Author Topic: Semmukhem Uttarakhand,नाग देवता का सेममुखेम उत्तराखंड  (Read 61436 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखण्ड के श्रीनगर से पहले एक गडोलिया नामक छोटा कस्बा आता है। यहाँ से एक रास्ता नई टिहरी के लिये जाता है दूसरा लम्बगाँव। लम्बगाँव के रास्ते में टिहरी झील को देखा जा सकता है। लम्बगाँव सेम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव है। पहले जब सेममुखेम तक सड़क नहीं थी तो यात्री एक रात यहाँ विश्राम करने के बाद दूसरे दिन अपनी यात्रा शुरु करते थे। यहाँ से १५ किलोमीटर की खड़ी चढ़ायी चढ़ने के बाद सेम नागराजा के दर्शन किये जाते थे। अब भी मन्दिर से मात्र ढायी किलोमीटर नीचे तलबला सेम तक ही सड़क है।

लम्बगाँव से ३३ किलोमीटर का सफर बस या टैक्सी द्वारा तय करके तलबला सेम तक पहुँचा जा सकता है। लम्बगाँव से १० किलोमीटर आगे कोडार नामक एक छोटा सा कस्बा आता है। यहाँ से घुमावदार तथा संकरी सड़क से होते हुये कोई १८ किलोमीटर मुखेम गाँव आता है जो कि सेम मन्दिर के पुजारियों का गाँव है। ये गंगू रमोला का गाँव है जो कि रमोली पट्टी का गढ़पति था तथा जिसने सेम मन्दिर का निर्माण करवाया था।


मुखेम से ५ किलोमीटर आगे तलबला सेम आता है जहाँ एक लम्बा-चौड़ा हरा-भरा घास का मैदान है। किनारे पर नागराज का एक छोटा सा मन्दिर है। परम्परा के अनुसार पहले यहाँ पर दर्शन करने होते हैं। यहाँ आस-पास स्थानीय निवासियों की दुकानें हैं जहाँ खाने-पीने की व्यवस्था है। यहाँ से सेम मन्दिर तक तकरीबन ढायी किलोमीटर की पैदल चढ़ायी है। घने जंगल के बीच मन्दिर तक रास्ता बना है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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       photo                                                        Nagdwar   of SEM-MUKHEM - Patti Upali Ramoli, Tehri Garhwal. This place is   situated at an altitude of about 2900 mts. amidst dense forest. From   here one can go further  to Shatraunj where Lord Krishn and Balram have   played Chausar.       

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टिहरी से 175 किलोमीटर दूरी पर स्थित यह स्थल धार्मिक एवं आध्यात्मिक  शान्ति का अनूठा केन्द्र है। किंवदंती है कि द्वापर युग में कृष्ण जन्म के  बाद भागवत गीता के 18 वें अध्याय में इस तीर्थ का उल्लेख किया गया है कि  यमुना नदी पर एक कालिया नाग वास करता था, जिससे यमुना नदी का जल दूषित  होने के साथ-साथ यमुनावासियों के लिए यमुना के दर्शन बड़े दुर्लभ हो गए थे।

 तब भगवान ने यमुना वासियों के दुख दर्द को समझते हुए अपने ग्वाल बाल  साथियों के साथ यमुना तट पर गेंद खेलने का बहाना बनाया तथा गेंद को  जानबूझकर यमुना नदी में फेंक दिया। गेंद लाने के बहाने श्रीकृष्ण ने यमुना  में छलांग लगाकर उस कालिया नाग के सिर पर जा बैठे।

 श्रीकृष्ण ने कालिया  नाग को यमुना छोड़ने को कहा, तो उसने कहा कि वह उन्हें कोई दूसरा स्थान बता  दें, जहां पर वह रह सके, क्योंकि उसने कोई अन्य स्थान नहीं देखा है। इसके  बाद भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग को लेकर सेम मुखेम में पहुंचे, जहां पर उन  दिनों अहंकारी शासक गंगू रमोला का शासन था। जनता गंगू रमोला के उत्पीड़न से  काफी परेशान थी।

 भगवान श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला के आतंक से लोगों को भी  मुक्ति दिलाई थी। माना जाता है कि तभी से जन्माष्टमी के अवसर पर सेममुखेम  में हर वर्ष मेला आयोजित होता है। इस मेले में दीन गांव, घंडियाल, सेमवाल  गांव, मुखमाल, खंबाखाल, कंडियाल गांव के ग्रामीणों के अलावा दूर-दूर के  लोग भी पहुंचते हैं।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6692380.html

 

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