Author Topic: Untracked Tourist Spot In Uttarakhand - अविदित पर्यटक स्थल  (Read 62338 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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SatpuliIt is located on the banks of River Purvi Nayar Ghati. It is located between Kotdwara and Pauri Garhwal. It also connects to Banghat, a small market through the National Highway 119. It is a center location of the district Pauri Garhwal. It is 52 km from Pauri and 54 km from Kotdwara.

It is said that Satpuli got its name from the fact that it has seven brideges (sat-pul) on its way from Kotdwara.About fifty years ago this place used to be a farmland. However there were some little hut-like shops at the other bank of river.After the place witnessed a great flood in which many people died and some G.M.O.U. Ltd. owned buses swept away, shopkeepers resettled at the present location. At the hydle power station there has been erected a monument in the memory of deceased people in this biggest flood of nayar valley. Once upon a time it was known for its Macchi Bhat (Fish curry and Rice). It was famous stop for the travelers to rest and have their lunch and dinner. Satpuli is now growing and expanded very much as compared to the other villages nearby. It is prime place for the shopping. Villagers from near by villages come to Satpuli for their FMCG. It has three banks including SBI that is the finance driven body in the village. Ex army persons and old people used to get their pension from here only.




पंकज सिंह महर

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वाह नेगी जी आपने तो सतपुली के मच्छी-भात की याद ताजा कर दी। दुगड्डा में चन्द्र शेखर आजाद शष्त्र प्रशिक्षण के लिये भी आये थे, वहां पर उनका एक स्मारक भी है। इस जानकारी के लिये +१ कर्मा।

सत्यदेव सिंह नेगी

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पंकज की अपने सराहना की इसके लिए आपका धन्यबाद

Devbhoomi,Uttarakhand

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कण्वाश्रम  कोटद्वार उत्तराखंड


गढ़वाल जनपद में कोटद्वार से १४ किमी दूर शिवालिक पर्वत श्रेणी के पाद प्रदेश में हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्तिथ कण्वाश्रम ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दिर्ष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है!

पुन्य सलिला मालिन के तट पर स्तिथ यह आश्रम चक्रवर्ती सम्राट भरत (जिनके नाम पर भारतवर्ष का नाम रखा गया है ) की शैशव किर्डास्थली  दुष्यंत शकुन्तला की प्रणय स्थली,मह्रिषी कण्व,गोतम और विश्वामित्र की तपोभूमि तथा कविकुल शिरोमणि महकवि कालिदास के महाकाब्य "अभिज्ञान शाकुंतलम"  का प्रेरणा स्रोत है !

पुरातत्वा वेताओं के अनुसार इस क्षेत्र में मालिनी -सभ्यता के प्रतीक स्वरूप १५०० साल पूर्व भाबी मंदिर एवं आश्रम थे !महाकवि कालिदास इसे किसलय प्रदेश के रूप में ब्यक्त करते हैं अभिज्ञान शाकुनतम में कण्वाश्रम का परिचय इस प्रकार है "एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम " धार्मिक तथा तिर्थ्तन की दिर्ष्टि से कण्वाश्रम की गौरभशाली पौराणिक गाथा तथा मालिन का गंगा सदिर्स्य महत्व रहा है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यहां थी कभी बहार आज वीरानी



कोटद्वार (गढ़वाल)। महर्षि कण्व की तपस्थली 'कण्वाश्रम' उपेक्षा के चलते भले ही खंडहर में तब्दील हो रहा हो, लेकिन एक समय वह भी था जब यहां 'बहार' थी। 'कण्वाश्रम' की ऐतिहासिक महत्ता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि प्रख्यात निर्माता-निर्देशक वी.शांताराम अपनी फिल्म 'स्त्री' का एक दृश्य फिल्माने के लिए मायानगरी से कण्वाश्रम पहुंचे थे।

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद प्रदेश में वीडियो एलबमों की बाढ़ सी आ गई, लेकिन कुछेक को छोड़ दें तो बाकी में संस्कृति के नाम पर अमूमन फूहड़ता ही परोसी जा रही है। यह जरूर है कि इन एलबमों की शूटिंग के लिए कई लोकेशनों को चयन किया जाता है, लेकिन तब एलबम के निर्माता/निर्देशक उस ऐतिहासिक स्थल को भूल जाते हैं, जिसने भारतीय संस्कृति को पहचान दी। कण्वाश्रम को भारतीय संस्कृति का जन्मदाता माना जाता है। पुराणों में वर्णित है कि इसी स्थान पर महर्षि कण्व अपने हजारों शिष्यों को संस्कारित किया करते थे। यहीं पचास के दशक में प्रख्यात निर्माता/निर्देशक वी.शांताराम ने अपनी फिल्म 'स्त्री' का एक दृश्य फिल्माया था। दरअसल, स्थानीय नगर पालिका के प्रथम अध्यक्ष ललिता प्रसाद नैथानी कण्वाश्रम को राष्ट्रीय धरोहर बनाने के लिए गंभीर प्रयासों में जुटे हुए थे। देश के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के करीब श्री नैथानी उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा.संपूर्णानंद के भी निकटस्थ थे। उन्हीं के प्रयासों का ही परिणाम था कि वर्ष 1954 की बसंत पंचमी पर डा.संपूर्णानंद कण्वाश्रम पहुंचे व उन्होंने कण्वाश्रम में राष्ट्रीय स्मारक की नींव रखी। बताते हैं कि बाद में लाल बहादुर शास्त्री व डा.संपूर्णानंद के आग्रह पर प्रख्यात निर्माता-निर्देशक वी.शांताराम ने अपनी फिल्म 'स्त्री' का एक दृश्य कण्वाश्रम में फिल्माया। 1961 में रिलीज हुई 'स्त्री' में वी.शांताराम स्वयं अभिनेता की भूमिका में थे, जबकि फिल्म में उनकी तीसरी पत्‍‌नी साधना बतौर नायिका थीं। फिल्म में उनकी पुत्री चारुशीला शांताराम, राजश्री व भगवान भी अलग-अलग भूमिकाओं में थे। अपने पिता के साथ फिल्म की शूटिंग देखने पहुंचे स्व.नैथानी के पुत्र सुधीर नैथानी ने बताया कि 'कण्वाश्रम' में शूटिंग देखने के लिए आसपास के क्षेत्रों से भारी भीड़ उमड़ी थी। उन्होंने बताया कि दस मिनट के इस दृश्य में स्मारक के समीप अभिनेत्री साधना पर एक नृत्य दृश्य फिल्माया गया था।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हुस्न पहाड़ों का, क्या कहना तालों का

नई टिहरी गढ़वाल। टिहरी जनपद के भिलंगना प्रखंड में प्राकृतिक तालों का भंडार है। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण इन तालों का नजारा देखते ही बनता है, लेकिन देखरेख व प्रचार -प्रसार के अभाव में यह उपेक्षित पड़े हैं। यदि इन्हें संरक्षण मिले तो यहां पर पर्यटन की अपार संभावनाएं बन सकती हैं।

आज सरकार भले ही पर्यटक स्थलों को विकसित कर इन्हें बढ़ावा देने की बात कर रही है, लेकिन जनपद में पर्यटक स्थलों का भंडार होने के बावजूद इन्हें पहचान नहीं मिल पा रही है। भिलंगना प्रखंड बड़े-बड़े प्राकृतिक ताल जो दिखने में अतिरमणीय व मन को सुकून देने वाले हैं जो आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। इनकी सुंदरता अपने में सिमट कर रह गई है। प्रखंड के प्रसिद्ध सहस्त्रताल जहां पर कई तालों का समूह है का सौंदर्य देखते ही बनता है। विकट मार्ग पर कई किमी की पैदल यात्रा कर यहां तक पहुंचा जाता है। इसके अलावा महासरताल, लिंग ताल जरालताल, मातरी ताल, मंच्याड़ी ताल, द्रोपदी ताल सहित कई ताल मौजूद हैं।

प्राकृतिक झीलों तक पहुंचने के लिए तो अभी तक न तो कोई सुगम मार्ग बनाया गया है और न ही वहां पर सुविधाएं मौजूद हैं। कोई पर्यटक इन स्थलों तक पहुंचता भी है तो उन्हें कई परेशानियों से जूझना पड़ता है। हालांकि क्षेत्रीय लोगों द्वारा इनके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए यहां पर यात्रा निकालने के साथ ही मेलों का आयोजन भी किया जाता है, लेकिन सरकारी स्तर पर इन्हें अभी तक कोई प्रोत्साहन नहीं मिल पाया है। इन प्राकृतिक तालाबों को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाता है तो निश्चित रूप से भिलंगना प्रखंड पर्यटन के रूप में प्रसिद्ध होगा, साथ ही यहां पर रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। लोगों का कहना है सरकार को इन्हें विकसित करने के लिए शीघ्र ही ठोस कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। प्रकृति प्रेमी डा. एसडी जोशी बताते हैं कि इन तालों को यदि विकसित किया जाता है तो यहां पर पर्यटकों की आमद बढ़ेगी साथ ही स्थानीय लोगों को भी इसका फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इन प्राकृतिक झीलों को उत्ताराखंड के मानचित्रों पर दर्शाया जाना चाहिए ताकि पर्यटकों का रूझान इस ओर बढ़ सके।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6410166.html

हेम पन्त

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भीमताल से 4-5 किमी की दुरी पर स्थित नौकुचियाताल एक बहुत रमणीक स्थल है. नैनीताल की भीड़भाड़ से बचने वाले पर्यटक अक्सर नौकुचियाताल आकर सुकून के कुछ पल अवश्य गुजारते हैं.
 

हेम पन्त

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नौकुचियाताल
« Reply #108 on: May 20, 2010, 03:15:40 PM »
नौकुचियाताल के नौ कूचे (कोने) हैं. इस ताल की खूबी यह है कि किसी भी जगह खड़े होने पर सभी नौ कोने एकसाथ नहीं दिखते हैं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चमोली के सिम्बे बुग्याल में स्थित 'सप्तकुंड' किसी अचरज से कम नहीं
चमोली के सिम्बे बुग्याल में स्थित 'सप्तकुंड' किसी   अचरज से कम नहीं। यहां स्थित सात कुण्डों में से छह ठंडे और एक गर्म पानी   का कुण्ड है। करीब पंद्रह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सप्तकुंड पहुंचने के   लिए एशिया के सबसे कठिन पैदल ट्रैक को पार करना पड़ता है। तमाम विशेषताएं   होने के बावजूद इस खूबसूरत जगह को पर्यटन के लिहाज से विकसित नहीं किया गया   है।    सप्तकुंड पहुंचने के लिए जितना दुर्गम रास्ता तय करना पड़ता है, वहां   पहुंचकर अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों को उतनी ही आनन्द की अनुभूति   कराता है। सप्तकुंड पहुंचने के लिए चमोली जिले के दशोली ब्लाक के निजमुला   नामक स्थान से पैदल सफर शुरू होता है। 28 किलोमीटर पैदल चलने के बाद सुरम्य   घाटियों के बीच स्थित ईराणी गांव पहुंचा जाता है। फिर शुरू होता है दुर्गम   पहाडि़यों का सफर। ईराणी से सिम्बे बुग्याल होते हुए लगभग 10 किलोमीटर का   पैदल सफर सैलानियों को सप्तकुंड पहुंचा देता है। खास बात यह है कि सिम्बे   बुग्याल की खूबसूरती राहगीर को थकान महसूस नहीं होने देती। यहां खिले   विभिन्न प्रजातियों के हजारों फूल 'वैली आफ फ्लावर्स' के वजूद को भी चुनौती   देते प्रतीत होते हैं। इतना ही नहीं इस बुग्याल में हरी घास चर रहे दुर्लभ   प्रजाति  के जंगली जानवर पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं।   सिम्बे बुग्याल पार करते ही ऊंची चोटी पर आसपास स्थित पानी के सात कुण्ड   (बड़े तालाब) दिखाई देने लगते हैं, जिन्हें सप्तकुंड के नाम से जाना जाता   है। ये सभी कुंड आधा किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। इनमें से छह कुण्डों   का पानी इतना ठंडा है कि उसमें एक डुबकी लगाना भी मुश्किल हो जाता है,   जबकि एक कुंड का पानी इतना गरम है कि उसमें नहाने से पर्यटकों की थकान दूर   हो जाती है। सप्तकुंड का महत्व पर्यटन के लिहाज से ही नहीं बल्कि धार्मिक   दृष्टि से भी है। हर वर्ष नन्दा अष्टमी को ईराणी के ग्रामीण वहां पहुंचकर   नन्दा देवी की आराधना करते हैं।
(Dainik Jagran)

 

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