Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Shiv Ling Pooja Worship -शिव लिंग पूजा का रहस्य जुडा है उत्तराखंड देवभूमि से

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

दोस्तों,

जैसे की आपको ज्ञात होगा उत्तराखंड में देवभूमि जहाँ कि देवी देवताओ के अवतार से जुड़ी बहुत धार्मिक और पौराणिक कहानिया है! यह वही पावन भूमि है जहाँ पर गंगा को धरती पर लाया गया जहाँ शिव ने गौर से शादी क़ी, जहाँ पांडवो ने अपनी वनवास का समय बिताया,  जहाँ पर सीता माता धरती माता क़ी गोद में शमा गयी, जहाँ पर समुन्द्र को मथा गया !

आज हम आपके लिए ला रहा है, दुनिया में शिव शिव लिंग पूजा का रहस्य! 


एम.एस. मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
शिव लिंग पूजा का राज जुडा है उत्तरकाण्ड से
 
शिव की यागीश्वर में तपस्या
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जैसे के आपको ज्ञात होगा और कथा आपने सुनी होगी !
 
जब दक्ष्य प्रजापति ने कनखल के समीप यज्ञ किया था ! यहाँ पर शिव के अतिरिक्त सबको इस यज्ञ में बुलाया गया था! शिव की अर्धांगिनी पार्वती जो जब यह पता चला और अपने पति के तिरस्कार को देखकर वो वो कनखल जाकर यज्ञ के हवन में कूद पड़ी और देह त्याग कर दिया !
 
शिव ने कैलाश के यह बात जान दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंश कर सबका नाश कर दिया! और की भस्म को आच्छादित कर झाकर सैम (अल्मोड़ा जिले में स्थिति) में तपस्या की! झाकर सैम को तब से देवदारु वन के आच्छादित बताया है !  झाकर सैम जागीश्वर पर्वत में है !
 
कुमाउ के इस पर्वत में वशिष्ठ मुनि अपनी पत्नियों सहित रहते थे ! एक दिन ऋषि ने पत्नियों ने कुशा और व समिधा  एकत्र करते हुए शिव को रख मले हुए नगनवस्था में तपस्या करते  देखा ! गले में साप की माला थी और आँखे बंद, मौन धारण किये हुए, चित उनका काली (पत्नी) के शोक में संतप्त था! ऋषि के सित्र्याँ  उनके सौंदर्य को देखकर उनके चारो और एकत्र हो गयी!
 
सप्त ऋषियों की की सातो स्त्रियाँ जब रात में न लौटी तो प्रातः काल वे दूदने को गए ! देखा, तो शिव समाधि लिए है, और स्त्रियाँ उनके चारो और बेहोश पड़ी है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
ऋषियों का शिव को शाप देना
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यह देख कर ऋषियों के मन में विचार आया की शिव ने उनकी स्त्रियों की बेजज्ती की है, शिव को शाप दिया "जिस इन्द्रय यानी जिस वस्तु से तुमने यह अनौचित्य किया है, वह लिंग) भूमि में गिर जाय "!
 
तब शिव ने कहा "
 
"तुमने मुझे आकरण शाप दिया है, लेकिन तुमने मुझे संकित अवस्था में पाया है, इस लिए में तुमारे शाप का विरोध नहीं करूँगा ! मेरा लिंग धरती पर गिरेगा और तुम सातो सप्त ऋषि के रूप में आकाश में चमकोगे" अतः शिव ने शाप के अनुसार अपने लिंग को धरती में गिराया !
 
सारी धरती शिव के लिंग से ढक गयी ! गन्धर्व देवताओ ने शिव की पार्थना की और उन्होंने लिंग का नाम यागीश या यागीश्वर कहा और वे सप्त्रिशी कहलाये

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
{यागीश इसलिए नाम पड़ा की सित्र्याँ यज्ञ के लिए कुशा व समिधा एकत्र कर रही थी!  महाभारत में ऋषियों के साथ रमण करने की कहानी को अग्नि का रूप दिया गया है, वहां शिव अग्नि रूप में आये है ! स्वाहा उसमे से ऋषियों में पत्नी है ! स्वाहा ने अग्नि को संतुष्ट किया, उसमे जो वीय (स्कन्न) निकला, वह स्वाहा ने एक स्वर्णघट में एकत्र किया, जिससे सकंद यानी स्वामी कार्तिकेय पैदा हुए! वह कार्तिकेय इसलिए कहलाये की वह कर्तिको (किरातो) द्वारा पाले गए, जो कैलाश में रहते थे ! उनके छह सर वह १२ हाथ थे एक पर पेट एक ही था !
 
कारण यह था कि ७ स्त्रियों में से छह ने शिव के साथ सम्भोग किया था और ७ अरुदति, जो वशिष्ठ कि पत्नी थी, इस कृत्य में सम्मलित नहीं थी!  इसी कारण कार्तिकेय षडानन कहलाये !  यागीश्वर (जागीश्वर) में पण्डे भी यही कहानी कहते है! वे इतनी बात और जोड़ते है कि महादेव सातो स्त्रियाँ पर मोह्हित थे!  वे इनको नगन अवस्था में मिले थे ! भोले नाथ पार्वती के लिए तम्बूरा व डमरू बजाकर निर्त्य कर रहे थे! शाप के कारण लिंग भूमि में गिरा और भूमि लिंग के बार से दबने लगी!
 
विष्णु भगवान् ने योनी यानी शक्ति होना स्वीकार किया, और चक्र से लिंग को काटकर तमाम भारत के कोने-२ में बाटा यागीश्वर (जागीश्वर) तब से पावित्र्य तीर्थ हो गया ! वह भूमि १४४ वर्ग मील को मानी गयी है और पूर्व में इसके जटेश्वर, उत्तर में गणनाथ, पश्चिम में त्रिनेत्र दक्षिण में रामेश्वर है!  कहा जाता है, इश्वार्धार में शिव ने सप्त्रिशियो के सित्र्यों के विहार किया था !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
शिव लिंग का प्रकट होना
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आकाशवाणी हुयी, " संसार में कोई जगह नहीं, जहाँ शिव नहीं है, इसलिए, ये ऋषियों आश्चर्य मत करो, यदि शिव लिंग दुनिया को शिवलिंग ढक ले!
 
तब, ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, चन्द्रमा व अन्य देवगण, जो जागीश्वर में शिव की सुतुती कर कर रहे थे आपने-२ अंश वे शक्ति छोड़कर चले गये !  प्रथ्वी लिंग के बार से दबने लगी, और शिव से प्रार्थना की वह भर से मुक्त की जाय,
तब देवी देवताओ ने लिंग का आदि अंत जानना चाह ! प्रथ्वी ने ब्रह्मा से पूछा "
 
लिंग कहाँ तक है "
 
ब्रह्मा जी ने कहा " जहाँ तक प्रथ्वी है वहां तक"
 
प्रथ्वी ने ब्रह्मा को शाप दिया " तुमने एक बड़े देवता होकर झूठ बोला, इससे संसार में तुमारी पूजा नहीं होगी!
 
ब्रह्मा ने भी प्रथ्वी को शाप दिया " तुम भी कलयुग के अंत में ग्लेच्छो भर जावोगी!
 
देवी देवताओ ने प्रथ्वी से तो उन्होंने के कहा - ' जब ब्रह्मा, विष्णु व कपिल इस बात को नहीं जानते, तो वो कैसे जाने, !
 
तब भगवान् विष्णु से पूछा गया, " वे पातळ गए, पर अंत ना पा सके! तब देवताओ ने विष्णु की प्रार्थना की ! विष्णु शिव के पास गए, और इनसे अनुनय विनय के बाद यह निश्चय हुवा की विष्णु सुरदर्शन चक्र से लिंग को काटे और तमाम खंडो में इसे बात थे !

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