Author Topic: Details Of Tourist Places - उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का विवरण  (Read 67923 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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« Reply #30 on: October 13, 2007, 01:18:35 PM »
रामगढ़

भुवाली से भीमताल की ओर कुछ दूर चलने पर बायीं तरफ का रास्ता रामगढ़ की ओर मुड़ जाता है।  यह मार्ग सुन्दर है।  इस भुवाली - मुक्तेश्वर मोटर-मार्ग कहते हैं।  कुछ ही देर में २३०० मीटर की ऊँचाई वाले 'गागर' नामक स्थान पर जब यात्रीगण पहुँचते हैं तो उन्हें हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं। 'गागर' नामक पर्वत क्षेत्र में 'गर्गाचार्य' ने तपस्या की थी, इसीलिए इस स्थान का नाम 'गर्गाचार्य' से अपभ्रंश होकर 'गागर' हो गया।  'गागर' की इस चोटी पर गर्गेश्वर महादेव का एक पुराना मन्दिर है।  'शिवरात्रि' के दिन यहाँ पर शिवभक्तों का एक विशाल मेला लगता है।

'गागर' से मल्ला रामगढ़ केवल ३ कि.मी. की दूरी पर समुद्रतल से १७८९ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।  नैनीताल से केवल २५ कि.मी. की दूरी पर रामगढ़ के फलों का यह अनोखा क्षेत्र बसा हुआ है।  कुमाऊँ क्षेत्र में सबसे अधिक फलों का उत्पादन भुवाली - रामगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में होता है।  इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के फल पाये जाते हैं।  बर्फ पड़ने के बाद सबसे पहले ग्रीन स्वीट सेब और सबसे बाद में पकने वाला हरा पिछौला सेब होता है।  इसके अलावा इस क्षेत्र में डिलिशियस, गोल्डन किंग, फैनी और जोनाथन जाति के श्रेष्ठ वर्ग के सेब भी होते हैं।  आडू यहाँ का सर्वोत्तम फल है।  तोतापरी, हिल्सअर्ली और गौला कि का आडू यहाँ बहुत पैदा किया जाता है।  इसी तरह खुमानियों की भी मोकपार्क व गौला कि बेहतर ढ़ंग से पैदा की जाती है।  पुलम तो यहाँ का विशेष फल हो गया है।  ग्रीन गोज जाति के पुलम यहाँ बहुत पैदा किया जाते हैं।

रामगढ़, जहाँ अपने फलों के लिए विख्यात है, वहाँ यह अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय का विराट सौन्दर्य यहां से साफ-साफ दिखाई देता है।  रामगढ़ की पर्वत चोटी पर जो बंगला है, उसी में एक बार विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर आकर ठहरे थे।  उन्होंने यहाँ से जो हिमालय का दृश्य देका तो मुग्ध हो गए और कई दिनों तक हिमालय के दर्शन इृसी स्थान पर बैठकर करते रहे।  उनकी याद में बंगला आज भी 'टैगोर टॉप' के नाम से जाना जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को भी रामगढ़ बहुत पसन्द था।  कहते हैं आचार्य नरेन्द्रदेव ने बी अपने 'बौद्ध दर्शन' नामक विख्यात ग्रन्थ को अन्तिम रुप यहीं आकर दिया था।  साहित्यकारों को यह स्थान सदैव अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।  स्व. महादेवी वर्मा, जो आधुनिक हिन्दी साहित्य की मीरा कहलाती हैं, को तो रामगढ़ भाया कि वे सदैव ग्रीष्म ॠतु में यहीं आकर रहती थीं।  उन्होंने अपना एक छोटा सा मकान भी यहाँ बनवा लिया था।  आज भी यह भवन रामगढ़-मुक्तेश्वर मोटर मार्ग के बायीं ओर बस स्टेशन के पीछे वाली पहाड़ी पर वृक्षों के बीच देखा जा सकता है।  जीवन के अन्तिम दिनों में वे पहाड़ पर नहीं आ सकती थीं।  अत: उन्होंने मृत्यु से कुछ पहले इस मकान को बेचा था।  परन्तु उनकी आत्मा सदैव इस अंचल में आने के लिए सदैव तत्पर रहती थी।  ऐसे ही अनेक ज्ञात और अज्ञात साहित्य - प्रेमी हैं, जिन्हें रामगढ़ प्यारा लगा था और बहुत से ऐसे प्रकृति - प्रेमी हैं जो बिना नाम बताए और बिना अपना परिचय दिए भी इन पहाड़ियों में विचरम करते रहते हैं।

 

मुक्तेश्वर

रामगढ़ मल्ला से रामगढ़ तल्ला लगभग १० कि.मी. है।  रामगढ़ मल्ला से ही मुक्तेश्वर जाने वाली सड़क नीचे घाटी में दिखाई देती है।  यह घाटी भी सुन्दर है।  नैनीताल से मुक्तेश्वर ५१.५ कि.मी. है।

मुक्तेश्वर कुमाऊँ का बहुत पुराना नगर है।  सन् १९०१ ई. में यहाँ पशु-चिकित्सा का एक संस्थान खुला था।  यह संस्थान अब काफी बढ़ गया है।  कुमाऊँ अंचल में मुक्तेश्वर की घाटी अपने सौन्दर्य के लिए विख्यात है।  देश-विदेश के पर्यटक यहाँ गर्मियों में अधिक संख्या में आते हैं।  ठण्ड के मौसम में यहाँ बर्फीली हवाएँ चलती हैं।  पर्यटकों के लिए यहाँ पर पर्याप्त सुविधा है।  देशी-विदेशी पर्यटक भीमताल, नोकुचियाताल, सातताल, रामगढ़ आदि स्थानों को देखने के साथ-साथ मुक्तेश्वर (२२८६ मीटर) के रमणीय अंचल को देखना नहीं भूलते।

 

नैनीताल से तराइ -भाबर : खुर्पाताल

तराई-भाबर की ओर जैसे ही हम चलते हैं तो हमें कालढूँगी मार्ग पर नैनीताल से ६ कि.मी. की दूरी पर समुद्र की सतह से १६३५ मीटर की ऊँचाई पर खुपंताल मिलता है।  इस ताल के तीनों ओर पहाड़ियाँ हैं, इसकी सुन्दरता इसके गहरे रंग के पानी के कारण और भी बढ़ जाती है।  इसमें छोटी-छोटी मछलियाँ प्रचुर मात्रा में मिलती है।  यदि कोई शौकीन इन मछलियों को पकड़ना चाहे तो अपने रुमाल की मदद से भी पकड़ सकता है।

इस ताल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पर्वतों के दृश्य बहुत सुन्दर लगते हैं।  यहाँ की प्राकृतिक छटा और सीढ़ीनुमा खेतों का सौन्दर्य सैलानियों के मन को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।

 

काशीपुर

खुर्पीताल से कालढूँगी मार्ग होते हुए काशीपुर को एक सीधा मार्ग चला जाता है।  काशीपुर नैनीताल जिले का एक प्रसिद्ध नगर है, और मुरादाबाद व लालकुआँ से रेल द्वारा जुड़ा है।  नैनीताल से यहाँ निरन्तर बसें आती रहती हैं।  कुमाऊँ के राजाओं का यह एक मुख्य केन्द्र था।  तराई - भाबर में जो भी वसूली होती थी उसका सूबेदार काशीपुर में ही रहता था।

चीनी यात्री हृवेनसांग ने भी इस स्थान का वर्णन किया था।  उन्होंने इस स्थान का उल्लेख 'गोविशाण' नाम से किया था प्राचीन समय से ही काशीपुर का अपना भौगोलिक, सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व रहा है।

कालाढूँगी/हल्द्वानी से काशीपुर मोटर-मार्ग में काशीपुर शहर से लगभग ६ कि.मी. पहले देवी का एक काफी पुराना मन्दिर है यहाँ पर चैत्र मास में चैती मेला विशेष रुप से लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं तथा अपनी मनौतियाँ मनाते और माँगते हैं।  देवी के दर्शन करने के लिए यहाँ काफी भीड़ उमड़ पड़ती है।

द्रोणा सागर :

चैती मेला स्थल से काशीपुर की ओर २ किलोमीटर आगे नगर से लगभग जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण ताल द्रोण सागर है।  पांडवों से इस ताल का सम्बन्ध बताया जाता है कि गुरु द्रोण ने यहीं रहकर अपने शिष्यों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी।  ताल के किनारे एक पक्के टीले पर गुरु द्रोण की एक प्रतिमा है, ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टिकोण से यह विशिष्ट पर्यटन स्थल है।

 

गिरीताल

काशीपुर शहर से रामनगर की ओर तीन किलोमीटर चलने के बाद दाहिनी ओर एक ताल है, जिसके निकट चामुण्डा का भव्य मन्दिर है।  इस ताल को गिरिताल के नाम से जाना जाता है।  धार्मिक दृष्टि से इस ताल की विशेष महत्ता है, प्रत्येक पर्व पर यहाँ दूर-दूर से यात्री आते हैं।  इस ताल से लगा हुआ शिव मन्दिर तथा संतोषी माता का मन्दिर है जिसकी बहुत मान्यता है।  काशीपुर में नागनाथ मन्दिर, मनसा देवी का मन्दिर भी धार्मिक दृष्टि से आए हुए यात्री का दिल मोह लेते हैं।

काशीपुर नगर अब औद्योगिक नगर हो गया है, यहाँ सैकड़ों छोटे-बड़े उद्योग लगे हैं जिससे सारा इलाका समृद्धशाली हो गया है।  काशीपुर के इलाके में बड़े-बड़े किसान, जिनके आधुनिक कृषि संयंत्रों से सुसज्जित बड़े-बड़े कृषि फार्म है, खेती की दृष्टि से यह इलाका काफी उपजाऊ है।

पर्यटन की दृष्टि से भी काशीपुर का काफी महत्व है। यहाँ के गिरिताल नामक ताल के किनारे पर्यटन आवास--गृह का निर्माण किया गया है। यहाँ दूर-दूर से देशी-विदेशी पर्यटक आकर रुकते हैं।

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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« Reply #31 on: October 13, 2007, 01:19:13 PM »
नैनीताल के महत्वपूर्ण नगर

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१.) पटुवा डाँगर :

जैसे ही हम नैनीताल से हल्द्वानी की ओर आते हैं, हमें चीड़ के घने वृक्षों के मध्य एक बस्ती सड़क के दाहिनी तरफ दिखाई देती है।  यही पटुवा डाँगर है।  यह नैनीताल से १४.९ कि.मी. की दूरी पर स्थित है।  पटुवा डाँगर पहाड़ों के मध्य एक सुन्दर नगर है यहाँ प्रदेश का 'वैक्सीन' का सबसे बड़ा संस्थान है, यहाँ भी देश-विदेश के पर्यटक आते रहते हैं।

२.) हल्द्वानी :

नैनीताल से ज्योलीकोट, रानीबाग और काठगोदाम होते हुए हम हल्द्वानी पहुँचते हैं।  हल्द्वानी भाबर में बसाये जाने वाले नगरों में से पहला नगर है।  नैनीताल जिले का ठंडियों का मुख्यालय भी हल्द्वानी है।  यह नगर नैनीताल जिले का सबसे बड़ा नगर है जहाँ आधुनिक सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध हैं।  यह नगर उत्तर पूर्वी रेलवे से लखनऊ, आगरा और बरेली से जुड़ा हुआ है।  पर्वतीय अंचल के प्राय: सभी छोटे-बड़े नगरों के लिए यहाँ से बस सेवा उपलब्ध है। काठगोदाम यहाँ से केवल ५ कि.मी. दूर है।  इसलिए सबी प्रकार की बस-सेवाएँ हल्द्वानी से ही प्रारम्भ होती है।

हल्द्वानी में पर्यटकों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।  अधिकांश पर्यटक हल्द्वानी रहकर ही नैनीताल के अन्य क्षेत्रों का भ्रमण करते रहते हैं।  हल्द्वानी में शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हैं।  रहने, खाने व स्वास्थ्य की दृष्टि से बी यहाँ उत्तम प्रबन्ध है।  यहाँ पर कई होटल व गेस्ट हाऊस उपलब्ध है।

३.) पन्तनगर :

पंडति गोविन्द बल्लभ पंत के नाम से इस शहर का नाम पड़ा यहाँ पर पंत रेलवे स्टेशन तथा विश्व - प्रसिद्ध गोविन्द बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय स्थापित है।  यह विश्वविद्यालय अपने ढ़ंग का विश्वविद्यालय है, जो सोलह हजार एकड़ भूमि में फैला हुआ है।  यहाँ पर प्रत्येक वर्ष सैकड़ों छात्र - कृषक संगठन, कृषि अर्थशास्र, इंजिनियकिंरग, ए. एच. (बी. बी. एस-सी.) गृह विज्ञान आदि की परिक्षाएँ उत्तीर्ण करते हैं।  कृषि एवं पशु - चिकित्सा सम्बन्धी नये-नये विषयों का अध्ययन किया जाता है।

यहाँ पर एक हवाई अड्डा है जहाँ से हवाई जहाज दिल्ली आते-जाते रहते हैं।  नैनीताल पहुँचने के लिए नजदीक वाला हवाई अड्डा यही है।

तराई-भाबर में नैनीताल जिल के उभरते हुए नगर रुद्रपुर, किच्छा, गदरपुर, रामनगर, बाजपुर और जसपुर हैं।  ये सारे नगर कृषि की उन्नति पर उभरे हैं।  तराई के क्षेत्र में अधिक उपज होने के कारण ये सारे नगर दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।

बहुत से देशी व विदेशी पर्यटक तराई-भाबर के जन-जीवन को भी देखना चाहते हैं।  ऐसे सैलानी इन नगरों में रहकर तराई-भाबर का जन-जीवन देखकर आनंद लेते हैं।

 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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« Reply #32 on: October 13, 2007, 02:24:05 PM »
Lage raho Mehta ji keep it up.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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« Reply #33 on: October 16, 2007, 01:13:49 PM »
Thanks Mehta ji, for such a useful information about the places. the readers must be benefited with you information.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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« Reply #34 on: October 16, 2007, 01:19:05 PM »

Thank Rajeesh Ji.

We would further try to bring out many such informationabout Uttarakhand and would share with people.


Thanks Mehta ji, for such a useful information about the places. the readers must be benefited with you information.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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« Reply #35 on: October 17, 2007, 10:44:44 AM »
रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन से मिलता है मोक्ष

 गोपेश्वर (चमोली)। राज्य के प्राचीन व विशाल मंदिरों में शुमार भगवान गोपीनाथ के एतिहासिक मंदिर के दर्शन किसी तीर्थ यात्रा से कम नहीं है। मंदिर के प्रांगण में शक्ति स्तंभ के दर्शन तो मनुष्य को जन्म-जन्म के पापों से मुक्त कर पुण्य की प्राप्ति कराता है। मंदिर परिसर में बिखरी देवमूर्तियां व शिला पट्ट भी कम दर्शनीय नहीं है।
   केदारखंड के प्रमुख तीर्थो में शामिल रुद्रनाथ मंदिर का इतिहास काफी दिलचस्प है। समुद्रतल से 1308 मीटर की ऊंचाई पर गोपेश्वर नगर के मध्य 9-11वीं शताब्दी के मध्य कत्यूरी शासकों द्वारा नागर शैली में निर्मित इस मंदिर को देखकर लगता है कि शायद आज भी धरा पर देवताओं का वास है। केदारखंड में उल्लेख है कि पांच केदार केदारनाथ, कल्पनाथ, मद्मेश्वर, रुद्रनाथ व गोपीनाथ में धार्मिक पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। मंदिर के पास ही कल्पवृक्ष की पूजा मात्र से मनोकामना पूर्ण होती है। कल्पवृक्ष की खासियत है कि यह पेड़ बारह माह हरा रहने के साथ-साथ इस पर फूल लगे रहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि राजा सगर की गाय ने इस पेड़ को अपने दूध से सींचा था। बताते है कि पेड़ के नीचे शिवलिंग था, जो बाद में देखने को मिला। इसके अलावा मान्यता है कि राजा दक्ष द्वारा आयोजित महायज्ञ में भगवान शंकर को न बुलाये जाने पर सती द्वारा अग्निकुंड में भस्म होने के बाद से विचलित हुए भगवान शंकर ने मन की शांति के लिए यहीं तपस्या की थी, लेकिन कामदेव को भस्म कर देने के बाद जब कामदेव की पत्नी ने शिव की आराधना कर पति को जीवित करने का आग्रह किया तो भगवान शिव ने मंदिर के निकट ही रतीकुंड में कामदेव को मछली के रूप में जीवित किया। मंदिर परिसर में यूं तो शिवलिंग के अलावा मां पार्वती, गणेश, हनुमान, अनसूया देवी व नव दुर्गा आदि की मूर्तियां हैं, किन्तु मंदिर के सामने स्थित लगभग 16 फुट ऊंचे शक्ति स्तंभ का दर्शन मन को आलोकित कर देता है। कहा गया कि त्रिशूल को बल पूर्वक हिलाने पर यह टस से मस नहीं होता, जबकि उंगली मात्र से स्पर्श करने पर यह हिलने लगता है। इसके अलावा मंदिर के पीछे चण्डिका मंदिर तथा गर्भगृह की मूर्तियां व शिवलिंग के दर्शन भी किसी पुण्य से कम नहीं है।

[Wednesday, October 17, 2007 2:23:31 AM (IST) ]

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« Reply #36 on: October 22, 2007, 11:38:07 AM »

KEMPTY FALL

15 Kms. from Mussoorie on the Yamunotri road having and altitude of 1215 mts. It has the distinction of being the biggest and prettiest water fall located in a beautiful valley and is surrounded by high mountains. A bath at the foot of the fall is refreshing and enjoyable for children and adults alike.

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« Reply #37 on: October 22, 2007, 11:40:18 AM »
      60 kms. from Mussoorie and 48 kms. from  Narendra Nagar on the road to Gangotri. Chamba is a township lying high at an altitude of 1676 mts., offering a splendid view of the snow-capped Himalayas and the serene Bhagirathi valley. Chamba happens to be a focal point, being located at  the junction of roads leading from Mussoorie, Rishikesh, Tehri and New Tehri. The Chamba- Mussoorie fruit belt is also famous for its delicious apples.

         Jal Nigam Rest House, Tourist Rest House, Hotel Akash Deep, Akash Lok, Neelkant, Social Palace & Hotel Classic Hill Top provide comfortable accommodation

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« Reply #38 on: October 22, 2007, 11:41:27 AM »
 
DEVPARYAG.

Situated at the confluence of the Alaknanda and the Bhagirathi, the town of Devaprayag lies at an altitude of 472 m. on the metalled road running from Rishikesh to Badrinath and about 87 km. from Narendra Nagar. Near the town there are two suspension bridges, one each on the Bhagirathi and the Alaknanda. The metalled road to Badrinath crosses the former by a third bridge. The town is the headquarters of the tahsil of the same name and is one of the five sacred prayags (confluences) of the Alaknanda. Tradition has it that the town is named after Deosharma, a sage, who led a life of penance here and succeeded in having a glimpse of God.

        The great temple of Raghunathji is claimed to have been erected some ten thousand years ago and is built of massive uncemented stones. It stands upon a terrace in the upper part of the town and consists of an irregular pyramid capped by a white cupola with a golden ball and spire. Religious ablutions take place at 2 basins excavated in the rock at the junction of the holy streams - on the Bhagirathi known as the Brahm Kund and the other on the Alaknanda called the Vasisht Kund. The temple, along with the other Buildings of the town, was shattered by an earthquake in 1803 but the damage was subsequently repaired through the munificence of Daulat Rao Sindhia.  The temple is visited by a large number of pilgrims every year.
          The town is the seat of the pandas of the Badrinath Dham and possesses a post and telegraph office, a public call office, a police out-post, a dak bungalow of the public works department and a hospital.

          Besides the temple of Raghunathji, there are in the town Baital Kund,Brahm Kund,Surya Kund and Vasisht Kund; the Indradyumna Tirth,Pushyamal Tirth, Varah Tirth ; Pushpavatika ; Baitalshila and Varahishila ; the shrines of Bhairava, Bhushandi, Durga and Vishveshvara ; and a temple dedicated to Bharata. A bath at Baithalshila is claimed to cure leprosy.       

         Nearby is the Dasharathachal Peak, containing a rock, known as Dashrathshila, on which Raja Dasharath is said to have led a life of penance.A small stream, the shanta running down from the Dasharathachal, is named after Shanta, the daughter of Raja Dasharath and is considered to be sacred

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Re: POPULAR TOURIST DESTINATION OF UTTARAKHAND WITH DETAILS !!!!
« Reply #39 on: October 26, 2007, 12:09:10 PM »
पहाड़ों की रानी है मसूरी

पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी उत्तराखंड में आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यूं तो पूरे उत्तरांचल में प्राकृतिक सुंदरता बिखरी हुई है लेकिन इनके बीच मसूरी की प्राकृतिक खूबसूरती की अलग पहचान हैे।

प्रत्येक साल यहां लाखों की संख्या में देश विदेश के पर्यटक आते हैं। देहरादून से ब्फ् किलोमीटर की दूरी पर स्थित मसूरी की समुद्र तल से ऊंचाई फ्क्क्क् मीटर है। यहां पहुंच कर आप हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं को देख सकते हैँ।

गर्मियों में यहां का मौसम ठंढा और काफी सुहाना होता है इसलिए मैदानी भागों की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए लोग यहां आते हैं। मसूरी बाजार में स्थित रोपवे से आप गन हिल पर जा सकते हैं। गन हिल मसूरी के सबसे ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। इसकी ऊंचाई करीब त्त्फ्क्क् फीट है।

यहां पर अंग्रेजों के जमाने में एक तोप रखी गई थी जो दिन में ठीक ख्फ् बजे दागी जाती थी। इसलिए इसका नाम गनहिल रखा गया। मसूरी यमुनोत्री मार्ग पर कैंपटी फाल है। यहां से निकलने वाला झरना पांच अलग अलग धाराओं में बहता है।

अंग्रेज लोग अपनी टी पार्टी यहां किया करते थे इसलिए इसका नाम कैंपटी फाल पड़ गया। यहां से भी आप खूबसूरत पहाड़ों का नजारा ले सकते हैं। इसके साथ ही कंपनी गार्डन और मालरोड के अतिरिक्त कई खूबसूरत जगहें हैँ जहां से आप पहाड़ों की खूबसूरती को निहार सकते हैं।

मसूरी जाने के लिए देहरादून पहुंचना जरूरी है। देहरादून से मसूरी सड़क मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है। देहरादून रलमार्ग, हवाईमार्ग और सड़क के जरिए दिल्ली से जुड़ा है। मसूरी और देहरदून में ठहरने के लिए निजी और सरकारी क्षेत्र के कई होटल हैं। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम की तरफ से पर्यटन और होटल की खास सुविधाएं उपलब्ध

 

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