Author Topic: Haldwani The Gateway of Kumaon,Uttarakhand- हल्द्वानी,कुमाऊँ का द्वार  (Read 26015 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हल्द्वानी जिसे पहाड़ों में आने के लिये स्वागत गेट माना जाता है। आज यह शहर कुमाऊं का सबसे बड़ा व्यापारिक शहर बन चुका है और इसका विस्तार दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।

हल्द्वानी अपने में बहुत बड़ा इतिहास समेटे हुए है। हल्द्वानी 1907 में टाउन एरिया बना। हल्द्वानी-काठगोदाम नगरपालिका का गठन 21 सितंबर 1942 को किया गया तथा 1 दिसम्बर 1966 में हल्द्वानी को प्रथम श्रेणी की नगर पालिका घोषित किया जा चुका था।

हल्द्वानी में हल्दू के वनों का बहुतायत में पाये जाने के कारण इस शहर का नाम हल्द्वानी पड़ा जिसे यहां की स्थानीय भाषा हल्द्वाणी नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि 16वीं सदी में यहां जब राजा रूपचंद का शासन हुआ करता था तब से ही ठंडे स्थानों से लोग यहां सर्दियों का समय व्यतीत करने के लिये आया करते थे।

 सन् 1815 में जब यहां गोरखों का शासन था तब अंग्रेज कमिश्नर गार्डनर के नेत्रत्व में अंग्रेजों ने गोरखों को यहां से भगाया। गार्डरन के बाद जब जॉर्ज विलियम ट्रेल यहां के कमिश्नर बन कर आये तब उन्होंने इस शहर को बसाने का काम शुरू किया। ट्रेल ने सबसे पहले अपने लिये यहां बंग्ला बनाया जिसे आज भी खाम का बंग्ला कहा जाता है।

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महिला चिकित्सा केंद्र हल्द्वानी


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हल्द्वानी में जिस जगह को आज भोटिया पड़ाव कहते हैं ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में मुन्स्यारी, धारचूला आदि स्थानों से आकर भेटिया लोग यहां अपना डेरा डालते थे जिस कारण इस जगह का नाम ही भोटिया पड़ाव हो गया और जिस जगह अंग्रेजों ने अपना पड़ावा डाला था उस जगह को गोरा पड़ाव कहा गया। मोटाहल्दू में हल्दू के मोटे पेड़ होने के कारण उसे मोटाहल्दू कहा गया।

कालाढूंगी चौराहे में एक मज़ार थी जिसमें लोग अपने जानवरों की रक्षा के लिये पूजा करते थे उसे कालूसाही का मंदिर कहा जाने लगा। यह मंदिर आज भी यहां स्थित है। इसी प्रकार रानीबाग में कत्यूरवंश की रानी जियारानी का बाग था इसलिये इस जगह को उसके नाम पर ही रानीबाग कहा गया।

 काठगोदाम में लकड़ियों गोदाम था जहां लकड़ियों को स्टोर किया जाता था इसलिये इस जगह का नाम काठगोदाम हो गया।

सन् 1882 में रैमजे ने पहली बार नैनीताल से काठगोदाम तक एक सड़क का निर्माण करवाया था। 24 अप्रेल 1884 को पहली बार काठगोदाम में रेल का आगमन हुआ था जो कि लखनऊ से काठगोदाम आयी थी।

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NAVRAATRA POOJA IN HALDWANI


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Durga city center Haldwani


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नैनीताल से ज्योलीकोट, रानीबाग और काठगोदाम होते हुए हम हल्द्वानी पहुँचते हैं।  हल्द्वानी भाबर में बसाये जाने वाले नगरों में से पहला नगर है।  नैनीताल जिले का ठंडियों का मुख्यालय भी हल्द्वानी है।  यह नगर नैनीताल जिले का सबसे बड़ा नगर है जहाँ आधुनिक सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध हैं।

 यह नगर उत्तर पूर्वी रेलवे से लखनऊ, आगरा और बरेली से जुड़ा हुआ है।  पर्वतीय अंचल के प्राय: सभी छोटे-बड़े नगरों के लिए यहाँ से बस सेवा उपलब्ध है। काठगोदाम यहाँ से केवल ५ कि.मी. दूर है।  इसलिए सबी प्रकार की बस-सेवाएँ हल्द्वानी से ही प्रारम्भ होती है।

हल्द्वानी में पर्यटकों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।  अधिकांश पर्यटक हल्द्वानी रहकर ही नैनीताल के अन्य क्षेत्रों का भ्रमण करते रहते हैं।  हल्द्वानी में शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त हैं।  रहने, खाने व स्वास्थ्य की दृष्टि से बी यहाँ उत्तम प्रबन्ध है।  यहाँ पर कई होटल व गेस्ट हाऊस उपलब्ध है।

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One of the most populated towns in the northern state of Uttaranchal in India -Haldwani is and is also referred as the "Gateway of Kumaon”.

Haldwani is significant as one of the five sacred confluences in the hills, and the site is hailed as a place of considerable natural forces as well as spiritual forces. A Tour to Haldwani will introduce you to this holy town, which essentially marks the beginning of the sacred Ganges River. A seat of the ‘pandas’ of the Badrinath Dham,

 Haldwani stands at an altitude of 2265 ft. on the slope of a hill. It is believed that is the town was named after Deosharma - a sage who lived in penance here until he succeeded in getting a glimpse of God.

Situated on the metallic road running from Rishikesh to Badrinath, Haldwani lies at about 87 km from Narendra Nagar, and a large number of pilgrims embark on tour to Haldwani every year. There are two suspension bridges near Haldwani – one on the Bhagirathi, and the other on the Alaknanda. The road to Badrinath crosses the former bridge by a third bridge.

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