Author Topic: Kausani,Uttarakhand- Switzerland of India, कौसानी भारत का स्विट्जर्लैंड  (Read 42221 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Kausani is a famous Hill Station of India. This place comes in District Bageshwar of Uttarakhand.



It is located 53 km North of Almora. The altitude of this place is about 1890 mts. This place offers a 350 km view of the Himalayan peaks like Trisul, Nanda Devi and Panchchuli.   There are very few places in the Himalayas which can compare with the   beauty of Kausani - a picturesque hill station famous for its scenic   splendor and its spectacular 300 km-wide panoramic view of the   Himalayas. Kausani lies on the atop the ridge amidst dense Pine trees   overlooking Someshwar valley on one side and Garur and Baijnath Katyuri valley on the other on Almora-Bageshwar-Didihat Highway.



There is special attraction 'Anashakti Ashram'. This  is a quiet and revered place where Mahatma Gandhi spent his some days and wrote his commentary of Anashkti Yog. Pant Museum is another place of importance, this is the place where the famous poet of Hindi literature, Sumitranandan Pant was born. This place is preserved in its original ancestral form and served as a reference library on him.


We will provide some exclusive pictures of Kausani here with other details.


Regards,


M S Mehta



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कौसानी

उत्तराखंड राज्‍य के अल्‍मोड़ा जिले से 53 किमी. उत्तर में स्थित है कौसानी, भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल। यह बागेश्वर जिला में आता है। हिमालय  की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहां से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

प्रमुख पर्यटन स्थल

अनासक्त‍ि आश्रम

इसे गांधी आश्रम भी कहा जाता है। इस आश्रम का निमार्ण महात्‍मा गांधी को श्रद्धांजली देने के उद्देश्‍य से किया गया था। कौसानी की सुंदरता और शांति ने गांधी जी को बहुत प्रभावित किया था। यहीं पर उन्‍होंने अनासक्ति योग नामक लेख लिखा था। इस आश्रम में एक अध्‍ययन कक्ष और पुस्‍तकालय, प्रार्थना कक्ष (यहां गांधी जी के जीवन से संबंधित चित्र लगे हैं) और किताबों की एक छोटी दुकान है। यहां रहने वालों को यहां होने वाली प्रार्थना सभाओं में भाग लेना होता है। यह पर्यटक लॉज नहीं है। इस आश्रम से बर्फ से ढके हिमालय को देखा जा सकता है। यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदा घुंटी, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा खाट, नंदा कोट और पंचचुली शिखर दिखाई देते हैं। प्रार्थना का समय: सुबह 5 बजे और शाम 6 बजे (गर्मियों में शाम 7 बजे)


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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View of Himalaya from Kausani.



लक्ष्‍मी आश्रम  यह आश्रम सरला आश्रम के नाम से भी प्रसिद्ध है। सरलाबेन ने 1964 में इस   आश्रम की स्‍थापना की थी। सरलाबेल का असली नाम कैथरीन हिलमेन था और बाद में   वे गांधी जी की अनुयायी बन गई थी। यहां करीब 70 अनाथ और गरीब लड़कियां   रहती है और पढ़ती हैं। ये लड़कियां पढ़ने के साथ-साथ स‍ब्‍जी उगाना, जानवर   पालना, खाना बनाना और अन्‍य काम भी सीखती हैं। यहां एक वर्कशॉप है जहां ये   लड़कियां स्‍वेटर, दस्‍ताने, बैग और छोटी चटाइयां आदि बनाती हैं।

पंत संग्रहालय  हिन्‍दी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्‍म कौसानी में हुआ था।   बस स्‍टैंड से थोड़ी दूरी पर उन्‍हीं को समर्पित पंत संग्रहालय स्थित है।   जिस घर में उन्‍होंने अपना बचपन गुजारा था, उसी घर को संग्रहालय में बदल   दिया गया है। यहां उनके दैनिक जीवन से संबंधित वस्‍तुएं, कविताओं का   संग्रह, पत्र, पुरस्‍कार आदि‍ को रखा गया है। समय: सुबह 10.30 बजे से शाम   4.30 तक, सोमवार को बंद
Source :

http://hi.wikipedia.org

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कौसानी चाय बागान  बढि़या किस्‍म की गिरियाज उत्तरांचल चाय 208 हेक्‍टेयर में फैले चाय   बागानों में उगाई जाती है। ये चाय बागान कौसानी के पास ही स्थित हैं। यहां   बागानों में घूमकर और चाय फैक्‍टरी में जाकर चाय उत्‍पादन के बारे में   जानकारी प्राप्‍त की जा सकती है। यहां आने वाले पर्यटक यहां से चाय खरीदना   नहीं भूलते। यहां की चाय का जर्मनी, ऑस्‍ट्रेलिया, कोरिया और अमेरिका में   निर्यात किया जाता है।निकटवर्ती स्थल
कोट ब्रह्मरी  तेहलीहाट (21 किमी) तेहलीहाट का कोट ब्रह्मरी मंदिर देवी दुर्गा के   भ्रमर अवतार को समर्पित है जो उन्‍होंने अरुण नामक दैत्‍य के वध के लिए   लिया था। पर्वत पर विराजमान देवी का मुख्‍ा उत्तर की ओर है। अगस्‍त में   यहां मेला लगता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में भक्‍तों की भारी   भीड़ होती है



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बागेश्‍वर  (42 किमी) बागेश्‍वर गोमती और सरयु नदी के संगम पर स्थित है। इस मंदिर   का परिसर आकर्षण का मुख्‍य केंद्र है। इसका निर्माण 1602 में लक्ष्‍मी चंद   ने कराया था। मंदिर में स्‍थापित मूर्तियां 7वीं शताब्‍दी से लेकर 16वीं   शताब्‍दी के मध्‍य की हैं। जनवरी में मकर संक्रांति के आस पास लगने वाले   उत्तरायणी मेले में बड़ी संख्‍या में लोग यहां आते हैं। बागेश्‍वर से कुछ   ही दूरी पर नीलेश्‍वर और भीलेश्‍वर की पहाडि़यों पर चंडिका मंदिर और शिव   मंदिर भी हैं।

उत्पाद  यहां आने वाले पर्यटक चाय फैक्‍टरी के बाहर बने आनंद एंड संस स्‍टोर से   उत्तरांचल चाय ले जाना नहीं भूलते। इसके अलावा यहां का अचार, औषधियां,   चोलाई, लाल चावल, शर्बत, जैम और शहद भी मशहूर है। यदि आप कुंमाउनी खाने का   स्‍वाद अपने साथ ले जाना चाहते है तो मुख्‍य चौराहे के पास बनी दुकानों से   मडुए का आटा और गौहत की दाल अपने साथ ले जा सकते हैं। कौसानी वुलन हाउस में   हाथ से बनी गर्म टोपियां और कमीजें मिल जाएंगी। जबकि अनासक्ति आश्रम के   पास बने कुमाऊं शॉल एंपोरियम में हाथ से बने खूबसूरत शॉल मिलते हैं।




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आवागमन  वायु मार्ग  निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर विमानक्षेत्र है।
 रेल मार्ग  नजदीकी रेल जंक्‍शन काठगोदाम है। जहां से बस या टैक्‍सी द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है।
 सड़क मार्ग  दिल्‍ली के आईएसबीटी आनन्द विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए नियमित रुप   से बसें चलती हैं। प्रदेश के अन्‍य जिले से भी बस द्वारा कौसानी जाया जा   सकता है।
दिल्‍ली से रूट: राष्‍ट्रीय राजमार्ग 24 से हापुड़, गजरौली और मुरादाबाद   होते हुए रामनगर, राष्‍ट्रीय राजमार्ग ८७ से रुद्रपुर, हल्‍द्वानी,   काठगोदाम, रानीबाग, भोवाली, खैना्र और सुआलबारी होते हुए अल्‍मोड़ा, राज्‍य   राजमार्ग से अल्‍मोड़ा और सोमेश्‍वर होते हुए कसानी।
Source : http://hi.wikipedia.org/wiki

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Kausani is also Famous for being the Birth Place of Great Poet Sumitra Nandan Pant.

Chandra Shekhar Tiwari Writes About Pant Ji
 
सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों के लिये देश विदेश में मशहूर इस जगह को छायावाद के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली होने का गौरव प्राप्त है।
 
  20 मई 1900 को जन्मे इस सुकुमार कवि के बचपन का नाम गुसांई दत्त था। स्लेटी   छतों वाले पहाड़ी घर, आंगन के सामने आडू खुबानी के पेड़, पक्षियों का कलरव,   सर्पिल पगडण्डियां,बांज,बुरांश व चीड़ के पेड़ों की बयार व नीचे दूर दूर तक   मखमली कालीन सी पसरी कत्यूर घाटी व उसके उपर हिमालय के उत्तंग शिखरों और   दादी से सुनी कहानियों व शाम के समय सुनायी देने वाली आरती की स्वर लहरियों   ने गुसांई दत्त को बचपन से ही कवि हृदय बना दिया था।मां जन्म के छः सात   घण्टों में ही चल बसी थीं सो प्रकृति की यही रमणीयता इनकी मां बन गयी।   प्रकृति के इसी ममतामयी छांव में बालक गुसांई दत्त धीरे- धीरे यहां के   सौन्दर्य को शब्दों के माध्यम से कागज में उकेरने लगा।
 
  पिता गंगादत्त उस समय कौसानी चाय बगीचे के मैनेजर थे।उनके भाई संस्कृत व अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे, जो हिन्दी व कुमांउनी में कविताएं भी लिखा करते थे।यदा   कदा जब उनके भाई अपनी पत्नी को मधुर कंठ से कविताएं सुनाया करते तो बालक   गुसांई दत्त किवाड़ की ओट में चुपचाप सुनता रहता और उसी तरह के शब्दों की   तुकबन्दी कर कविता लिखने का प्रयास करता। बालक गुसांई दत्त की प्राइमरी तक   की शिक्षा कौसानी के वर्नाक्यूलर स्कूल में हुई। इनके कविता पाठ से मुग्ध   होकर स्कूल इन्सपैक्टर ने इन्हें उपहार में एक पुस्तक दी थी। ग्यारह साल की   उम्र में इन्हें पढा़ई के लिये अल्मोडा़ के गवर्नमेंट हाईस्कूल में भेज दिया गया। कौसानी के सौन्दर्य व एकान्तता के अभाव की पूर्ति अब नगरीय सुख वैभव से होने लगी।
 
  अल्मोडा़ की खास संस्कृति व वहां के समाज ने गुसांई दत्त को अन्दर तक   प्रभावित कर दिया। सबसे पहले उनका ध्यान अपने नाम पर गया। और उन्होंने   लक्ष्मण के चरित्र को आदर्ष मानकर अपना नाम गुसांई दत्त से बदल कर सुमित्रानंदन रख   लिया। कुछ समय बाद नेपोलियन के युवावस्था के चित्र से  प्रभावित होकर अपने   लम्बे व घुंधराले बाल रख लिये। अल्मोडा़ में तब कई साहित्यिक व सांस्कृतिक   गतिविधियां होती रहती थीं जिसमें वे अक्सर भाग लेते रहते। स्वामी सत्यदेव   जी के प्रयासों से नगर में ‘शुद्व साहित्य समिति‘ नाम से एक पुस्तकालय चलता   था।
 
  इस पुस्तकालय से पंत जी को उच्च कोटि के विद्वानों का साहित्य पढ़ने को   मिलता था। कौसानी में साहित्य के प्रति पंत जी में जो अनुराग पैदा हुआ वह   यहां के साहित्यिक वातावरण में अब अंकुरित होने लगा। कविता का प्रयोग वे   सगे सम्बन्धियों को पत्र लिखने में करने लगे।शुरुआती दौर में उन्होंने   बागेश्वर के मेले,वकीलों के धनलोलुप स्वभाव व तम्बाकू का धुंआ जैसी कुछ   छुटपुट कविताएं लिखी। आठवीं कक्षा के दौरान उनका परिचय प्रख्यात नाटककार   गोविन्द बल्लभ पंत,श्यामाचरण दत्त पंत,इलाचन्द्र जोषी व हेमचन्द्र जोशी से   हो गया था। अल्मोडा़ से तब हस्त लिखित पत्रिका ‘सुधाकर‘ व ‘अल्मोडा़ अखबार‘   नामक पत्र निकलता था जिसमें वे कविताएं लिखते रहते। अल्मोडा़ में पंत जी   के घर के ठीक उपर स्थित गिरजाघर की घण्टियों की आवाज उन्हें अत्यधिक   सम्मोहित करती थीं अक्सर प्रत्येक रविवार को वे इस पर एक कविता लिखते।
 
  ‘गिरजे का घण्टा‘ शीर्षक से उनकी यह कविता सम्भवतः पहली रचना है
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  नभ की उस नीली चुप्पी पर घण्टा है एक टंगा सुन्दर             जो घड़ी घड़ी मन के भीतर कुछ कहता रहता बज बज कर
 

  दुबले पतले व सुन्दर काया के कारण पंत जी को स्कूल के नाटकों में अधिकतर   स्त्री पात्रों का अभिनय करने को मिलता।1916 में जब वे जाड़ों की छुट्टियों   में कौसानी गये तो उन्होंने ‘हार‘ षीर्षक से 200 पृष्ठों का एक खिलौना   उपन्यास लिख डाला। जिसमें उनके किशोर मन की कल्पना के नायक नायिकाओं व अन्य   पात्रों की मौजूदगी थी। कवि पंत का किशोर कवि जीवन कौसानी व अल्मोडे़ में   ही बीता था इन दोनों जगहों का वर्णन भी उनकी कविताओं में मिलता है।
 
  कौश हरित तृण रचिततल्प पर सातप वनश्री लगती सन्दर,
  नील झुका सा रहता उपर,अमित हर्ष से उसे अंक भर   ( कौसानी )             
  लो,चित्र षलभ सी पंख खोल उड़ने को है कुसुंमित घाटी             यह है
  अल्मोडे़ का बसन्त,खिल पड़ी निखिल पर्वत पाटी  ( अल्मोडा़ )

  वर्ष 1918 में कवि पंत अपने मझले भाई के साथ आगे की पढा़ई के लिये    बनारस व प्रयाग चले गये और वहीं रहकर साहित्य साधना में जुट गये।   चिदम्बरा, वीणा,ग्रन्थि, पल्लव,गुंजन, युगान्त, युगवाणी,ग्राम्या (काव्य   ग्रन्थ), लोकायतन (महाकाव्य) , ज्योत्सना(नाटक) व हार(उपन्यास) जैसी    कृतियों की रचना कर प्रकृति का यह सुकुमार कवि 28 दिसम्बर 1977 को   साहित्यजगत में सदा के लिये अमर हो गया।
 
  कुमायूंनी में लिखी उनकी एकमात्र कविता ‘बुंरुश‘ की यह पंक्तियां  उनके लिये सटीक बैठती हैं।         
 
  सार जंगल में त्वी ज क्वे न्हां रे फुलन छै के बंरुष जंगल जस जलि जां          सल्ल छ,
  द्यार छ, पंई छ, अंयार छ, सबनाक फांगन में पुंगनक  भार छ
  पै त्वी में ज्वानिक फाग छ, रगन में त्यार ल्वे छ, प्यारक खुमार छ।

 
  अर्थातः अरे बुरांश सारे जंगल में तेरा जैसा कोई नहीं है तेरे खिलने पर   सारा जंगल डाह से जल जाता है, चीड़,देवदार, पदम व अंयार की शाखाओं में   कोपलें फूटीं हैं पर तुझमें जवानी के फाग फूट रहे हैं,रगों में तेरे खून   दौड़ रहा है और प्यार की खुमारी छायी हुई है.
 
  -चद्रंशेखर तिवारी,
  रिसर्च एसोसिएट, दून लाइब्रेरी, देहरादून.


Courtesy.
(Hillwani)



 

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