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Mahakali Temple Gangolihat, Pithorgarh - गंगोलीहाट कालिका
विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]कुमाऊं के लड़ाकों की ताकत हैं हाट काली
जंग के मैदान में कुमाऊं के लड़ाकों को ताकत और साहस देने वाली हाट काली देवी न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि देश दुनिया के श्रद्घालुओं को आकर्षित करती हैं। धार्मिक आस्था और परंपराओं को समेटे मां हाट कालिका का वर्णन कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भी मिलता है। वैसे तो पूरे साल श्रद्घालु यहां आते हैं लेकिन नवरात्र में यहां पूजन का विशेष महत्व है। दूरस्त पहाड़ी गंगोलीहाट में आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मां महाकाली के मंदिर में नवरात्रि भर देश के तमाम हिस्सों से भक्तजन पूजा के लिए पहुंचते हैं।
कुमाऊं रेजीमेंट मां काली को अपनी आराध्य देवी के रूप में पूजती है। हाट काली शक्तिपीठ की स्थापना के पीछे भी रोचक कहानी है। मान्यता है कि आठवीं सदी में गंगोलीहाट क्षेत्र में रासक्षों का आतंक था। रासक्षों के विनाश के लिए मां भगवती ने महाकाली के रूप में अवतार लिया। एक एक कर सभी रासक्षों का विनाश कर दिया। राक्षसों के विनाश के बाद भी मां काली का रौद्र रूप शांत नहीं हुआ। लोग अकाल काल कवलित होने लगे। उसी दौर में आदि गुरु शंकराचार्य जी महाराज जागेश्वर धाम की यात्रा पर आए हुए थे। उन्होंने गंगोलीहाट में देवी के प्रकोप की बात सुनी तो वह गंगोलीहाट चले आए। वह इसे देवी का प्रकोप मानने से इंकार करते रहे। वर्तमान काली मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर पहुंचे थे कि जड़वत हो गए। इस स्थान पर शिला के रूप में गणेश जी स्थापित हैं।
शंकराचार्य जी को मां की शक्ति का ज्ञान हो गया। कहा जाता है कि आदिगुरु उस स्थल से मंदिर के गर्भग्रह तक दंडवत प्रणाम करते हुए पहुंचे। अपने तपबल और मंत्र शक्ति से महाकाली के रौद्र रूप को शांत कर कीलित कर दिया। कहा जाता है कि गंगोलीहाट के हाट कालिका मंदिर में शंकराचार्य जी के पदार्पण से पहले नरबलि होती थी। उसके पश्चात नर बलि पर रोक लगी। मां के दरबार को वरदानी माना जाता है। राजा हो या रंक इस दरबार का आशीर्वाद हर कोई हासिल करना चाहता है।
साभार : अमर उजाला [/justify]
विनोद सिंह गढ़िया:
Hat Kalika - Gangolihat
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