लोगों की जुबान पर बेशक 'तालों में नैनीताल, बाकी सब तलैया' चढ़ा हुआ हो लेकिन उत्तराखंड स्थित अन्य बेहद खुबसूरत ताल हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। प्रकृति को बेहद करीब और उसकी ही नजर से देखने का जो अनुभव इन तालों में महसूस किया जा सकता है, वैसा कहीं और नहीं।
तालों के पानी में बनने वाली हिमालय की छवि देखकर कोई भी मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता। ये ताल आपको सौंदर्य के आगोश में लेने के लिए तैयार बैठे हैं, तो लीजिए साहसिक पर्यटन का आनंद और कीजिए प्रकृति से साक्षात्कार । रूपकुंड सदियों से लोगों के लिए रहस्य बना रहा, और अब भी है।
आम श्रद्धालुओं व पर्यटकों से लेकर देश-विदेश के वैज्ञानिक हमेशा यहां आना चाहते हैं। रूपकुंड के आसपास कई सालों से बिखरे हुए मानव अस्थि कंकाल अब भी उसी तरह सुरक्षित हैं। इनके विषय में फैली भ्रांतियों की वजह से यह कुंड रहस्यमयी झील के नासे भी जाना जाता है। चमोली जिले के पूर्वी भाग में स्थित रूपकुंड समुद्रतल से 5029 मीटर की ऊंचाई पर है। नंदा देवी राजजात यात्रा का मार्ग रूपकुंड होते हुए ही गुजरता है।
लगभग प्रत्येक 12 साल में होने वाली यह यात्रा संभावित रूप से २०१२ में होनी है। इस धार्मिक यात्रा का अंतिम पड़ाव भी एक कुंड ही है। ४०६१ मीटर की ऊंचाई पर स्थित होमकुंड में पहुंचने के लिए ५१ किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
प्रकृति की गोद में स्थित हेमकुंड साहिब में प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में सिख श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सामान्य पर्यटकों की संख्या यहां नाममात्र ही है।
बदरीनाथ यात्रा मार्ग स्थित गोविंदघाट से १९ किलोमीटर पैदल की दूरी पर है हेमकुंड। माना जाता है कि सिखों के दसवें गुरू गोविंद सिंह ने यहां तप किया था। एक मई को खुलने वाले कपाट के दौरान कई बार हेमकुंड बर्फ का मैदान बना हुआ दिखता है। सर्दियों में यहां की स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
इसी तरह एक साल में चारधाम आने वाले यात्रियों की संख्या बेशक लाखों में रहती है लेकिन बहुत कम पर्यटक ही इनके आसपास स्थित तालों को देखने का आनंद उठा पाते हैं। केदारनाथ से आठ किलोमीटर की दर ४१३५ मीटर की ऊंचाई पर है बासुकी ताल। ऊंची चोटियों से घिरे इस ताल से चौखंबा चोटी का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है।
बदरीनाथ से २५ किलोमीटर की दूरी पर ४४०२ मीटर की ऊंचाई पर है सतोपंथ झील। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक इस तिकोनी झील के तीनों कोनों पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश का वास है। यमुनोत्री से आठ किलोमीटर दूर सप्तऋषि कुंड हो या फिर गंगोत्री से १८ किलोमीटर दूर स्थित केदारताल। दोनों ही बेहद आकर्षक है।
यदि आप प्रकृति को और अधिक करीब से देखना चाहते हैं तो उत्तराखंड में इस तरह के कई ताल आपके लिए बाहें फैलाए खड़े हैं। डोडीताल, सहस्त्रताल, मासरताल, काकभुसंडी ताल, सरूताल, गांधी सरोवर, देवरिया ताल, बांधनी ताल जाने के लिए आप टै्किंग का आनंद तो लेंगे ही, समय की कमी होने पर मोटर मार्ग से श्यामलाताल, नौकुचियाताल, टिहरी झील, आसन बैराज, नौकुचियाताल, सातताल आदि का भी लुत्फ उठाया जा सकता है। और हां, विश्वप्रसिद्ध नैनीताल तो है ही।