Author Topic: बेदनी बुग्याल, उत्तराखंड Bedani Bugyal Uttarakhand  (Read 20140 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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बेदनी बुग्याल मखमली-अनछुई हरियाली भरी वादियाँ, पेड़ पौधों के बीच  किलकारियाँ भरते-अठखेलियाँ करते वन्य जीव, पक्षियों के चहकने की सुरीली  आवाज यहाँ आने वालों को मदहोश कर देती है। बर्फ से भरी दूर-दूर तक फैली  पर्वत श्रृंखलाएँ और शांत वातावरण लोगों के मन को पहली बार में ही भा जाता  है।

 हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले के मशहूर पर्यटक  स्थल 'बेदिनी बुग्याल' की। यहाँ एक बार आने वाले पर्यटक बार-बार आना चाहते  हैं। ट्रैकिंग का शौक रखने वाले लोगों का यह पसंदीदा स्थान है। यहाँ की  पर्वत चोटियाँ ज्यादातर समय बर्फ से ढकी रहती हैं। सर्दी के मौसम में तो  यहाँ रास्तों पर भी कई फुट तक बर्फ जम जाती है। दिल्ली-एनसीआर के लोगों के  लिए गर्मी से निजात दिलाने के लिए यह अच्छी जगह है।

40 डिग्री से ऊपर चल  रहे तापमान के मौसम में ठंडक भरे कुछ पल बिताने हों तो बेदिनी बुग्याल का  जबाव नहीं। फरवरी-मार्च के महीने से बर्फ पिघलनी शुरू होती है। तब स्थानीय  लोग अपने पालतू पशुओं को चारागाहों में चराने के लिए निकल पड़ते हैं।

 यहाँ  के दिन मौसम तो सुहाना होता ही है, यहाँ की रातें गर्मी के मौसम में भी  ठिठुरन भरी होती हैं। यहां आने का सही समय मई-जून और सितंबर-अक्टूबर के  महीने हैं। बेदिनी बुग्याल पहुँचने के लिए ग्वालदम से ही ट्रैकिंग शुरू  करनी पड़ती है। जो लोग झील किनारे बैठकर आनंद लेना चाहते हैं उनके लिए भी  यहाँ मौका है।

मंडोली व वान के रास्ते में ब्रह्मताल और भैकनताल झीलें भी  पड़ती हैं। पानी में खेलने के शौकीन यहां आकर पिंडारी नदी के कल-कल करते  स्वच्छ पानी में गोता लगाने के साथ पत्थरों पर बैठकर पानी का आनंद ले सकते  हैं।

बेदनी बुग्याल,  इस टोपिक के अंतर गत हम बेदनी बुग्याल ट्रेक  की जानकारी  के बारे में विष्टार में जानकारी देगें अगर किसी भी सदस्य ने बेदनी  बुग्याल की यात्रा की हो तो आप बेदनी बुग्याल के बारे में जानकारी और फोटो  यहाँ पर दे सकते हैं !

 


यम यस जाखी

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बेदिनी बुग्याल तक सड़क नहीं है। अतः पूरा रास्ता पैदल ही तय करना पड़ता है। सैलानियों को यहाँ आने के लिए अपने साथ गर्म कपड़े, टैंट, ट्रैकिंग शूज, पीने का पानी, पैक खाना और दवाई आदि लेकर चलना चाहिए। एक बार यहाँ पहुँचने के बाद आप वापस लौटना नहीं चाहेंगे। कारण है कि वादियों में खिले रंग-बिरंगे फूलों की मदहोश करती खुशबू, दूर तक फैली मुलायम हरी घास की चादर, दरख्तों के पीछे से सम्मोहित करते हिम शिखर, सुरमई शाम में ठंडी हवाओं के झोंके और ओस की फुहारें सैलानियों को मदमस्त कर देती हैं।

बेदिनी बुग्याल पहुँचने के लिए ऋषिकेश या नैनीताल से मंडोली होते हुए रूपकुंड तक वाहनों से पहुँचा जा सकता है। यहाँ से आगे का रास्ता पगडंडियों से जुड़ा है। एक और मशहूर पहाड़ी पर्यटक स्थल ग्वालदम यहाँ से कुछ ही दूरी पर है। यहाँ का पूरा रास्ता ही ऐसा है कि बारिश की हल्की-सी फुहार पड़ने पर पूरी घाटी में रंग-बिरंगे फूलों के गलीचे बिछ जाते हैं। यह स्थान दिल्ली से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर है।

अतः जाने आने में समय कुछ ज्यादा लग जाता है। दरियागंज स्थित 'क्लिक टू ट्रैवल' एजेंसी के मालिक सिद्धार्थ जैन बताते हैं कि गर्मी बढ़ने के साथ ही दिल्ली के हजारों परिवारों ने अपने लिए टूर पैकेज तैयार करने के ऑर्डर देने शुरू कर दिए हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी पर्यटक स्थलों में अपार प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है। यहाँ ठहरने की भी कोई समस्या नहीं है। आप खुद ही अपनी गाड़ी से जाना चाहें तो भी कोई समस्या नहीं है।



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हिमालय में हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिंबर लाइन (यानी पेडों की पंक्तियाँ) समाप्त हो जाती हैं वहां से हरे मखमली घास के मैदान प्रारंभ होने लगते हैं। आम तौर पर ये ८ से १० हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। गढ़वाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।

बेदनी बुग्याल से दिखता नीलकंठ पर्वत।बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुम्मंतुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए आराम की जगह व कैंपसाइट का। गरमियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फ़ानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढ़वाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर आपको इस प्रकार के बुग्याल मिल जाएंगे। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आपमें पर्यटकों का आकर्षण बन चुके हैं।

 जब बर्फ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाए वातावरण में हरियाली छाई रहती है। पर्वत और घाटियां भांति-भांति के फूलों और वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुंदरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कडी के शौकीनों के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुंचते हैं।इनकी सुंदरता यही है कि हर मौसम में इन पर नया रंग दिखता है। बरसात के बाद इन ढ़लुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे खिल आते हैं। बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊंचाई तक ही बढ़ते हैं। जलवायु के अनुसार ये अधिक ऊंचाई वाले नहीं होते। यही कारण है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसे लगता है।



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कल्पना कीजिए आप हजारों फीट की ऊंचाई पर मीलों तक फैले हरे मखमली घास के ढलाऊ मैदान पर टहल रहे हों। आपके ठीक सामने हाथ बढाकर बस छू लेने लायक बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां हों। आसमान हर पल रंग बदल रहा हो आप जमीन पर जहां भी नजर दौडाए वहां आपको तरह-तरह के मंजर दें, तो निस्संदेह यह दुनिया आपको किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लगेगी। हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिंबर लाइन (यानी पेडों की कतारें) समाप्त हो जाती हैं वहां से हरे मखमली घास के मैदान शुरू होने लगते हैं। आम तौर पर ये 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। गढवाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।

बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुम्मंतुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए आराम की जगह व कैंपसाइट का। गरमियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढवाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर आपको इस तरह के बुग्याल मिल जाएंगे। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आपमें सैलानियों का आकर्षण बन चुके हैं। जब बर्फ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाए वातावरण में हरियाली छाई रहती है।

पर्वत और घाटियां भांति-भांति के फूलों और वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुंदरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कडी के शौकीनों के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुंचते हैं।
इनकी खूबसूरती यही है कि हर मौसम में आपको इन पर नया रंग दिखेगा और नया नजारा।

बरसात के बाद इन ढलुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे हंसते हुए फूल आपका स्वागत करते दिखाई देंगे। बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊंचाई तक ही बढते हैं। जलवायु के अनुसार ये ज्यादा ऊंचाई वाले नहीं होते। यही वजह है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसे लगता है।यूं तो गढवाल की वादियों में कई छोटे-बडे बुग्याल पाये जाते हैं, लेकिन लोगों के बीच जो सबसे ज्यादा मशहूर हैं उनमें बेदनी बुग्याल, पवालीकांठा, चोपता, औली, गुरसों, बंशीनारायण और हर की दून प्रमुख हैं। इन बुग्यालों में रतनजोत, कलंक, वज्रदंती, अतीष, हत्थाजडी जैसी कई बेशकीमती औषधि युक्त जडी-बू्टियां भी पाई जाती हैं।

 इसके साथ-साथ हिमालयी भेड, हिरन, मोनाल, कस्तूरी मृग और धोरड जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं। पंचकेदार यानि केदारनाथ, कल्पेश्वर, मदमहेश्वर, तुंगनाथ और रुद्रनाथ जाने के रास्ते पर कई बुग्याल पडते हैं। प्रसिद्ध बेदनी बुग्याल रुपकुंड जाने के रास्ते पर पडता है। 3354 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस बुग्याल तक पहुंचने के लिए के लिए आपको ऋषिकेश से कर्णप्रयाग, ग्वालदम, मंदोली होते हुए वाण पहुंचना होगा। वाण से घने जंगलों के बीच गुजरते हुए करीब 10 किलोमीटर की चढाई के बाद आप बेदनी के सौंदर्य का लुत्फ ले सकते हैं।

इस बुग्याल के बीचों-बीच फैली झील यहां के सौंदर्य में चार चांद लगी देती है। गढवाल का स्विट्जरलैंड कहा जाने वाला चोपता बुग्याल 2900 मीटर की ऊंचाई पर गोपेश्वर-ऊखीमठ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। चोपता से हिमालय की चोटियों के समीपता से दर्शन किए जा सकते हैं। चोपता से ही आठ किलोमीटर की दूरी पर दुगलबिठ्ठा नामक बुग्याल है। यहां कोई भी पर्यटक आसानी से पहुंच सकता है। चमोली जिले के जोशीमठ से 12 किलोमीटर की दूरी पर 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है औली बुग्याल। साहसिक खेल स्कीइंग का ये एक बडा सेंटर है।

 सर्दियों में यहां के ढलानों पर स्कीइंग चलती हैं और गर्मियों में यहां खिले तरह-तरह के फूल सैलानियों के आकर्षण का केंद्र होते हैं। औली से ही 15 किलोमीटर की दूरी पर एक और आकर्षक बुग्याल है क्वारी। यह भी अत्यंत दर्शनीय बुग्याल है। चमोली और बागेश्वर के सीमा से लगा बगजी बुग्याल भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। समुद्रतल से 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल करीब चार किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यहां से हिमालय की सतोपंथ, चौखंभा, नंदादेवी और त्रिशूली जैसी चोटी के समीपता से दर्शन होते हैं। टिहरी जिले में स्थित पवालीकांठा बुग्याल भी ट्रेकिंग के शौकीनों के बीच जाना जाता है। टिहरी से घनसाली और घुत्तू होते इस बुग्याल तक पहुंचा जा सकता है।

11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल संभवतया गढवाल का सबसे बडा बुग्याल है। यहां से केदारनाथ के लिए भी रास्ता जाता है। कुछ ही दूरी पर मट्या बुग्याल है जो स्कीइंग के लिए काफी उपयुक्त है। यहां पाई जाने वाली दुलर्भ प्रजाति की वनस्पतियां वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बनी रहती हैं। उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर भटवाडी से रैथल या बारसू गांव होते हुए आप दयारा बुग्याल पहुंच सकते हैं। 10500 फीट की ऊंचाईं पर स्थित यह बुग्याल भी जन्नत की सैर करने जैसा ही है।

 ऐसे न जाने गढवाल में कितने ही बुग्याल हैं जिनके बारे में लोगों को अभी तक पता नहीं है। इनकी समूची सुंदरता को केवल वहां जाकर महसूस किया जा सकता है। हालांकि हजारों फीट की ऊंचाई पर स्थित इन स्थानों तक पहुंचना हर किसी के लिए संभव नहीं है।

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