हल्द्वानी कुदरत के कहर से थर्राया सुमगढ़ तो महज बानगी है। उच्च हिमालयी जोन में सुमगढ़ सरीखे तमाम गांवों को अपने में समेटे पूरी कपकोट तहसील भू-विज्ञानियों व शोधकर्ताओं की नजर में बेहद संवेदनशील है। यहां के गगनचुंबी व संकरे पहाड़ों से भ्रंश व फॉल्ट के गुजरने की वजह से बादल फटते रहते हैं। मगर अफसोस कि वैज्ञानिकों के चेताने के बावजूद आपदा प्रबंधन मंत्रालय गहरी नींद सोया रहा। इसकी परिणति सुमगढ़ में 18 बच्चों की अकाल मौत के रूप में सामने आई। दरअसल, कपकोट, बागेश्वर, भारत-तिब्बत सीमा समेत मुनस्यारी, धारचूला आदि तमाम क्षेत्र भूस्खलन व बादल फटने की दृष्टि से संवेदनशील श्रेणी में आते हैं। जहां तक बागेश्वर जिले का सवाल है तो सुमगढ़, सालिंग, सालिंग उडियार, सुडिंग, काफड़ी कमेड़ा ही नहीं बल्कि पूरी कपकोट तहसील बेहद संवेदनशील है। कपकोट तहसील के डेंजर जोन में शोध कर चुके कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. बहादुर सिंह कोटलिया कहते हैं कि सुमगढ़, सौंग,बघर, कर्मी, सालिंग आदि में मुख्य सेंट्रल थ्रस्ट, मुनस्यारी थ्रस्ट व बेरीनाग थ्रस्ट में शामिल हैं। धारचूला के बजांग फाल्ट की मानिंद कपकोट में मेन थ्रस्ट बेहद सक्रिय है और इसमें भूगर्भीय हलचल होती रहती है। इन परिस्थितियों में बादल फटने के हालात बनने लगें तो यह क्षेत्र अति संवेदनशील श्रेणी में आ जाता है। ये परिस्थितियां कपकोट क्षेत्र में बन भी रही हैं। यहां की ऊंची व संकरी पहाडि़यां ही बादल फटने के लिए जिम्मेदार हैं। चूंकि ऐसी पर्वतमालाओं से थ्रस्ट व फॉल्ट गुजरते हैं लिहाजा ऊंचे व संकरे पहाड़ों के बीच बादल आने से उनका घनत्व बढ़ जाता है। ऐसे में बारिश होने पर बानी सामान्य तौर पर या मूसलाधार रूप में नहीं बल्कि झरने के रूप में गिरता है, जो तबाही का सबब बन जाता है। ऐसा ही कुछ सुमगढ़ के साथ ही सालिंग व सालिंग उडियार आदि गांवों में भी हुआ। हालांकि जान-माल का नुकसान सुमगढ़ में ज्यादा हुआ।