Author Topic: Tourism in Bagehswar (Uttarakhand) पर्यटन की दृष्टि से बागेश्वर  (Read 17409 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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कांडा-विजयपुर

बागेश्वर जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। यहाँ के हर एक कोने में प्रकृति ने जो सौन्दर्य लुटाया है अभी भी वह पर्यटकों की पहुँच से दूर है।  कांडा से सिर्फ 6 किलोमीटर और बागेश्वर से 30 किलोमीटर पर स्थित खूबसूरत विजयपुर गांव हिमालय की शानदार वादियों से रूबरू कराता है। यहाँ से प्रकृति का जो आनंद मिलता है शायद ही कहीं और मिले !



इसके अलावा कांडा-पड़ाव स्थित कालिका मंदिर आस्था का केंद्र है।  प्रचलित लोककथाओं के अनुसार माता कालिका की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य जी द्वारा करवायी गयी थी। पौराणिक गाथाओं के अनुसार पहले इस क्षेत्र में कालसिण अथवा काल  का खौफ था। कहा जाता है कि प्रत्येक रात्रि को काल इस क्षेत्र में बसे आसपास के गांवों में किसी एक मनुष्य को पुकारता था जिस व्यक्ति का नाम पुकारता था उसकी मौत हो जाती थी। इससे समस्त क्षेत्रवासियों में भय व्याप्त हो गया था। इसी दौरान शंकराचार्य जी जब कैलाश माता से वापस आ रहे थे उन्होंने इस जगह पर विश्राम किया। इसी दौरान क्षेत्र के लोगों ने उन्हें इस विपत्ति  से निदान दिलाने के लिए विनती की। शंकराचार्य  ने क्षेत्रवासियों के अनुरोध पर स्थानीय लोहार से नौ कढ़ाई  मंगवाकर उस काल रूप का कीलन करके उसे शिला द्वारा दबा दिया तथा इस जगह पर माता कालिका की स्थापना की। आज भी वह शिला मंदिर प्रांगण में मौजूद है।
शंकराचार्य ने माता कालिका की स्थापना एक पेड़ की जड़ पर की थी 1947 में इस जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया जिसे 1998 में क्षेत्रीय जनता के सहयोग से पूर्ण निर्मित मंदिर के बाहर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है।



विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]श्री 1008 नौलिंग देव मंदिर - सनगाड़ (कपकोट) बागेश्वर

जैसा कि आप सभी मालूम है उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री जैसे चार धाम इसी देवभूमि में स्थित हैं। यहाँ वर्ष में लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इसी प्रकार उत्तराखंड में अनेकों ऐसे मंदिर हैं जो अपने क्षेत्र  में प्रसिद्द हैं और उन्हें पर्यटन से जोड़ा जाये तो वे धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि देश और विदेशों में अपनी पहचान बना सकते हैं। बागेश्वर जिले के पोथिंग (कपकोट) स्थित भगवती मंदिर,शिखर स्थित मूलनारायण मंदिर, भनार स्थित  बंजैण मंदिर और सनगाड़ स्थित नौलिंगदेव मंदिर इनके उदहारण हैं। इन्हीं में से एक मंदिर सनगाड़ स्थित श्री 1008 नौलिंगदेव क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। चैत्र तथा आश्विन महीने के नवरात्र पर मंदिर में पूजा-अर्चना बड़ी धूम-धाम के साथ की जाती है।लोगों का विश्वास है कि पुत्र के लिए परेशान कोई महिला मंदिर में व्रत रखकर 24 घंटे का अखंड दीपक जलाती है तो नौलिंग देव प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना पूरी कर देते हैं।
सनगाड़ गांव में श्री 1008 नौलिंग देव का भव्य तथा आकर्षक मंदिर है। जनश्रुति के अनुसार सदियों  पूर्व शिखरवासी मूलनारायण भगवान की पत्नी माणावती से बंजैण देवता का जन्म हुआ। बंजैण की माता स्नान के लिए पचार गांव स्थित नौले तथा धोबी घाट गईं। स्नान के बाद उन्हें नौले से एक सुंदर हंसता खेलता नन्हा बालक मिला। माणावती सोच में पड़ गईं। उसने सोचा कि वह बगैर बंजैण के यहां आई थी लेकिन वह यहां कैसे पहुंच गया। बालक को गोद में रखकर वह शिखर पर्वत चली गई। वहां बंजैण देवता डलिया में किलकारी मार रहे थे। मूलनारायण तथा माणावती ने दोनों बालकों को अपना मानकर उनका लालन पालन किया। नौले से जन्म लेने से उसका नाम नौलिंग रखा गया। बाद में दोनों को विद्याध्ययन के लिए काशी भेज दिया गया। विद्याध्ययन के बाद मूलनारायण ने बंजैण को भनार गांव तथा नौलिंग को सनगाड़ गांव भेज दिया। तब सनगाड़ गांव में सनगड़िया नामक राक्षस का जबरदस्त आतंक था। वह नरबलि लेता था। नौलिंग तथा राक्षस में जबरदस्त लड़ाई हो गई। अपने पराक्रम से नौलिंग ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इस राक्षस को आज भी लोग खिचड़ी अर्पित करते हैं। लोगों का कहना है कि नौलिंग के डंगरिए अवरित होकर लोगों का नाम पुकार उन्हें अपने पास बुलाते हैं और उनके दु:खों का निवारण करते हैं। वहीं क्षेत्र के किसानों की फसल को ओलावृष्टि से बचाते हैं तथा क्षेत्र के लोगों की रक्षा करते हैं।



यहां पर्यटन, विधायक निधि तथा अन्य मदों से अनेक सुंदरीकरण कार्य हुए हैं। पास में ही धरमघर है जहाँ पर्यटक चाय बगान, यहाँ की प्राकृतिक छटा का आनंद ले सकते हैं। यह स्थल अब सड़क मार्ग से भी जुड़ चुका है। पर्यटक यहाँ जनपद मुख्यालय बागेश्वर से रीमा-पचार मार्ग और कांडा-धरमघर दोनों मार्गों से आ सकते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया

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स्रोत : अमर उजाला

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श्री 1008 काशिल देव मंदिर



कपकोट तहसील मुख्यालय की ग्राम पंचायत कपकोट की सुरम्य पहाड़ी पर स्थित श्री 1008 काशिल देव मंदिर क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। मंदिर में हर साल क्षेत्र का सुप्रसिद्ध स्यालदे बिखौती का मेला लगता है। मेले में दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुजन अपनी मनौती पूरी होने पर मंदिर में घंटियां, शंख और पूजा के काम आने वाली अन्य वस्तुएं अर्पित करते हैं।
पिंडारी मार्ग से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित कपकोट की सुरम्य पहाड़ी में श्री 1008 काशिल देव का भव्य मंदिर है। मंदिर के पास ही भगवती माता तथा बाण देवता के मंदिर हैं। लोगों  का कहना है कि काशिल देव लोगों की खेती तथा बागवानी को ओलावृष्टि तथा गांव को अनिष्ट से बचाते हैं। काशिल देव को करीब 612 साल पहले राजा रत कपकोटी अपने साथ लाए थे। वह उनके आराध्य देवता थे। राजा कोई भी काम बगैर काशिल देवता की इच्छा के बगैर कोई भी फैसला नहीं लेते थे। कपकोट की शरहद पहले जरगाड़ गधेरे से फुलाचौंर तक थी। इसके तहत कपकोट, गैनाड़, भंडारीगांव, गैरखेत, उत्तरौड़ा, फुलवारी ग्राम पंचायत आते हैं। इन गांवों के लोग स्यालदे बिखौती के मौके पर मंदिर में नए अनाज का प्रसाद अर्पित करते हैं। यहाँ के स्थानीय निवासी बताते हैं कि पहले काशिल देव आवाज लगाकर लोगों को विभिन्न पर्वो के अलावा अमावस्या तथा पूर्णिमा की जानकारी देते थे। काशिल देव भगवान विष्णु के अवतार हैं उन्हें लाल रंग का पीठ्या नहीं चढ़ता है। मंदिर परिसर से हिमालय के विहंगम दृश्य के दर्शन के साथ कपकोट, ऐठान, भयूं, फरसाली, बमसेरा, चीराबगड़ आदि गांवों के सीढ़ीदार खेत, शिखर पर्वत के अलावा पवित्र सरयू नदी के दर्शन होते हैं। मंदिर का धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विकास होने पर यहां आने वाले श्रद्धालुओं के आने की संख्या में खासी वृद्धि होगी।

स्रोत- अमर उजाला


विनोद सिंह गढ़िया

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बागेश्वर के पर्यटन पर अमर उजाला की एक रिपोर्ट।

विनोद सिंह गढ़िया

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पर्यटन विकास के लिए 1.41 करोड़ का प्रस्ताव

राज्य बनने के बाद खर्च हुए 4.57 करोड़


बागेश्वर। जिले का पर्यटन व्यवसाय साहसिक यात्राओं और प्राचीन मंदिरों की आस्थाओं पर केंद्रित है। राज्य बनने के बाद जिला योजना और राज्य योजना के मदों से पर्यटन विकास के लिए साढ़े चार करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो चुकी है। इसी वित्तीय वर्ष में पर्यटन विभाग ने जिला योजना से 1.41 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया है।
राज्य के इस दूरस्थ जिले में मुख्य रूप से खूबसूरत ग्लेश्यिर, बुग्याल और प्राचीन मंदिर लोगों को लुभाते रहे हैं। साहसिक पर्यटन के तहत जिले में ऐडवेंचर फाउंडेशन कोर्स, सर्च ट्रेकिंग, पर्वतारोहण, रीवर राफ्टिंग, कयाकिंग, पैराग्लाइडिंग, आइस स्केटिंग, स्नो स्कीइंग, आर्टिफिशियल क्लाइबिंग, आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण और जल क्रीड़ा शामिल हैं। पिंडारी ग्लेशियर, कफनी ग्लेशियर, सुंदरढुंगा ग्लेशियर,
पाण्डुस्थल , लीती और कौसानी का नैसर्गिक सौंदर्य सैलानियों को बार-बार आकर्षित करता है। जबकि धर्मस्थलों में बागेश्वर का ऐतिहासिक बागनाथ मंदिर और बैजनाथ में प्राचीन मंदिर समूह स्थापत्य कला के लिए मशहूर हैं। इनके साथ गहरी आस्था भी जुड़ी हुई है। इनके अलावा नीलेश्वर धाम, चंडिका धाम, शिखर धाम, सनगाड़, भद्रकाली मंदिर, कालिका मंदिर कांडा आदि का विशेष महत्व है। पर्यटन विभाग अभी तक जिला योजना से दो करोड़, 41 लाख, 47 हजार तथा राज्य योजना से दो करोड़, 15 लाख, 44 हजार रुपये खर्च कर चुका है।


विनोद सिंह गढ़िया

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पिंडारी ग्लेशियर मार्ग में कुछ दर्शनीय स्थल



for more information : http://www.merapahadforum.com/tourism-places-of-uttarakhand/pindari-glacier-district-bageshwar-uttarakhand/

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]प्रकृति की अनूठी धरोहर है सुंदरढुंगा का देवीकुंड

बागेश्वर जिला मुख्यालय से 161 किमी दूर विश्व प्रसिद्ध सुंदरढुंगा ग्लेशियर के पास खूबसूरत देवीकुंड प्रकृति की अनूठी धरोहर है। हरी-भरी पहाड़ियों के बीच स्थित इस कुंड के पवित्र जल को दुर्गा पूजा में भी प्रयुक्त किया जाता है। देवीकुंड की पैदल यात्रा अत्यधिक साहसिक और रोमांचकारी होती है।
देवीकुंड समुद्र की सतह से 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए बागेश्वर से 44 किमी दूर सोंग लोहारखेत तक वाहन से यात्रा की जाती है। इसके बाद देवीकुंड हिमालय की पैदल यात्रा शुरू होती है। पहले दिन नौ किमी दूर धाकुड़ी, दूसरे दिन आठ किमी दूर खाती में विश्राम किया जाता है।
यहां से तीसरे दिन सात किमी दूर जातोली, चौथे दिन 16 किमी पैदल यात्रा के बाद देवीकुंड पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचते ही कुंड की छटा लोगों का मन मोह लेती है। लगभग 110 मीटर लंबे और 50 मीटर चौड़े इस प्राकृतिक कुंड में आसपास की हरियाली का प्रतिबिंब चार चांद लगा देता है। कुंड के चारों ओर खिले ब्रह्मकमल के सफेद फूल इस स्थल की रमणीयता को और भी बढ़ा देते हैं।
विशेष बात यह भी है कि देवी कुंड का पानी गर्मी के मौसम में ठंडा तथा शीतकाल में कुछ गर्म हो जाता है। जाड़ों में यह कुंड बर्फ की परतों से ढक जाता है। देवी कुंड को क्षेत्र में पवित्र धार्मिक धरोहर का भी दर्जा प्राप्त है। दुर्गा पूजा के लिए लोग कई दिन पैदल चलकर कुं ड का पानी तांबे के कलशों में भरकर लाते हैं। देवीकुंड प्रवास का अनुभव अत्यधिक रोमांचकारी होता है। यहां की साहसिक और धार्मिक यात्रा के प्रति लोगों का रुझान निरंतर बढ़ रहा है।





साभार : देवेंद्र पांडेय-अमर उजाला
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विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]अगर आप घूमने फिरने के शौकीन हैं तो उत्तराखण्ड में बागेश्वर जनपद के ज्ञानधुरा में लोगों ने पर्यटकों के लिये ऐसे इन्तजाम किये हुए हैं। एकान्त में शीतल शान्ती,अद्भुत सूर्योदय और मनो हारी सूर्यास्त,नामिक ग्लेशियर और राम गंगा के सुन्दर दृश्य,पक्षियों का कलरव, प्रवासी पक्षियों का आवागमन,गांव का रहन सहन और संस्कृति, वनों में अध्ययनात्मक भ्रमण,नामिक ग्लेशियर तक ट्रैक करने की व्यवस्था, उबड़ खाबड़ मार्गों में बाइस्किलिंग, राम गंगा की सैर, सच कह रहा हूं खूब जानने सीखने को मिलेगा यहां।

साभार - रमेश पाण्डेय






Gyandhura Bageshwar


 

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