Author Topic: Kashipur: Historical City - काशीपुर: एक ऎतिहासिक नगर  (Read 14787 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
काशीपुर ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व वाला नगर है। कहा जाता है कि इसका इतिहास रामायण काल जितना पुराना है। हैवर ने लिखा है कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व काशीपुर नगर हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल था। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपने यात्रा वृतान्त में इसे 'गोविशन' के रूप में वर्णित किया है। लिखा है कि पहाड़ का राजा यहां शहर में रहता है।  यहां पर उसके पहाड़ से तात्पर्य कुमाऊं से रहा है, क्योंकि चन्द राजाओं ने अपनी राजधानी काशीपुर भी बनाई थी। वर्तमान में चन्द राजाओं के वंशज राजा करन चन्द सिंह (के०सी०सिंह "बाबा") भी यहीं निवास करते है, यहां पर राजमहल भी है।

ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध द्रोण सागर का नाम गुरू द्रोणाचार्य (महान धार्मिक ग्रन्थ महाभारत के अनुसार कौरवों तथा पाण्डवों को युद्ध कौशल सिखाने वाले गुरू) के नाम पर पड़ा है। वर्तमान काशीपुर की स्थापना पंडित काशीनाथ ने की थी जो कुमाऊँ के चन्दवंश के राजा देवी चन्द के यहां एक अफसर थे। रामचरितमानस के रचियता तुलसीदास एवं आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द जैसी हस्तियों ने भी काशीपुर में कुछ समय निवास किया और परमात्मा का संदेश लोगों तक पहुँचाया।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
हर्ष के समय (606-646 ई.) में भारत आये चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इस स्थान का उल्लेख गोविशन के रूप में अपने लेखों में किया है और यहां पर एक उन्नत बौद्ध शिक्षा केन्द्र का उल्लेख भी किया है। बहुत से विद्वानों का मत है कि शहर के मध्य स्थित टीले के नीचे किसी विलुप्त सभ्यता के प्रमाण दबे हुए हैं। अपनी चमक खोने से पूर्व यह नगर कई शताब्दियों तक अवश्य ही एक प्रमुख धार्मिक, शैक्षिक एवं व्यावसायिक केन्द्र रहा होगा। अभी भी खुदाई के दौरान यहां से सदियों पुराने मिट्टी के बर्तन, मूर्तियाँ और इस प्रकार की दूसरी वस्तुएं पाई जाती हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने गोविशन के कुछ स्थानों पर खुदाई की और एक पंचायतन मन्दिर के कुछ अवशेष प्राप्त किए।

 आइने अकबरी के अनुसार यह क्षेत्र 1588 ई. के बाद कुमाऊँ के चन्द वंशी राजाओं के अधीन रहा। उस समय यहां के राजा देवी चन्द थे।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
प्राचीन शहर काशीपुर रामायण काल से ही कश्यप आश्रम के रूप में स्थित था। नगर के नजदीक ही स्थित उज्जैनी टांडा “उज्जैनक तीर्थ” माना जाता है, जिसे पुराणों में अत्यधिक महत्व दिया गया है। यह स्थान देवी अरून्धती और महर्षि वशिष्ट के तपोस्थल के रूप में भी जाना जाता है।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि श्रवण कुमार जब अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा पर लेकर निकले थे तो उन्होंने कुछ समय यहां पर भी निवास किया था।

महाभारत काल में यह गुरू द्रोणाचार्य का तपोस्थल था और हर्ष के काल में यह बौद्ध संस्कृति और ज्ञान का एक उन्नत केन्द्र था।

गोस्वामी तुलसीदास ने भी उत्तराखण्ड की यात्रा के बाद यहां चौमासा व्यतीत किया था।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
गोविशन एवं पंचायतन मन्दिर

हर्ष के काल में चीनी यात्री ह्वेन सांग(631-641 ई.) की इस क्षेत्र में यात्रा के समय काशीपुर को गोविशन के नाम से जाना जाता था। एक बहुत ही विशाल बस्ती के अवशेष आज भी इस नगर के आस-पास देखे जा सकते हैं। सन् 1965 में पुरातत्व विभाग ने खुदाई में छठी शताब्दी का पंचायतन मन्दिर खोज निकाला। यह स्थान पुरातत्व विभाग द्बारा सुरक्षित घोषित किया गया है। एक प्राचीन सभ्यता का स्थल काशीपुर उत्तराखण्ड में भ्रमण करने वालों के लिए एक अवश्य ही देखने योग्य स्थान है।




पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
तीर्थ द्रोण सागर

द्रोण सागर का सम्बन्ध गुरू द्रोणाचार्य से माना जाता है। किसी समय इस स्थान की बड़ी धार्मिक महत्ता थी और इस स्थान को गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ धामों के बाद आखिरी तीर्थ माना जाता था। स्कन्द पुराण के अनुसार इस स्थान का जल भी गंगा जल जितना ही पवित्र है।
आज यहां पर एक बड़ा तालाब है जिसमें कमल के फूल खिले हुए हैं। इसके चारों ओर विभिन्न देवताओं के मन्दिर हैं। ऐसा कहा जाता है कि किसी समय इस तालाब के चारों तरफ 32 मन्दिर थे। हर सुबह और शाम समीप स्थित मन्दिरों से आती घण्टियों और मन्त्रों के उच्चारण की आवाजें द्रोण सागर में एक दैवीय वातावरण उत्पन्न करती हैं।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द 19 वीं शताब्दी में अपनी अनेक यात्राओं में से एक के दौरान यहां आए। वह यहां पर कुछ समय के लिए ठहरे और परमात्मा का संदेश लोगों तक पहुँचाया।



पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
चैती मन्दिर

चैती मन्दिर काशीपुर का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। यह मन्दिर काशीपुर बस स्टैण्ड से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर काशीपुर-बाज़पुर रोड पर स्थित है। चैत्र माह में नवरात्रों के समय यहां पर एक बड़ा मेला लगता है। इस मेले में दूर-दराज के स्थानों से लाखों लोग यहां आते हैं और माता की पूजा करते हैं। इस मन्दिर की आकृति बहुत ही साधारण है। मन्दिर के मध्य में चैती देवी की मूर्ति स्थापित की गई है। मुगल काल में बने होने के कारण इस मन्दिर की आकृति बहुत कुछ मस्जिद से मिलती है। एक प्रसिद्ध किवदन्ती के अनुसार इस मन्दिर के निर्माण में मुगल बादशाह का भी योगदान रहा है। मन्दिर परिसर में एक आंशिक रूप से जले हुए कदम्ब के पेड़ के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के पेड़ जैसे वट, पीपल और शहतूत इत्यादि स्थित हैं। मन्दिर के पुजारी इस कदम्ब के पेड़ के विषय में एक कथा सुनाते हैं जिसका सम्बन्ध उनके पूर्वजों से है। कथा के अनुसार एक बार एक तान्त्रिक ने अपनी शक्तियों द्वारा इस कदम्ब के पेड़ में आग लगा दी। फिर उसने इस मन्दिर के पुजारी को जलते हुए इस पेड़ को बचाने की चुनौती दी। पुजारी ने ध्यानस्थ हो कर देवी की प्रार्थना आरम्भ कर दी। ऐसा माना जाता है कि उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी ने कदम्ब के पेड़ को पुनः जीवित कर दिया। भक्त मानते हैं कि तभी से यह पेड़ इसी स्थिति में है।


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
भीमा शंकर मन्दिर

काशीपुर बस स्टैण्ड से बाज़पुर की ओर 2 किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध मोटेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है। प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में शिवभक्त कांवरिये ‘बम भोले’ का सामूहिक जयकारा लगाते हुए बहुत दूर से पैदल यात्रा करके यहां आकर भगवान शिव को पवित्र जल चढ़ाते हैं । इसी मन्दिर के पूर्व में एक भैरव मन्दिर स्थित है। इस मन्दिर में मनोकामना कुण्ड नामक एक तालाब स्थित है। कुछ विद्वान मानते हैं कि यहां स्थित शिवलिंग साक्षात ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर है। ऐसा माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां पर गुरू द्रोणाचार्य पाण्डवों और कौरवों को धनुर्विद्या की शिक्षा देते थे। एक बार भीम को शिवलिंग की तरह दिखाई देने वाला एक पत्थर मिला। भीम ने गुरू द्रोणाचार्य को इस सन्दर्भ में बताया तो उन्होंने उसे सलाह दी कि वह इस शिवलिंग की शिव पूजा के लिए धार्मिक रीति-रिवाजों सहित उचित स्थान पर स्थापना करे। हिन्दु समुदाय में इस जगह के लिए एक विशेष आदर भाव है। यहां आकर लोग भगवान शिव की पूजा आराधना करते हैं। भीम की वजह से ही इस मन्दिर का नाम भीमाशंकर पड़ा। यहां पर स्थापित शिवलिंग के आकार में सामान्य से अधिक बड़ा होने के कारण इस भीमाशंकर मन्दिर को मोटे भगवान या मोटेश्वर महादेव मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र-शुक्ल की अष्टमी और शिवरात्रि के दिन यहां पर एक बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।



पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
प्राचीन जामेश्वर महादेव मन्दिर

ऐसा माना जाता है कि काशीपुर के अन्य मन्दिरों की तरह यह मन्दिर भी भारतीय धर्म एवं संस्कृति की आधारशिला- महाभारत, से सम्बन्धित है।

ऐसा भी माना जाता है कि इस मन्दिर के शिवलिंग की जड़ें पाताललोक तक जाती हैं। स्थानीय निवासियों की इस शिवलिंग की दैविक शक्तियों में गहन आस्था है। वे मानते हैं कि जो भी इस मन्दिर में आकर कुछ माँगता है, उसकी मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है। जामेश्वर महादेव मन्दिर दो स्तरीय मन्दिर है जिसका प्राचीन मन्दिर, 'लाखा मन्दिर,' भूमिगत है।


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
प्राचीन खोखरा देवी मन्दिर

इस मन्दिर की स्थापना महाभारत काल में हुई मानी जाती है। यह मन्दिर दड़ियाल रोड पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि एक दिन पास ही स्थित पीपल के खोखर के पास एक बदमाश किसी लड़की को छेड़ रहा था। वह लड़की उस पीपल की खोखर में जाकर छिप गयी। अचानक देवी माँ सर्प का रूप धारण करके प्रकट हुईं जिसे देख बदमाश भाग खड़े हुए। तभी से इसका नाम खोखरा देवी मन्दिर पड़ गया।



पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
गुरूद्वारा ननकाना साहिब
यह गुरूद्वारा कटोराताल रोड पर स्थित है। गुरू नानक देव एक समय रूहेलखण्ड की यात्रा करते हुए काशीपुर आए। उस समय इस गाँव के निवासी अपना सामान बैलगाड़ियों पर लादकर गाँव छोड़कर जा रहे थे। गुरू नानक देव के पूछने पर उन्होंने कहा कि आज के दिन ढेला नदी का जल स्तर चढ़ जाता है और हमारा सब कुछ बहाकर ले जाता है। गुरू नानक देव ने उन्हें कहीं न जाने के लिए कहा और अपने शिष्य भाई मरदाना को कीर्तन करने के लिए कहा। जब वह कीर्तन करने लगे तब पशु-पक्षी भी वीणा की तान सुनकर वहां एकत्र हो गए। जिस समय नदी का जल स्तर बढ़ने लगा तो गुरू नानक देव नदी के जल में चरण रखकर खड़े हो गए। नदी का जल गुरूजी के चरणों तक आकर वापस उतर गया। ऐसी मान्यता है कि उसी दिन से ढेला नदी यहां से कुछ दूर हटकर बहा करती है। आज यहां पर गुरू नानक देव की स्मृति में श्री ननकाना साहिब गुरूद्वारा शोभायमान है।



 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22