Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Semmukhem Uttarakhand,नाग देवता का सेममुखेम उत्तराखंड

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Devbhoomi,Uttarakhand:
सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है।
मन्दिर का सुन्दर द्वार १४ फुट चौड़ा तथा २७ फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण  नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर में प्रवेश के बाद  नागराजा के दर्शन होते हैं।

मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं  भू-शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दाँयी तरफ  गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की  पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है।





यह जगह समुद्र तल से 2903 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर नाग राज का  है। यह मंदिर पर्वत के सबसे ऊपरी भाग में स्थित है। मुखेम गांव से इस  मंदिर की दूरी दो किलोमी.है। माना जाता है कि मुखेम गांव की स्थापना  पंड़ावों द्वारा की गई थी।

सेममुखेम की यात्रा श्रद्धालुओं के लिए  अविस्मरणीय होती है। इस नागतीर्थ की जानकारी मुझे लखनऊ प्रवास के दौरान  अपने बडे भाई विजय गैरोला से मिली। उनके विस्तार से सुनाए इस तीर्थ यात्रा  के संस्मरण ने मुझे यहां जाने के लिए प्रेरित किया और मैं भी निकला  सेमनाग राजा के दर्शनों के लिए।



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                             कैसे करें सेममुखेम की यात्रा
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दिल्ली से पहले पौडी और फिर श्रीनगर होते हुए  गडोलिया नाम के छोटे से कस्बे में। यहां से एक रास्ता नई टिहरी के लिए जाता है तो दूसरा लंबगांव। हमने लंबगांव वाला रास्ता पकडा क्योंकि सेम नागराजा के दर्शनों के लिए लंबगांव होते हुए ही जाया जाता है। घुमावदार सडकों पर टिहरी झील का विस्तृत फलक साफ दिखाई दे रहा था।
 पुरानी टिहरी नगरी इसी झील के नीचे दफन हो चुकी है। हल्की धुंधली यादें पुरानी टिहरी की ताजा हो उठी, और मैं चारों और पसरी झील के पानी में पुराने टिहरी को देखने की कोशिश करने लगा।
 रास्ता जैसे-जैसे आगे बढता जा रहा था, मैं इस झील के पानी में पुरानी टिहरी की संस्कृति को ढूंढने की कोशिश कर रहा था। अतीत में खोए हुए मुझे पता नहीं चला कि कब में टिहरी झील को पीछे छोड आया और लंबगांव पहुंच गया। खैर मेरे ड्राइवर ने मेरी तंद्रा तोडी।

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लंबगांव सेम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है। पहले जब सेम मुखेम तक सडक नहीं थी तो यात्री एक रात यहां विश्राम करने के बाद दूसरे दिन अपना सफर शुरू करते थे।
 यहां से 15 किलोमीटर की खडी चढाई चढने के बाद ही सेम नागराजा के दर्शन किए जाते थे। अब भी मंदिर से मात्र ढाई किलोमीटर नीचे तलबला सेम तक ही सडक है। फिर भी यात्रा काफी सुगम हो गई है।
 लंबगांव से आप 33 किलोमीटर का सफर बस या टैक्सी द्वारा तय करने के बाद तबला सेम पहुंच सकते हैं। जैसे-जैसे आप इस रास्ते पर बढते हैं, प्रकृति और सम्मोहन के द्वार खुद-ब-खुद खुलते जाते हैं।
 लंबगांव से 10 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद हम पहुंचे कोडार जो लंबगांव से उत्तरकाशी जाते हुए एक छोटा सा कस्बा है। यहां हम बांई तरफ मुड गए। अब गाडी घुमावदार और संकरी सडकों पर चलने लगी थी। हम प्रकृति का आनंद उठाते चल रहे थे।
यहां की मनभावन हरियाली आंखों को काफी सुकून पहुंचा रही थी। पहाडों के सीढीनुमा खेतों को हम अपने कैमरे में कैद करते जा रहे थे। कब 18 किलोमीटर का सफर कट गया पता ही नहीं चला।
 हम पहुंच गए मुखेम गांव- सेम मंदिर के पुजारियों का गांव। गंगू रमोला जो रमोली पट्टी का गढपति का था उसी का ये गांव है। गंगू रमोला ने ही सेम मंदिर का निर्माण करवाया था।


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मुखेम से आगे बढते हुए रास्ते में प्राकृतिक भव्यता और पहाड की चोटियां मन को रोमांचित करती रहती हैं। रास्ते में ही श्रीफल के आकार की चट्टान की खूबसूरती देखने लायक है।
मुखेम से 5 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद हम पहुंचे तलबला सेम। एक लंबा चौडा हरा भरा घास का मैदान, जहां पहुंचकर यात्री अपनी थकान मिटाते हैं। किनारे पर नागराज का एक छोटा सा मंदिर है। पहले यहां के दर्शन करने होते है। यहां पर स्थानीय लोग थके-हारे यात्रियों के लिए खान-पान की व्यवस्था करते हैं।
यहां से सेम मंदिर तक तकरीबन ढाई किलोमीटर की पैदल चढाई है। घने जंगल के बीच मंदिर तक रास्ता बना है। बांज, बुरांश, खर्सू, केदारपती के वृक्षों से निकलने वाली खुशबू आनंदित करती रहती है।
घने जंगलों के बीच से गुजरना किसी रोमांच से कम नहीं। पीछे मुडने पर रमोली पट्टी का सौंदर्य देखते ही बनता है। मंदिर का द्वार काफी आकर्षक है। यह 14 फीट चौडा और 27 फीट ऊंचा है जिसमें नागराज फन फैलाए हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन दिखते हैं। मंदिर में प्रवेश करने के बाद यात्री नागराजा के दर्शन करते हैं।
 मंदिर के गर्भगृह में स्वयं भू-शिला है। ये शिला द्वापर युग की बताई जाती है जिसकी लोग नागराजा के रूप में पूजा-अर्चना करते है। मंदिर के दाईं तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है।


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