पौराणिक श्रीताल ही है सरूताल
पुरोला (उत्तरकाशी)। उच्च हिमालय में स्थित ताल, बुग्याल अपने में कई रहस्य समेटे है। यही कारण है कि यहां देश-विदेश के पर्यटकों, घुम्मकड़ों का यहां जमावड़ा लगा रहता है। सूबे की यमुनाघाटी में स्थित सरूताल शिवपुराण का श्रीताल है, जो आज भी पर्यटकों की नजर से ओझल है।
उत्तराखंड राज्य में कई खूबसूरत पर्यटक स्थल हैं। सूबे की यमुनाघाटी और टौंसघाटी में अनेकों नयनाभिराम कर देने वाले पर्यटक स्थल आज भी विद्यमान है। पुरोला से 72 किमी दूर सरबड़ियाड़ में स्थित सरूताल समुद्रतल से 5257 मीटर की ऊचाई पर स्थित है। 92 मीटर लंबे और 72 मीटर चोड़ा ताल अपनी खुबसूरती के लिए क्षेत्र में विख्यात है। ताल के समीप पांच वर्षो से डेरा डाले बाबा गिरी महाराज व महन्त जमना गिरी बताते है कि शिवपुराण में यह श्रीताल था, जो बाद में समीप के गांव सर के नाम से सरूताल हो गया। मान्यता है कि इस ताल की परिक्रमा करने और इसकी पूजा पुष्पों से करने से मनोकामना पूर्ण होती है। इसके लिए प्रतिवर्ष यहां क्षेत्र के ग्रामीण इस ताल में पूजा के लिए जाते है। मान्यता यह भी है कि चौथे पहर में यहां प्रतिदिन अप्सराएं खुद ताल की पूजा करने के लिए आती है। इसके अतिरिक्त टौंसघाटी में केदारकांठा, पुष्टारा, बुग्याल सहित कई ऐसे स्थल है, जहां जाने के बाद कोई भी पर्यटक यहां से वापस आना नहीं चाहता है। वैसे तो पूरे हिमालय क्षेत्र में कई ऐसे स्थल है जो पर्यटकों के लिए तिलिस्म के समान है। यही कारण है कि यहां वर्ष भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। इसी क्षेत्र में विश्व प्रसिद्घ पर्यटक स्थल हरकिदून, भ्रराड़सरताल, देवक्यारा भी स्थित है। प. महिमानन्द तिवारी, शिशपाल सिंह, जयवीर सिंह, विरेन्द्र, प्रताप सिंह, देवेन्द्र सिंह का कहना है कि पर्यटन विभाग की ओर से इसके विकास के लिए पहल नहीं की गई। इस कारण यह ताल पर्यटकों की दृष्टि से ओझल है। उन्होंने बताया कि वन विभाग की लापरवाही के चलते क्षेत्र के सरूताल, पुष्टहारा, मानेरा, देवक्यारा,भराड़सर, हरकिदून की खूबसूरती को तस्करों की नजर लग गयी है। इसी के चलते यहां से दुर्लभ केदारपात्री, अतिश, कौडाई सालिम पंजा, बनक्सा सहित दुर्लभ प्रजाति की जड़ी-बुटियों की तस्करी होती है। उन्होंने बताया कि वन विभाग की मिलीभगत के चलते यहां इसका कारोबार फल-फूल रहा है।