श्रीनंदा राजजात यात्रा को एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा का गौरव प्राप्त है। रहस्य और रोमांच को संजोए यह यात्रा कई सुरम्य और निर्जन स्थलों से होकर पूरी होती है।
20 दिवसीय 280 किमी की इस ऐतिहासिक यात्रा को गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक भी माना जाता है।
18 अगस्त को विधिवत पूजा-अर्चना और मां नंदा की स्वर्ण प्रतिमा को राजछत्र पर प्रतिष्ठित कर ऐतिहासिक राजजात यात्रा शुरू होगी। इस यात्रा के दौरान 19 पड़ाव आएंगे।
शुभ मुर्हूत पर नौटी से मां श्रीनंदा की छंतोली (राजछत्र) अपने पहले पड़ाव के लिए प्रस्थान करेगी।
धार्मिक यात्रा में कुमाऊं के अल्मोड़ा, नैनीताल, कोट, बदियासेम, उंगोली, मार्तोली आदि स्थानों से श्रीनंदा व सुनंदा की डोलियां, छांतोली एवं निषाण शामिल होते हैं।
सातवीं शताब्दी में गढ़वाल राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से श्रीनंदा को बाहरवें वर्ष में मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की। इस यात्रा को नंदादेवी की राजयात्रा कहा जाने लगा। बाद में अपभ्रंश के चलते इस यात्रा को राजजात कहा जाने लगा। राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप दिया।
इस परंपरा का निर्वहन 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण सहित 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है।
इस परंपरा का निर्वहन 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण सहित 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है।
जबकि स्वर्का गांव से केदारू देवता की चांदी की छड़ी, डिम्मर गांव से श्रीबदरीनाथ की छांतोली और बगोली से लाटू देवता का निशान भी शामिल होता है।
श्रीनंदा राजजात में चांदपुर गढ़ी में टिहरी नरेश मां श्रीनंदा की पूजा-अर्चना कर उसे हिमालय के लिए विदा करते हैं। इस वर्ष 21 अगस्त को जब मां श्रीनंदा की डोली राज कुंवरों के गांव कांसुवा से अपने चौथे पड़ाव सेम के लिए प्रस्थान करेगी तो चांदपुर गढ़ी (37 गढ़वाल राजाओं की राजधानी) में टिहरी नरेश अपने परिवार के साथ मां नंदा की पूजा करेंगे।
सिद्वपीठ कुरूड़ से मां श्रीनंदा की डोली 21 अगस्त को सिद्वपीठ कुरूड़ से पहले पड़ाव चरबंग के लिए प्रस्थान करेगी।
26 अगस्त को डोली का मिलन नौटी की छंतोली से होती है। इसी दिन यहां पर अल्मोड़ा की नंदा का कुमाऊं क्षेत्र की देव डोलियों के साथ मिलन होगा। जबकि बदियासेम से यात्रा में शामिल देव निषाण का मिलन वैदनी में 31 अगस्त को होगा।
पूरा रूटः ईडा़ बधाणी, नौटी, कांसवा, सेम, कोटी, भगोती, कुलसारी, चेपड्यू नंदकेशरी, फल्दियागांव, मुंदोली, वांण, गैरोली पातल, वैदनी बुग्याल, पातर नौचौण्या, छोटा कैलुविनयाक, कैलुविनायक, बल्लभास्वेलड़ा, बगुवाबासा, ह्यूणवांक, छेड़ीनाग, रुपकुंड व ज्यूरागली होते हुए होमकुंड।
राजजात समिति के अभिलेखों के अनुसार हिमालयी महाकुंभ श्रीनंदा देवी राजजात वर्ष 1843, 1963, 1886, 1905, 1925, 1951, 1968, 1987 तथा 2000 में आयोजित हो चुकी है। वर्ष 1951 में मौसम खराब होने के कारण राजजात पूरी नहीं हो पाई थी। सुतोल के निकट रूपगंगा और नंदाकिनी के संगम पर ही वैदिक पूजा-अर्चना के बाद राजजात की गई। (source amar ujala0