Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 41655 times)

Bhishma Kukreti

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 ओजरखेड डाम, नासिक  का भोजन पर्यटक स्थल बनना

Ozarkhed Dam becoming Famous Food Tourist Place
भोजन पर्यटन विकास -8
Food /Culinary  Tourism Development 8
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 394

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -394

 

आलेख -      विपणन आचार्य  भीष्म कुकरेती   



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 महराष्ट्र का ओजरखेड डाम नासिक - सापुतारा या गुजरात सड़क पर नासिक शहर  से लगभग 35 किलोमीटर  दूर है।  ओजरखेड डाम का निर्माण उनंदा नदी पर 1982 में पूरा हुआ था।  ओजरखेड डाम ने वाणी तालुका की तस्वीर ही बदल डाली है।  सिंचाई उद्देश्य पूरा करने के अतिरिक्त ओजरखेड डाम ने इस क्षेत्र को भोजन पर्यटन में भी प्रसिद्धि दिलाई है।

        ओजरखेड डाम के बिलकुल सामने एक तपड़े में होटल्स या फ़ूड हब खुल गए हैं।  लगभग सभी भोजनालय मच्छी भोजन परोसते हैं और इन भोजनालयों द्वारा   जायकेदार मच्छी पकवान ने ओजरखेड डाम को वास्तव में भोजन पर्यटक स्थल में परिवर्तित कर दिया है।  कई तरह के मच्छी पकवानों व अन्य भोजन के कारण स्वाद प्रेमियों हेतु ओजरखेड  आकर्षक स्थल बन गया है।  कई अन्य मराठी भोज्य भी यहां उपलब्ध हैं  जो सोने में सुहागा जैसा ही है।  पर्यटक मच्छी भी खरीद ले जाते हैं।  पहले यह स्थल ओजरखेड डाम के कारण पर्यटकों को आकर्षित करता था अब मच्छी  व अन्य भोजन के कारण नासिक के व अन्य पर्यटकों  को ओजरखेड खींचने में समर्थ है। 

   नासिक से पर्यटक भोजन तृष्णा शान्ति हेतु मय परिवार या दोस्तों के साथ आते हैं व साथ में डाम दर्शन व देवस्थल (15 किलोमीटर दूर ) दर्शन भी कर लेते हैं। 

  नासिक से ओजरखेड मध्य कई अंगूर बाग़ भी ओजरखेड हेतु सहायक माध्यम बने हैं।  अंगूर बाग़ भ्रमण व सुले विनयार्ड में वाइन का स्वाद भी पर्यटकों को आकर्षित करता है। 

साथ में पर्यटक स्थानीय अनाज , दाल , भाजी व मसाले भी खरीदते हैं जो ग्रामीण आर्थिक विकास में उत्प्रेक का काम करते हैं।  ओजरखेड फ़ूड हब से पर्यटक वेजिटेरियन पूरण पूड़ी ( दलभरा छोटा परोठा ) भी खरीदते हैं जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल देने में समर्थ है। 

  मानसून समय  में ओजरखेड डाम देखने पर्यटकों की भीड़ अधिक  होती है।  बाकी समय भोजन प्रेमयों को यह स्थल भाता है। 

डाम एक अवसर था जिसे स्थानीय उद्यमियों ने ग्रामीण पर्यटन को विकसित करने में अप्रतिम योगदान दिया है। 

 



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पौड़ी गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ;  चमोली गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण  ; नैनीताल कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ; अल्मोड़ा कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण  ; टिहरी   गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ; चम्पावत कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ;  उत्तरकाशी गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास;  देहरादून गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ; रानीखेत कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास; हरिद्वार  गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ; डीडीहाट  कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण ;   नैनीताल  कुमाऊं में भोजन पर्यटन विकास हेतु ओजरखेड डाम , नासिक  का उदाहरण :

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड का हरेला त्यौहार भोजन पर्यटन आधारित त्यौहार है

Harela : The Food Tourism Based Festival
भोजन पर्यटन विकास -9
Food /Culinary  Tourism Development 9
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 395

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -395

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   



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हरेला त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का एक प्रमुख त्यौहार है।  हरेला श्रवण के प्रथम दिवस व अश्विन मॉस में भी मनाया जाता है।  हरेला मनाने में ऋतु  व कृषि से समृद्धि सिद्धांत का पूरा मिश्रण है। हरेला  त्यौहार  में शिव पार्वती  विवाह मिश्रण ने हरेला को धार्मिक त्यौहार में परिवर्तित भी कर दिया है। 
   हरेला त्यौहार में भोजन पर्यटन के सूत्र समावेश हैं।  हरेला के दिन स्वाळ पक्वड़ , मिष्ठान पकाये जाते हैं व पुत्री , बहिनों , फुफुओ /बुआओं को स्वाळ  पक्वड़  व पैसा भेंट दी जाती है।  मुख्य त्यौहार से दस दिन पहले हरेला या हरियाली बोई जाती है। 

        पुत्री , बहिन , व फूफू  /बुआ के घर मायके से स्वाळ -पक्वड़ , आशीर्वाद रूप हरियाली  ससुराल भेजी जाती है अथवा पुत्री , बुआ , फुफु को व उनके बच्चों को मायका बुलाया जाता है व् त्योहार भोजन, स्वाळ -पक्वड़   खिलाने के साथ पिठाई लगाई जाती है। 
     हरेला दिन पेड़ लगाने की भी प्रथा है।
    हरेला वास्तव में भोजन पर्यटन का एक उम्दा उदाहरण भी है.
पर्यटन अर्थात - किसी विशेष उद्देश्य से अपने क्षेत्र /घर गाँव छोड़कर यात्रा करना होता है जब कि भोजन पर्यटन में भोजन उद्देश्य होता है।
  हरेला त्यौहार में निम्न सूत्र /थ्रेड भोजन यात्रा  से संबंधित हैं -
हरेला बुआई जो भोजन से संबंधित है.
हरेला में भोजन  /हरेला व भोजन (स्वाळ , पक्वड़ -मिष्ठान ) खिलाने हेतु पुत्री , बहिन , फूफू /बुआ व उनके पुत्र -पुत्रियों को मायका बुलाना व इनका मायका यात्रा करना  अथवा स्वाळ पक्व व मिष्ठान व आशीर्वाद रूपेण हरेला को पुत्री , बहिन , फूफू के ससुराल  पंहुचाने हेतु  किसी व्यक्ति की यात्रा करना।
पेड़ लगाना भी पर्यटन संबंधी कारक ही है।
अब चूँकि मंत्री संतरियों (प्रशासकों ) व सामजिक कार्यकर्तांओं  द्वारा सामूहिक हरेला त्यौहार मनाने की पद्धति हल पड़ी है जो यात्रा विधान ही है।
  उपरोक्त विवेचना से कहा जा सकता है कि हरेला त्यौहार भोजन यात्रा संबंधित त्यौहार भी है। 
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 Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in Garhwal , Uttarakhand ;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in Chamoli Garhwal , Uttarakhand;    Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in  Rudraprayag Garhwal , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in   Pauri Garhwal , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in   Tehri Garhwal , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in  Uttarkashi  Garhwal , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in   Dehradun Garhwal , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in    Haridwar Garhwal , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in  Pithoragarh  Kumaon , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in Champawat    Kumaon , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in   Almora Kumaon , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in Nainital   Kumaon , Uttarakhand;   Harela: Food Tourism based Festival , Food Tourism Development in  Udham Singh Nagar  Kumaon , Uttarakhand;

 

पौड़ी गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ;  चमोली गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन  ; नैनीताल कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ; अल्मोड़ा कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन  ; टिहरी   गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ; चम्पावत कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ;  उत्तरकाशी गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास;  देहरादून गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ; रानीखेत कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास; हरिद्वार  गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ; डीडीहाट  कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन ;   नैनीताल  कुमाऊं में भोजन पर्यटन विकास और हरेला त्यौहार का विवेचन :

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Bhishma Kukreti

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मलेसिया में बेडु , तिमलु , गूलर , अंजीर बगीचे  से भोजन पर्यटन विकास उदाहरण

JonGrapvine Fig Garden of Kampung Bantayan , Malaysia : Example for Food Tourism
भोजन पर्यटन विकास -10
Food /Culinary  Tourism Development 10
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 396

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -396

 

आलेख -      विपणन आचार्य  भीष्म कुकरेती   



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  बागवानी यात्रा भी भोजन पर्यटन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा  है। उद्यान  प्राचीन काल से ही पर्यटनोगामी होते रहे हैं।  महात्मा बुद्ध आम आदि के बगीचे में ठहरते थे व प्रवचन देते थे व यह प्रचीन पर्यटन संस्कृति  का उम्दा उदाहरण भी है।

    किस तरह बगीचों को पर्यटनोगामी बनाया जा सकता है यह हमे मलेसिया के कैम्पंग बंटायन के जॉनग्रेपवाइन फिग गार्डन से सीखना चाहिए।  जॉनग्रेपवाइन फिग गार्डन कई एकड़ में फैला है और पर्यटनोगामी स्थल रूप में प्रसिद्ध हो चुका  है।  इस बगीचे में निम्न  कारक पर्यटकों को आकर्षित करते हैं -

१- १०० से अधिक अंजीर , बेडु , गूलर , तिमलु की प्रजातियों के खेतों में दर्शन व बेडु -तिमलु के जीवन के सब भाग दर्शन याने उगने से लेकर फल देने तक परिचय

२- ६० से अधिक अंगूर प्रकार दर्शन 

३- अंजीर , गूलर , अंगूर उगाने का  त्वरित लघु प्रशिशक्षण -व्याख्यान आदि

४- ग्रीन हॉउस /पौध शाला दर्शन

५- अग्रिम बुकिंग द्वारा गूलर , अंजीर , अंगूर पौध विक्री

६- गूलर , अंजीर , तिमलु के बिभिन्न भागों (सुक्सा सहित) के औषधीय गुणों पर व्याख्यान व विक्री

७- बेडु , अंजीर पत्तियों का सुक्सा जिससे औषधीय चाय बनाई जाती है की विक्री

८- बेडु , अंजीर पत्तियों को कैसे सुखाया जाता है/सुक्सा निर्माण  के दर्शन व कैसे पत्तियों के सुक्से से चाय बनाई जाती है का प्रशिक्षण  दिया जाता है।

९-  पके फल विक्री

१०- सूखे फल विक्री

पर्यटकों हेतु भोजन व  नास्ते आदि  भी है व परिहवन का पूरा प्रबंध भी है। 

कैम्पंग बंटायन के जॉनग्रेपवाइन फिग गार्डन  विशेष पर्यटकों (Niche Tourists ) हेतु एक विशिष्ठ भोजन पर्यटक स्थल  बन चुका  है और मलेसिया पर्यटन को विशेष योगदान दे रहा है।



 

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Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in Garhwal , Uttarakhand ;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in Chamoli Garhwal , Uttarakhand;   Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in  Rudraprayag Garhwal , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in   Pauri Garhwal , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in   Tehri Garhwal , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in  Uttarkashi  Garhwal , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in   Dehradun Garhwal , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in    Haridwar Garhwal , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in  Pithoragarh  Kumaon , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in Champawat    Kumaon , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in   Almora Kumaon , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in Nainital   Kumaon , Uttarakhand;  Fig Gardens for Food Tourism, Food Tourism Development in  Udham Singh Nagar  Kumaon , Uttarakhand;

 

पौड़ी गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ;  चमोली गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व   ; नैनीताल कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ; अल्मोड़ा कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व   ; टिहरी   गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ; चम्पावत कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ;  उत्तरकाशी गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व ;  देहरादून गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ; रानीखेत कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व ; हरिद्वार  गढ़वाल में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ; डीडीहाट  कुमाऊं  में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  ;   नैनीताल  कुमाऊं में भोजन पर्यटन विकास में अंजीर , बेडु -तिमलु बगीचा का महत्व  :

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Bhishma Kukreti

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व्यवसायिक बकरी पालन

व्यवसायिक  बकरी पालन का पर्यटन हेतु महत्व -1
Commercial Goat Farming as Tourism Tool -1
भोजन पर्यटन विकास -11
Food /Culinary  Tourism Development 11
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 397

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -397

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   



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                बकरी पालन भूमिका व लाभ तुलना 



राष्ट्रीय ही नहीं उत्तराखंड में बकरी पालन  अर्थव्यवस्था हेतु एक महत्वपूर्ण कारक रहा है।  भारत में 70 प्रतिशत भूमिहीन कृषि मजदूर व छोटे किसान बकरी पालन में संलग्न हैं।  छोटे किसानों व अन्य हेतु बकरी पालन के कई लाभ मिलते रहे हैं।  भारत में आज भी कई जंतु  सामजिक छवि जुडी हैं जैसे सुअर पालन ,  मुर्गी पालन  सवर्णों में  आज भी ताज्य है।  किन्तु बकरी पालन में कोई सामजिक बंधन जैसे धर्म , जाति , उप जाति , महिला या पुरुष  नहीं जुड़े हैं।  बकरी से औषधीय दूध , दही , मक्खन, गोबर  के अतिरिक्त मांस तो मिलता ही है बकरी की खाल कई व्यवसायों में प्रयोग होती है। 

अन्य जीवों की तुलना में बकरी पालन के कुछ लाभ

१- गरीब जो गाय भैंस नहीं पाल सकते उनके लिए बकरी पालन अधिक सरल है।  कम  क्रय  लागत , कम मेंटेनेंस व्यय  व   बिक्रय लाभ अधिक भी है

२- बकरी पालन में कम जगह की आवश्यकता होती है।

३- बकरी मरखुड्या /मरखने व इकहत्या (एक  ही हाथ से दुहा जाय ) नहीं होते हैं।  अतः पालने , दूध दुहने में समस्या नहीं के बराबर है।

४- बकरी पालन हेतु कृषि खेत या भीमल , गूलर , खड़िक जैसे पादपों की आवश्यकता नहीं पड़ती

५- घास हेतु जल की आवश्यकता नहीं पड़ती या बकरी स्नान , पानी पिलाने हेतु निकट जल स्रोत्र आवश्यक नहीं है तथापि बंजर क्षेत्र , पहाड़ी क्षेत्र में भी बकरी पाली जा सकती है

६- बकरी को चराने के लिए निकट ही गौचर /चराई क्षेत्र आवश्यक नहीं है किसी भी वन में चारयि हो सकती है।  बकरियां एक दिन में अधिक चल सकते है

७- बकरी चराने हेतु केवल बाघ , सियारों के अतिरिक्त कोई बड़ी सावधानी नहीं बरतनी पड़ती है जैसे बकरी का भेळ में गिरने /लमडने का भय कम होता है तो मजदूरी पर चरवाहे रखे जा सकते हैं जो दूध भी दुह सकते हैं व देखरेख भी कर सकते हैं ।

८- बकरी बेचना सदा ही सरल रहा है और सदा ही बाजार उपलब्ध रहा है आज भी बकरी को कैश क्रॉप जैसे कभी भी कहीं भी बेचा जा सकता है।

९- बकरी की उत्पादकशीलता अधिक होती है।

१० - बकरी पालन का व्यवसायिक भविष्य उज्जवल है।  श्राद्ध छोड़ बकरी मांस भक्षण की कोई सामयिक वर्जना  नहीं है। बकरी नास्ते , दोपहर भोजन व रात्रि भोजन सब समय भक्षण हो सकता है। इसी तरह बकरे मारने में कोई वर्जनाएं नहीं है।  ब्राह्मण क्या उच्च वर्ग ब्राह्मण भी बकरी मार सकता है।  भारत में कुछ क्षेत्र छोड़ बकरी भोजन में कोई जातीय बंधन नहीं है

११- मृत गाय , भैंस की कीमत नहीं के बराबर होती है किन्तु बकरी के साथ यह कमजोरी नहीं है।  मृत गाय -भैंस को खड्यारना व लसोरना कठिन है किन्तु मृत बकरी का मांस बिकाऊ होता है याने मृत बकरी डिस्पोजेबल /उपयोगी होती हैं। थैंक गौड  गौरक्षक बकरी रक्षा में अतिक्रमण नहीं करते।

१२- बकरी का  बकर्वळ बिकाऊ है। बकर्वळ की डिस्पोजिबिलिटी गोबर से सरल है

१३- आधुनिक प्रजनन तकनीक उपलब्ध हैं व वाह्य स्पर्म गर्वाधान तकनीक सरल है

१४ -बकरी पालन में आधुनिक तकनीक उपलब्ध है

  सबसे बड़ी कमजोरी

 भारत में बकरी पालन से जुडी सबसे बड़ी कमजोरी है बकरी पालन में संगठित , व्यवसायीकरण न होना याने बकरी पालन को दुकान दृष्टि से न देखना। 









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 Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in Garhwal , Uttarakhand ;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in Chamoli Garhwal , Uttarakhand;    Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in  Rudraprayag Garhwal , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in   Pauri Garhwal , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in   Tehri Garhwal , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in  Uttarkashi  Garhwal , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in   Dehradun Garhwal , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in    Haridwar Garhwal , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in  Pithoragarh  Kumaon , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in Champawat    Kumaon , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in   Almora Kumaon , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in Nainital   Kumaon , Uttarakhand;   Goat Farming as tool for  Food Tourism Development in  Udham Singh Nagar  Kumaon , Uttarakhand;

           




Bhishma Kukreti

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 उन्नीसवीं सदी में गढ़वाली में चौकीदार हेतु पासवान शब्द प्रयोग होता था

कुछ समय पहले मैंने सोशल  मीडिया में पूछा था बल गढ़वाली में चौकीदार शब्द का रूपांतरित या वैसे शब्द क्या होना चाहिए।  अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलीं  और निम्न शब्द चौकीदार के विकल्प सुझाये गए -

  जुगळेर
जगळया
वाड जुगलण
पतरोळ
पैरादार
सन्तरी
ग्वैर
  ऐतिहासिक दृष्टि से हमें उत्तराखंड में गाँवों चौकीदार /चौकीदारी शब्द संबंध संदर्भ  1847 के लगभग मिलता है जब ब्रिटिश सरकार ने  प्लेग , हैजा , चेचक ' व विषेशतः प्लेग /महामारी रोकथाम हेतु प्रत्येक गाँवों हेतु 'पासवान ' भर्ती किये।
पासवानों का मुख्य कार्य था -
गाँवों में हरिद्वार , ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाते हुए रोगी पर्यटकों का प्रवेश रोक, उन्हें अंदर  ग्रामीण क्षेत्र में न घुसने  देना
गाँवों में सफाई  चलाना
गाँवों में ग्रामीणों को उन पेड़ पौधों को आंगन के पास न उगाना जैसे भांग
गौशालाओं को गाँस से बाहर निर्माण  जागरण
घरों के निकट गंदगी ढेर न होने देना
जब भी चूहे मरें तो उसकी जानकारी ऊपर पंहुचना

संदर्भ
शिव प्रसाद डबराल , ब्रिटिश गढ़वाल का इतिहास भाग २ , पृष्ठ ६१-१०३

Bhishma Kukreti

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  गुजरात में पौंक (ऊम ) पार्टी व महाराष्ट्र में हुर्डा (ज्वार  ऊम ) पार्टी भोजन पर्यटन का उम्दा उदाहरण
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  भोजन पर्यटन विकास -11 
Food /Culinary  Tourism Development -11 
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 388 

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -388 

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   

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 ऊमी याने कच्चे अनाज को भूनकर मिला दाना।  ऊमी बुकना उत्तराखंड में ही नहीं भारत के सभी क्षेत्रों में प्रचलित व भोजन संस्कृति का एक हिस्सा रहा है।  उत्तराखंड में गेहूं या कोदे की ऊमी भूनी जाती हैं तो अन्य क्षेत्र जैसे गुजरात और महाराष्ट्र में जवार (जुंडळ ) की ऊमी  अति प्रसिद्ध है।  जैसे उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन दौरान ऊमी संस्कृति में अवसान आया उसी तरह भारत में भी ब्रिटिश शासन में ऊमी भोजन संस्कृति में अवसान आया किन्तु अब धीरे धीरे इन क्षेत्रों में ऊमी संस्कृति वापस आ रही है और नव अवतार में अवतरित हो रही है।


 गुजरात में सड़क किनारे बिकते पौंक या जवार ऊमी
ओक्टोबर नवंबर में वापी से लेकर बड़ोदा तक हाइ वे पर किसान  या अन्य मजदूर टोकरियों में  जवार की ऊमी में नमकीन मिलाकर बेचते मिल जाएंगे।  हाइ वे या स्टेट  हाइ वे किनारे पौंक /नमकीन या बूंदी सह बिक्रेताओं के पौंक खरीदने बहुत से शहरी कार लेकर  घूमने  हैं और जगह जगहों से पौंक खरीदकर क्षुधा कम स्वाद शान्ति करते जाते हैं।  आंतरिक पर्यटन वृद्धि का पौंक एक नायब जरिया है। 


 महाराष्ट्र में हुरडा पार्टी

महाराष्ट्र में  दिसंबर या आसपास जवार की ऊमी के साथ अन्य भोज्य पदार्थ पकाकर रिश्तेदारों को न्योता दे कर खिलाने का प्राचीन रिवाज था पर कुछ समय यह कमजोर हुआ।  महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक नागपुर में हुरडा पार्टी आयोजित करते थे व राजनैतिकों व अन्य लोगों को पार्टी में बुलाते थे।  इससे वे कई राजनैतिक लाभ भी लेते थे याने जनसम्पर्क साधन साधते थे।

 वीडिओकोन के निदेशक व राज्य सभा सदस्य श्री आर एन धूत भी औरंगाबाद में हुरडा पार्टी देते थे व बैंकर्स, राजनीतिज्ञों , सामजिक कार्यकर्ताओं को न्योता देते थे।  औरंगाबाद से बाहर के मेहमान भी हुरडा पार्टी में शामिल होते थे।  इसी तरह महाराष्ट्र में हुरडा पार्टी हुआ करती हैं।

         नागपुर के निकट तेलकामठी गाँव हुरडा पार्टी आयोजित कर ग्रामीण पर्यटन विकसित करने हेतु प्रसिद्ध है। गाँव में जवार की ऊमि के कई पकवान बनाये जाते हैं और शहरी पर्यटकों को खिलाया जाता है व उन्हें खेतों में भी घुमाया जाता है। 

              उत्तराखंड में भी ऊम को पर्यटन आकर्षण  माध्यम बनाया जा सकता है

ऋषिकेश निकट माळा बिजनी , नरेंद्र नगर , गुलरगाड , कौडियाला, धारी , गैंडखाल हल्द्वानी नैनीताल  आदि स्थानों पर गेंहू व कोदा की ऊमी त्यौहार आयोजित कर उत्तराखंड में फ़ूड टूरिज्म को विकसित किया जा सकता है। 



Copyright @ Bhishma Kukreti 2 /6 /2019

  ढांगू पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; गूलरगाड़ , टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;   चमोली  गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  रुद्रप्रयाग  गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;   देहरादून उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; हरिद्वार उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  नैनीताल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; हल्द्वानी उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  अल्मोड़ा उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  पिथौरागढ़ उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;           







Bhishma Kukreti

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महाराष्ट्र के भीमाशंकर व देवरुख कॉलेज में वन भोजन महोत्सव  :पर्टयन विकासोन्मुखी कृत्य
 
भोजन पर्यटन विकास -12   
Food /Culinary  Tourism Development -12   
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 389   

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -389   

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती 

          देवरुख का वन्य भोजन महोत्स्व

 
 महाराष्ट्र में कई स्थानों पर वन सब्जी महोत्स्व होते रहते हैं जो कई उद्देश्य प्राप्त करते रहते हैं।  मुंबई में भी वन सब्जी /उत्पाद भोजन महोत्स्व आयोजित होते हैं।  30 अगस्त  2018 में रत्नागिरी के संगमेश्वर तहसील के ASP कॉलेज देवरुख का वाइल्ड वेजिटेबल फेस्टिवल पर्यटन दृष्टि से कामयाब मेला कहलाया जायेगा।  देवरुख कॉलेज के प्रधानाचार्य की प्रेरणा से अगस्त में यह मेला लगा कारण बारिश के बाद वनों में कई भोज्य पदार्थ उग आते हैं तो अगस्त व सितम्बर सही समय होता है वन्य भोज्य पदार्थ इकट्ठा करने का।  कॉलेज में मेला आयोजित करने का मकसद था विद्यार्थियों को वन्य भोज्य पदार्थ के बारे में जानकारी व भविष्य हेतु रास्ता पथ निर्माण।  इस मेले में 30 भागीदार 70 -80 पकवान पका कर लाये थे।  इसके बाद मोबाईल में एक एप्लीकेसन भी डाला गया जिसमे इन पकवानों के अवयव व पकवान बनाने की विधि डीसीपी बताई गयी है। 

एलावली  गाँव  , भीमाशंकर में वन्य भोजन महोत्स्व
पुणे के निकट यालावली  गाँव में 2011 में वाइल्ड वेजिटेबल फेस्टिवल आयोजित किया गया जिसमे निकटवर्ती गाँव वालों ने भाग लिया। 500 पर्यटक भागीदारों ने निम्न तरह से भागीदारी निभाई -
एलावली गाँव की हद्द भ्रमण
देवस्थल भ्रमण
एलावली वन क्षेत्र से वन्य भोज्य पदार्थ एकत्रीकरण
हल चलना दर्शन
उगी धान कली  दर्शन
धान रोपण दर्शन
औषधि पादपों की करसिहि कैसे होती है -औषधि पादपों के दर्शन
वर्षा से पहले छत किस प्रकार ढकी जाती हैं -कृत्य दर्शन
 वन से लायी गयी सब्जियों को फूलों से सजकर दर्शन
वन सब्जियों व भोज्य पदार्थ को पकते देखना
वन भोज्य पदार्थ प्रदर्शनी व भोजन संवारने की कला प्रदर्शन
भजन कीर्तन
वन्य भोजन को चखना खाना आनंद लेना
रेसीपी नॉट करना
  आस पास उपलब्ध  वन भोज्य व वनस्पति ज्ञान लेना व बाँटना
उपरोक्त दोनों मेले भोजन पर्यटन विक्सित करने के उम्दा उदाहरण हैं।

Copyright @ Bhishma Kukreti , 3 /6 /2019
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;  चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; हरिद्वार  उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;  कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; नैनीताल कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; उधम सिंह नगर कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; अल्मोड़ा , कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; पिथौरागढ़ कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;

Bhishma Kukreti

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व्यवसायिक बकरी पालन

व्यवसायिक  बकरी पालन का पर्यटन हेतु महत्व -1
Commercial Goat Farming as Tourism Tool -1
भोजन पर्यटन विकास -11
Food /Culinary  Tourism Development 11
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 397

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -397

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती    



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                बकरी पालन भूमिका व लाभ तुलना 



राष्ट्रीय ही नहीं उत्तराखंड में बकरी पालन  अर्थव्यवस्था हेतु एक महत्वपूर्ण कारक रहा है।  भारत में 70 प्रतिशत भूमिहीन कृषि मजदूर व छोटे किसान बकरी पालन में संलग्न हैं।  छोटे किसानों व अन्य हेतु बकरी पालन के कई लाभ मिलते रहे हैं।  भारत में आज भी कई जंतु  सामजिक छवि जुडी हैं जैसे सुअर पालन ,  मुर्गी पालन  सवर्णों में  आज भी ताज्य है।  किन्तु बकरी पालन में कोई सामजिक बंधन जैसे धर्म , जाति , उप जाति , महिला या पुरुष  नहीं जुड़े हैं।  बकरी से औषधीय दूध , दही , मक्खन, गोबर  के अतिरिक्त मांस तो मिलता ही है बकरी की खाल कई व्यवसायों में प्रयोग होती है। 

अन्य जीवों की तुलना में बकरी पालन के कुछ लाभ

१- गरीब जो गाय भैंस नहीं पाल सकते उनके लिए बकरी पालन अधिक सरल है।  कम  क्रय  लागत , कम मेंटेनेंस व्यय  व   बिक्रय लाभ अधिक भी है

२- बकरी पालन में कम जगह की आवश्यकता होती है।

३- बकरी मरखुड्या /मरखने व इकहत्या (एक  ही हाथ से दुहा जाय ) नहीं होते हैं।  अतः पालने , दूध दुहने में समस्या नहीं के बराबर है।

४- बकरी पालन हेतु कृषि खेत या भीमल , गूलर , खड़िक जैसे पादपों की आवश्यकता नहीं पड़ती

५- घास हेतु जल की आवश्यकता नहीं पड़ती या बकरी स्नान , पानी पिलाने हेतु निकट जल स्रोत्र आवश्यक नहीं है तथापि बंजर क्षेत्र , पहाड़ी क्षेत्र में भी बकरी पाली जा सकती है

६- बकरी को चराने के लिए निकट ही गौचर /चराई क्षेत्र आवश्यक नहीं है किसी भी वन में चारयि हो सकती है।  बकरियां एक दिन में अधिक चल सकते है

७- बकरी चराने हेतु केवल बाघ , सियारों के अतिरिक्त कोई बड़ी सावधानी नहीं बरतनी पड़ती है जैसे बकरी का भेळ में गिरने /लमडने का भय कम होता है तो मजदूरी पर चरवाहे रखे जा सकते हैं जो दूध भी दुह सकते हैं व देखरेख भी कर सकते हैं ।

८- बकरी बेचना सदा ही सरल रहा है और सदा ही बाजार उपलब्ध रहा है आज भी बकरी को कैश क्रॉप जैसे कभी भी कहीं भी बेचा जा सकता है।

९- बकरी की उत्पादकशीलता अधिक होती है।

१० - बकरी पालन का व्यवसायिक भविष्य उज्जवल है।  श्राद्ध छोड़ बकरी मांस भक्षण की कोई सामयिक वर्जना  नहीं है। बकरी नास्ते , दोपहर भोजन व रात्रि भोजन सब समय भक्षण हो सकता है। इसी तरह बकरे मारने में कोई वर्जनाएं नहीं है।  ब्राह्मण क्या उच्च वर्ग ब्राह्मण भी बकरी मार सकता है।  भारत में कुछ क्षेत्र छोड़ बकरी भोजन में कोई जातीय बंधन नहीं है

११- मृत गाय , भैंस की कीमत नहीं के बराबर होती है किन्तु बकरी के साथ यह कमजोरी नहीं है।  मृत गाय -भैंस को खड्यारना व लसोरना कठिन है किन्तु मृत बकरी का मांस बिकाऊ होता है याने मृत बकरी डिस्पोजेबल /उपयोगी होती हैं। थैंक गौड  गौरक्षक बकरी रक्षा में अतिक्रमण नहीं करते।

१२- बकरी का  बकर्वळ बिकाऊ है। बकर्वळ की डिस्पोजिबिलिटी गोबर से सरल है

१३- आधुनिक प्रजनन तकनीक उपलब्ध हैं व वाह्य स्पर्म गर्वाधान तकनीक सरल है

१४ -बकरी पालन में आधुनिक तकनीक उपलब्ध है



  सबसे बड़ी कमजोरी

 भारत में बकरी पालन से जुडी सबसे बड़ी कमजोरी है बकरी पालन में संगठित , व्यवसायीकरण न होना याने बकरी पालन को व्यापारिक /दुकानदारी  दृष्टि से न देखना। 









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vinodkhati

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Dear Friends,
Hello everyone, I am planning to shift to uttarakhand, can you all please guide to best place in kumaon region to relocate with my family.
I am a mechanical engineer having 12 years of work experience, can you help me to find link for jobs to apply.

Regards,
Vinod
Whatsup number: +919920891646

Bhishma Kukreti

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मंदिरों , गुरुद्वाराओं के भंडारे/लंगर  व भोग -प्रसाद भी   भोजन पर्यटन अंग ही  हैं



Bhandra, Bhog from temples are Tourism oriented
भोजन पर्यटन विकास -14
Food /Culinary  Tourism Development 14
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 398

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -398

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   

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अमूनन हिन्दू भारतीय पूजास्थलों में देवताओं को भोग लगाना व भक्तों हेतु भोजन व्यवस्था आम प्रचलन है।  गुरुद्वाराओं में लंगर भी इसी विधान परम्परा का हिस्सा है। 



  जुहू के इस्कॉन में भोजन

जुहू मुंबई के इस्कॉन मंदिर में हर रविवार को भक्तों हेतु शुद्ध वैष्णवी भोजन पकाया जाता है और भक्तों से भोजन कीमत ली जाती है।  दूर दूर से भक्त पर्यटक इस्कॉन मंदिर यात्रा करते हैं और भोजन कर ही लौटते हैं।

  सिद्धबली मंदिर कोटद्वार में भी हर रविवार या अन्य दिन भंडारा होता है और भक्तों को मुफ्त भोजन दिया जाता है।

कोई गुरुद्वारा ऐसा न होगा जहाँ लंगर न लगता हो और भक्तों को भोजन न बनता जाय।

जलाराम मंदिरों में भी भंडरा होता है।

पहले गढ़वाल कुमाऊं में जब कोई परिवार जब देवस्थल जैसे सीम यात्रा कर लौटता था तो गाँव वालों व रिश्तेदारों हेतु भंडरा आयोजन करते थे।  अब कई सामाजिक संथाएं किसी विशेष देवता के सामूहिक दर्शन बाद सामूहिक भंडरा आयोजन करते हैं।  तिरुपति मंदिर में लड्डू भोग भी प्रसिद्ध भोग व प्रसाद है। यमनोत्री गंगोत्री में चावल भोग व प्रसाद भी प्रसिद्ध हैं

उपरोक्त सभी भोजन वास्तव में पर्यटनोगामी हैं।

हरिद्वार आदि स्थलों में आश्रमों द्वारा डे भोजन भी पर्यटनोगामी हैं।

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  देव हेतु भोग व भक्तों हेतु प्रसाद

तकरीबन हर देवतषल में देव हेतु विशेष भोग चढ़ाना या चढ़ावा चढ़ाना आम प्रचलन है। यही ब्भोग बाद में प्रसाद रूप में भक्तों में बनता जाता है।  सिद्धबली व अन्य नागराजा मंदिरों में गुड़ या भेली चढ़ाया जाता है। बद्रीनाथ में चावल भोग होता है जो प्रसाद रूप में भी बनता जाता है।  ग्राम देवताओं को रोट भोग चढ़ाया जाता है।

  उपरोक्त सभी प्रकार के उदाहरण भोजन द्वारा पर्यटन विकसित होने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।



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Copyright @ Bhishma Kukreti , 5  /6 /2019
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ;  चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ,; रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग   ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग  ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ; देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ; हरिद्वार  उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;  कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग   ; नैनीताल कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग  ; उधम सिंह नगर कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; अल्मोड़ा , कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; पिथौरागढ़ कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग  ;

 

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