Author Topic: Untracked Tourist Spot In Uttarakhand - अविदित पर्यटक स्थल  (Read 62330 times)

पंकज सिंह महर

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Re: UNKNOWN & UNTRACKED TOURIST SPOTS OF UK
« Reply #10 on: April 11, 2008, 03:22:54 PM »
lakhudiyar


पंकज सिंह महर

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'ध्वज' पिथौरागढ़ का ध्वज है। यह अत्यन्त सौन्दर्य वाला स्थल है। यहाँ से हिमालय का दृश्य इतना आकर्षक है कि पर्यटन एवं प्रकृति-प्रेमी केवल यहाँ से हिमालय के अद्भुत सुषमा के दर्शन हेतु दूर-दूर से आते है। हिमालय का हिमरुपी चाँदी का-सा भव्य सुकुट दर्शकों को आपार शान्ति देता है। पिथौरागढ़ धारचूला मोटर मार्ग के १८ वें किलोमीटर (सतगढ़ से लगभग २-३ किलोमीटर की पैदल चढ़ाई के बाद) पर समुद्रतल से २,१०० मीटर की ऊँचाई पर 'ध्वज' स्थित है। प्रकृति के अत्यन्त लुभावने स्थलों में ध्वज की गिनती की जाती है।

पंकज सिंह महर

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एबट माउंट, चम्पावत
« Reply #12 on: April 24, 2008, 05:03:59 PM »
एबट माउंट - पिथौरागढ़-टनकपुर मोटर मार्ग पर लोहाघाट से पहले एबट माउंट का दर्शनीय स्थल आता है। यह स्थल समुद्रतल से २००१ मीटर ऊँचाई पर स्थित है। लोहाघाट की सीमा में पड़ने वाला यह स्थान कुमाऊँ के अत्यन्त रमणीय स्थलों में गिना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता इतनी आकर्षक है कि कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने यहाँ रहने के लिए सुन्दर-सुन्दर बंगले बनवा लिए हैं। पर्वत चोटीके आस-पास ये सभी बंगले आधुनिक सुविधाओं को लेकर बनाये गये हैं। सैलानी 'एवट माउंट’ पर जाकर हिमालय के विभिन्न अंचलों के आकर्षक दृश्य देखते हैं। नीचे घाटी की सुषमा भी यहाँ से साफ दिखाई देती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: UNKNOWN & UNTRACKED TOURIST SPOTS OF UK
« Reply #13 on: April 24, 2008, 05:06:28 PM »
Gauri Udiyar

This is situated 8 kms. from Bageswar. A large cave, measuring 20 x 95 sq. mts. is situated here, which houses idols of Lord Shiva.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: UNKNOWN & UNTRACKED TOURIST SPOTS OF UK
« Reply #14 on: April 24, 2008, 05:06:50 PM »
Shri Haru Temple

Another important temple, the Shri Haru temple, is situated at a distance of about 5 kms. from Bageswar. The devotees believe that prayers for wish fulfilment here never go in vain. Every year, a large fair is organised on the Vijaya Dashmi day following the Navratras.

पंकज सिंह महर

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        मनेला ग्लेशियर से बना हुआ आकर्षक और मनोहरी मैदान है, यहीं पर काली और कुटी नदियों का संगम होता है। यह अत्यन्त प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में माना जाता है। मैदान के किनारे पहाड़ की जड़ पर व्यास मुनी का मंदिर है। इस मंदिर के ऊपर एक महादेव का प्रसिद्ध मंदिर है। व्यास घाटी व्यास मुनि के नाम से जानी जाती है। सम्पूर्ण शौका जनजाति महर्षि वेदव्यास को अपना पूर्वज मानती है। इस क्षेत्र में वेदव्यास की पूजा होती है।
       मनेला में महर्षि व्यास जी के मंदिर के समक्ष रक्षावंधन के पुनीत पर्व पर दो दिन का मेला लगता है। मेला शुरु होने से पहले रात्रि - जागरण, कीर्तन, भजन, खेलकूद और लोकनृत्य गीतों का आयोजन शुरु हो जाता है। पूर्णमासी के दिन मुख्य मेला लगता है, दूर-दूर के लोग मेले में आते हैं, व्यास क्षेत्र का यह तो प्रमुख मेला है, जिसमें प्रत्येक व्यास भक्त उपस्थित होना अपना सौभाग्य समझता है।
      
     यहाँ की एक विशेषता और है, व्यासमंदिर के १५० गज की दूरी पर पश्चिम-उत्तर की दिशा में एक छीटी सी गुफा है, जिसमें ९ साँप एक ही साथ रहते हैं। ये सफेद, काले और सफेद-काले मिश्रित रंग के हैं। ये धूप सेंकने के लिए एक साथ बाहर आते हैं, यहाँ के लोग इन्हें दूध पिलाकर शिव के गण के रुप में पूजते हैं। ये कभी किसी का नुकसान नहीं करते बल्कि मनौती करनेवाले लोगों को बाहर निकलकर आशीर्वाद देते हैं। यहाँ सामूहिक पूजा होती है। इस मेले में व्यासपट्टी के आकर्षण लोकनृत्यों का प्रदर्शन होता है, जिन नृत्यों तो देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

पंकज सिंह महर

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लिथलाकोट : पिथौरागढ़
« Reply #16 on: April 24, 2008, 05:12:06 PM »
लिथलाकोट (तिलथिन) - पिथौरागढ़ की चौंदास पट्टी के आबाद स्थानों में लिथलाकोट सबसे ऊँचे स्थानों पर स्थित है। चौंदास क्षेत्र के इष्टदेव 'स्यंसै' इसी लिथलाकोट की चोटी पर पूजे जाते हैं। इस चोटी के एक ओर मंदिर है। शौका लोगों का मानना है कि उनके पूर्वजों का निवास स्थान यहीं था। लिथलाकोट चोटी के चारों तरफ नीचे ढ़लानों पर चौदास के सारे गाँव बसे हैं।
       पहाड़ के पीछे एक प्राचीन राजमहल के खण्डहर आज भी दिखाई देते हैं। यह स्थान अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के रंग-बिरंगे फूल, मखमली घास और बाँस और देवदार के वृक्ष इतने सुन्दर हैं कि देश-विदेश के सैकड़ों पर्यटक यहाँ की सुन्दरता देखने लिथलाकोट पहुँचते हैं।

पंकज सिंह महर

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कुटी - धारचूला तहसील का कुटी आखरी गाँव है, ५,४४५ मीटर की ऊँचाई पर यह गाँव स्थित है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है। पिथौरागढ़ की लोककथाओं में इस स्थान को कैलास धाम माना गया है।
       यह स्थान किसी शौका सामन्त राजा की राजधानी भी रहा है। यहाँ आज भी खसकोट के खण्डहर हैं, जिससे ज्ञात होता है कि यहाँ पहले किसी न किसी प्रभावशाली राजा का किला रहा होगा। कुटी में एक अद्भुत पत्थर है, जिसके बीच में एक १.५ फीट व्यास का विवर (छेद) है, लोगों का यह मानना है कि जो व्यक्ति इस छेद को पार कर जाए वही धर्मात्मा है। जो पार न कर सके उसे पापी व अधर्मी समझा जाता है। ग्लेशियर के द्वारा निर्मित समतल पठार पर बसा हुआ कुटी गाँव सम्पूर्ण पिथौरागढ़ का आकर्षण क्षेत्र है। इसके चारों ओर हिमाच्छादित पहाड़ दिखाई पड़ता है।

पंकज सिंह महर

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भुवाली से भीमताल की ओर कुछ दूर चलने पर बायीं तरफ का रास्ता रामगढ़ की ओर मुड़ जाता है।  यह मार्ग सुन्दर है।  इस भुवाली - मुक्तेश्वर मोटर-मार्ग कहते हैं।  कुछ ही देर में २३०० मीटर की ऊँचाई वाले 'गागर' नामक स्थान पर जब यात्रीगण पहुँचते हैं तो उन्हें हिमालय के दिव्य दर्शन होते हैं। 'गागर' नामक पर्वत क्षेत्र में 'गर्गाचार्य' ने तपस्या की थी, इसीलिए इस स्थान का नाम 'गर्गाचार्य' से अपभ्रंश होकर 'गागर' हो गया।  'गागर' की इस चोटी पर गर्गेश्वर महादेव का एक पुराना मन्दिर है।  'शिवरात्रि' के दिन यहाँ पर शिवभक्तों का एक विशाल मेला लगता है।
'गागर' से मल्ला रामगढ़ केवल ३ कि.मी. की दूरी पर समुद्रतल से १७८९ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।  नैनीताल से केवल २५ कि.मी. की दूरी पर रामगढ़ के फलों का यह अनोखा क्षेत्र बसा हुआ है।  कुमाऊँ क्षेत्र में सबसे अधिक फलों का उत्पादन भुवाली -     रामगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में होता है।  इस क्षेत्र में अनेक प्रकार के फल पाये जाते हैं।  बर्फ पड़ने के बाद सबसे पहले ग्रीन स्वीट सेब और सबसे बाद में पकने वाला हरा पिछौला सेब होता है।  इसके अलावा इस क्षेत्र में डिलिशियस, गोल्डन किंग, फैनी और जोनाथन जाति के श्रेष्ठ वर्ग के सेब भी होते हैं।  आडू यहाँ का सर्वोत्तम फल है।  तोतापरी, हिल्सअर्ली और गौला कि का आडू यहाँ बहुत पैदा किया जाता है।  इसी तरह खुमानियों की भी मोकपार्क व गौला कि बेहतर ढ़ंग से पैदा की जाती है।  पुलम तो यहाँ का विशेष फल हो गया है।  ग्रीन गोज जाति के पुलम यहाँ बहुत पैदा किया जाते हैं।
       रामगढ़, जहाँ अपने फलों के लिए विख्यात है, वहाँ यह अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय का विराट सौन्दर्य यहां से साफ-साफ दिखाई देता है।  रामगढ़ की पर्वत चोटी पर जो बंगला है, उसी में एक बार विश्वकवि रवीन्द्र नाथ टैगोर आकर ठहरे थे।  उन्होंने यहाँ से जो हिमालय का दृश्य देका तो मुग्ध हो गए और कई दिनों तक हिमालय के दर्शन इृसी स्थान पर बैठकर करते रहे।  उनकी याद में बंगला आज भी 'टैगोर टॉप' के नाम से जाना जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को भी रामगढ़ बहुत पसन्द था।  कहते हैं आचार्य नरेन्द्रदेव ने बी अपने 'बौद्ध दर्शन' नामक विख्यात ग्रन्थ को अन्तिम रुप यहीं आकर दिया था।  साहित्यकारों को यह स्थान सदैव अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।  स्व. महादेवी वर्मा, जो आधुनिक हिन्दी साहित्य की मीरा कहलाती हैं, को तो रामगढ़ भाया कि वे सदैव ग्रीष्म ॠतु में यहीं आकर रहती थीं।  उन्होंने अपना एक छोटा सा मकान भी यहाँ बनवा लिया था।  आज भी यह भवन रामगढ़-मुक्तेश्वर मोटर मार्ग के बायीं ओर बस स्टेशन के पीछे वाली पहाड़ी पर वृक्षों के बीच देखा जा सकता है।  जीवन के अन्तिम दिनों में वे पहाड़ पर नहीं आ सकती थीं।  अत: उन्होंने मृत्यु से कुछ पहले इस मकान को बेचा था।  परन्तु उनकी आत्मा सदैव इस अंचल में आने के लिए सदैव तत्पर रहती थी।   ऐसे ही अनेक ज्ञात और अज्ञात साहित्य - प्रेमी हैं, जिन्हें रामगढ़ प्यारा लगा था और बहुत से ऐसे प्रकृति - प्रेमी हैं जो बिना नाम बताए और बिना अपना परिचय दिए भी इन पहाड़ियों में विचरम करते रहते हैं।

पंकज सिंह महर

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'रानीबाग' से पहले इस स्थान का नाम चित्रशिला था। कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। रुहेला सरदार उसपर आसक्त था। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही रुहेलों की सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। रुहेलों ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में#ं ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - नानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने गात पर रुहेलों का हाथ नहीं लगन् दिया था। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।

 

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