Author Topic: कौसानी के कण-कण में बसा प्रकृति का सौंदर्य, Kausaani Uttarakhand  (Read 15003 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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कौसानी उत्तराखंड का एक खूबसूरत छोटा सा हिल स्टेशन है जो मुख्यतः हिमालय  दर्शन के लिए जाना जाता है. यह कवि सुमित्रानंदन पन्त की जन्मभूमि भी है,  साथ ही यहाँ आसपास चाय के बागान और प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं. अपनी हाल  की उत्तराखंड की यात्रा में मैंने ये सब जाना और कौसानी का पूरा आनंद  लिया. परन्तु जिस जगह ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वो है!

 अनासक्ति  आश्रम. गांधीजी के अल्प निवास से प्रसिद्द हुआ यह स्थान अब गांधीजी के  जीवन की झांकियों और उनके जीवन दर्शन के लिए जाना जाता है. यहाँ रूकने की  भी व्यवस्था है. आश्रमवासियों को कुछ नियमों का पालन करना होता है, जैसे  प्रार्थना सभा में अनिवार्य उपस्थिति, मद्य-मांस आदि का पूर्णतयः निषेध  इत्यादि.

 यहाँ आने वाले लोग भी प्रार्थना सभा में शामिल हो सकते हैं जो कि  एक नियत समय पर होती है. हम भी प्रार्थन सभा में अपने पूरे परिवार के साथ  शामिल हुए. पहले गांधीजी को प्रिय भजनों का गान हुआ, साथ ही कुछ संस्कृत  मंत्रों का उच्चारण किया गया. फिर देश के कोने-कोने से आये लोगों ने  अपनी-अपनी भाषा में भजन गाये. हालाँकि पूर्णतय हिन्दू धर्मं से सम्बंधित  भजनों या मंत्रो का गान कुछ अटपटा लगा. पर किसी और तरह की प्रार्थनाओ पर  कोई रोक है, ऐसा भी नहीं लगा.

हर उम्र और देश के हर हिस्से से आये लोगों  की भीड़ आश्वस्त कर रही थी कि गाँधी अब भी उतने ही स्मरणीय हैं जितने राम,  कृष्ण, नानक, मुहम्मद या ईसा. छोटे बच्चों को जिनमें हमारे बच्चे भी शामिल  थे ध्यानमग्न होकर गांधीजी के प्रिय भजन गाते देख लगा कि पॉप संगीत की धुन  पर हर वक्त झूमने वाले ये बच्चे रघुपति राघव पर भी झूमना जानते हैं. लगभग  एक घंटे की इस प्रार्थना सभा में लोग बड़ी श्रध्दा के साथ बैठे थे. इस  आडम्बररहित गाँधी मंदिर में मुझ जैसे मंदिर ना जाने वाले लोगों का सिर भी  श्रध्दा से झुकता है.

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उत्तराखंड राज्‍य के अल्‍मोड़ा जिले से 53 किमी. उत्तर में स्थित है कौसानी, भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल। यह बागेश्वर जिला में आता है। हिमालय, की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है।

 यहां से बर्फ  से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।



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कौसानी [/color]के बारे में 11 जुलाई 1929 के यंग इंडिया में महात्मा गांधी  ने लिखा था, मैं साश्चर्य सोचता हूं कि इन पर्वतों के दृश्यों व जलवायु से  बढकर होना तो दूर रहा, बराबरी भी संसार का कोई अन्य स्थान नहीं कर सकता।  हमारे देशवासी स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप क्यों जाते होंगे?  समुद्र तल से 1890 मीटर की ऊंचाई पर बसे कौसानी के प्राकृतिक सौंदर्य व  शांत मनोरम वातावरण से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने वर्ष 1929 में यहां  12 दिन बिताए थे और अनासक्ति योग नामक पुस्तक की रचना की थी।

 गांधी जी जिस  बंगले में ठहरे थे वह आज उनकी लिखी पुस्तक के नाम पर अनासक्ति आश्रम के  नाम से जाना जाता है। अब यहां पर्यटकों के ठहरने व अध्ययन की पर्याप्त  व्यवस्था का संचालन गांधी स्मारक निधि द्वारा किया जाता है। हिमालय में  कुछ ही ऐसे पर्यटन स्थल होंगे जो कौसानी की खूबसूरती और प्राकृतिक सुषमा  का मुकाबला कर सके।

उत्तराखंड के जनपद बागेश्वर की पहाडियों और वृक्षों की  गोद में स्थित कौसानी से 300 किलोमीटर के अ‌र्द्धवृत्ताकार घेरे में फैली  बर्फ से ढकी चौखंबा, त्रिशूल, नंदादेवी, पंचाचूली और नंदाकोट सहित कई अन्य  चोटियां इस जगह को भव्य रूप प्रदान करती हैं। इसके एक ओर कोसी और दूसरी  तरफ गोमती नदी बलखाती चलती हैं जिसके मध्य में प्रहरी की तरह खडे  पिंगनाथ शिखर पर कौसानी बसा है।

 पहले यह स्थान वलना नाम से जाना जाता था।  कौसानी नाम बाद में पडा। इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन समय में इसकी  उत्तरी चोटी पर कार्तिकेयपुर राज्य बसा था जिसके अवशेष आज भी यहां दिखाई  पडते हैं। पहाड की चोटी पर बसे कौसानी के दोनों ओर दूर-दूर तक फैली  हरी-भरी घाटी है।




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अगस्त-सितंबर माह में रंग-बिरंगे फूल और उनकी वन्य गंध घाटी में चारों ओर  फैल जाती है। आगंतुक आश्चर्य चकित सा फूलों के इन्द्रधनुषी संसार को देख  प्रकृति की इस अद्भुत चित्रकारी पर ठगा सा रह जाता है। कौसानी के कण-कण  में सौंदर्य बिखरा पडा है। यहां आकर उदासी और निराशा से भरे चेहरे भी खिल  उठते हैं। दूर तक फैली घाटी, सघन वन शोख फूलों की बहार, रसीले फूलों की  छटा, बादलों की लुकाछिपी के बीच सरल जन जीवन सैलानियों का मन मोह लेता है।  इसलिए कौसानी को भारत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता गया है।  अनासक्ति आश्रम के प्रांगण से सूर्योदय का अद्भुत नजारा देखने के लिए  अलस्सुबह पर्यटकों की भीड जमा हो जाती है। कौसानी का सूर्योदय दृश्य जग  विख्यात है। अंधेरे को चीरता हुआ जब सूर्य एक प्रकाश पुंज की शक्ल में  हिमशिखरों के पीछे से क्षितिज में उभरता है तो सूर्य के बढते आकार के साथ  पल-पल रंग बदलता दृश्य देखने लायक होता है। पर्यटक भी प्रकृति के इस  अद्भुत नजारे को अपने कैमरे में कैद करने से नहीं चूकते।  हिंदी के सुविख्यात कवि सुमित्रा नंदन पंत का जन्म कौसानी में ही हुआ था।  उनकी कविताओं में प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों के सहज व सरस चित्रण के ही  कारण उन्हें प्रकृति का सुकुमार कवि भी कहा गया है।

कौसानी बस स्टेशन से  कुछ ही दूरी पर सुमित्रा नंदन पंत का पैतृक निवास है। यहीं पंत जी का बचपन  बीता था। इस भवन को अब राज्य सरकार ने संग्रहालय का रूप दे दिया है। यहां  पंत जी के दैनिक उपयोग की वस्तुएं, कविताओं की पांडुलिपियां, पत्र आदि रखे  हुए हैं। साहित्य प्रेमी पर्यटकों को यहां पहुंचकर असीम सुख व शांति की  अनुभूति होती है। अनासक्ति आश्रम से एक किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मी आश्रम  पहाड की अग्रणी संस्था है।

 गांधी जी की अनन्य शिष्या सरला बहन यहां रहकर  आजीवन समाजसेवा में जुटी रहीं। उन्हीं की प्रेरणा से यह आश्रम स्थापित  किया गया है। आश्रम में पहाड की महिलाओं की शिक्षा, जागरूकता व आर्थिक  स्वावलंबन से संबंधित गतिविधियां संचालित की जाती है। घने जंगल के बीच  आश्रम का एकांत मन मोह लेता है। यहां से हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत  श्रृंखला का भव्य दिखाई देता है।

 कौसानी के दुर्गम पहाडी रास्तों को तय  करने के बाद लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर ऊंचे पर्वत शिखर पर  पिनाकेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। शिव के अधिकांश मंदिर जहां नदियों  या जलाशय के किनारे होते हैं, पिनाकेश्वर इसका अपवाद है। प्रतिवर्ष  कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां मेला लगता है। इसके आसपास गोपाल कोट,  हुरिया और बूढा पिनाकेश्वर आदि स्थल भी पर्यटकों को अपनी सुंदरता से  अभिभूत कर देते हैं।



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                         अनासक्त‍ि आश्रम
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  इसे गांधी आश्रम भी कहा जाता है। इस आश्रम का निमार्ण महात्‍मा गांधी  को श्रद्धांजली देने के उद्देश्‍य से किया गया था। कौसानी की सुंदरता और  शांति ने गांधी जी को बहुत प्रभावित किया था। यहीं पर उन्‍होंने अनासक्ति  योग नामक लेख लिखा था। इस आश्रम में एक अध्‍ययन कक्ष और पुस्‍तकालय,  प्रार्थना कक्ष (यहां गांधी जी के जीवन से संबंधित चित्र लगे हैं) और  किताबों की एक छोटी दुकान है।



यहां रहने वालों को यहां होने वाली  प्रार्थना सभाओं में भाग लेना होता है। यह पर्यटक लॉज नहीं है। इस आश्रम  से बर्फ से ढके हिमालय को देखा जा सकता है। यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदा  घुंटी, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा खाट, नंदा कोट और पंचचुली शिखर दिखाई  देते हैं। प्रार्थना का समय: सुबह 5 बजे और शाम 6 बजे (गर्मियों में शाम 7  बजे)




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लक्ष्‍मी आश्रम

यह आश्रम सरला आश्रम के नाम से भी प्रसिद्ध है। सरलाबेन ने 1964 में इस आश्रम की स्‍थापना की थी। सरलाबेल का असली नाम कैथरीन हिलमेन था और बाद में वे गांधी जी की अनुयायी बन गई थी। यहां करीब 70 अनाथ और गरीब लड़कियां रहती है और पढ़ती हैं।

 ये लड़कियां पढ़ने के साथ-साथ स‍ब्‍जी उगाना, जानवर पालना, खाना बनाना और अन्‍य काम भी सीखती हैं। यहां एक वर्कशॉप है जहां ये लड़कियां स्‍वेटर, दस्‍ताने, बैग और छोटी चटाइयां आदि बनाती हैं

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कौसानी पहुंचने के लिए काठगोदाम अंतिम रेलवे स्टेशन है। वहां से कौसानी पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक काठगोदाम से अल्मोडा होकर और दूसरा भवाली-रानीखेत होता हुआ कौसानी पहुंचता है।

काठगोदाम से अल्मोडा होकर कौसानी की दूरी 142 किमी और रानीखेत से होते हुए 146 किमी है। रानी खेत की सुंदर, हरी घास से भरी-पूरी पहाडी ढलानों को पीछे छोडता हुआ कौसानी तक का पूरा रास्ता कोसी घाटी के सुंदर दृश्यों से होकर गुजरता है। यह मार्ग चीड के घने वनों की भीनी सुगंध से भरा और हर मोड एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य को समेटे है।

प्रकृति के इन मोहक रूपों के बीच यात्रा में कहीं भी थकान का अनुभव नहीं होता। यदि मौसम खुला हुआ हो तो सामने हिमालय के रजत से चमकते हिमशिखरों के दर्शन से मन प्रसन्न हो उठता है।

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पर्वत की पेशानी
चीड़, बुराँस, अखरोट, अलूचादेवदार,
मीठा पागर औ
 खूबानीदो-चार घरों कीछिटपुट-सी बस्ती--           
 यह कौसानी
तासीर हवा में ऐसी
अपने आप लोग बन जाते
इसमें
कवि, वैरागी, सेनानीबाक़ी
सब बातें बेमानी

 RAMESH KAUSHIK

 

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