Author Topic: Mahakali Temple Gangolihat, Pithorgarh - गंगोलीहाट कालिका  (Read 44740 times)

मोहन जोशी

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पूरे कुमाऊं में हाट कालिका के नाम से विख्यात गंगोलीहाट के महाकाली मंदिर की कहानी भी उसकी ख्याति के अनुरूप है। पांच हजार साल पूर्व लिखे गए स्कंद पुराण के मानसखंड में दारुकावन (गंगोलीहाट) स्थित देवी का विस्तार से वर्णन है। छठी सदी के अंत में भगवान शिव का अवतार माने जाने वाले जगत गुरु शंकराचार्य  महाराज नेकूर्मांचल (कुमाऊं) भ्रमण के दौरान हाट कालिका की पुनर्स्थापना की थी।

कहा जाता है कि छठी सदी में गंगोली (गंगोलीहाट का प्राचीन नाम) क्षेत्र में असुरों का आतंक था। तब मां महाकाली ने रौद्र रूप धारण कर आसुरी शक्तियों का विनाश किया लेकिन माता का गुस्सा शांत नहीं हुआ। क्षेत्र में हाहाकार मच गया। इलाका जनविहीन होने लगा। इसी दौर में कूर्मांचल के भ्रमण पर निकले आदि गुरु शंकराचार्य महाराज ने जागेश्वर धाम पहुंचने पर गंगोली में किसी देवी का प्रकोप होने की बात सुनी। शंकराचार्य के मन में विचार आया कि देवी इस तरह का तांडव नहीं मचा सकती। यह किसी आसुरी शक्ति का काम है। लोगों को राहत दिलाने के उद्देश्य से वह गंगोलीहाट को रवाना हो गए।बताया जाता है कि जगतगुरु जब मंदिर के 20 मीटर पास में पहुंचे तो वह जड़वत हो गए। लाख चाहने के बाद भी उनके कदम आगे नहीं बढ़ पाए। शंकराचार्य को देवी शक्ति का आभास हो गया। वह देवी से क्षमा याचना करते हुए पुरातन मंदिर तक पहुंचे। पूजा, अर्चना के बाद मंत्र शक्ति के बल पर महाकाली के रौद्र रूप को शांत कर शक्ति के रूप में कीलित कर दिया और गंगोली क्षेत्र में सुख, शांति व्याप्त हो गई। मंदिर के पुजारी रिटायर्ड शिक्षाधिकारी किशन सिंह रावल बुजुर्गों से सुनी बातें बताते हुए कहते हैं कि आदि गुरु शंकराचार्य ने क्षेत्र में चामुंडा, वैष्णवी, अंबिका, छिन्नमस्ता, शीतला, त्रिपुरासुंदरी, कोकिला (कोटगाड़ी), भुवनेश्वरी नाम से शक्ति स्थलों की स्थापना की। इन सभी मंदिरों की क्षेत्र में ही नहीं दूर-दूर तक ख्याति है। नवरात्रियों में पूजा के लिए देशभर से भक्तजन पहुंचते हैं।



गाड़िया जी बहुत धयाबाद जानकारी देने के लिए

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शंकराचार्य ने स्थापित किया महाकाली शक्तिपीठ
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गंगोलीहाट/पिथौरागढ़। नवरात्र में देवी पूजा का विशेष महत्व है। और इस अवसर पर हाट कालिका का जिक्र न आए ऐसा कम से कम कुमाऊं क्षेत्र में संभव नहीं है। आदिगुरु शंकराचार्य महाराज द्वारा स्थापित महाकाली शक्तिपीठ में मत्था टेकने के लिए नवरात्र भर देश के कोने कोने से भक्तजन पहुंचते हैं।
महाकाली शक्तिपीठ पौराणिकता और इतिहास की बात करें तो आज से 5000 साल पहले महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित स्कंद पुराण के मानसखंड में आदि शक्ति का विस्तार से वर्णन है। दारुकावन-शैल शिखर (गंगोलीहाट) में मां का शक्तिपीठ होने का वर्तांत मिलता है। कहा जाता है कि छठी शताब्दी के प्रारंभ में गंगोली (गंगोलीहाट) क्षेत्र में आसुरी शक्तियों का प्रकोप था। तब देवी ने महाकाली का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया था। राक्षसों के संहार के बाद भी जब देवी का रौद्र रूप शांत नहीं हुआ तो देवी के कोप का भाजन स्थानीय लोग बनने लगे। उसी दौर में आदि गुरु शंकराचार्य उत्तराखंड यात्रा के तहत जागेश्वर धाम पहुंचे हुए थे। उन्होंने जब गंगोली क्षेत्र में देवी के प्रकोप की बात सुनी तो वह जागेश्वर से गंगोली को चल पड़े।
बताया जाता है कि आदिगुरु इसे देवी का प्रकोप मानने को तैयार नहीं हुए। वह जैसे ही गंगोलीहाट की देवदार बनी में पहुंचे तो जड़वत हो गए। आदिगुरु को यहीं पर देवी की शक्ति का अहसास हुआ। इस स्थल से मंदिर के गर्भगृह तक शंकराचार्य जी लेटते हुए गए। उक्त स्थल पर वर्तमान में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। शंकराचार्य जी ने महाकाली के रौद्र रूप को आराधना और मंत्रशक्ति से शांत कर देवदार वनी में ही शक्ति को प्रतिष्ठित किया। इसी शक्ति की पूजा की जाती है। महाकाली मंदिर का वृतांत कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भी मिलता है। यही कारण है इस मंदिर के दर्शनार्थ प्रतिवर्ष हजारों बंगाली श्रद्धालु पहुंचते हैं। (Amar Ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पूरे कुमाऊं में हाट कालिका के नाम से विख्यात गंगोलीहाट के महाकाली मंदिर की कहानी भी उसकी ख्याति के अनुरूप है। पांच हजार साल पूर्व लिखे गए स्कंद पुराण के मानसखंड में दारुकावन (गंगोलीहाट) स्थित देवी का विस्तार से वर्णन है

Devbhoomi,Uttarakhand

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जय माँ कलिंका ..गंगोलीहाट पिथोरागढ़ उत्तराखंड
 स्वंय श्री शंकराचार्य जी ने इस स्थान पर शक्तिपीठ की स्थापना की थी
 हाट कालिका
 जब मां महाकाली राक्षसों का नाश करते करते उग्र हो गईं तो महादेव शिव जी उनके रास्ते में लेट गये जिन पर पांव पढ़ते ही मां शांत हुई थी उससे बाद मां महाकाली गंगोलीहाट के जंगल में (वर्तमान में जहां पर मंदिर है) निवास करने लगी जब शंकराचार्य जी यहां पहुंचे तो उन्होंने मां को एक पिण्डी रूप में यहां पर स्थापित कर दिया था जिसके ऊपर अब एक छत्र लगा हुआ है। इसी के ठीक पीछे एक बिस्तर भी हैं इस बिस्तर पर मां रात में आराम करती हैं रोज पुजारी बिस्तर लगाकर जाते हैं और मंदिर को बंद कर दिया जाता है सुबह उस बिस्तर पर ऎसे चिन्ह आज भी मिलते हैं कि रात में कोई वहां पर सोया हो।
 जय मां कलिंका !

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]कुमाऊं के लड़ाकों की ताकत हैं हाट काली

जंग के मैदान में कुमाऊं के लड़ाकों को ताकत और साहस देने वाली हाट काली देवी न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि देश दुनिया के श्रद्घालुओं को आकर्षित करती हैं। धार्मिक आस्था और परंपराओं को समेटे मां हाट कालिका का वर्णन कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भी मिलता है। वैसे तो पूरे साल श्रद्घालु यहां आते हैं लेकिन नवरात्र में यहां पूजन का विशेष महत्व है। दूरस्त पहाड़ी गंगोलीहाट में आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मां महाकाली के मंदिर में नवरात्रि भर देश के तमाम हिस्सों से भक्तजन पूजा के लिए पहुंचते हैं।
कुमाऊं रेजीमेंट मां काली को अपनी आराध्य देवी के रूप में पूजती है। हाट काली शक्तिपीठ की स्थापना के पीछे भी रोचक कहानी है। मान्यता है कि आठवीं सदी में गंगोलीहाट क्षेत्र में रासक्षों का आतंक था। रासक्षों के विनाश के लिए मां भगवती ने महाकाली के रूप में अवतार लिया। एक एक कर सभी रासक्षों का विनाश कर दिया। राक्षसों के विनाश के बाद भी मां काली का रौद्र रूप शांत नहीं हुआ। लोग अकाल काल कवलित होने लगे। उसी दौर में आदि गुरु शंकराचार्य जी महाराज जागेश्वर धाम की यात्रा पर आए हुए थे। उन्होंने गंगोलीहाट में देवी के प्रकोप की बात सुनी तो वह गंगोलीहाट चले आए। वह इसे देवी का प्रकोप मानने से इंकार करते रहे। वर्तमान काली मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर पहुंचे थे कि जड़वत हो गए। इस स्थान पर शिला के रूप में गणेश जी स्थापित हैं।
शंकराचार्य जी को मां की शक्ति का ज्ञान हो गया। कहा जाता है कि आदिगुरु उस स्थल से मंदिर के गर्भग्रह तक दंडवत प्रणाम करते हुए पहुंचे। अपने तपबल और मंत्र शक्ति से महाकाली के रौद्र रूप को शांत कर कीलित कर दिया। कहा जाता है कि गंगोलीहाट के हाट कालिका मंदिर में शंकराचार्य जी के पदार्पण से पहले नरबलि होती थी। उसके पश्चात नर बलि पर रोक लगी। मां के दरबार को वरदानी माना जाता है। राजा हो या रंक इस दरबार का आशीर्वाद हर कोई हासिल करना चाहता है।


साभार : अमर उजाला
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विनोद सिंह गढ़िया

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