Author Topic: Details Of Tourist Places - उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का विवरण  (Read 67910 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पहाड़ों की रानी है मसूरी
« Reply #60 on: November 20, 2007, 10:39:44 AM »
पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी उत्तराखंड में आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यूं तो पूरे उत्तरांचल में प्राकृतिक सुंदरता बिखरी हुई है लेकिन इनके बीच मसूरी की प्राकृतिक खूबसूरती की अलग पहचान हैे।

प्रत्येक साल यहां लाखों की संख्या में देश विदेश के पर्यटक आते हैं। देहरादून से ब्फ् किलोमीटर की दूरी पर स्थित मसूरी की समुद्र तल से ऊंचाई फ्क्क्क् मीटर है। यहां पहुंच कर आप हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं को देख सकते हैँ।

गर्मियों में यहां का मौसम ठंढा और काफी सुहाना होता है इसलिए मैदानी भागों की चिलचिलाती धूप से बचने के लिए लोग यहां आते हैं। मसूरी बाजार में स्थित रोपवे से आप गन हिल पर जा सकते हैं। गन हिल मसूरी के सबसे ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। इसकी ऊंचाई करीब त्त्फ्क्क् फीट है।

यहां पर अंग्रेजों के जमाने में एक तोप रखी गई थी जो दिन में ठीक ख्फ् बजे दागी जाती थी। इसलिए इसका नाम गनहिल रखा गया। मसूरी यमुनोत्री मार्ग पर कैंपटी फाल है। यहां से निकलने वाला झरना पांच अलग अलग धाराओं में बहता है।

अंग्रेज लोग अपनी टी पार्टी यहां किया करते थे इसलिए इसका नाम कैंपटी फाल पड़ गया। यहां से भी आप खूबसूरत पहाड़ों का नजारा ले सकते हैं। इसके साथ ही कंपनी गार्डन और मालरोड के अतिरिक्त कई खूबसूरत जगहें हैँ जहां से आप पहाड़ों की खूबसूरती को निहार सकते हैं।

मसूरी जाने के लिए देहरादून पहुंचना जरूरी है। देहरादून से मसूरी सड़क मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है। देहरादून रलमार्ग, हवाईमार्ग और सड़क के जरिए दिल्ली से जुड़ा है। मसूरी और देहरदून में ठहरने के लिए निजी और सरकारी क्षेत्र के कई होटल हैं। यहां गढ़वाल मंडल विकास निगम की तरफ से पर्यटन और होटल की खास सुविधाएं उपलब्ध हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तरांचल-पर्यटकों के लिए स्वर्ग भारतवर्ष के उत्तरी भाग में विशाल एवं सौन्दर्य पूर्ण क्षेत्र में शान्त सौन्दर्यपूर्ण एवं महान हिमालय की गोद में स्थित देवभूमि (देवताओं का घर) के नाम से प्रसिद्ध उत्तरांचल राज्य ने स्मरणातीत समय से सम्पूर्ण विश्व के पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकृर्षित किया है। हिन्दुओं के तीर्थ स्थल श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, सिक्खों के पवित्र तीर्थ हेमकुण्ड, लोकपाल, हनाकमत्ता एवं मीठा-रीठा साहिब तथा मुसलमानों के तीर्थ स्थल पीरान कलियर ने आध्यात्मिक सन्तुष्टि की खोज में उत्तरांचल आने वाले तीर्थयात्रियों एवं अन्वेषकों को पूर्ण शान्ति एवं सन्तुष्टि प्रदान की है। पवित्र यमुना एवं गंगा नदियों के उदगम स्थल उत्तरांचल राज्य में ही स्थित है। पवित्र गंगा एवं यमुना नदियों के उदगम स्थल की इस महान भूमि की समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं, दुर्लभ प्राकृतिक सौन्दर्य तथा शीत एवं शक्तिवर्धक जलवायु यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं।

सांस्कृतिक रुप से उत्तरांचल को एक समृद्घ एवं गुन्जायमान विरासत प्राप्त हुई है। यहाँ पर अनेकों स्थानीय मेले एवं त्यौहार मनाये जाते हैं। जैसे- झन्डा मेला (देहरादून), सरकन्डा देवी मेला (टिहरी गढवाल), माघ मेला (उत्तरकाशी), नन्दा देवी मेला (नैनीताल), चैती मेला (ऊधम सिंह नगर), पूर्णागिरि मेला (चम्पावत), पिरान कलियर मेला (हरिद्वार), जोलिजवी मेला (पिथौरागढ), उत्तरायणी मेला (बागेश्वर), कुम्भ एवं अर्द्ध कुम्भ मेला (हरिद्वार) इत्यादि। ये मेले एवं त्यौहार उत्तरांचल में सांस्कृतिक पर्यटन के लिए अपार सम्भावनाओं की ओर संकेत करते हैं। पर्वतों की रानी मसूरी, भारत का झील जिला नैनीताल, कोसानी, पौडी, लैंसडाउन, रानीखेत, अल्मोडा, पिथौरागढ, मुन्सयारी एवं अन्य बहुत से आकर्षक पर्यटन स्थल उत्तरांचल के भाग हैं।

उत्तरांचल साहसिक क्रीडाओं के लिए स्वर्ग है। विविध प्रकार की साहसिक क्रीडा जैसे भागीरथी, चैखम्भा, नन्दा देवी कामेट, पिन्डारी, सहस्त्रताल, मिलाम, कफनी, खटलिग एवं गौमुख पर्वत शिखरों का पर्वतारोहण एवं ट्रैकिंग, औली, दयारा, बुग्याल, मुन्सयारी एवं मुन्डाली में स्क्रीइंग, उत्तरांचल में टिहरी बाँध सहित सभी झीलों एवं नदियों में जल क्रीडा के अतिरिक्त हवाई क्रीडाएं जैसे पिथौरागढ, जौली ग्रान्ट एवं पौडी में हैंग ग्लाइडिंग एवं पैराग्लाइडिंग उत्तरांचल को न केवल भारतवर्ष में वरन् सम्पूर्ण विश्व में साहसिक क्रीडाओं के लिए अत्याधिक आकर्षक स्थलों में से एक बनाती है।

विश्व प्रसिद्ध कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान सहित उत्तरांचल में वन जीव पर्यटन के लिए राजाजी राष्ट्रीय उद्यान, गोविन्द पशु विहार, असान बैराज एवं सप्तऋषि आश्रम नामक अनेकों विस्मयकारी स्थल है। इनमें से अन्तिम चार पक्षी उद्यान के रुप में प्रसिद्ध हैं।

उत्तरांचल में विविध प्रकार की दुर्लभ वनस्पति एवं वनजीव पाये जाते हैं। ये सभी सम्मिलित रुप में उत्तरांचल को पारिस्थितिक पर्यटन के लिए एक आदर्श स्थल बनाते हैं। पारिस्थितिक पर्यटन के अन्तर्गत जंगल सफारी, वन पगडंडियों पर ट्रेकिंग, प्राकृतिक रुप में टहलना, पंचेश्वर में महाशीर एवं अन्य मत्सय प्रजातियों को पकडना एवं छोडना सम्मिलित है। तथापि क्षेत्र की पारिस्थितिक सुकुमारता को बनाये रखने के लिए इन समस्त गतिविधियों को अत्याधिक प्राथमिकता दी गई है। स्वच्छ एवं बलवर्धक पर्यावरण उत्तरांचल को विश्राम हेतु एक वटीय स्थल बनाता है। आधुनिक सुविधाओं सहित मसूरी एवं नैनीताल के अछूते सौन्दर्य, हिमाच्छादित शिखरों के प्राचीन सौन्दर्य, नदियों एवं पर्वतों सहित उत्तरांचल पर्यटकों को वह सभी प्रदान करता है जिसकी एक पर्यटक आनन्द प्राप्ति के लिए चाह कर सकता है।
 

पंकज सिंह महर

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       देहरादून। ग्लेशियरों के पिघलने से होने वाले खतरों पर अध्ययन के लिए गठित विशेषज्ञ समिति की संस्तुति के आधार पर तय किया गया है कि अब गोमुख तक जाने के लिए एक दिन अधिकतम 150 तीर्थयात्रियों को ही अनुमति दी जाएगी। शासन ने ग्लेशियर क्षेत्र में आवजाही पर नियंत्रण के लिए प्रवेश शुल्क में बढ़ोतरी समेत कई अहम निर्णय लिए हैं।
       राज्य में स्थित ग्लेशियरों के तेजी से संकुचन से होने वालों खतरों पर अध्ययन के लिए शासन ने वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान के निदेशक डा. बल्देव राज अरोड़ा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञों की समिति का गठन किया गया था। शासन की एक उच्च स्तरीय बैठक में इस समिति की रिपोर्ट पर चर्चा की गई। रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले कुछ वषरें में ग्लेशियर क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां खासी बढ़ी हैं। इसका सीधा असर उस इलाके के प्राकृतिक मौसम पर पड़ रहा है। समिति की और से इस बारे में एक प्रजेंटेशन भी दिया गया था। इन पर मंथन के बाद कई अहम निर्णय लिए गए हैं। तय किया गया है कि गोमुख क्षेत्र में तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की आवाजाही पर कुछ नियंत्रण किया जाए। इसके लिए वन अधिनियम-1927 और वन्य जीव अधिनियम सरंक्षण अधिनियम-1976 की विभिन्न धाराओं का उपयोग किया जाए। शासन ने तय किया है कि अब एक दिन में अधिकतम 150 लोगों को ही गोमुख तक जाने की अनुमति दी जाएगी। अनुमति देने का अधिकार स्थानीय अफसर की जगह मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक को दिया गया है। अब प्रवेश के लिए ज्यादा शुल्क वसूल किया जाएगा। गंगोत्री से आगे घोड़े और खच्चर समेत किसी व्यावसायिक पशुओं का आवागमन पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। गंगोत्री से आगे आवागमन को और विनियमित करने के लिए वन विभाग को बैरियर बनाने और पुलिस व वन चौकियों को मजबूत करने का निर्देश भी दिए गए हैं।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। उत्तराखंड की वादियों में गर्मियों की छुट्टियों का लुत्फ उठाने वाले यात्री इस बार उत्तराखंड में झोपड़ियों में रहने का लुत्फ भी उठा सकते हैं। बांस, लकड़ी और फाइबर की ये झोपड़ियां न केवल दिखने में आकर्षक हैं बल्कि यह भूंकपरोधी भी हैं। गढ़वाल मंडल विकास निगम उत्तराखंड के विभिन्न पर्यटक स्थलों में इनका निर्माण कर रहा है।

चार धाम यात्रा और गर्मियों के सीजन में उत्तराखंड में बड़ी संख्या से देश-विदेश से सैलानी घूमने आते हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों का परिवेश हमेशा से ही उनको भाता है। कई बार ये पर्यटक बड़े होटलों में ठहरने के बजाय छोटे होटलों और घरों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। पर्यटकों की इस पसंद को ध्यान में रखते हुए गमंवि निगम बांस व फाइबर की हट बना रहा है। बांस व फाइबर से बनीं ये झोपड़ियां दिखने में तो आकर्षक हैं ही, साथ ही यह भूंकपरोधी होने के साथ हीट रिपेलेंट भी हैं। इसका एक फायदा यह भी है कि इन्हें बनाने के लिए न तो पेड़ों को काटा जा रहा है और न ही पर्यटक स्थलों को कंक्रीट में बदलना पड़ रहा है। ये पर्यावरण सुरक्षा में भी काफी सहयोगी हैं। ये झोपड़ियां जीएमवीएन की अपनी लकड़ी फैक्ट्री में तैयार हो रही हैं, जबकि फाइबर की झोपड़ियां बाहर से बनवाई जा रही हैं। शुरुआती चरणों में ये झोपड़ियां तिलवाड़ा, सियालीसौड़ व कौड़ियाला में बनाई जा रही हैं। इन क्षेत्रों में लगभग सौ से अधिक झोपड़ियां बनाई जाएंगी। कौड़ियाला में तो इन हट्स में टूरिस्टों का ठहरना भी शुरू हो गया है और वह इसे काफी पसंद भी कर रहे हैं। जीएमवीएन के एमडी अवनेंद्र सिंह न्याल का कहना है कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ही ये हट्स बनाई जा रही हैं। इनको बनाने का कार्य काफी तेज गति से चल रहा है। यात्रा सीजन से पहले ही ये बन कर तैयार हो जाएंगी।

हेम पन्त

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देहरादून। पहाड़ों की रानी मसूरी पर्यटकों को आकर्षित करने में भी रानी साबित हुई है। पिछले वर्ष पर्यटकों को आकर्षित करने में टॉप पर रहते हुए मसूरी ने भारतीय हिमालयी पर्यटन स्थलों में पहला स्थान हासिल किया है। पर्यटकों को आकर्षित करने में मसूरी ने कुल्लू-मनाली, शिमला, दार्जिलिंग, नैनीताल और लद्दाख को पीछे छोड़ दिया है।

पिछले वर्ष मसूरी में बीस लाख से अधिक पर्यटक आए। विशेषज्ञों का मानना है कि वीक एंड टूरिज्म के बढ़ते आकर्षण ने मसूरी के पर्यटन सीजन की तस्वीर ही बदल दी है। मसूरी में 50 से लेकर 70 के दशक तक पर्यटन मौसम मई से जुलाई और अक्तूबर से नवंबर तक हुआ करता था। 80 के दशक में पर्यटन सीजन का विस्तार पूरे साल हो गया। अब मसूरी में पूरे वर्ष पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। दिल्ली से निकटता का लाभ भी मसूरी को मिल रहा है। जहां 50 के दशक में मसूरी में दो लाख से भी कम पर्यटक आया करते थे, वहीं अब यह आंकड़ा बीस लाख से भी अधिक हो गया है। मसूरी में पिछले आठ वर्षो से लगातार हर महीने 50,000 पर्यटक आते हैं। मसूरी से दिखने वाले बर्फ से ढके हिमालय के खुबसूरत नजारे, दून घाटी के सुंदर दृश्य, माल रोड की सैर और गन हिल तक रोपवे ने मसूरी को पर्यटकों का मनपसंद वीक एंड डेस्टीनेशन बना दिया है। उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के संयुक्त निदेशक एके द्विवेदी कहते हैं कि पर्यटन विभाग की विकासात्मक नीतियों के कारण अधिक पर्यटक आए हैं।


राजेश जोशी/rajesh.joshee

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पन्त जी,
मसूरी में पर्यटकों के अधिक आने का मुख्य कारन यह है की यह देहरादून से केवल ३२ कि०मि० पर है|  देहरादून की जनसंख्या करीब ७ लाख होगी जिसमें से २-३ लाख छात्र हैं|  देहरादून में पढने वाले छात्र कम से कम महीने में एक बार मसूरी जरुर जाते हैं| देहरादून में रहने वाले लोग भी अकसर मसूरी जरुर जाते हैं जिस कारण मसूरी में पर्यटकों की संख्या ज्यादा लगती है| अगर प्रदेश से बाहर से आने वाले पर्यटकों की संख्या के आधार पर आकलन करेंगे तो नैनीताल और मसूरी में कोई अन्तर नही है|  बाहर से आने वालों में भी काफी संख्या में कान्वारिये भी शामिल हैं| इन सब कारणों से मसूरी में पर्यटकों की संख्या ज्यादा है, लेकिन  मसूरी को पहाडों की रानी कहलाने का पुरा श्रेय जाता है|

Veer Vijay Singh Butola

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मेरा परम मित्रो,

मैं यख चार धाम यात्रा का बारा मा एक निबंध लिख्णु छोऊ | आप सभी जाणदा छन की हमारा उत्तराखंड मा मई बीटी चार धम यात्रा कु शुभारम्भ ह्वे जांदु, यन पवित्र यात्रा का बार मा मैं अप्नु यू छोटू सी प्रयास आपका सामणी अपनी पहाड़ी भाषा मा प्रस्तुत कर्णु छोउं |चार धाम यात्रा की उत्त्पत्ति का बारा मा यन त कुई निश्चित मान्यता या साक्ष्य उपलब्ध नि च परन्तु चार धाम यात्रा भारत का चार धार्मिक स्थलों कु समूह च | येका अंतर्गत भारत की चार दिशाओ का वो सब्भि मंदिर ओऊँदा | इ मंदिर छन- पूरी, रामेवश्रम,द्वारका और श्री बद्रीनाथ |यू मंदिरों कु निर्माण ८ वीं शताब्दी मां आदि गुरु शंकराचार्य जी न करवाई कें एक सूत्र मा पिरोई थोऊ | लेकिन यूँ सभी मंदिरू मा श्रीबद्रिनाथ जी कु अधिक महत्व च | येका दगडी उत्तराखंड मा और ३ मंदिर भी छन , जन की श्रीकेदारनाथजी , गंगोत्री जी अऔर् यमनोत्री जी | इ सभी मंदिर हिमालय पर स्थित चार दाम का समूह छन | यू चारों मंदिरों कु विवरण ये प्रकार सी छ |



श्री बद्रीनाथ मंदिर- यू मंदिर उत्तराखंड का चमोली जिला मा समुद्र तल सी १०२७६ फीट (३१३३ मीटर ) की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी का तट पर नर और नारायण पर्वतों का मध्य मा स्थित छा |
| यां मान्यता छ की भगवान् श्री लक्ष्मीनारायण जी याख विराजमान छन| देवी लक्ष्मी न भगवान् थीं चाय प्रदान करण का वास्ता याख बेर (बदरी ) वृक्ष कु रूप लीनी थोऊ तब सी इ जगह की नोउ बद्रीनाथ पड़ी जी थोऊ |
आज जू मंदिर हम लोग देख्दा छन व्येकू निर्माण १८ वी शताब्दी मा गढ़वाल का राजा द्वारा शंकु शैली मा कराइ गयी थोऊ | ये मंदिर की ऊंचाई १५ मीटर छ, शिखर पर गुम्बज व यख १५ मूर्तिया छन | मंदिर का गर्भ गृह मा विष्णु भगवान् दागडी नर और नारायण ध्यान अवस्था मा विराजमान छन | यन मान्यु जंदु की येकू निर्माण वैद्क काल मा हवाई थोऊ परन्तु बाद मा पुनुरुधार शंकराचार्य जी न ८ वी शताब्दी मा करवाई थोऊ | मद्निर का तीन भाग छन - गर्भ गृह , दर्शन मंडप और सभा गृह | वेदों और ग्रंथो में यन वर्णन छ की ----"स्वर्ग और पृथ्वी पर अनेक पवित्र स्थान छन, लेकिन श्री बद्रीनाथ यूँ सभी मा सर्वोपरि छ |


श्री केदारनाथ जी- यू मंदिर उत्तराखंड का चमोली जिला मा समुद्र तल सी 1982 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकनी नदी का तट पर भगवान शिव जी का निवास का रूप मा स्थित छा| यू मंदिर उत्तराखंड कु सबसे विशाल मंदिरों मा एक छा जू भूरे कटवा पथरो के विशाल शिलाखान्डो को जोड़ कर ६ फुट ऊँचा चबूतरा पर बनायु च | ये मंदिर कु निर्माण भी १२-१३ वी शताब्दी मा करवाई गई थोऊ |
मंदिर का गर्भ गृह मा अर्धा का पास चार स्तंभ छन | एक सभा मंडप भी छ |एकी छत चार विशाल स्तंभों पर टिकी च | यख विभिन्न प्रकार का देवी देवताओ की मूर्ति च |मंदिर का पिछाडी पथ्थरो कु ढेर च जैक पीछाडी शंकराचार्य जी की समाधि च |
श्रद्धालु यख गंगोरती और यम्नोरती बीटी जल लौंदा और श्रीकेदारेश्वर पर जलाभिशेख करदा छन |यात्रा कु मार्ग ये प्रकार सी छा ----------हरिद्वार-ऋषिकेश-चम्बा -धरासु -यमनोत्री-उत्तरकाशी-गंगोत्री-त्रियुगिनारायण-गौरिकुंद-केदारनाथ | यू मार्ग परम्परात हिन्दू धर्म मा ह्वान वाली पवित्र परिकर्मा का समान छा |


श्री गंगोत्री- गंगोत्री उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला मा ९९८० फीट (३१४० मी. ) की ऊंचाई पर भागीरथी नदी का तट पर बस्यु पवित्र देवी मंदिर च जू की हिमालया/उत्तराखंड का चार धामो मा एक धाम छा | गंगोत्री मा भागीरथी नदी थै गंगा नाम सी भी जान्यु जंदु |पौराणिक कथाओ का अनुसार राजा भागीरथ तपस्या करिकैं गंगा माता थें धरती पर लाई था |यख वासुकी ताल, गुग्गल कुण्ड, भीम गुफा, भीम्पुल, सरस्वती उद्गम, भीम्शिला, व चैरव नाथ जी का मंदिर है | उत्तराखंड म भैरोनाथ क्षेत्रपाल देवता व भूमि देव के रूप में प्रचलित और महत्वपूर्ण छन | गंगोत्री भारत का पवित्र और अध्यात्मिक रूप सि महत्वपूर्ण नदी गंगा कु उद्गम स्थल भी च |ई गंगा नदी गौमुख बटी निकल्दी छा |यन मान्यु जंदु की १८ वी शताब्दी मा गोरखा कैप्टन अमर सिंह थापा न शंकराचार्य जी का सम्मान मा ये मंदिर कु निर्माण करवाई थोऊ बाद मा राजा माधो सिंह न १९३५ मा ये मंदिर कु पुनुरुधार करवाई थोऊ |
मंदिर सफेद दुंगो कु बन्यु च ,मंदिर की ऊंचाई २० फीट च |मंदिर का नजदीक भागीरथी शिला भी च जै पर बैठी कें राजा भागीरथ ने तपस्या करी थै| ये मंदिर मा देवी गंगा का अलावा देवी यमुना ,भगवान् शिव , देवी सरस्वती, अन्नान्पुर्ना और महागौरी की पूजा विशेष रूप सि होदी च |


श्री यमनोत्री- यमनोत्री धाम उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला मा पशिचिमी किनारा पर बांदरपूँछ पर्वतमाला ,३२९१ मीटर की ऊंचाई पर स्थित च | पौराणिक कथाओ का अनुसार यमुना सूर्य चाग्वान की बेटी थै और यम् उंकू पुत्र थोऊ ये वजह सी ये मंदिर कु नाम यम्य्नोत्री पड़ी |
यमुना कु उदगम स्थल यमुनोत्री सी एक किलोमीटर अगने ४४२१ मीटर की ऊंचाई पर यमुनोत्री ग्लेशियर पर स्थित च |
परंपरागत रूप सी यमुनोत्री चार धाम कु पहलू पड़ाव च | हनुमान चट्टी सी १३ किलोमीटर उकाल चड़ना का बाद यमुनोत्री धाम औंदु | यमुनोत्री मा कई ताता पाणी का कुंद छन, यू सभी कुंडू मा सूर्य कुंद परसिद्ध च | श्रद्धालु ये कुंड मा चौळ (चावल) और आलू कपडा मा बंधी कै छोड़ देंदा न , बाद म पक्य्नु भात श्रद्धालु प्रशाद का रूप मा आपण घर ली जांदा | सूर्य कुंड का पास मा एक शिला च जैकैं दिव्या शिला का नाम सी जन्यु जंदु ,सभी तीर्थयात्री यमुना जी की पूजा करण सी पैली इ शिला की पूजा करदा छन |यमुनोत्री का पुजारी यख पूजा कन खर्सला गौं बाटी अंदा छन | यमुनोत्री कु मंदिर नवम्बर सी मई महीना तक ख़राब मौसम का वजह सी बंद रंदु |

मिथें पुरु विश्वास च की अपणी पहाड़ी भाषा मा उत्तराखंड का पवित्र तीर्थस्थल का बार मा मेरी यू छोटू सी प्रयास आप थै पसंद आलू | यदि ये निबंध मा कुछ आवश्यक जानकारी छुटी गे होली टी आप मीथें  क्षमा करया |
प्रणाम 

annupama89

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For nature lovers Har-Ki-Doon valley 3566 mts, offers rich jungles abundant in bird and animal life, variety of alpine flowers and plants, and spectacular view. Har-Ki-Doon is a cradle shaped valley south east of the Janundhar glacier.It is surrounded by snow-covered peaks and in the southeast by heavily wooded forests.The forests are rich in wildlife and are a veritable paradise for bird-watchers and nature lovers.

Har - Ki - Doon is situated in the Western ganges of the Garhwal Himalayas, at the base of the Fateh Parvat, at an elevation of 3,556 metres. This cradle shaped Valley, which is surrounded by dense forests of pines and glittering mountain peaks

The forests are rich in wildlife and are a veritable paradise for bird-watchers and nature lovers. The trek from Netwar to Osla is through dense forests of chestnuts, walnuts, willows and chinars. The trek from Osla to Har-ki-doon is through terraced mountain fields, lush green grassy land and conifer forests.

Har-Ki-Doon , the hanging valley of gods is a treat for trekkers. This moderate trek takes you to one of the least explored regions of Garhwal. As Har-KI-Doon falls within the Govind Pashu vihar , chances of seeing wildlife here are very bright. Here , you have a beautifully carved temple dedicated to Duryodhana , the Kaurava Prince. And if you are interested in glaciers then Jaundhar Glacier at 4300 mt. is just about five kilometers from Har-Ki- Doon.

Har-Ki-Doon Valley is a base for Swargarohini ht. 21000 ft. There is legend our old granth (books) it is mentioned that Pandav went to Swarga (Heavan) through this mountain. This is a place where you can find Trees of Bhojpatra flower Bramhakamal. Swargarohini and Jaundar Glacier is at south-east of Har-ki-dun.Towards west you can see Bandar Punch.

The local People survives on farming Rice, Rajma, Charas. They use wood of Deodar tree for their house. You can find many people using Hukka for smoking. One can smell of pine while having hukka.










पंकज सिंह महर

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हिमालय की तलहटी में जहां टिंबर लाइन (यानी पेडों की कतारें) समाप्त हो जाती हैं वहां से हरे मखमली घास के मैदान शुरू होने लगते हैं। आम तौर पर ये 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। गढवाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिए ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुम्मंतुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए आराम की जगह व कैंपसाइट का।
गरमियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग और अन्य बर्फानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढवाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर आपको इस तरह के बुग्याल मिल जाएंगे। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आपमें सैलानियों का आकर्षण बन चुके हैं। जब बर्फ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाए वातावरण में हरियाली छाई रहती है। पर्वत और घाटियां भांति-भांति के फूलों और वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुंदरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कडी के शौकीनों के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुंचते हैं।
इनकी खूबसूरती यही है कि हर मौसम में आपको इन पर नया रंग दिखेगा और नया नजारा। बरसात के बाद इन ढलुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे हंसते हुए फूल आपका स्वागत करते दिखाई देंगे। बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊंचाई तक ही बढते हैं। जलवायु के अनुसार ये ज्यादा ऊंचाई वाले नहीं होते। यही वजह है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसे लगता है।

यूं तो गढवाल की वादियों में कई छोटे-बडे बुग्याल पाये जाते हैं, लेकिन लोगों के बीच जो सबसे ज्यादा मशहूर हैं उनमें बेदनी बुग्याल, पवालीकांठा, चोपता, औली, गुरसों, बंशीनारायण और हर की दून प्रमुख हैं। इन बुग्यालों में रतनजोत, कलंक, वज्रदंती, अतीष, हत्थाजडी जैसी कई बेशकीमती औषधि युक्त जडी-बू्टियां भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड, हिरन, मोनाल, कस्तूरी मृग और धोरड जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं। पंचकेदार यानि केदारनाथ, कल्पेश्वर, मदमहेश्वर, तुंगनाथ और रुद्रनाथ जाने के रास्ते पर कई बुग्याल पडते हैं। प्रसिद्ध बेदनी बुग्याल रुपकुंड जाने के रास्ते पर पडता है। 3354 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस बुग्याल तक पहुंचने के लिए के लिए आपको ऋषिकेश से कर्णप्रयाग, ग्वालदम, मंदोली होते हुए वाण पहुंचना होगा। वाण से घने जंगलों के बीच गुजरते हुए करीब 10 किलोमीटर की चढाई के बाद आप बेदनी के सौंदर्य का लुत्फ ले सकते हैं। इस बुग्याल के बीचों-बीच फैली झील यहां के सौंदर्य में चार चांद लगी देती है।

गढवाल का स्विट्जरलैंड कहा जाने वाला चोपता बुग्याल 2900 मीटर की ऊंचाई पर गोपेश्वर-ऊखीमठ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। चोपता से हिमालय की चोटियों के समीपता से दर्शन किए जा सकते हैं।चोपता से ही आठ किलोमीटर की दूरी पर दुगलबिठ्ठा नामक बुग्याल है। यहां कोई भी पर्यटक आसानी से पहुंच सकता है।

चमोली जिले के जोशीमठ से 12 किलोमीटर की दूरी पर 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है औली बुग्याल। साहसिक खेल स्कीइंग का ये एक बडा सेंटर है। सर्दियों में यहां के ढलानों पर स्कीइंग चलती हैं और गर्मियों में यहां खिले तरह-तरह के फूल सैलानियों के आकर्षण का केंद्र होते हैं। औली से ही 15 किलोमीटर की दूरी पर एक और आकर्षक बुग्याल है क्वारी। यह भी अत्यंत दर्शनीय बुग्याल है।

चमोली और बागेश्वर के सीमा से लगा बगजी बुग्याल भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। समुद्रतल से 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल करीब चार किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यहां से हिमालय की सतोपंथ, चौखंभा, नंदादेवी और त्रिशूली जैसी चोटी के समीपता से दर्शन होते हैं। टिहरी जिले में स्थित पवालीकांठा बुग्याल भी ट्रेकिंग के शौकीनों के बीच जाना जाता है। टिहरी से घनसाली और घुत्तू होते इस बुग्याल तक पहुंचा जा सकता है। 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल संभवतया गढवाल का सबसे बडा बुग्याल है। यहां से केदारनाथ के लिए भी रास्ता जाता है। कुछ ही दूरी पर मट्या बुग्याल है जो स्कीइंग के लिए काफी उपयुक्त है। यहां पाई जाने वाली दुलर्भ प्रजाति की वनस्पतियां वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय बनी रहती हैं। उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर भटवाडी से रैथल या बारसू गांव होते हुए आप दयारा बुग्याल पहुंच सकते हैं। 10500 फीट की ऊंचाईं पर स्थित यह बुग्याल भी जन्नत की सैर करने जैसा ही है।

ऐसे न जाने गढवाल में कितने ही बुग्याल हैं जिनके बारे में लोगों को अभी तक पता नहीं है। इनकी समूची सुंदरता को केवल वहां जाकर महसूस किया जा सकता है। हालांकि हजारों फीट की ऊंचाई पर स्थित इन स्थानों तक पहुंचना हर किसी के लिए संभव नहीं है।

इन बुग्यालों तक पहुंचने के लिए आप देश के किसी भी कोने से बस या रेल से ऋषिकेश या कोटद्वार पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश और कोटद्वार पहुंचकर आप बस या टैक्सी से चमोली, टिहरी और उत्तरकाशी पहुंच सकते हैं। इन इलाकों में बारिश के मौसम में जाना ठीक नहीं। हरियाली और फूलों का मजा लेना हो तो मई-जून का समय सबसे बढिया है। सितंबर-अक्टूबर में बारिश के बाद पूरी प्रकृति धुली-धुली सी लगती है। इस समय तक बुग्यालों का रंग बदल चुका होता है। उसके बाद बर्फ पडना शुरू हो जाती है। कई रास्ते बंद हो जाते हैं ।
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पंकज सिंह महर

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उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग के मध्य स्थित हरसिल समुद्री सतह से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। हरसिल उत्तरकाशी से 73 किलोमीटर आगे और गंगोत्री से 25 किलोमीटर पीछे सघन हरियाली से आच्छादित है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शांत और अविरल प्रवाह हर किसी को आनंदित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जल प्रपातों की भरमार है। जहां देखिए दूधिया जल धाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के जंगल मन को मोहते हैं। जहां निगाह डालिए इन पेडों का जमघट लगा है। यहां पहुंचकर पर्यटक इन पेडों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। जंगलों से थोडा ऊपर निगाह पडते ही आंखें खुली की खुली रह जाती है। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो कहने ही क्या। ढलानों पर फैले ग्लेशियरों की छटा तो दिलकश है ही।
बॉलीवुड के सबसे बडे शोमैन रहे राजकपूर एक बार जब गंगोत्री घूमने आए थे तो हरसिल का जादुई आकर्षण उन्हें ऐसा भाया कि उन्होंने यहां की वादियों में फिल्म ही बना डाली-राम तेरी गंगा मैली। इस फिल्म में हरसिल की वादियों का जिस सजीवता से दिखाया गया है वो देखते ही बनता है। यहीं के एक झरने में फिल्म की नायिका मंदाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मंदाकिनी फॉल है पड गया। इस घाटी से इतिहास के रोचक पहलू भी जुडे हैं। एक गोरे साहब थे फेडरिक विल्सन जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कर्मचारी थे। वह थे तो इंग्लैंड वासी लेकिन एक बार जब वह मसूरी घूमने आए तो हरसिल की वादियों में पहुंच गए। उन्हें यह जगह इतनी भायी कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड दी और यहीं बसने का मन बना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वह जल्द ही घुल-मिल गए और गढवाली बोली भी सीख ली। उन्होंने अपने रहने के लिए यहां एक बंगला भी बनाया। नजदीक के मुखबा गांव के एक लडकी से उन्होंने शादी भी कर डाली। विल्सन ने यहां इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगाकर लगाए जो खूब फले-फूले। आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से प्रसिद्ध है।
ऋषिकेश से हरसिल की लंबी यात्रा के बाद हरसिल की वादियों का बसेरा किसी के लिए भी अविस्मरणीय यादगार बन जाता है। भोजपत्र के पेड और देवदार के खूबसूरत जंगलों की तलहटी में बसे हरसिल की सुंदरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले ज्यादातर तीर्थ यात्री हरसिल की इस खूबसूरती का लुत्फ उठाने के लिए यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना आसान है लेकिन बर्फबारी के चलते नवंबर से मार्च तक यहां इक्के-दुक्के सैलानी ही पहुंच पाते हैं। हरसिल की वादियों का सौंदर्य इन्हीं महीनों में खिलता है। जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से लकदक रहते हैं, गोमुख से निकलने वाली भागीरथी का शांत स्वभाव यहां देखने लायक है। यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।  इन ट्राडा मछलियों को लाने का श्रेय भी विल्सन को ही जाता है। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस इलाके की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हरसिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई इनर लाइन में रखा गया है जहां

विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबंध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गोमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियो में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते हैं। हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें साताल कहा जाता है। हिमालय की गोद मे एक श्रृखंला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील 9000 फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते मे प्रकृति का आप नया ही रूप देख सकते है। यहां पहुंचकर आप प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूम सकते हैं।

हरसिल की खूबसूरत वादियों तक पहुंचने के लिए सैलानियों को सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुडा है। ऋषिकेश पहुंचने के बाद आप बस या टैक्सी द्वारा 218 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं।अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहें तो नजदीकी हवाईअड्डा जौलीग्रांट है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी द्वारा 235 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है ।

यूं तो बरसात के बाद जब प्रकृति अपने नये रूप में खिली होती है तब यहां का लुत्फ उठाया जा सकता है। लेकिन नवंबर-दिसंबर के महीने में जब यहां बर्फ की चादर जमी होती है तो यहां का सौंदर्य और भी खिल उठता है। बर्फबारी के शौकीन इन दिनों यहां पहुंचते हैं।
यहां पर खाने-पीने के लिए साफ और सस्ते होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जो आपके बजट के अनुरूप होते हैं।  हरसिल में ठहरने के लिए लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। गंगोत्री जाने वाले यात्री कुछ देर यहां रुककर अपनी थकान मिटाते हैं और हरसिल के सौंदर्य का लुत्फ लेते हैं।

 

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