Author Topic: Tourism in Bagehswar (Uttarakhand) पर्यटन की दृष्टि से बागेश्वर  (Read 17413 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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[JUSTIFY]उत्तराखण्ड का बागेश्वर जनपद पर्यटन के क्षेत्र में अपना प्रमुख स्थान रखता है। यहां के दर्शनीय स्थल देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। बागेश्वर जनपद में बहुत से ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो प्रचार- प्रसार, सुविधाओं और सरकार की उदासीनता के कारण विकसित नहीं हो पाये हैं। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है। कुली बेगार आंदोलन की शुरुआत बागेश्वर से ही हुई थी। बागेश्वर अपने विभिन्न ग्लेशियरों के लिये भी विश्व में अलग स्थान रखता है। इन ग्लेशियरों के नाम है - सुन्दरढुंगा, कफनी और पिण्डारी ग्लेशियर।

साथियों इस टॉपिक  के माध्यम से हम बागेश्वर क्षेत्र के प्रमुख पर्यटक स्थलों की जानकारी देंगे साथ ही उन दर्शनीय स्थलों के बारे में भी जानकारी देंगें जो पर्यटन से जोड़े जा सकते हैं।


 धन्यवाद
 विनोद सिंह गढ़िया

विनोद सिंह गढ़िया

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बागनाथ मंदिर :

भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त शहर बागेश्वर सरयू, गोमती और विलुप्त भागीरथी के विहंगम संगम पर बसा है और यहीं पर स्थित है बागनाथ मंदिर। बागनाथ मंदिर यहाँ के पर्यटक स्थलों में अपना प्रमुख स्थान रखता है। यहाँ हर वर्ष लाखों सैलानी आकर संगम पर स्थित मंदिर में दर्शन करते है। बागनाथ मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं द्वारा करवाया गया था और बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराजा लक्ष्मीचन्द द्वारा करवाया गया ।

बागेश्वर और बागनाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास:

शिव पुराण के मानसखंड के अनुसार आदिकाल में भगवान शंकर ने अपने प्रियगण चंडीश को नीलेश्वर तथा भीलेश्वर की पहाड़ी को खोजने का निर्देश दिया था। शिवजी की आज्ञा पाकर उन्होंने इस स्थल को खोज निकाला। चंडीश ने जहां भीलेश्वर में मां चंडिका तथा नीलेश्वर में नीलेश्वर महादेव, मां उल्का, वेणीमाधव, लक्ष्मी नारायण समेत अनेक देवी देवताओं को बसाया। चंडीश का बसाया यह नगर भोलेनाथ को बहुत पसंद आया। उन्होंने पार्वती समेत यहां रहने का मन बनाया। पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने इस स्थल को उत्तर की काशी का नाम दिया। उनके साथ में कालभैरव नाथ, बाणेश्वर तथा नंदी भी आए। एक बार की बात है कि मुनि वशिष्ठ सरयू को मनसरोवर से अयोध्या की ओर ले जा रहे थे। यहां पहुंचने पर उन्हें ब्रह्मकपाली पर मार्कण्डेय ऋषि तपस्या में लीन मिले। मुनि की तपस्या भंग होने का अंदेशा होने पर वह सरयू को आगे नहीं ले जा सके। अत्यधिक जल भराव होने पर उन्होंने भोलेनाथ की आराधना की। शंकर जी पार्वती समेत वहां पहुंचे। उन्होंने ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या भंग करने को युक्ति सोची। पार्वती को आदेश दिया कि वह गाय बन जाएं और खुद शिवजी बाघ का रूप धारण कर उन पर झपटेंगे। जैसे ही मायावी बाघ गाय पर झपटा तो वह रंभाने लगी। इससे मार्कण्डेय जी की आंखें खुल गई। वह गाय को बाघ से मुक्त करने दौड़े ही तो सरयू आगे बढ़ गई। भोलेनाथ तथा पार्वती ने प्रकट होकर मार्कण्डेय जी को आशीर्वाद दिया। वशिष्ठ जी तीनों को प्रणाम कर आगे बढ़ गए। शिवजी के बाघ का रूप धारण करने से इस नगर का नाम व्याघ्रेश्वर पड़ा जो अब बिगड़कर बागेश्वर हो गया है। मार्कण्डेय मुनि की तपस्थली होने से इसे मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है। मंदिर के पुजारी रावल परिवार से हैं। भोग पंत परिवार के लोग लगाते हैं जबकि पुरोहित के रूप में चौरासि के पांडे परिवार नियत है। मान्यता है कि भगवान बागनाथ को जो भी श्रद्धालु 108 लोटा जल चढ़ाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं भोलेनाथ पूरी कर देते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया

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कौसानी

भारत का स्विट्जर्लैंड यानि कौसानी बागेश्वर जनपद के अंतर्गत आने वाले पर्यटक स्थलों की पहली पंक्ति में आता है। जो अल्‍मोड़ा जिले से 55 किमी. उत्तर में स्थित है। कौसानी और बागेश्वर शहर के बीच की दूरी 40 है।  कौसानी, भारत का खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्‍थल। हिमालय  की खूबसूरती के दर्शन कराता कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहां से बर्फ से ढ़के नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा बडा भव्‍य दिखाई देता हैं। कोसी और गोमती नदियों के बीच बसा कौसानी भारत का स्विट्जरलैंड कहलाता है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे, खेल और धार्मिक स्‍थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अनासक्त‍ि आश्रम कौसानी में ही स्थित है, इसे गांधी आश्रम भी कहा जाता है। इस आश्रम का निमार्ण महात्‍मा गांधी को श्रद्धांजली देने के उद्देश्‍य से किया गया था। कौसानी की सुंदरता और शांति ने गांधी जी को बहुत प्रभावित किया था। यहीं पर उन्‍होंने अनासक्ति योग नामक लेख लिखा था। इस आश्रम में एक अध्‍ययन कक्ष और पुस्‍तकालय, प्रार्थना कक्ष (यहां गांधी जी के जीवन से संबंधित चित्र लगे हैं) और किताबों की एक छोटी दुकान है। यहां रहने वालों को यहां होने वाली प्रार्थना सभाओं में भाग लेना होता है। यह पर्यटक लॉज नहीं है। इस आश्रम से बर्फ से ढके हिमालय को देखा जा सकता है। यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदा घुंटी, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा खाट, नंदा कोट और पंचचुली शिखर दिखाई देते हैं।



कौसानी से हिमालय का दृश्य

विनोद सिंह गढ़िया

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  Pindari Glacier
 
 The Pindari Glacier, in the Bageshwar district, falls in the Kumaon Himalayas and has lured mountaineers and trekkers since the last century. It is one of the most easily accessible of all the Himalayan glaciers. Pindari's rugged beauty offers a breathtaking sight, especially for the trekker who is in love with nature in all its pristine glory. The Pindari Glacier is an unsurpassable and an exhilarating experience.
 
 It lies between the Nanda Devi and Nandakot peaks and terminates at an altitude of 3627 m. The Glacier is 5 km long, the snout is about 6 m high and 2.5 m wide and above the snout, the glacier extends for about 3 km in length and 300 - 400 m in width, between an altitudinal range of about 3600 m to 5000 m. The Pindari Glacier is located in the Pindar Valley between longitudes 79° 13'-80°02' E and latitudes 30° 15' N. It occupies an area of 339.39 sq km.
 
 The valley is drained by the Pindar river that emerges from the Pindari Glacier. The river, in its initial course, flows through sedimentary rocks. Further to the south, it meanders through quarts schist. Granite is found in abundance in this area. The Pindar river has cut a gorge in thick glacial deposits up to nearly 10 km, resulting in the formation of spacious glacial terraces spread on both sides of the gorge. Further down, from Phurkia up to Khati, places enroute to the Pindari Glacier, one comes across numerous waterfalls, hanging valleys and tremendous rolls cliffs as the one of at Dwali. One has to go by road up to Saung which can be accessed from Almora, Bageshwar and Kathgodam and thereafter one has to trek 45 km up to zero point (Pindari Glacier). The colour of Pindari Glacier is very white and at some places, spots of light blue and brown may also be seen.
 
 Trek
 Base Camp Saung
 Saung to Loharkhet 3 km trek,
 Lohaekhet to Dhakuri 11 km,
 Dhakuri to Khati 8 km,
 Khati to Dwali 11 km,
 Dwali to Phurkia 7 km,
 Phurkia to Pindari Glacier 5 km.

Source : Uttarakhand Tourism

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]शिखर
भगवान मूलनारायण जी का निवास स्थल शिखर उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद में स्थित कपकोट क्षेत्र के अंतर्गत आता है।  धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से शिखर मंदिर अपने आप में एक खास महत्व रखता है।  इस मंदिर तक पहुँचने के लिए सीधी चढ़ाई चढ़ते हुए घने बांज और बुरांश के जंगल से होकर गुजरना पड़ता है। शिखर समुद्रतल से लगभग 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ से पंचाचूली, नंदा देवी, बनकटिया, नंदा खाट आदि हिमालय के मुख्य चोटियों के साफ दर्शन किये जा सकते हैं।



शिखर को धीरे-धीरे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहाँ रहने के लिए धर्मशालाओं का निर्माण किया गया है। कार्तिक मास में यहाँ भगवान् मूलनारायण जी की पूजा-अर्चना की जाती है।



मंदिर एक चोटी पर होते हुए भी यहाँ पर पानी की कोई कमी नहीं है। शिखर मंदिर से लगभग १ किलोमीटर की दूरी पर है एक गुफा जहाँ गुफा के अन्दर से पानी आता है और यही पानी मंदिर में इस्तेमाल होता है।

पौराणिक कथा के अनुसार जब नंदा देवी भगवान् मूल नारायण को अपने पीठ पर लाद इस जगह पर लायी थी तो उनको यह जगह काफी पसंद आया था और भगवान् ने इसी स्थली को अपना निवास स्थान बनाया।

यहाँ पहुँचने पर मूल भगवान् ने नंदा माता से पानी लाने के लिए कहा, इतने ऊँचे जगह और पानी। तब मूल नारायण भगवान् ने नंदा माता से कहा बुवा.. मै एक फल को गिरता हूँ और जहाँ यह फल रुकेगा वही पानी मिलेगा। यह फल लुढ़कते-२  इस गुफा के अन्दर चला गया जिसे बिंवर कहते है और वहां से नंदा देवी मूल नारायण के लिए पानी ले आयी थी. ऐसा पौराणिक कथाओ में पड़ने को मिलता है।

सरकार द्वारा भी शिखर को धार्मिक और पर्यटन के रूप में विकसित करने की कोशिश की जा रही है। निश्चित ही एक दिन शिखर पर्यटन की दृष्टि से देश में ही नहीं अपितु विश्व में अपनी पहचान बनाएगा।


आप शिखर के बारे में और अधिक जानकारी लेना चाहते हैं तो कृपया इस लिंक पर क्लिक करें।

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]ऐतिहासिक वीर खंभे : महोली ( कपकोट )

बागेश्वर जिले के कई दर्शनीय स्थल आज भी गुमनामी में पड़े हैं, इसकी वजह विभाग की उदासीनता है। महोली गांव के ऐतिहासिक बीरखंभों को ही लीजिए, यहां आज भी ऐतिहासिक सात बीरखंभे मौजूद हैं। सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित इस रमणीक स्थल से पूरा क्षेत्र दिखाई पड़ता है, इसके अलावा भी काफी कुछ यहां देखने लायक है, लेकिन प्रचार-प्रसार एवं संसाधनों के अभाव में यह स्थल वीराने में तब्दील होता जा रहा है।


कपकोट ब्लाक के सुदूरवर्ती गांव महोली के धौभिड़े में ऐतिहासिक सात बीरखंभे आज भी मौजूद हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह एक ही रात में बनाए गए थे, इसके अलावा यहां से गनेठिया नदी में जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी हैं। अभी तक ज्ञात बीरखंभों में कोई भी बीरखंभे मूल अधिष्ठान में विद्यमान नहीं है। एक मात्र धौभिड़े के बीरखंभे अपने मूल स्थान में खड़े हैं। इस स्थान पर दो चबूतरे भी विद्यमान हैं, साथ यह सातों खंभे अपने स्थान पर क्रमबद्ध हैं। इस जगह की लंबाई तथा चौड़ाई आठ बाई तीन मीटर है। बीरखंभे के बाम पार्श्व में तीन मीटर अर्द्धव्यास तथा 2.75 मीटर अर्द्धव्यास का दूसरा चबूतरा एक क्रम में निर्मित है। यह एक ऐसा रमणीक स्थान है कि यहां से पूरा क्षेत्र दिखता है। मोटर मार्ग से बमुश्किल 100 मीटर दूरी पर स्थित इन खंभों को आज भी पर्यटकों की दरकार है। बीरखंभे सामान्य अधिष्ठान आठ गुणा तीन माप में स्थापित बीरखंभों का पास क्रमश: 1.45 सेमी से दो मीटर तक है। चौड़ाई 32 से 45 सेमी तक है। आधा भाग अपने मूल अधिष्ठान में चतुष्कोणीय जहां अष्टकोणीय जिसे सामान्यतया एक लंबी मोटी पैनी रस्सी से बांटा गया है। अलंकृत रेखा रस्सियों में उकेरी गई हैं। इस बीम के दोनों ओर कण भाग में एक-एक दंडरूपा गोल रेखा बनाकर अलंकृत किया गया है। उर्ध्व भाग में चतुष्कोणीय तथा प्रत्येक भाग में अलग-अलग आकृतियां उकेरी गई हैं, जिसमें चर्तुभुजी तलवार धारी युवक द्विभुजीय समग्र मुद्रा में लंबा कोट पहना दोनों पार्श्वा के कटिभाग में रखा, एक पैनी दृष्टि में रखा हुआ प्रदर्शित है। चौथे भाग में द्विभुजा एक धावक का चतुष्कोणीय में उकेरा गया है। इसमें बनी सभी मानवाकृतियों के सिर में सिस्त्राण और कानों में कुंडल पहने सभी समस्त आभूषणों से अलंकृत है। शिखर भाग में एक रेखांकित पद से अमृत घट के ऊपर विद्यमान हैं। सतापथ्य कला के आधार पर यह 15 वींशती ईसा के प्रतीत होते हैं। सातों खंभों में एक ही कला उकेरी गई हैं। बीरखंभ शब्द दो शब्द से मिलकर बना है। बीर और खंभ अर्थात वीर स्तंभ रेगड़ स्तंभ के आलेख में लेख मिलता है, जिसमें शक 1316 और 1324 के साथ ही श्री राजा ज्ञान चंद शुभम प्रथम में राम मेहता द्वितीय में श्री मेहता थेबू को रौत मेहता ले करायो आदि भी अंकित है। डा. राम सिंह ने काली कुमाऊं के राग-भाग में इसका उल्लेख किया है। इसी तरह डा. यशोधर मठपाल भी इन्हीं बीरखंभों को कीर्ति स्तंभ मानते हैं। पुरातत्व विभाग के डा. चंद्र सिंह चौहान इन्हें बीरखंभ मानते हैं उन्होंने कहा कि विभाग ने इनके संरक्षण के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है, जबकि जर्मन अध्यता जोठाईमर इन्हें वीरशिवा मानते हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तरी भारत में कहीं-कहीं गोवर्द्धन स्तंभ वीर स्तंभ, दक्षिण भारत में नाडकल, राजस्थान में सती स्तंभ आदि नामों से जाना जाता है। विश्व में प्रचलित स्थानीय भाषा के अनुसार विभिन्न नामों से नामित बीरखम आज भी कुमाऊं में लगभग 100 से अधिक मिल चुके हैं। कुमाऊं में बिरखम नाम के गांव भी देखने को मिलते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]
शिवालय : कपकोट
रात दो बजे बाद जहां सुनाई देती है घंटी और शंखध्वनि की आवाज

तहसील मुख्यालय की ग्राम पंचायत कपकोट में सरयू नदी के तट पर स्थित भगवान शंकर का मंदिर तीन सौ साल पुराना है। जनश्रुति है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से जागरण करता है तो उसे मंदिर में ऊं नम: शिवाय की धुन के साथ घंटी तथा शंखध्वनि सुनाई देती है। मंदिर में सावन में हर सोमवार तथा महाशिवरात्रि पर मेला लगता है।
ग्राम पंचायत कपकोट में स्थापित भोलेनाथ मंदिर समूचे दानपुर घाटी का प्रमुख मंदिर है। पहले यह मंदिर बहुत छोटा था। अब ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर ने भव्य रूप ले लिया है। गांव के पूर्व प्रधान नारायण सिंह कपकोटी के अनुसार काला बाबा नाम के साधु ने 75 साल पहले मंदिर परिसर में पीपल का पौध रोपा जो अब विशालकाय रूप ले चुका है। मंदिर में लंबे समय तक श्री पंचनामा दशनाम जूना अखाड़ा बागेश्वर से जुड़ी दो माइयां रहती थी जो 15-20 बरस पहले ब्रह्म्मलीन हो गई हैं। मंदिर में इस समय पंचदशनाम जूना अखाड़ा बागेश्वर से जुड़े बद्रीगिरी महाराज रहते हैं। जब से उन्होंने यहां अपना आसन जमाया है तब से मंदिर परिक्षेत्र का विकास भी तेजी से हो रहा है। उनके प्रयासों से यहां अब हनुमान मंदिर भी बन गया है। ग्राम पंचायत, विधायक निधि, आकाश्वा कंपनी तथा मनरेगा के सहयोग से हनुमान जी का मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला, कथामंडप तथा सुरक्षा दीवार का निर्माण हो गया है। मंदिर परिसर में आंणू के कैलाश जोशी विछराल ने अपनी दिवंगत माता देवकी देवी की स्मृति में विशाल धर्मशाला का निर्माण किया है। मंदिर तथा अन्य कार्यों के लिए आणूं के ही स्व. देवी दत्त जोशी, स्व. लक्ष्मी दत्त जोशी तथा अवकाश प्राप्त शिक्षक गणेश दत्त जोशी ने अपनी भूमिदान की है। मंदिर कपकोट-कर्मी मार्ग से लगे होने से यहां जलार्पण करने वालों का हमेशा तांता लगा रहता है। गत तीन साल से मंदिर में हर मंगलवार को सुंदरकांड के अखंड पाठ का गायन होता है। शिव महापुराण तथा श्री राम चरित मानस का अखंड पाठ का भी आयोजन होता रहता है। लोगों का विश्वास है कि जो भी भक्त मंदिर में सच्चे मन से शिवरूद्री का पाठ कर 108 लोटा जल चढ़ाता है भोलेनाथ प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।

श्रोत : अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]भगवती माता मंदिर : पोथिंग

उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद से करीब 30  कि०मी० आगे माँ नंदा भगवती का भव्य मंदिर पोथिंग नामक गाँव में स्थित है। जो कपकोट क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह मंदिर क्षेत्रवासियों को ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोगों को भी अपनी भव्यता एवं आस्था से अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद मास यानि अगस्त-सितम्बर में माँ नंदा भगवती की पूजा की जाती है। जिसमें दूर-दूर से भक्तजन इस पूजा में सम्मिलित होने के लिए आते हैं। जिसमें विशाल जन-समुदाय एकत्रित होता है।  अपनी भव्यता और विशालता के कारण अब इस पूजा ने एक मेले का रूप ले लिया है जिसे 'पोथिंग का मेला' नाम से जाना जाता है। यहाँ का मंदिर भले ही नवीन शैली में बना हो लेकिन यहाँ हमें प्राचीन काल से स्थापित मंदिर के अन्दर रखे गए शिलाओं के दर्शन होते हैं। मंदिर के आँगन में दो पत्थर के गोले हैं जिन्हें भक्त लोग अपने उठाने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि जो भक्त सच्चे दिल से माँ के दरबार में आकर उठाने का प्रयत्न करता है वह इन गोलों को बड़े ही आसानी से उठा लेता है।





माँ भगवती का यह मंदिर पोथिंग गाँव के मध्य में स्थापित है। जहाँ  सिलंग के वृक्षों के फूलों की खुशबू और हरियाली मानव मन को मोह लेती है। यहाँ पर आकर भक्तजन सुकून का अनुभव करते हैं और हर वर्ष यहाँ माँ के दरबार में आकर माँ के दर्शन करते हैं।  यहाँ की महिमा,भव्यता और लोगों की माँ के प्रति आस्था को देखते हुए इस क्षेत्र को पर्यटन से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह स्थल सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुडा हुआ है। मंदिर में अनेक धर्मशालाएं बनी हुयी हैं और यहाँ रहने की अच्छी व्यवस्था है।
इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।  पोथिंग (कपकोट) से लगभग 05  किलोमीटर की दूरी पर सुकुंडा नामक झील है। इस झील को भी उत्तराखंड पर्यटन विभाग द्वारा विकसित करने की कोशिश की जा रही है। भगवती मंदिर पोथिंग के पूर्व दिशा में चिरपतकोट की पहाड़ी में श्री गुरु गुसाईं देवता का एक मंदिर है और पश्चिम में भी पोखरी नामक स्थान में यही देवता विराजमान हैं। इन पवित्र धार्मिक स्थलों को यदि सरकार का सहयोग मिला तो अवश्य ही उत्तराखंड के पर्यटन में काफी इजाफा हो सकता है।


आप पोथिंग गाँव में स्थित माँ भगवती मंदिर के बारे में और अधिक रोचक जानकारी चाहते हैं तो कृपया इस लिंक पर क्लिककरें।

पोथिंग गाँव में होने वाले नवरात्रियों की कुछ तस्वीरें देखना चाहते हैं तो कृपया इस लिंक पर क्लिक करें।

     



विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]
बैजनाथ धाम : यहीं हुआ था भगवान शिव और पार्वती का ब्याह

बागेश्वर जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक स्थल है बैजनाथ धाम। यह मंदिर बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील के अंतर्गत आता है और यह मंदिर गरुड़ से 02 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के किनारे पर स्थित है। बैजनाथ धाम एक ऐसा शिव धाम है। जहां शिव और पार्वती एक साथ विराजमान हैं। कहा जाता है कि शिव और पार्वती का यही विवाह हुआ था। जो व्यक्ति सच्चे मन से यहां भगवान शिव और पार्वती के दर्शन करने आता है। उसकी मन्नत निश्चित तौर पर पूरी होती है।



बैजनाथ मंदिर समूह के पास मिले शिलालेखों से स्पष्ट होता है कि बैजनाथ का नाम कत्यूरी शासनकाल में कार्तिकेयपुर था। वर्ष 1901 तक बैजनाथ छोटा सा गांव था। 12वीं सदी के आसपास कार्तिकेयपुर का नाम बैजनाथ पड़ा। बैजनाथ मंदिर समूह समुद्र सतह से 1130 मीटर की ऊंचाई पर गोमती नदी के किनारे स्थित है।
नागर शैली निर्मित यह प्राचीन मंदिर बैजनाथ और बैद्यनाथ नाम से विख्यात है। जिसमें मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। अन्य 17 गौड़ मंदिरों में केदारेश्वर, लक्ष्मीनारायण, तथा ब्राहगणी देवी प्रमुख है। मुख्य मंदिर का तल विन्यास पंचस्थ है, जिसके अग्र भाग में मंडप निर्मित है। मंदिर का शिखर पूर्व में नष्ट हो गया है। मंदिर समूह का प्रमुख आक र्षण सिस्ट से निर्मित देवी पार्वती की प्रतिमा है। जो अन्य 26 लघु मूर्तियों से सुशोभित है। वास्तु शैली के आधार पर मंदिर समूह की संरचना संभवत: 9वीं से 12वीं सदी के मध्य प्राचीन कार्तिकेयपुरम के कत्यूरी शासकों द्वारा की गई है। मंदिर में दर्शन को हर साल सैकड़ों सैलानी आते हैं। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में विराजमान पार्वती की आदम कद मूर्ति जब सुबह सफाई होती है। आदमी उसमें अपनी शक्ल दर्पण की तरह देख सकता है। दीगर है कि यहां शिव और पार्वती की पूजा एक साथ होती है।

वर्षभर यहाँ पर्यटकों का आवागमन रहता है। भारत का स्विट्जर्लैंड कहा जाने वाला कौसानी बैजनाथ धाम के समीप है। कौसानी आने वाले पर्यटक बैजनाथ धाम में दर्शन हेतु अवश्य आते हैं। बैजनाथ धाम एक घाटी में होते हुए भी यहाँ से हिमाच्छादित नागाधिराज के दर्शन किये जा सकते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया

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[justify]सुकुण्डा (सुकुण्ड) SUKUNDA : जिसका निर्माण बलशाली भीम के द्वारा किया गया था।
 
चारों ओर से बांज, बुरांश, काफल इत्यादि के वृक्षों से घिरा एक कुण्ड जो सुकुण्ड या सुकुण्डा नाम से जाना जाता है; उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से लगभग 38 किलोमीटर उत्तर में पोथिंग नामक गाँव के समीप स्थित है।  सुकुण्डा  इस गाँव के उत्तर पश्चिम में लगभग 6000  फीट की ऊंचाई पर एक पर्वत की चोटी पर स्थित है।





सुकुण्ड या सुकुण्डा अपने आप ही अपने नाम का अर्थ बता देता है फिर भी मैं अल्प शब्दों में सुकुण्डा के बारे में बताना चाहूँगा। सुकुण्ड दो शब्दों 'सु' और 'कुण्ड' से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है एक 'सुन्दर कुण्ड'। वास्तव में  यह एक सुन्दर कुण्ड ही है। लोगों में मान्यता है कि हिमालय में निवास करने वाले सभी देवी-देवता यहाँ हर रोज प्रातःकाल स्नान हेतु आते हैं। चारों तरफ से जंगलों से घिरा होने पर भी इस कुण्ड में कहीं गन्दगी नहीं दिखाई देती। लोग कहते हैं कि जब इस कुण्ड में पेड़ों की कोई भी सूखी पत्ती गिर जाती है तो यहाँ पर निवास करने वाली पक्षियां इन पत्तियों को अपनी चोंच द्वारा बाहर निकाल देती हैं।

जन-श्रुतियों के अनुसार इस कुण्ड का निर्माण महाभारत काल में बलशाली भीम द्वारा किया गया था। कहते हैं जब पांडव अज्ञातवास के समय यहाँ से गुजर रहे थे तो उन्हें यहाँ काफी प्यास लग गयी, दूर तक कहीं भी पानी का नामोनिशान नहीं था। तभी भीम ने अपनी गदा से इस चोटी पर प्रहार किया और एक कुण्ड (जलाशय) का निर्माण कर डाला। इसी कुण्ड से प्यासे पाण्डवों ने अपनी प्यास बुझाई थी। इसी कारण आज भी इस कुण्ड को धार्मिक दृष्टि से देखा जाता है। इस कुण्ड में स्नान करना, कुछ छेड़-छाड़ करना सख्त मना है।

जहाँ यह कुण्ड स्थित है वहां का सम्पूर्ण क्षेत्र सुकुण्डा कहलाता है। सुकुण्डा एक पहाडी की चोटी पर स्थित होने के कारण यहाँ से हिमालय की सम्पूर्ण पर्वत श्रृंखलाओं का दर्शन किये जा सकते हैं। भारत का स्विट्जर्लैंड कहा जाने वाला प्रसिद्द पर्यटक स्थल कौसानी और सुकुण्डा की ऊंचाई लगभग बराबर है। सुकुण्डा अभी तो शैलानियों की पहुँच से तो दूर है लेकिन वर्तमान में सुकुण्डा को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने भरपूर कोशिश की जा रही है। कपकोट और पोथिंग गाँव से सुकुण्डा को सड़क मार्ग द्वारा जोड़ने की योजना है। सरकार इस स्थल को विकसित करने का प्रयास करे तो निश्चित ही सुकुण्डा एक प्रसिद्द पर्यटक स्थल के रूप में उभरकर विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाएगा।

धन्यवाद

विनोद सिंह गढ़िया




'SUKUNDA' Reservoir at Pothing (Bagehswar) Uttarakhand



Snowfall at Tourist Place Sukunda Bageshwar


 

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