उत्तराखण्ड के श्रीनगर से पहले एक गडोलिया नामक छोटा कस्बा आता है। यहाँ से एक रास्ता नई टिहरी के लिये जाता है दूसरा लम्बगाँव। लम्बगाँव के रास्ते में टिहरी झील को देखा जा सकता है। लम्बगाँव सेम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव है। पहले जब सेममुखेम तक सड़क नहीं थी तो यात्री एक रात यहाँ विश्राम करने के बाद दूसरे दिन अपनी यात्रा शुरु करते थे। यहाँ से १५ किलोमीटर की खड़ी चढ़ायी चढ़ने के बाद सेम नागराजा के दर्शन किये जाते थे। अब भी मन्दिर से मात्र ढायी किलोमीटर नीचे तलबला सेम तक ही सड़क है।
लम्बगाँव से ३३ किलोमीटर का सफर बस या टैक्सी द्वारा तय करके तलबला सेम तक पहुँचा जा सकता है। लम्बगाँव से १० किलोमीटर आगे कोडार नामक एक छोटा सा कस्बा आता है। यहाँ से घुमावदार तथा संकरी सड़क से होते हुये कोई १८ किलोमीटर मुखेम गाँव आता है जो कि सेम मन्दिर के पुजारियों का गाँव है। ये गंगू रमोला का गाँव है जो कि रमोली पट्टी का गढ़पति था तथा जिसने सेम मन्दिर का निर्माण करवाया था।
मुखेम से ५ किलोमीटर आगे तलबला सेम आता है जहाँ एक लम्बा-चौड़ा हरा-भरा घास का मैदान है। किनारे पर नागराज का एक छोटा सा मन्दिर है। परम्परा के अनुसार पहले यहाँ पर दर्शन करने होते हैं। यहाँ आस-पास स्थानीय निवासियों की दुकानें हैं जहाँ खाने-पीने की व्यवस्था है। यहाँ से सेम मन्दिर तक तकरीबन ढायी किलोमीटर की पैदल चढ़ायी है। घने जंगल के बीच मन्दिर तक रास्ता बना है।