सबसे अलग
कुमाऊं के गोलू देवता
कुमाऊं अंचल में लोक देवी-देवताओं को पूजने की पुरानी परंपरा है। गोलू देवता को न्याय प्रदान करने एवं शारीरिक-मानसिक कष्टों को हरने वाला माना जाता है। मान्यता है कि गोलू देवता के दरबार में जो भी व्यक्ति सच्चे मन से पुकार लगाता है, उसे न्याय मिलता है।
जनश्रुति है कि गोलू चंपावत के राजा झालराई की आठवीं रानी कलिंका के पुत्र थे। अन्य रानियों से राजा की कोई संतान नहीं थी। सौतिया डाह के कारण बाकी सात रानियों ने नवजात बालक गोलू को पिटारी में रखकर काली नदी में बहा दिया, लेकिन वह पिटारी भाना नाम के एक मछुवारे के हाथ लग गई। उस मछुवारे ने बड़े लाड़-प्यार से इसका लालन-पालन किया। काठ का घोड़ा बालक गोलू का प्रिय खिलौना था। बचपन से ही उसमें न्यायप्रियता और उदारता के गुण थे। बड़े होने पर गोलू जगह-जगह जाकर लोगों की फरियाद सुनकर उसका निवारण करते। इसी विशिष्ट गुण के कारण लोगों ने उन्हें अपना अराध्य मान लिया। उनकी मृत्यु के उपरांत कई जगहों पर उनका मंदिर बनाया गया और वह गोलू, ग्वेल, गोरिल, गोरिया आदि नामों से पूजे जाने लगे।
कुमाऊं के चंपावत, घोड़ाखाल एवं अन्य स्थानों के अलावा चितई में भी गोलू देव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर अल्मोड़ा से छह किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ मोटर मार्ग के समीप है। सड़क से चंद कदमों की दूरी पर ही एक ऊंचे तप्पड़ में गोलू देवता का भव्य मंदिर बना हुआ है। मंदिर के अंदर घोड़े में सवार और धनुष बाण लिए गोलू देवता की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में हरे-भरे पेड़, टंगी हुई असंख्य छोटी-बड़ी घंटियां और अर्जियां लोगों को आकर्षित करती हैं। मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, पर पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था। थोड़ी ही दूरी पर गोलू के मामा डांडा का भी मंदिर है। तमाम आधुनिकताओं के बावजूद स्थानीय लोगों का गोलू देवता पर आस्था बरकरार है। अदालत का खर्च वहन नहीं कर पाने वाले तथा अन्याय, क्लेश व विपदा से पीड़ित लोग इस मंदिर में अपनी पुकार लगाने व मनौती मांगने प्रतिदिन आते रहते हैं। मंदिर के अंदर और बाहर सैकड़ों की तादाद में लगे स्टांप और आवेदन पत्र इसकी गवाही देते हैं। गोलू देवता के दरबार में अधिकतर कानूनी मुकदमे, न्याय, व्यवसाय, स्वास्थ्य, मानसिक परेशानी, नौकरी, गलत अभियोग, जमीन जायदाद व मकान निर्माण से जुड़े विषयों पर अर्जियां लगाई जाती हैं। मनौती पूर्ण होने लोग मंदिर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार घंटियां चढ़ाते हैं। चैत्र व शारदीय नवरात्र के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
चंद्रशेखर तिवारी
http://epaper.amarujala.com//svww_index.php