Author Topic: Shiv Ling Pooja Worship -शिव लिंग पूजा का रहस्य जुडा है उत्तराखंड देवभूमि से  (Read 207060 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हर हर महादेव

शिव लिंग पूजा का रहस्य यहाँ से जुड़ा हुआ है

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जागेश्वर में सबसे पहले शुरू हुआ लिंग पूजन

अल्मोड़ा। जागेश्वर धाम उत्तर भारत के एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित है। मान्यता है कि यहां शिव जागृत रूप में विद्यमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले शिव लिंग का पूजन जागेश्वर से ही प्रारंभ हुआ। यह मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग में स्थित है। प्राचीन काल से ही यह स्थान काफी प्रसिद्ध रहा है। इसी कारण मानसरोवर यात्री यहां पूजा अर्चना करने के बाद आगे बढ़ते थे।
अल्मोड़ा से 38 किमी दूर देवदार के घने वनों के बीच स्थित जागेश्वर धाम का प्राचीन काल से ही काफी महत्व है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव जागेश्वर के निकट दंडेश्वर में तपस्या कर रहे थे। इसी बीच सप्तऋषियों की पत्नियां वहां पहुंचीं और शिव के दिगंबर रूप में मोहित होकर मूर्छित हो गईं। सप्तऋषि उनकी खोज में वहां पहुंचे तो उन्होंने नाराज होकर भगवान शिव को पहचाने बगैर लिंग पतन का श्राप दे दिया। जिससे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई। बाद में सभी देवताओं ने किसी तरह शिव को मनाया और जागेश्वर में उनके लिंग की स्थापना की गई। मान्यता है कि तभी से शिव लिंग की पूजा शुरू हुई। जागेश्वर धाम में मंदिरों का निर्माण और पुनरोद्धार सातवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। यहां स्थापित शिव लिंग बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक है। यह भी मान्यता है कि जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने इस स्थान का भ्रमण किया और इस मंदिर की मान्यता को पुनरस्थापित किया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शिव रात्रि की सभी मित्रो को शुभकामनाये !

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। :उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।:सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।:हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।:सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के इस धाम से शुरू हुआ शिव लिंग पूजन

उत्तराखंड का जागेश्वर धाम उत्तर भारत के एक प्रमुख शिव मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित है। मान्यता है कि यहां शिव जागृत रूप में विद्यमान हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले शिव लिंग का पूजन जागेश्वर से ही शुरू हुआ। यह मंदिर प्राचीन कैलाश मानसरोवर मार्ग में स्थित है। प्राचीन काल से ही यह स्थान काफी प्रसिद्ध रहा है। इसी कारण मानसरोवर यात्री यहां पूजा, अर्चना करने के बाद आगे बढ़ते थे।

अल्मोड़ा से 38 किमी दूर देवदार के घने वनों के बीच स्थित जागेश्वर धाम का प्राचीन काल से ही काफी महत्व है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव जागेश्वर के निकट दंडेश्वर में तपस्या कर रहे थे। इसी बीच सप्तऋषियों की पत्नियां वहां पहुंची और शिव के दिगंबर रूप में मोहित होकर मूर्छित हो गई।

सप्तऋषि उनकी खोज में वहां पहुंचे तो उन्होंने नाराज होकर भगवान शिव को पहचाने बगैर लिंग पतन का श्राप दे दिया, जिससे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई। बाद में सभी देवताओं ने किसी तरह शिव को मनाया और जागेश्वर में उनके लिंग की स्थापना की गई। मान्यता है कि तभी से शिव लिंग की पूजा शुरू हुई।

जागेश्वर धाम में मंदिरों का निर्माण सातवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य माना जाता है। यहां स्थापित शिव लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह भी मान्यता है कि जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने इस स्थान का भ्रमण किया और इस मंदिर की मान्यता को पुनर्स्थापित किया।

जागेश्वर मंदिर नागर शैली का है। यहां स्थापित मंदिरों की विशेषता यह है कि इनके शिखर में लकड़ी का बिजौरा (छत्र) बना है। जो बारिश और हिमपात के वक्त मंदिर की सुरक्षा करता है।

जागनाथ मंदिर में भैरव को द्वारपाल के रूप में अंकित किया गया है। जागेश्वर लकुलीश संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा। लकुलीश संप्रदाय को शिव के 28वें अवतार के रूप में माना जाता है।

कत्यूरी और चंद शासकों से जुड़ा है यहां का इतिहास
जानकारों का मानना है कि कत्यूरी शासन काल में जागेश्वर में कत्यूरी रानियां सती भी हुआ करती थीं। जागेश्वर का इतिहास चंद शासकों से भी जुड़ा है।

चंद शासकों ने यहां पूजा-अर्चना की सुचारु व्यवस्था के लिए अपनी जागीर से 365 गांव जागेश्वर धाम को अर्पित किए थे। मंदिर में लगने वाले भोग आदि की सामग्री इन्हीं गांवों से आया करती थी। जागेश्वर मंदिर में राजा दीप चंद और पवन चंद की धातु निर्मित मूर्ति भी स्थापित है।

भट्ट परिवारों को है पूजा कराने का अधिकार
जागेश्वरधाम में पूजा करने का अधिकार भट्ट जाति के पंडों को ही है। यह माना जाता है कि सैकड़ों साल पहले भट्ट लोग महाराष्ट्र से यहां आए। पुजारी परिवारों की संख्या बढ़ जाने से मंदिर में पूजा के लिए इन परिवारों की बारी लगती है।


भट्ट परिवार स्वयं ही बारी तय करते हैं। वर्तमान में भट्ट परिवार जागेश्वर, मंतोला, गोठ्यूड, बहतांण आदि गांवों में रह रहे हैं। महामृत्यंजय मंदिर के प्रधान पुजारी पं. षष्टी दत्त भट्ट के मुताबिक जागेश्वर धाम में पूजा करने वाले भट्ट परिवार सबसे पहले आदि गुरु शंकराचार्य के साथ यहां आए।




http://www.dehradun.amarujala.com/feature/city-hulchul-dun/jageshwar-dham-almora-uttarakhand-hindi-news/page-2/

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यहां कदम-कदम पर जमीन से निकलते हैं शिव लिंग

देहरादून से 125 किमी दूर यमुना किनारे ‌मौजूद लाखामंडल में हल्की खुदाई करने पर कदम-कदम पर शिव लिंग निकलते हैं। देहरादून जिले में स्थित लाखामंडल महाभारत काल की याद दिलाता है। महाभारत के समय में पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय यहां बिताया था। दो फुट की खुदाई करने से ही यहां हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियां और शिव लिंग निकल आते हैं। मंदिर के पंडित के अनुसार लाखा मंडल के मंदिर में यह चारों शिवलिंग चार युगों के समय के हैं। इस शिव‌ लिंग पर पानी डालने पर आप अपना चेहरा एक दम साफ देख सकते हैं। यह शिव लिंग खुदाई में मिला है और हजारों साल पुराना है। (फोटोः निर्मला सुयाल) चकराता से 60 किमी. दूरी पर स्थित इस जगह का नाम लाखामंडल रखने ‌का एक कारण यह भी है कि यहां शिव लिंग और लाखों की किमती मूर्तियां मिलती हैं। इसी कारण इस स्‍थान को आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी में रखा गया है। मं‌दिर के गर्भगृह में रखी इस शिला पर पैरों के निशान है। कहा जाता है कि यह मां पार्वती के पैरों की छाप है। (source amar ujala)

Bhishma Kukreti

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कटकेश्वर महादेव ( घसिया महादेव)
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सरोज शर्मा -जनप्रिय साहित्यकार
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कटकेश्वर महादेव मंदिर श्रीनगर से रूद्र प्रयाग जांण वल मार्ग म श्रीनगर से लगभग एक किलोमीटर कि दूरि पर मुख्य मार्ग मा स्थित च कटकेश्वर महादेव।
सड़क कि दयें दक्षिण दिशा म यै मंदिर क निर्माण आधुनिक मंदिरो क जन सीमेंट और कंक्रीट से बण्यू च, मंदिर क भितर 1894 क बाद सफेद शिवलिंग स्थापित च,
मंदिर क परिक्रमा भि सीमेंट और कंक्रीट कि छत से ढकयूं च ।
ऐ मंदिर कि गणना गढ़वाल क प्राचीन शिव मंदिरों मा कियै जांद, स्कन्दपुराण केदारखण्ड से प्राप्त विवरण क अनुसार यख शिव पार्वती प्रणय किर्याओं म निमग्न छा त यै स्थान मा पार्वती क कंगन गिर ग्या, इलै हि ऐ स्थान कु नाम कटकेश्वर ह्वाई, ब्वलेजांद कि कटकेश्वर महादेव मंदिर अलकनंदा क तट पर स्थित छाई, जैकि रचना आदि गुरू शंकराचार्य न कैर छै पर 1894 म विरही कि बाढ़ वु मंदिर बगै ग्या, वैक बाद मंदिर क अवशिष्ट मूर्तियों थैं ये स्थान क नागरिको द्वारा यख स्थापित किए ग्या, और आधुनिक मंदिर क निर्माण किए ग्या। ब्वलेजांद कि ऐ मंदिर क निर्माण हेतू धनाई ठाकुरो न 14 नालि जमीन दान स्वरूप द्या।
कटकेश्वर महादेव मंदिर क दुसर नौ घसिया महादेव च जै क बारम अवधारणा च कि कटकेश्वर महादेव मंदिर कि उत्पति कटक शब्द से ह्वाई जैकु अर्थ घास हूंद, ब्वलेजांद कि दूर से घास लाण वली स्त्रीयां यखम घास टिकैकि अराम करदि छै, इन भि ब्वलेजांद कि यै स्थान म गौडी भैंसियों खुण पौष्टिक घास हूंद इलैहि ऐ कु घसिया महादेव ब्वलेजांद।


 

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