Author Topic: Agriculture,in Uttarakhand,उत्तराखण्ड में कृषि,कृषि सम्बन्धी समाचार  (Read 44268 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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कृषि उद्यानिकी पद्धति

पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में अपनायी जाने वाली यह एक प्रमुख पद्धति है। उद्यानिकी फसलों से किसानों को अच्छी आय प्राप्त होती है। सेब, आडू, अखरोट, नाशपाती, बादाम आदि प्रमुख उद्यानिकी फसलें हैं।
 इन वृक्षों के बीच में नकदी फसलों के रूप में मटर, गोभी, टमाटर, मिर्च, बीन तथा अदरक आदि फसलों को उगाया जा सकता है। खाद्यान्न फसलों में गेहूँ तथा मक्का प्रमुख हैं। यह पद्धति छोटी जोत वाले किसानों लिए अधिक लाभदायक हैं।



मछली पालन एवं वानिकी पद्धति

इस पद्धति का प्रयोग ऐसे वन क्षेत्रों में जहां तालाबों में पानी भरा रहता है किया जाता है। सिक्किम में 4200 मीटर की ऊंचाई पर छगां झील में वानिकी एवं मछली पालन का कार्य प्रमुख रूप से किया जाता है। उत्तर-पूर्वी तथा पर्वतीय क्षेत्रों में इस पद्धति के विकास की संभावनाएं जाता हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों में जैव विविधता अधिक पायी जाती है तथा पानी तालाबों व गडढ़ों में भरा रहता है अतः ऐसे क्षेत्रों में वानिकी के साथ-साथ मछली पालन से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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संरचनात्मक आधार पर कृषिवानिकी का वर्गीकरण

संरचनात्मक आधार को उसके विभिन्न अगों तथा उन अगों के अपेक्षित कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस पद्वति में अगों के प्रकार तथा उनका व्यवस्थापन महत्वपूर्ण है।
संरचना के आधार पर कृषिवानिकी को दो वर्गो में विभिक्त किया जा सकता है।


अगों की प्रकृतिः अगों की प्रकृति के आधार पर कृषिवानिकी को निम्नलिखित वर्गो में विभाजित किया जा सकता है।

         1. कृषि वन चरागाह पद्वति
         2. वन-चरागाह पद्वति
         3. कृषि, पशु वन चरागाह पद्वति
         4. अन्य पद्वति

1.     कृषि वन चरागाह पद्वति : इस पद्वति के अन्तर्गत फसलों के साथ-साथ पेड़ो और झाड़ीदार वृक्षों को भी लगाया जाता है।

क.       झूम कृषि में परती भूमि का सुधार
ख.       टौग्या पद्वति
ग.       बहुउद्देशीय प्रजातीय पेड़ों के बगीचे
घ.       सतत्‌ कृषि
ड़.       बहुउद्देशीय वृक्ष और झाड़िया
च.       रोपण कृषि के साथ कृषि फसलों का संयोजन
छ.       क्षरण अवरोधी पट्टियां
ज.       वायु रोधी पट्टियां
झ.       मृदा संरक्षण के लिए हेज

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1- झूम कृषि में परती भूमि का सुधार

परती भूमि ऐसी भूमि होती है जिसमें बिना फसल लिये जमीन को खाली छोड़ दिया जाता है। इसका उद्देश्य मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाना होता है। परती भूमि में सुधार के उपरान्त एक फसल से कई फसलें पुनः उगाई जाती है।

यह पद्वति प्रमुखतः उत्तर-पूर्वी राज्यों, आसाम, मेघालय, मणिपुर, नागालैण्ड तथा त्रिपुरा में अपनाई जाती है। इसे देश के विभिन्न राज्यों में झूम कृषि तथा उड़ीसा एवं आंध्र प्रदेश में पोडु के नाम से जाना जाता है।

परती भूमि का प्रमुख कार्य मृदा उर्वरता संरक्षित करना तथा मृदा क्षरण को कम करना होता है। कुछ पौधों को प्रारम्भिक तौर पर इस प्रकार की भूमि में उसकी आर्थिक कीमत जानने के लिए लगाया जाता है।

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  2-टौग्यां

यह झूम कृषि का ही एक परिवर्तित रूप है। जिसमें श्रमिक वनों के किनारे-किनारे फसल भी उगाते है। यह पद्वति 1 से 3 वर्ष तक ही एक स्थान पर की जाती है इसके बाद अन्य स्थानों पर इस पद्वति द्वारा खेती की जाती है। इस पद्वति के अन्तर्गत वन तथा फसलों की प्रजाति, वहां की मृदा एवं जलवायु पर निर्भर करती हैं।
 वास्तव में इस पद्वति का मुख्य उद्देश्य वनों का विस्तार करना है लेकिन इसे कृषिवानिकी के अन्तर्गत ही मान्यता मिली हुयी है।

3- बहुउद्देशीय प्रजातीय पेड़ों के बगीचे

इस पद्वति के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के पेड़ो की प्रजातियों को एक साथ उगाया जाता है। इस पद्वति का प्रमुख कार्य खाद्यान्न उत्पादन, चारा एवं लकड़ी घरेलू उपयोग हेतु तथा बाजार में बेचने हेतु प्राप्त करना है। इसके अन्तर्गत खैर, आम, बबूल आदि वृक्षों को लगाया जाता है।

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सतत्‌ कृषि

इस पद्धति के अन्तर्गत पेड़-पौधों तथा फसलों की अन्तःकृषि की जाती है इसमें पेड़ों के साथ-साथ फसलों को भी उगाया जाता है। पेड़ों की दो पक्तियों के मध्य में बची हुई जगह में पेड़ों की ऊँचाई तथा उनके फैलाव के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है।

सतत्‌ कृषि किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है। इससे किसानों को 4 से 11 प्रतिशत तक अधिक प्रतिफल प्राप्त होता है।


सतत्‌ कृषि के अन्तर्गत दो पक्तियों के मध्य तीव्र गति से बढ़ने वाले बहुउद्देशीय पेड़-पौधों को लगाया जाता है जिससे कि समयानुसार उपज प्राप्त होने के साथ-साथ वृक्षों को भी हानि न हों।

anupam

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Hi Dost.

Mein is thread ko lagatar follow kar raha hun. Dost yeh sab info toh text books se leykar tamam dusri boring books mein maujood hai. Mere khyal se kisi bhi topic ko leykar kuch useful discussion hona chaheye. Villages mein irrigation ke suvidha nahi hai, road connectivity ke bina hazaro ton fruits yun he sar jaten hai..Yeh basic probs hai pahar mein jinki taraf govts dhyan de is bet ke leyeh pressure banaya jaye.

anupam

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hello anupam ji tippani ke liye dhanywaad or rahi baat is topik to agar apko achha nahin laga to uske iye maafi chahta hoon or agar apko ye infomation kisi book yaa wesite main mil jaati hai wo to bahut hi achhi baat hai ,
#aap isase aage likhakar post kar do to apki badi mehrbaani hogi ! or anupam ji tippani to har koi karta hai !
 
jai uttarakhand

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खेती के लिए वैज्ञानिक तौर-तरीके अपनायें किसान: डीएम

पिथौरागढ़: चतुर्थ जनपद स्तरीय किसान मेला गुरुवार को सम्पन्न हुआ। मेले का उद्घाटन करते हुए जिलाधिकारी एनएस नेगी ने किसानों से खेती के लिए वैज्ञानिक तौर-तरीके अपनाने का आह्वान किया।

जिलाधिकारी ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा परम्परागत कृषि से कृषकों को उनकी मेहनत का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। किसानों को कृषि में वैज्ञानिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल करना होगा, तभी कृषि फायदेमंद होगी।

उन्होंने किसानों से खेती के साथ ही साथ बेमौसमी सब्जी, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन जैसे व्यवसाय शुरू करने का आह्वान किया। उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र के किसानों को गांव-गांव का भ्रमण कर किसानों को खेती की नवीनतम तकनीक अपनाने के लिए प्रेरित करने को कहा।

प्रभारी कृषि विज्ञान केन्द्र डा.एएस जीना ने कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा चलायी जा रही विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा किसान जानकारियां प्राप्त करने के लिए कभी भी केन्द्र में सम्पर्क कर सकते है। उन्होंने बताया कि किसान विज्ञान केन्द्र अब तक जिले में 38752 किसानों को लाभान्वित कर चुका है।

किसान मेले में पशुपालन विभाग के डा.जोशी, कृषि विभाग के एपीपीओ डीएस जलाल, ग्राम्या के उद्यान अधिकारी बीडी शर्मा ने किसानों को उनके विभाग द्वारा चलायी जा रही योजनाओं की जानकारी दी।

 कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डा.राकेश सिंह, अजय कुमार, अनिल सैनी, जीएस बिष्ट, एन भट्ट ने किसानों की विभिन्न जिज्ञासाओं का समाधान किया।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5831445.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखण्ड बीज राज्य के परिपेक्ष्य में

उत्तराखण्ड राज्य के गठन के बाद से ही राज्य सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्रों के कृषकों को उन्नत आनुवांशिक शुद्धतायुक्त बीज उपलब्ध कराने तथा प्रमाणित बीजों के उपयोग के प्रति रुझान विकसित किये जाने का प्रयास किया गया हैं ।

वर्तमान मे राज्य सरकार द्वारा कोर वैली बीज उत्पादन कार्यक्रम के अर्न्तगत कृषकों के ऐसे समूहों का विकास किया जा रहा है जो कि अपने बीज प्रक्षेत्रों में विभिन्न फसल प्रजातियों के बीजों का उत्पादन उत्तरांचल बीज एवं तराई विकास निगम के माध्यम से कर सकें ।

जिस हेतु राज्य सरकार द्वारा अनुदान भी अनुमन्य कराया जा रहा है । उपरोक्त परिपेक्ष्य में यह पूर्णतः दृष्टिगोचर है कि राज्य सरकार की स्पष्ट बीज नीति हैं । पर्वतीय क्षेत्रों मे बीज उत्पादन कार्यक्रम व प्रमाणित बीजो की उपलब्धता सुनिश्चित कराया जाना राज्य सरकार की प्राथमिकता हैं ।

यहॉ यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर व नैनीताल जनपदो में बीजों का उत्पादन वृहद स्तर पर किया जा रहा हैं । जिसमें सरकारी माध्यमों, उत्तरांचल बीज एवं तराई विकास निगम, राष्ट्रीय बीज निगम तथा गैर सरकारी बीज कम्पनियाँ सम्मिलित हैं ।

anupam

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Namaskar.

Uv taken it personal. Anyways: still few suggestions - If u have time do give a call to agri. minister Trivendra rawat . Ask him how much agro land in state is irrigated. What is the status of compensation given to farmers hit by drought. (You know several farmers have not received 2006 dues yet)....This year, a revenue report says 50 percent of state is drought hit.

The much hyped 'krishi goshtis' are only a ceremonial events. There is no way to cross check claims made by department guys.."Itne hazar kisan labhanvit hue"

Moving from here...a recent RTI reply revealed that 45 vilalges in state have become 'ghost villages' it means not a single person is residing there. That also means that hundreds of farmers have left their age old tradition of 'farming'.

It would be appreciated if these sort of points are also discussed in the forum and also pls dnt take it personal.

Tks  


 

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