Author Topic: Etymology Of Various Places - कैसे पड़ा उत्तराखंड के विभिन्न जगहों का नाम  (Read 27641 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कर्णप्रयाग
=========

कर्णप्रयाग का नाम कर्ण पर है जो महाभारत का एक केंद्रीय पात्र था। उसका जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था और इस प्रकार वह पांडवों का बड़ा भाई था। यह महान योद्धा तथा दुखांत नायक कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष से लड़ा। एक किंबदंती के अनुसार आज जहां कर्ण को समर्पित मंदिर है, वह स्थान कभी जल के अंदर था और मात्र कर्णशिला नामक एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरूक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था। एक दूसरी कहावतानुसार कर्ण यहां अपने पिता सूर्य की आराधना किया करता था। यह भी कहा जाता है कि यहां देवी गंगा तथा भगवान शिव ने कर्ण को साक्षात दर्शन दिया था।

पौराणिक रूप से कर्णप्रयाग की संबद्धता उमा देवी (पार्वती) से भी है। उन्हें समर्पित कर्णप्रयाग के मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा पहले हो चुकी थी। कहावत है कि उमा का जन्म डिमरी ब्राह्मणों के घर संक्रीसेरा के एक खेत में हुआ था, जो बद्रीनाथ के अधिकृत पुजारी थे और इन्हें ही उसका मायका माना जाता है तथा कपरीपट्टी गांव का शिव मंदिर उनकी ससुराल होती है।

कर्णप्रयाग नंदा देवी की पौराणिक कथा से भी जुड़ा हैं; नौटी गांव जहां से नंद राज जाट यात्रा आरंभ होती है इसके समीप है। गढ़वाल के राजपरिवारों के राजगुरू नौटियालों का मूल घर नौटी का छोटा गांव कठिन नंद राज जाट यात्रा के लिये प्रसिद्ध है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होती है तथा कुंभ मेला की तरह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह यात्रा नंदा देवी को समर्पित है जो गढ़वाल एवं कुमाऊं की ईष्ट देवी हैं। नंदा देवी को पार्वती का अन्य रूप माना जाता है, जिसका उत्तरांचल के लोगों के हृदय में एक विशिष्ट स्थान है जो अनुपम भक्ति तथा स्नेह की प्रेरणा देता है। नंदाष्टमी के दिन देवी को अपने ससुराल – हिमालय में भगवान शिव के घर – ले जाने के लिये राज जाट आयोजित की जाती है तथा क्षेत्र के अनेकों नंदा देवी मंदिरों में विशेष पूजा होती है।

http://hi.wikipedia.org/wik

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

RANIKHET IS NAMED AFTER QUEEN PADMANI

==============================


According to popular belief, Ranikhet got its name when Rani Padmini, queen of Raja Sukherdev, the local ruler, saw this place and was struck by its beauty. She was so captivated by the place that she decided to stay there, and the place came to be known as Ranikhet (literally, queen' s field). The region around Ranikhet was ruled by local Kumaoni rulers and later came under British rule.
A quaint little hill station conceived by the British tucked away in the Kumaon Himalayas. An old army cantonment from British time. Charmingly unspoilt natural beauty�. Screne and quiet. This is Ranikhet.

Discovered by Lord Mayo in 1869 and developed as a cantonment for the Imperial Soldiers, Ranikhet is perched at an altitude of 1829 meters. Even today it boasts as the home of the Kumaon regiment. Here, time stands still.

All the four seasons have something special to offer at Ranikhet. Therefore, it can be visited at any time of the year. Winters are cold and the entire region experiences snowfalls during the months of December and JanuaryAccording to popular belief, Ranikhet got its name when Rani Padmini, queen of Raja Sukherdev, the local ruler, saw this place and was struck by its beauty. She was so captivated by the place that she decided to stay there, and the place came to be known as Ranikhet (literally, queen' s field). The region around Ranikhet was ruled by local Kumaoni rulers and later came under British rule.
A quaint little hill station conceived by the British tucked away in the Kumaon Himalayas. An old army cantonment from British time. Charmingly unspoilt natural beauty�. Screne and quiet. This is Ranikhet.

Discovered by Lord Mayo in 1869 and developed as a cantonment for the Imperial Soldiers, Ranikhet is perched at an altitude of 1829 meters. Even today it boasts as the home of the Kumaon regiment. Here, time stands still.

All the four seasons have something special to offer at Ranikhet. Therefore, it can be visited at any time of the year. Winters are cold and the entire region experiences snowfalls during the months of December and January

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

PANCHACHULI PEAKS
================

Panchachuli peaks as seen from Munisyari Pithoragarh Distirct of Uttarakhand.  Legend says that the Panchachuli peaks get their names from Pancha (five) and Chuli (cooking pots), because they are said to have been used as cooking pots for the last meal of the Pandava brothers, before their journey to heaven.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

इग्यार देवी माता का मन्दिर - SITUATED IN PITHORAGARH DISTRICT OF UK
==============================================


इग्यार देवी माता का मन्दिर भी कई किन्दवंतियो और चमक्तारो से भरा पड़ा है |स्थानीय लोग बताते है की मन्दिर के पास के ११ गावो के पड़ने के कारण इसका नाम इग्यार देवी पड़ा |प्राचीन समय से इन गावो के प्रति माता की अनुपम कृपा दृष्टी बनी है | स्थानीय लोगो का कहना है कि प्राचीन "चन्द" वंश शासन काल में मन्दिर का निर्माण किया गया |उस समय मन्दिर का स्वरूप बहत छोटा था जिसका निर्माण गाव के लोगो द्वारा छोटे छोटे पत्थर द्वारा किया गया |प्राचीन समय से यहाँ पर पाए जाने वाले पीपल के पेड का खासा महत्त्व है |वर्त्तमान में इसी पीपल के पेड का स्पर्श पाकर अनुष्ठान करने वाले भक्त अपने को धन्य समझते है|नवरात्री के अवसरों पर और अन्य धार्मिक आयोजनों पर भक्तो की आवाजाही का सिलसिला अनरवत रूप से चलता रहता है|इससे दौरान मन्दिर में धूम धाम के साथ पूजा पाठ का आयोजन होता है जिसमे भक्त विनय पूर्वक माता कास्तुति गान करते है | जो सच्चे मन से माता का ध्यान करते है उनको अतुल्य ऐश्वर्य , धन कि प्राप्ति होती है |

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
Great collection Mehta ji. Keep up the good work. +1 karma for this.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
ऐसे पड़ा कमलेश्वर नाम
============
भगवान कमलेश्वर महादेव

देवभूमि उ8ाराखंड में विमान विश्ववि2यात चार धाम के अलावा सैकड़ों मठ, मंदिर और श1ितपीठ यूं तो श्रद्धालुओं की तमाम मनोकामनाएं पूणर््ा करने वाले हैं लेकिन यहां दो देवस्थल ऐसे भी हैं जहां नि:संतान दंपतियों की संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। ये दो देवस्थान हैं चमोली जनपद स्थित सती मां अनुसुइया मंदिर और पौड़ी जनपद में श्रीनगर स्थित भगवान कमलेश्वर महादेव का मंदिर।


ऐसे पड़ा कमलेश्वर नाम पुरुषो8ाम भगवान राम रावण वध के बाद ब्रह्मï हत्या के पाप से मु1त होने के लिए गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से उ8ाराखंड की यात्रा पर आए। मानसरोवर से एक सहस्त्र कमल पुष्प लाकर श्रीराम शिव सहस्त्रनाम से शिल्हेश्वर शिव को एक-एक कर पुष्प चढ़ाने लगे। राम की परीक्षा के लिए भगवान शिव ने एक कमल पुष्प छिपा लिया। 999 पुष्प चढ़ाने के बाद एक पुष्प कम देखकर भगवान राम धर्म संकट में पड़ गए कि एक हजार कमल पुष्प चढ़ाने का उनका संकल्प कैसे पूरा हो? श्री राम ने सोचा कि मेरा भी तो एक नाम कमलनयन है, 1यों न मैं अपनी एक आंख शिव को अर्पितकर अपना संकल्प पूरा कर लूं। यह सोच जैसे ही श्री राम अपनी आंख निकालने को उत हुए। राम भ1ित से प्रसन्न शिव ने छुपाए कमल को उनके हाथ में रख दिया। तभी से शिल्हेश्वर शिव पुत्र वरदायनी कमलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए। कमलेश्वर का बैकुंठ चतुर्दशी मेलाबैकुंठ चतुर्दशी मेला पूरे उ8ाराखंड का प्रसिद्ध मेला है। यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शु1ल चतुर्दशी त्रिपुरोत्सव पूर्णिमा को लगता है। चतुर्दशी की रात्रि को कमलेश्वर मंदिर में होने वालेे दीप अनुष्ठान और पूजा-अर्चना ही नि:संतान दंपतियों की गोद भरने वाला अनुष्ठान होता है। संतान की कामना पूजाचतुर्दशी और पूर्णिमा को पवित्र भाव से निराहार व्रत रखकर दीप पूजा का संकल्प लेते हुए प्रदोषकाल सें सूर्योदय तक मंदिर परिसर में खड़े रहकर शिव का जप करते हुए हाथों में चावल केऊपर 360 वर्तिका यु1त प्रज्जवलित घी का दीपक रखते हैं। नि:संतान पत्नी मु2य रूप से इस प्रक्रिया को पूरा करती है। पत्नी के थकने पर उसका पति उसकी सहायता करता है। पूर्णिमा की सुबह घृत दीपों को कमलेश्वर महादेव को समर्पित किया जाता है। इसके बाद मंदिर के पास बह रही पवित्र अलकनंदा में स्नान कर दंपति मंदिर के महंत से प्रसाद लेकर अपने घरों को प्रस्थान करते हैं। संतान की मनोकामना पूर्ण होने पर दंपति तीन या पांच साल में बच्चे को लेकर मंदिर में पहुंचते हैं और बच्चे के हाथ से महादेव की पूजा संपन्न कराते हैं। इस वर्ष यहां 11 नवंबर को संतान की कामना के लिए नि:संतान दंपति यहां दीप अनुष्ठान करेंगे। इसके लिए यहां मंदिर केमहंत के पास नि:संतान दंपतियों को एक- दो माह पहले पंजीकरण करना पड़ता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

NARENDRA NAGAR - GARWAL
============

The erstwhile capital of the Tehri Garhwal kings, Narendra Nagar is 15 km north of Rishikesh. This historical town is located in Tehri Garhwal District of Uttaranchal and was a witness to many events in history, which has left its mark on the town. The town was built by King Tehri Narendra Singh and it takes its name after him.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Mritola Ashram :

It is 10km trek distance from Jageshwar. You can reach there via Virdh Jageshwar then 2kms trek. There is a farm named Patoria established by foreigners. It is very attractive place to visit.


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
केट विन्सलेट जलप्रपात,मुनि की रेती

नीलकंठ महादेव के रास्ते में मुनी की रेती से 5 किलोमीटरों की दूरी पर अवस्थित गरूड़ चट्टी जलप्रपात एक छोटा सा - लगभग 20 फीट ऊंचाई का - लेकिन अत्यन्त खूबसूरत जलप्रपात है। आपको जलप्रपात तक पहुंचने के लिए मुनी की रेती से लगभग 750 मीटरों की चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी।

गरूड़ चट्टी में गरूड़ को समर्पित एक मंदिर भी है। यहां हनुमान और भगवान शिव की प्रतिमाएं भी हैं। प्रवेश-स्थान में स्थित एक पट्टिका में दर्शकों को चेतावनी दी गई है कि मंदिर का दर्शन तभी सफल होगा जब वह (दर्शक) मंदिर में प्रवेश करने से पहले शराब, मांसाहारी भोजन और अंडों का सेवन बंद करने का प्रण लें। इस मंदिर में प्रतिदिन प्रातः 6 बजे और सायं 6 बजे आरती का आयोजन किया जाता है। गंगा के किनारे खडंजे से निर्मित घाट भी है जहां भक्तजन मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व स्नान कर सकते हैं।


अपुष्ट खबरों के अनुसार, टाइटैनिक की शीर्ष नायिका, केट विन्सलेट ने मई, 1998 में ऋषिकेश का भ्रमण किया था और इस जलप्रपात में स्नान किया था। इसके परिणामस्वरूप कई लोग इसे केट विन्सलेट जलप्रपात कह कर संबोधित करते हैं!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
दसौली

नंदप्रयाग से 10 किलोमटीर दूर। इस छोटे गांव में बैरास कुंड स्थित है जहां, कहा जाता है, कि रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। रावण ने अपनी ताकत दिखाने के लिये कैलाश पर्वत को उठा लिया था और इस जगह अपने 10 सिरों की बली देने की तैयारी की थी। इस जगह का नाम तब से दशोली पड़ा जो अब दसौली में परिवर्तित हो गया है।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22