Author Topic: Champawat - चम्पावत  (Read 63248 times)

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #50 on: September 24, 2009, 02:00:43 PM »
                                                बालेश्वर मंदिर


प्राचीन बालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा इसकी देखभाल यहां कई पीढ़ियों से रहे पुजारी गिरि परिवार द्वारा होती रही है। कहा जाता है कि मूल शिवलिंग की स्थापना बली द्वारा की गयी थी (वह दानव जिसे भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में नरक भेज दिया था) और उसी के नाम पर यह मंदिर है। 10वीं से 12वीं सदी के बीच भगवान शिव के भक्त चंद राजाओं ने इस मंदिर का निर्माण एवं विस्तार किया। यहां की नक्काशी एवं कलाकारी में खजुराहों तथा महाबालेश्वर मंदिर के अवशेषों की झलक मिलती है। एक पहाड़ी मंदिर में हाथी की नक्काशी का होना एक असामान्य बात है तथा यह दक्षिण-भारतीय प्रभाव के कारण है। कभी मंदिर में सूक्ष्म ढ़ांचागत विशिष्टता थी तथा यहां एक मंडप भी था। मंदिर की स्थापत्य कला को बरेली के रोहिलखंडों द्वारा धूमिल कर दिया गया है जिन्होंने बार-बार कुमाऊं के मंदिरों पर आक्रमण किया।   

बालेश्वर, रत्नेश्वर एवं चंपावती दुर्गा के मंदिर समूहों के इसके पास होने के भी प्रमाण है जिन्हें चंद वंश के प्रारंभिक राजाओं ने निर्मित कराया था। अब यह परिसर भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के संरक्षणाधीन है तथा यहाँ स्थापित चंपावती की मूर्ति की ही पूजा आम लोगों द्वारा होती है।   

इस वास्तुकला की सुंदरता इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि इसमें तीन विशिष्ट शैलियों का मिश्रण है। ये हैं, होयसाला एवं चालुक्य शैली का दोहरी केंद्रीय भारतीय शैली का सजावटी तथा ऊंचाई योजना एवं विचारधारा तथा कुमाऊं के बहुबुजी आकृति वाली मंदिरों की ऊंचाई योजना। इन मंदिरों की छतों पर की सूक्ष्म नक्काशी इसके प्राचीन गौरव तथा कलात्मक उत्तमता के प्रतीक हैं।

 
 

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #51 on: September 24, 2009, 02:04:01 PM »
                              Way of Champawat
 

हवाई मार्ग:

निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है। पिथौरागढ़ में निर्माणाधीन नैनी-सैनी हवाई-अड्डा बन जाने पर, 74 किलोमीटर दूर चंपावत शीघ्र पहुंचना संभव होगा।

रेलमार्ग:

निकटतम रेल स्टेशन 75 किलोमीटर दूर टनकपुर है।

सड़क मार्ग:

233 किलोमीटर दूर नैनीताल से चंपावत सड़क द्वारा अच्छी तरह जुड़ा है तथा इसी सड़क पर 193 किलोमीटर दूर हल्द्वानी, 75 किलोमीटर दूर टनकपुर तथा 74 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ है।
 

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #52 on: September 24, 2009, 02:06:22 PM »
 
                                महाभारतकालीन वीर घटोत्कच्छ मंदिर

चंपावत स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर।


माना जाता है कि जब अपने 14 वर्षों के निर्वासित जीवन के दौरान पांडव यहां आये तो हिडिंबा नामक राक्षसी, पांडवों में सबसे शक्तिशाली भाई भीम पर आसक्त हो गयी। वह एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर विवाह के लिये भीम को मोहित करने लगी। इसी बीच उसका राक्षस भाई आया और उसने देखा कि हिडिंबा भीम को सम्मोहित करने की चेष्टा कर रही थी और उसने युद्ध के लिये पांडव को ललकारा जिसमें वह राक्षस मारा गया।

भाईंयों की सहमति पाने पर भीम, हिडिंबा के साथ जाकर उसके साथ रहने लगे। हिडिंबा ने भीम के पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच्छ रखा गया। यह मंदिर घटोत्कच्छ तथा पांच पांडवों को समर्पित है क्योंकि यह माना जाता है कि इस स्थान के बहुत निकट ही भीम एवं हिडिंबा मिले थे। हिडिंबा को समर्पित एक मंदिर 2 किलोमीटर दूर है जो एक सुरंग द्वारा इस मंदिर से जुड़ा है। कहा जाता है कि घटोत्कच्छ मंदिर में चढ़ाया गया दूध हिडिंबा मंदिर में प्रकट होता है।

इस मंदिर के साथ एक और कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि जब घटोत्कच्छ कुरूक्षेत्र के युद्ध मे मारा गया, उसका सिर धड़ से कट कर यहाँ गिरा। पांडवों ने घटोत्कच्छ का श्राद यहाँ किया।

यह मंदिर देवदार के पेड़ों से घिरा है एवं एक निर्जन तथा शांत स्थान है। इस मंदिर में नवरात्र तथा दशहरा का त्योहार परंपरागत धूम-धाम से मनाया जाता है।

 

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #53 on: September 24, 2009, 02:08:19 PM »
                     महाभारतकालीन वीर घटोत्कच्छ मंदिर

चंपावत स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर।


माना जाता है कि जब अपने 14 वर्षों के निर्वासित जीवन के दौरान पांडव यहां आये तो हिडिंबा नामक राक्षसी, पांडवों में सबसे शक्तिशाली भाई भीम पर आसक्त हो गयी। वह एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर विवाह के लिये भीम को मोहित करने लगी। इसी बीच उसका राक्षस भाई आया और उसने देखा कि हिडिंबा भीम को सम्मोहित करने की चेष्टा कर रही थी और उसने युद्ध के लिये पांडव को ललकारा जिसमें वह राक्षस मारा गया।

भाईंयों की सहमति पाने पर भीम, हिडिंबा के साथ जाकर उसके साथ रहने लगे। हिडिंबा ने भीम के पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम घटोत्कच्छ रखा गया। यह मंदिर घटोत्कच्छ तथा पांच पांडवों को समर्पित है क्योंकि यह माना जाता है कि इस स्थान के बहुत निकट ही भीम एवं हिडिंबा मिले थे। हिडिंबा को समर्पित एक मंदिर 2 किलोमीटर दूर है जो एक सुरंग द्वारा इस मंदिर से जुड़ा है। कहा जाता है कि घटोत्कच्छ मंदिर में चढ़ाया गया दूध हिडिंबा मंदिर में प्रकट होता है।

इस मंदिर के साथ एक और कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि जब घटोत्कच्छ कुरूक्षेत्र के युद्ध मे मारा गया, उसका सिर धड़ से कट कर यहाँ गिरा। पांडवों ने घटोत्कच्छ का श्राद यहाँ किया।

यह मंदिर देवदार के पेड़ों से घिरा है एवं एक निर्जन तथा शांत स्थान है। इस मंदिर में नवरात्र तथा दशहरा का त्योहार परंपरागत धूम-धाम से मनाया जाता है।
 
 

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #54 on: September 24, 2009, 02:13:16 PM »
                                        Paryavaran



चंपावत समुद्र तल से 5,500 फीट ऊपर एक नीचे की पहाड़ी पर स्थित है जहां से आप हिमालय के अद्भुत सौंदर्य खासकर पंचुली श्रृंखला के कुछ दृश्य देख सकते हैं।

वनस्पति
चंपावत के इर्द-गिर्द हरी-भरी पहाड़ियों पर घने देवदार के जंगल हैं। इस शहर में तथा आस-पास कई सेव एवं आडू के बागान हैं। बसंत में शहर काफी सुंदर दिखता है जहां सेव के फूल खिले रहते हैं तथा गुलाब एवं लीली जैसे कई प्रकार के मौसमी फूल खिलकर इर्द-गिर्द की शोभा बढ़ाते हैं।

जीव-जंतु
चंपावत का निकट संबंध जिम कॉर्बेट तथा उनकी प्रथम पुस्तक ‘मैनइटर्स ऑफ कुमाऊं ’ से है। पुस्तक के प्रथम अध्याय में बंगाल बाघिन का वर्णन है, जिसे वर्ष 1907 में जिम कॉर्बेट ने मार दिया। यह बाघिन 19वीं सदी के दौरान कुमाऊं क्षेत्र में प्रमाणित 436 लोगों की मृत्यु की जिम्मेदार थी।
उस समय लोग नैनीताल से चंपावत पैदल ही जाते थे तथा बाघिन के भय ने इस यात्रा को असंभव बना दिया था। उसने दो भिन्न देशों भारत एवं नेपाल के लोगों को मारा और वह इतनी ढ़ीठ एवं निडर थी कि गांव के बाहर सड़कों पर विचरण करती तथा गर्जन कर लोगों को भयभीत कर देती। उस दिन इस बाघिन ने एक 16 साल की लड़की को मार दिया था तब जिम कॉर्बेट ने उसे मार डाला। उसके अधिकांश शिकार महिलाएं एवं बच्चे होते थे।

चंपावत शहर में, जिस जगह बाघिन का अंत हुआ था वहां एक सीमेंट का बोर्ड लगा हुआ है।

आस-पास के जंगली क्षेत्रों में तेंदुए एवं हिरणों को देखा जा सकता है। यहां के पक्षियों में तीतर, गौरेये, स्विफ्ट्स, सारिकाएं, शिकारी पक्षी, ड्रोगों एवं सामान्य कोयल आदि शामिल हैं।

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #55 on: September 24, 2009, 02:16:19 PM »
                                      Poranik


जोशीमठ की गुरूपादुका नामक ग्रंथ के अनुसार नागों की बहन चम्पावती ने चम्पावत के बालेश्वर मंदिर के पास प्रतिष्ठा की थी। वायु पुराण में चम्पावतपुरी नामक का उल्लेख मिलता है जो नागवंशीय नौ राजाओं की राजधानी थी। स्कंद पुराण के केदार खंड में चंपावत को कुर्मांचल कहा गया है, वह स्थान जहां भगवान विष्णु ने एक कछुए का अवतार लिया था। कुमाऊं वास्तव में कुर्मांचल का अपम्रंश है। चंपावत का संबंध महाभारत के प्रणेताओं पांडवों से भी है। माना जाता है कि अपने 14 वर्षों के निर्वासित जीवन के दौरान पांडव इस क्षेत्र में आये थे तथा यहीं भीम की मुलाकात राक्षसी हिडिंबा से हुई थी, जिसने भीम पर आसक्त होकर उनसे विवाह कर लिया। चंपावत में घटोत्कच्छ मंदिर भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच्छ को समर्पित है।
चंपावत तथा इसके आस-पास बहुत से मंदिरों का निर्माण महाभारत काल में हुआ माना जाता है। एक दूसरी प्रचलित किंवदन्ती ग्वाल देवता से संबंधित है, जिन्हें गोरिल या गोलु भी कहते हैं तथा जिन्हें न्याय का देवता माना जाता है। चंपावत के ग्वारैल चौर में इन्हें समर्पित एक मंदिर हैं जो हजारों-हजार तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है क्योंकि वे पद दलितों को न्याय प्रदान करते हैं।

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #56 on: September 26, 2009, 05:00:28 PM »
चम्पावत में निकली गौरा-महेश्वर की शोभायात्रा

जनपद के अधिकांश क्षेत्रों में गौरा महेश्वर की शोभायात्रा के साथ गौरा पर्व का समापन हो गया। चम्पावत मुख्यालय के नगर और मांदली गंाव में झोड़ा चांचरी और गौरा गीतों के साथ विधिवत इसका पारायण हुआ। इस मौके पर खोल दे माता खोल दे भवानी,भवन किवाड़ा.. के स्वर गूंजते रहे। नगर में खड़ी बाजार स्थित बिष्ट भवन से ढ़ोल नगाड़ों की थाप पर महिलाओं ने गीतों के साथ गौरा और महेश्वर की शोभायात्रा निकाली।

 जिसमें महिलाएं सिर पर गौरा महेश्वर की प्रतिमाओं को लेकर चलते हुए गौरा गीतों का गायन कर रही थी, जो बालेश्वर मंदिर में पहुंचकर झोड़े में तब्दील हो गई। यहां गौरा महेश्वर के विभिन्न स्तुति गीतों के साथ ही पर्व का पारायण हुआ। चम्पावत नगर में गौरा पर्व पिछले नौ सालों से मनाया जा रहा है।

 पं. केशवदत्त पांडेय के अनुसार वर्ष 2000 में विवेकानंद बिष्ट की धर्मपत्‍‌नी जानकी बिष्ट, कैलाश पांडेय की पत्‍‌नी निर्मला पांडेय और समाजसेवी स्व. मुन्नी वर्मा के प्रयासों से यह आयोजन बिष्ट भवन में शुरू हुआ, जो धीरे धीरे विस्तृत रूप लेता जा रहा है। हालांकि अन्य क्षेत्रों में गौरा पूजन लंबे समय से चल रहा है।

 इस क्षेत्र में सबसे पुरानी गौरा पूजन की रस्म मॉदली गांव में सौ साल पूरे कर चुकी है। स्व. सत्यानंद उप्रेती जी के तल्लीमांदली आवास में यह पर्व उत्साह से शुारू हुआ था। उसके बाद अब यह पर्व अलग अलग स्थानों पर मनाया जाने लगा है। मांदली ज्वाला देवी मंदिर में गौरा महेश्वर की शोभायात्रा के बाद विधिवत परायण किया गया। यहां भी गौरा गीतों की धूम मची रही।

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #57 on: September 26, 2009, 05:05:39 PM »
CHAMPAWAT


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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #58 on: September 26, 2009, 05:46:13 PM »
राजा का चबूतरा

बालेश्वर मंदिर के समय एवं शैली के अनुसार ही नगर पंचायत कार्यालय के ठीक विपरीत राजा का चबूतरा निर्मित है। मूल सुंदर भवनों में बहुत से भाग नहीं बचे है;

पर इसके अवशेषों से स्पष्ट है कि इस प्लेटफार्म के सिरे जो पत्थर से निकाले गये हैं वहां एक बितान को समर्थन दे रहे कई खंभे रहे होंगे। पुराने समय में इसका उपयोग चंद शासकों द्वारा सभाओं के आयोजन तथा न्याय करना होता होगा।



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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #59 on: September 26, 2009, 05:46:56 PM »

 

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