से शासन किया| उनके राज्य मे प्रजा सुखमय जीवन व्यतीत करती थी| 

जय हो बालक गोरिया की|||

Risky Pathak

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अगर  लेखन मे कोई  त्रुटि रह गयी हो तो नादान  जानकर क्षमा कर दीजियेगा|

Jai Golu Devtaa

चम्पावत मे झालराई नाम के एक राजा रहते थे| उनका १ पुत्र था हालराई| उनकी ७ रानिया थी|  लेकिन कोई  संतान नही थी|  संतान ना होने के कारण वो दुखी रहते थे| १ बार सपने मे उन्हें आकासवाणी हुई कि अगर तुम पंच नाम देवता कि बहिन के साथ विवाह करोगे तो  तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा| तत पश्चात राजा ने अपने कुल पुरोहित  से इस बारे मे विचार विमर्श किया| तब उनके कुल पुरोहित  ने भी कहा कि बफुराकोट मे बफुरा देव नामक १ राजा रहते है | उनके वहा पंच नाम देवता कि बहिन कलिंगा है, तुम जाओ और उसके साथ विवाह कर लो तुम्हारा सब कुछ ठीक हो जायेगा| तो पुरोहित जी के कहे अनुसार हालराई वहा पहुँच जाते है और विवाह भी कर लेते है| कुछ समय बाद कलिंगा गर्भ  धारण कर लेती है| और राजा के घर के साथ साथ पूरे राज्य मे खुशी कि लहर दौड़ उठती है| लेकिन इसी बीच ७ रानियों के मन मे कपट आ जाता है| उन्हें लगता है कि नए बालक के जन्म के बाद राजा उन ७ रानियों को कलिंगा से कम महत्त्व देंगे| सातों रानिया उस बालक को जन्म लेते  ही मार डालने कि इच्छा मन मे लिए हुए तरह तरह के षड्यंत्र रचती है| बाला गोरिया के जन्म से कुछ पूर्व सातों रानिया कलिंगा को यह कहके कि पहले पहले बच्चे  का मुख नही देखते आंखो मे पट्टी बाँध देती है| जन्म होते ही गोरिया को पाल काट कर गोठ(गौशाला) मे गिरा देती है| और बालक के स्थान पर सिल-बट्टा रख देती है| आंखो कि पट्टी खोलने पर वो कलिंगा को ये बताती है कि उसने सिल-बट्टे  को जन्म दिया है| यह सुनते ही राजा और कलिंगा दोनों दुःख के अपार सागर मे डूब जाते है| सातों रानिया जब गोठ मे बालक को देखने जाते है तो गोरिया बल्द(बैल)  के ऊपर बैठा होता है| सातों रानिया वहा से बालक को लेकर कही दूर जंगल मे अकेले छोड़ आते है| पर भगवान गोरिया कि ऐसी लीला थी कि अगले दिन जब सातों रानिया वहा देखने जाती है तो बालक वैसे का वैसा मंद-मंद मुस्करा रहा होता है| इस प्रकार से भी ना मरने पर रानिया उसे सिसून(बिछू-घास)  कि झाडियों मे डाल देते है|  लेकिन पंच नाम देवता कि कृपा से सिसून कि झाडी फूलों कि सेज मे परिवर्तित हो जाती है| इसी प्रकार से कई उपाय करने पर जब रानियों का उद्देश्य सफल नही होता तो अंत मे उन्हें एक उपाय सूझता है कि बालक को पिटार(बक्से) मे बंद करके नदी(गंग) मे बहा दिया जाए| पिटार बनाने के लिए वो कलिया लोहार के पास जाती है और कलिया लोहार को पिटार के बारे मे किसी को भी बताने के लिए मना करती है| पिटार बनने के बाद वो बाला गोरिया को उसमे बंद करके गंग मे बहा देती है| वो पिटार कई कोसो के सफर के बाद एक गरीब  मछुवारे  को मिलता है| पिटार को खोलने के बाद उसमे बालक सुरक्षित होता है| मछुवारे और उसकी पत्नी  की  कोई संतान नही  होती है| वो बालक को अपने घर मे ले आते   है| और भगवान की ऐसी लीला  होती है की बांझ स्त्री के स्तनों  से दूध निकलने लगता है| वो मछुवारा परिवार बालक को पाल पोश कर बड़ा करता है| बाला गोरिया गंग के किनारे खेलने जाते है| उनके खेल की वस्तुओ मे गुलेल और काठ का  घोडा  शामिल होता है| संयोग देखिये उसी गंग के किनारे सातों रानिया पानी भरने आती थी| बाला गोरिया रानियों को पानी नही भरने देते थे| वो कहते थे की पहले उनका काठ  का घोडा पानी पिएगा| सातों रानियों   ने ये कहकर उनका मजाक उड़ाया की क्या  काठ का घोडा भी पानी पीता है? तब उन्होंने उत्तर दिया की अगर किसी स्त्री के गर्भ से सिल-बट्टा पैदा हो सकता है तो काठ  का घोडा पानी क्यों नही पी सकता| यह सुनकर रानिया चकित हो जाती है कि इस बालक को ये सब  बातें कैसे पता है| वो दौड़कर  राजा के पास जाती है और राजा को बोलती है की १ बालक उन्हें रोज तंग करता है और उन्हें पानी नही भरने देता है| राजा अपने सिफाहियो को उस बालक और उसके पिता को पकड़ कर लाने को कहता है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते हुए उन दोनों को पकड़ के ले आते है| राजा उस बालक को दंड देने के लिए उद्यम  होता है कि तभी मछुवारा राजा को बता देता है कि ये उसकी संतान नही है| ये तो उसे गंग मे पिटार के अन्दर मिला था| राजा अपने सिपाहियों को आदेश देता है कि पता लगाओ कि वो पिटार किसने बनाया है| काफी खोज बीन के बाद पता चल जाता है कि वो पिटार कलिया लोहार ने बनाया है| कलिया लोहार को दरबार मे पेश किया जाता है| बहुत  प्रकार के यत्न देने पर वह बता  देता है कि राजा कि सातों रानियों के कहने पर ही उसने ये पिटारा बनवाया था| सातों रानियों को दरबार मे पेश किया जाता है| वो अपना अपराध मान जाती है और सब कुछ सत्य बखान कर देती है| राजा को यह सुनकर क्रोध आ जाता है और वो सातों रानियों को तेल कि कड़ाई मे भूनने कि आज्ञा दे देता  है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते है| अब कलिंगा बाला गोरिया को बोलती है कि अगर वो उनका सच्चा  पुत्र है तो उसकी एक परीक्षा ली जायेगी| कलिंगा कहती है कि बालक  गंग पार रहेगा और वो इस पार| और कलिंगा अपनी दूध कि धार छोड़ेगी| अगर धार सीधे गोरिया के मुख मे चली गयी तो वो उनका सच्चा पुत्र होगा| बाला गोरिया इस परीक्षा मे सफल हुए| राजा और रानी उन्हें  अपने घर ले आए| प्रत्यांतर मे गोरिया ने राज्य का भली  प्रकार से शासन किया| उनके राज्य मे प्रजा सुखमय जीवन व्यतीत करती थी| 

जय हो बालक गोरिया की|||


पंकज सिंह महर

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चम्पावत मे झालराई नाम के एक राजा रहते थे| उनका १ पुत्र था हालराई| उनकी ७ रानिया थी|  लेकिन कोई  संतान नही थी|  संतान ना होने के कारण वो दुखी रहते थे| १ बार सपने मे उन्हें आकासवाणी हुई कि अगर तुम पंच नाम देवता कि बहिन के साथ विवाह करोगे तो  तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा| तत पश्चात राजा ने अपने कुल पुरोहित  से इस बारे मे विचार विमर्श किया| तब उनके कुल पुरोहित  ने भी कहा कि बफुराकोट मे बफुरा देव नामक १ राजा रहते है | उनके वहा पंच नाम देवता कि बहिन कलिंगा है, तुम जाओ और उसके साथ विवाह कर लो तुम्हारा सब कुछ ठीक हो जायेगा| तो पुरोहित जी के कहे अनुसार हालराई वहा पहुँच जाते है और विवाह भी कर लेते है| कुछ समय बाद कलिंगा गर्भ  धारण कर लेती है| और राजा के घर के साथ साथ पूरे राज्य मे खुशी कि लहर दौड़ उठती है| लेकिन इसी बीच ७ रानियों के मन मे कपट आ जाता है| उन्हें लगता है कि नए बालक के जन्म के बाद राजा उन ७ रानियों को कलिंगा से कम महत्त्व देंगे| सातों रानिया उस बालक को जन्म लेते  ही मार डालने कि इच्छा मन मे लिए हुए तरह तरह के षड्यंत्र रचती है| बाला गोरिया के जन्म से कुछ पूर्व सातों रानिया कलिंगा को यह कहके कि पहले पहले बच्चे  का मुख नही देखते आंखो मे पट्टी बाँध देती है| जन्म होते ही गोरिया को पाल काट कर गोठ(गौशाला) मे गिरा देती है| और बालक के स्थान पर सिल-बट्टा रख देती है| आंखो कि पट्टी खोलने पर वो कलिंगा को ये बताती है कि उसने सिल-बट्टे  को जन्म दिया है| यह सुनते ही राजा और कलिंगा दोनों दुःख के अपार सागर मे डूब जाते है| सातों रानिया जब गोठ मे बालक को देखने जाते है तो गोरिया बल्द(बैल)  के ऊपर बैठा होता है| सातों रानिया वहा से बालक को लेकर कही दूर जंगल मे अकेले छोड़ आते है| पर भगवान गोरिया कि ऐसी लीला थी कि अगले दिन जब सातों रानिया वहा देखने जाती है तो बालक वैसे का वैसा मंद-मंद मुस्करा रहा होता है| इस प्रकार से भी ना मरने पर रानिया उसे सिसून(बिछू-घास)  कि झाडियों मे डाल देते है|  लेकिन पंच नाम देवता कि कृपा से सिसून कि झाडी फूलों कि सेज मे परिवर्तित हो जाती है| इसी प्रकार से कई उपाय करने पर जब रानियों का उद्देश्य सफल नही होता तो अंत मे उन्हें एक उपाय सूझता है कि बालक को पिटार(बक्से) मे बंद करके नदी(गंग) मे बहा दिया जाए| पिटार बनाने के लिए वो कलिया लोहार के पास जाती है और कलिया लोहार को पिटार के बारे मे किसी को भी बताने के लिए मना करती है| पिटार बनने के बाद वो बाला गोरिया को उसमे बंद करके गंग मे बहा देती है| वो पिटार कई कोसो के सफर के बाद एक गरीब  मछुवारे  को मिलता है| पिटार को खोलने के बाद उसमे बालक सुरक्षित होता है| मछुवारे और उसकी पत्नी  की  कोई संतान नही  होती है| वो बालक को अपने घर मे ले आते   है| और भगवान की ऐसी लीला  होती है की बांझ स्त्री के स्तनों  से दूध निकलने लगता है| वो मछुवारा परिवार बालक को पाल पोश कर बड़ा करता है| बाला गोरिया गंग के किनारे खेलने जाते है| उनके खेल की वस्तुओ मे गुलेल और काठ का  घोडा  शामिल होता है| संयोग देखिये उसी गंग के किनारे सातों रानिया पानी भरने आती थी| बाला गोरिया रानियों को पानी नही भरने देते थे| वो कहते थे की पहले उनका काठ  का घोडा पानी पिएगा| सातों रानियों   ने ये कहकर उनका मजाक उड़ाया की क्या  काठ का घोडा भी पानी पीता है? तब उन्होंने उत्तर दिया की अगर किसी स्त्री के गर्भ से सिल-बट्टा पैदा हो सकता है तो काठ  का घोडा पानी क्यों नही पी सकता| यह सुनकर रानिया चकित हो जाती है कि इस बालक को ये सब  बातें कैसे पता है| वो दौड़कर  राजा के पास जाती है और राजा को बोलती है की १ बालक उन्हें रोज तंग करता है और उन्हें पानी नही भरने देता है| राजा अपने सिफाहियो को उस बालक और उसके पिता को पकड़ कर लाने को कहता है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते हुए उन दोनों को पकड़ के ले आते है| राजा उस बालक को दंड देने के लिए उद्यम  होता है कि तभी मछुवारा राजा को बता देता है कि ये उसकी संतान नही है| ये तो उसे गंग मे पिटार के अन्दर मिला था| राजा अपने सिपाहियों को आदेश देता है कि पता लगाओ कि वो पिटार किसने बनाया है| काफी खोज बीन के बाद पता चल जाता है कि वो पिटार कलिया लोहार ने बनाया है| कलिया लोहार को दरबार मे पेश किया जाता है| बहुत  प्रकार के यत्न देने पर वह बता  देता है कि राजा कि सातों रानियों के कहने पर ही उसने ये पिटारा बनवाया था| सातों रानियों को दरबार मे पेश किया जाता है| वो अपना अपराध मान जाती है और सब कुछ सत्य बखान कर देती है| राजा को यह सुनकर क्रोध आ जाता है और वो सातों रानियों को तेल कि कड़ाई मे भूनने कि आज्ञा दे देता  है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते है| अब कलिंगा बाला गोरिया को बोलती है कि अगर वो उनका सच्चा  पुत्र है तो उसकी एक परीक्षा ली जायेगी| कलिंगा कहती है कि बालक  गंग पार रहेगा और वो इस पार| और कलिंगा अपनी दूध कि धार छोड़ेगी| अगर धार सीधे गोरिया के मुख मे चली गयी तो वो उनका सच्चा पुत्र होगा| बाला गोरिया इस परीक्षा मे सफल हुए| राजा और रानी उन्हें  अपने घर ले आए| प्रत्यांतर मे गोरिया ने राज्य का भली  प्रकार से शासन किया| उनके राज्य मे प्रजा सुखमय जीवन व्यतीत करती थी| 

जय हो बालक गोरिया की|||


बहुत बढि़या काम हिमांशु जी, +१ कर्मा के आप  निश्चित रुप से हकदार हैं।

हेम पन्त

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मेरी तरफ से भी +१ कर्मा हिमांशु को.... दिल खुश कर दिया... बहुत सुन्दर  

हलिया

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वाह हिमांशु जी वाह, एक कर्मा मेरी ओर से भी आपको मिलनेवाला ही ठैरा इस पौराणिक कथा के लिये।
ये वाली कथा तो हमारे बूबूजी ने भी हमें सुनाई थी। मेरे पास शायद उसकी रिकार्डिंग है, उसे यहां डालने की कोशिस करता हूं। 


चम्पावत मे झालराई नाम के एक राजा रहते थे| उनका १ पुत्र था हालराई| उनकी ७ रानिया थी|  लेकिन कोई  संतान नही थी|  संतान ना होने के कारण वो दुखी रहते थे| १ बार सपने मे उन्हें आकासवाणी हुई कि अगर तुम पंच नाम देवता कि बहिन के साथ विवाह करोगे तो  तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा| तत पश्चात राजा ने अपने कुल पुरोहित  से इस बारे मे विचार विमर्श किया| तब उनके कुल पुरोहित  ने भी कहा कि बफुराकोट मे बफुरा देव नामक १ राजा रहते है | उनके वहा पंच नाम देवता कि बहिन कलिंगा है, तुम जाओ और उसके साथ विवाह कर लो तुम्हारा सब कुछ ठीक हो जायेगा| तो पुरोहित जी के कहे अनुसार हालराई वहा पहुँच जाते है और विवाह भी कर लेते है| कुछ समय बाद कलिंगा गर्भ  धारण कर लेती है| और राजा के घर के साथ साथ पूरे राज्य मे खुशी कि लहर दौड़ उठती है| लेकिन इसी बीच ७ रानियों के मन मे कपट आ जाता है| उन्हें लगता है कि नए बालक के जन्म के बाद राजा उन ७ रानियों को कलिंगा से कम महत्त्व देंगे| सातों रानिया उस बालक को जन्म लेते  ही मार डालने कि इच्छा मन मे लिए हुए तरह तरह के षड्यंत्र रचती है| बाला गोरिया के जन्म से कुछ पूर्व सातों रानिया कलिंगा को यह कहके कि पहले पहले बच्चे  का मुख नही देखते आंखो मे पट्टी बाँध देती है| जन्म होते ही गोरिया को पाल काट कर गोठ(गौशाला) मे गिरा देती है| और बालक के स्थान पर सिल-बट्टा रख देती है| आंखो कि पट्टी खोलने पर वो कलिंगा को ये बताती है कि उसने सिल-बट्टे  को जन्म दिया है| यह सुनते ही राजा और कलिंगा दोनों दुःख के अपार सागर मे डूब जाते है| सातों रानिया जब गोठ मे बालक को देखने जाते है तो गोरिया बल्द(बैल)  के ऊपर बैठा होता है| सातों रानिया वहा से बालक को लेकर कही दूर जंगल मे अकेले छोड़ आते है| पर भगवान गोरिया कि ऐसी लीला थी कि अगले दिन जब सातों रानिया वहा देखने जाती है तो बालक वैसे का वैसा मंद-मंद मुस्करा रहा होता है| इस प्रकार से भी ना मरने पर रानिया उसे सिसून(बिछू-घास)  कि झाडियों मे डाल देते है|  लेकिन पंच नाम देवता कि कृपा से सिसून कि झाडी फूलों कि सेज मे परिवर्तित हो जाती है| इसी प्रकार से कई उपाय करने पर जब रानियों का उद्देश्य सफल नही होता तो अंत मे उन्हें एक उपाय सूझता है कि बालक को पिटार(बक्से) मे बंद करके नदी(गंग) मे बहा दिया जाए| पिटार बनाने के लिए वो कलिया लोहार के पास जाती है और कलिया लोहार को पिटार के बारे मे किसी को भी बताने के लिए मना करती है| पिटार बनने के बाद वो बाला गोरिया को उसमे बंद करके गंग मे बहा देती है| वो पिटार कई कोसो के सफर के बाद एक गरीब  मछुवारे  को मिलता है| पिटार को खोलने के बाद उसमे बालक सुरक्षित होता है| मछुवारे और उसकी पत्नी  की  कोई संतान नही  होती है| वो बालक को अपने घर मे ले आते   है| और भगवान की ऐसी लीला  होती है की बांझ स्त्री के स्तनों  से दूध निकलने लगता है| वो मछुवारा परिवार बालक को पाल पोश कर बड़ा करता है| बाला गोरिया गंग के किनारे खेलने जाते है| उनके खेल की वस्तुओ मे गुलेल और काठ का  घोडा  शामिल होता है| संयोग देखिये उसी गंग के किनारे सातों रानिया पानी भरने आती थी| बाला गोरिया रानियों को पानी नही भरने देते थे| वो कहते थे की पहले उनका काठ  का घोडा पानी पिएगा| सातों रानियों   ने ये कहकर उनका मजाक उड़ाया की क्या  काठ का घोडा भी पानी पीता है? तब उन्होंने उत्तर दिया की अगर किसी स्त्री के गर्भ से सिल-बट्टा पैदा हो सकता है तो काठ  का घोडा पानी क्यों नही पी सकता| यह सुनकर रानिया चकित हो जाती है कि इस बालक को ये सब  बातें कैसे पता है| वो दौड़कर  राजा के पास जाती है और राजा को बोलती है की १ बालक उन्हें रोज तंग करता है और उन्हें पानी नही भरने देता है| राजा अपने सिफाहियो को उस बालक और उसके पिता को पकड़ कर लाने को कहता है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते हुए उन दोनों को पकड़ के ले आते है| राजा उस बालक को दंड देने के लिए उद्यम  होता है कि तभी मछुवारा राजा को बता देता है कि ये उसकी संतान नही है| ये तो उसे गंग मे पिटार के अन्दर मिला था| राजा अपने सिपाहियों को आदेश देता है कि पता लगाओ कि वो पिटार किसने बनाया है| काफी खोज बीन के बाद पता चल जाता है कि वो पिटार कलिया लोहार ने बनाया है| कलिया लोहार को दरबार मे पेश किया जाता है| बहुत  प्रकार के यत्न देने पर वह बता  देता है कि राजा कि सातों रानियों के कहने पर ही उसने ये पिटारा बनवाया था| सातों रानियों को दरबार मे पेश किया जाता है| वो अपना अपराध मान जाती है और सब कुछ सत्य बखान कर देती है| राजा को यह सुनकर क्रोध आ जाता है और वो सातों रानियों को तेल कि कड़ाई मे भूनने कि आज्ञा दे देता  है| सिपाही राजा कि आज्ञा का पालन करते है| अब कलिंगा बाला गोरिया को बोलती है कि अगर वो उनका सच्चा  पुत्र है तो उसकी एक परीक्षा ली जायेगी| कलिंगा कहती है कि बालक  गंग पार रहेगा और वो इस पार| और कलिंगा अपनी दूध कि धार छोड़ेगी| अगर धार सीधे गोरिया के मुख मे चली गयी तो वो उनका सच्चा पुत्र होगा| बाला गोरिया इस परीक्षा मे सफल हुए| राजा और रानी उन्हें  अपने घर ले आए| प्रत्यांतर मे गोरिया ने राज्य का भली  प्रकार से शासन किया| उनके राज्य मे प्रजा सुखमय जीवन व्यतीत करती थी| 

जय हो बालक गोरिया की|||


 

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