Here is information about Lakhuwaudiyar.
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अल्मोड़ा। लखुउडियार के चित्र लोगों को अचंभित करने वाले हैं। हजारों साल पुराने इन चित्रों का रंग अभी भी खराब नहीं हुआ है। उत्तराखंड में अब तक के ज्ञात प्रागऐतिहासिक कालीन चित्रित शैलाश्रयों में लखुउडियार के चित्र सबसे प्राचीन व महत्वपूर्ण हैं। इन चित्रों की विशेषता है कि यह एक काल के नहीं बल्कि अलग-अलग कालों के मानव ने बनाए हैं।
एसएसजे परिसर के इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डा.विद्याधर सिंह नेगी का कहना है कि इसी शैली के शैलाश्रय मध्य प्रदेश के भीमवेटका, पंचमणि व उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मौजूद हैं। डा.नेगी ने बताया कि लखुउडियार में सबसे प्राचीनतम चित्रण में श्वेत रंग का प्रयोग किया गाया है। उसके बाद के काल में श्याम रंग से चित्र उकेरे गए हैं, जबकि तीसरे काल के चित्रों में गेरुवे रंग का प्रयोग किया गया है। यह बात तो निश्चित है कि चित्र इतने प्राचीन हैं कि उनमें अधिकांश चित्रों का फोटो नहीं आ पाते हैं लेकिन यह चित्र स्थल पर जाकर देखे जा सकते हैं।
डा.नेगी बताते हैं कि इन शैलाश्रयों पर उन्होंने लंबे समय तक काम किया। आज भी नया कुछ जानने के लिए अवसर मिलने पर वह लखुउडियार अवश्य जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक के अध्ययन से पता चलता है कि सर्वप्रथम उकेरे गए चित्र दब गए हैं। उनका मानना है कि अपने-अपने काल में कलाकारों ने प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया होगा। सबसे अंतिम काल में गेरुवे रंग का प्रयोग हुआ, यही कारण है कि इन चित्रों की बहुतायत लखुउडियार में देखने को मिलती है। यह मौके पर देखने से पता लगता है कि शैलाश्रय किसी जमाने में बहुत विशाल रहा होगा। 4 से 5 हजार साल पुराना यह शैलाश्रय अब धीरे-धीरे टूटता जा रहा है। मौजूदा दौर में इनकी ऊपरी छत भी टूट रही है। जल रिसाव से जगह-जगह चित्र खराब हो चुके हैं या धुंधले पड़ चुके हैं।
हालांकि इनकी देखरेख पुरातत्व विभाग कर रहा है लेकिन काल के थपेड़ों से यह कितने संरक्षित रह पाएंगे कहना मुश्किल है। बहरहाल सैकड़ों की संख्या में सैलानी, शोध छात्र व विशेषज्ञ अध्ययन के लिए यहां आते हैं। शैलाश्रय में उकेरे गए चित्र कहीं पर हस्तबद्ध मानव श्रृंखला के रूप में विद्यमान हैं तो कहीं लबादाधारी मानव का चित्र भी देखने को मिलते हैं। कहीं पर नृत्य मुद्रा में मानव श्रृंखला दृष्टिगोचर होती है जो यहां के लोक नृत्य 'झोड़ा' की भावाभिव्यक्ति करती जान पड़ती है। कई जगह पशुओं का अंकन है, जिनमें पूंछ, भारी शरीर वाले पशुओं की आकृति अंकित है।
एक विशिष्ट आकृति जो आज भी स्पष्ट है, वह है एक चौकोर घर। इसके सामने खड़ी है सुरक्षा की मुद्रा में मानव आकृति। इसके अलावा एक 14 पैरों वाले सरीसृप की आकृति विशेष आकर्षण का केंद्र है।
यही नहीं इस शैल चित्र में जहां लहरदार रेखाओं के जरिये जल की मौजूदगी दर्शाई गई है वहीं इंद्रधनुष की आकृति भी उकेरी गई है। पुरातत्ववेत्ता प्रो.एमपी जोशी लहरदार रेखाओं को जल का द्योतक बताते हैं।
इसके अतिरिक्त पुरातत्व विज्ञान के प्रतिष्ठित विद्वान प्रो.एमपी जोशी, प्रो.डीपी अग्रवाल का मानना है कि यह शैलाश्रय चित्रण मध्य पाषाण एवं ताम्र पाषाण कालीन हो सकते हैं। इन चित्रों में कहीं भी आखेट का दृश्य अंकित नहीं है। इसलिए इसे बनाने वाले नितांत अन्न संग्रहण व खानाबदोश जीवन व्यतीत करते होंगे। बहरहाल इन चित्रणों का उल्लेख समय-समय पर अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययन के अनुसार किया है जिनमें मुख्य रूप से पुरातत्ववेत्ता व इतिहासकार प्रो.एमपी जोशी, डा.डीपी अग्रवाल, डा.तारा चन्द्र त्रिपाठी, डा.यशोधर मठपाल सहित अनेक विद्वान शामिल हैं।
(Source : Dainik Jagran)