Author Topic: Agriculture,in Uttarakhand,उत्तराखण्ड में कृषि,कृषि सम्बन्धी समाचार  (Read 44127 times)

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प्रदेश के विकास की रीढ़ है कृषि

उत्तरांचल कृषि कर्मचारी संघ का द्विवार्षिक अधिवेशन विभिन्न समस्याओं के निराकरण पर चर्चा के साथ सम्पन्न हो गया। अधिवेशन में आगामी दो वर्षो के लिए संघ की जिला कार्यकारिणी का गठन किया गया, जिसमें केएस नेगी को जिलाध्यक्ष व सतीश चन्द्र जोशी को जिला मंत्री चुना गया।

सोमवार को यहां जिला पंचायत के सभागार में सम्पन्न हुए इस अधिवेशन में मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष विजया रावत ने कहा कि कृषि किसी भी प्रदेश की रीढ़ है।

 सभी अधिकारी कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन बड़ी तन्मयता के साथ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीमांत कृषक को भी सभी विभागीय योजनाओं की जानकारी व उसका लाभ मिलना चाहिए। इस अवसर पर मुख्य कृषि अधिकारी एसके उत्तम ने बताया कि प्रत्येक न्याय पंचायत में एक वर्ग तीन का कर्मचारी नियुक्त किया गया है जिसे कृषि संबंधित समस्त कार्य करने हैं।

 उन्होंने कहा कि अगर किसी कर्मचारी की कोई समस्या होती है तो आपसी बातचीत के जरिए समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। अधिवेशन में वक्ताओं ने कहा कि अभी तक किसी भी संवर्ग की नियमावली प्रख्यापित नहीं हुई है जिसे शीघ्र प्रख्यापित किया जाए।

अधिवेशन में मांग की गई कि सिंगल विंडो सिस्टम के अंतर्गत होने वाले प्रस्तावित पुनर्गठन में प्रत्येक ब्लाक पर खण्ड कृषि अधिकारी का पद सृजित किया जाए , साथ ही मांग के अनुरूप ही कृषि निवेशों का आवंटन किया जाए। वक्ताओं ने वार्षिक स्थानांतरण नीति को व्यवहारिक बनाए जाने की भी मांग रखी।

इस अवसर पर कृषि कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह नेगी, संरक्षक दिनेश जोशी, प्रेम प्रकाश शैली, एचपी डिमरी आदि ने प्रमुख रूप से विचार रखे। अधिवेशन के अंत में नई कार्यकारिणी के गठन में उपाध्यक्ष पुष्कर सिंह नेगी, कोषाध्यक्ष गिरीश चन्द्र किमोठी, संगठन मंत्री हर्षपति डिमरी व संरक्षक देवी प्रसाद पुरोहित निर्विरोध ढंग से चुने गए। नव निर्वाचित पदाधिकारियों को संघ के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र नेगी ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

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लघु सिंचाई: दो और इंजीनियरों पर शिकंजा

लघु सिंचाई के कारनामों पर मुख्यमंत्री की तिरछी नजरों का कहर अभी थमा नहीं है। एचओडी के बाद अब दो और इंजीनियरों के निलंबन की तैयारी है। इधर, शासन ने एचओडी का प्रभार वरिष्ठतम अधीक्षण अभियंता को सौंप दिया है।

कुछ देरी से ही सही पर मुख्यमंत्री डा.रमेश पोखरियाल निशंक ने लघु सिंचाई विभाग में कारनामों को अंजाम देने वालों के खिलाफ एक्शन शुरू कर दिया है। पहले विभागाध्यक्ष असगर अली को निलंबित किया गया। अब एक अधिशासी अभियंता और एक अवर अभियंता की बारी है। शासन स्थित उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अधिशासी अभियंता ब्रजेश गुप्ता और अवर अभियंता बीजी बैंजवाल को भी निलंबित किया जा रहा है। इन दोनों पर असगर अली के साथ ही हाईड्रम परियोजना में भारी गड़बड़ी का आरोप है। सूत्रों ने बताया कि इस बारे में तैयार पत्रावली को उच्च अनुमोदनार्थ भेजा गया है। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री के देहरादून लौटते ही निलंबन आदेश जारी हो जाएगा।

इधर, शासन ने असगर अली के निलंबन के बाद रिक्त चल रहे लघु सिंचाई विभागाध्यक्ष पद पर विभाग के ही वरिष्ठ अधीक्षण अभियंता मोहम्मद उमर को तैनात किया है। इस बारे में अपर मुख्य सचिव एनएस नपलच्याल की ओर से आदेश जारी कर दिया गया है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5850021.html

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कृषि उत्पादन बढ़ाना सरकार का उद्देश्य: त्रिवेद्र

फाटा (रुद्रप्रयाग)। केदारनाथ की यात्रा पर आए प्रदेश के कृषि एवं पशुपालन मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ने कहा कि किसानों के जीवन स्तर बढ़ाना सरकार का मुख्य उद्देश्य है।

पत्रकारों से बातचीत में श्री रावत ने कहा कि सरकार ने किसानों को अधिक से अधिक जानकारियां और सुविधाएं उपलब्ध हो। इसके लिए न्याय पंचायत स्तर एवं ग्राम पंचायत स्तर पर भी समितियों के गठन पर विचार किया जा रहा है।

श्री रावत यह भी बताया कि केंद्र से हिमालयी राज्यों के लिए अलग से नी,ि स्वैच्छिक चकबंदी के लिए विशेष पैकेज की भी मांग की गई है। उन्होंने बताया कि प्रथम बार 72600 किसानों ने अभी तक शिविरों के माध्यम से बीज एवं कृषि यंत्रों की खरीदारी की, जो इस राज्य के इतिहास में प्रथम प्रयास है।

उन्होंने कहा कि सिंचित और असिंचित भूमि पर जड़ी बूटी एवं सगंध फूलों की खेती पर जोर जाएगा, इसके लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इस अवसर पर भाजपा के अशोक खत्री, जिला पंचायत सदस्य केशव तिवारी, ज्येष्ठ प्रमुख जयंती प्रसाद कुर्वाचली, जिला पंचायत सदस्य उर्मिला बहुगुणा क अलावा जिला कृषि अधिकारी रामलाल शाह, कृषि विभाग व पशुपालन के डाक्टर बीसी सेमवाल, अयोध्या प्रसाद सती सहित कई लोग उपस्थित थे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5852061.html

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शासन को नोटिस देना अब पड़ेगा मंहगा

देहरादून। सूबे में प्रशासनिक कार्रवाई को व्यक्तिगत लड़ाई का रूप देने का प्रचलन सा चल पड़ा है। सिंचाई एचओडी के सागर चंद्र के नोटिस को हल्के में लेने का फायदा उठाते हुए अब लघु सिंचाई विभाग के निलंबित एचओडी असगर अली ने भी यही रास्ता अपनाया है। मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे का कहना है कि अनुशासनहीनता के इन मामलों पर शासन शीघ्र कार्रवाई करेगा। सिंचाई विभाग के एचओडी सागर चंद्र ने शासन की कार्रवाई को अपना उत्पीड़न करार देते हुए सचिव को लीगल नोटिस दिया था। इस नोटिस पर शासन ने विधि सचिव ने राय ली। विधि विभाग ने इसे अनुशासनहीनता की इंतिहा बताया। विधि सचिव ने अपनी राय में यह भी कहा है कि यदि अफसरों के ऐसे आचरण के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो राज्य में अनुशासनहीनता बढ़ जाएगी। इस बीच सागरचंद ने नए प्रमुख सचिव के कहने पर यह नोटिस वापस ले लिया।

शासन ने विधि सचिव की इस राय के आधार पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया। इसे शासन की कमजोरी मानते हुए लघु सिंचाई विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष असगर अली ने भी शासन को इसी तरह का लीगल नोटिस दे दिया है। अपने खिलाफ की गई कार्रवाई को उन्होंने भी व्यक्तिगत उत्पीड़न करार दिया है। इस संबंध में मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे का कहना है कि यह मैटर अभी क्लोज नहीं हुआ है। इन मामलों पर जल्द ही कार्यवाही की जाएगी।

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14 फीट लंबा मिर्च का पेड़


Oct 13, 01:53 am

देहरादून, हो सकता है कि इस आश्चर्यजनक खबर पर यकीन न आए, लेकिन यह सोलह आने सच है। मिर्च का एक ऐसा पेड़ है, जिसकी लंबाई 14 फीट है और उसमें बारह में से आठ महीने मिर्च लगी रहती है। हालांकि, यह पेड़ जितना लंबा है, उसमें लगने वाली मिर्च उतनी ही छोटी। मिर्चो का तीखापन इतना कि एक पूरी मिर्च खाना ही मुश्किल हो जाता है।

इस अद्भुत पेड़ को देखने के लिए विकासनगर विकासखंड की जमनीपुर ग्राम पंचायत में आना होगा। गांव के निवासी मुकेश गौड़ पुश्तैनी काश्तकार हैं। एक वर्ष पूर्व उन्होंने घर में रखा मिर्च का बीज आंगन में बो दिया। उनसे पैदा हुए 5-6 पौधे अप्रत्याशित रूप से लंबे होने लगे। पांच पेड़ों की लंबाई लगभग 5-6 फीट पर आकर रुक गई, लेकिन एक पेड़ लंबा होता चला गया। इस समय इस पेड़ की लंबाई करीब 14 फीट है।

पेड़ मुकेश गौड़ के मकान से भी ऊंचा हो गया है। इस पेड़ के बारे में जो भी सुनता है, उसे देखने जमनीपुर जरूर आता है। श्री गौड़ के मुताबिक, पेड़ पर हरे नहीं, बल्कि काले रंग की मिर्चे लगती हैं, जो बाद में लाल हो जाती हैं। मिर्चो की लंबाई मात्र आधे से पौन इंच तक होती है। ये मिर्चे देखने में छोटी जरूर हैं, लेकिन खाने में इतनी तीखी कि जीभ में लगते ही खाने वाले की नाक और आंख से पानी निकलने लगता है। मुकेश गौड़ का कहना है कि इस पेड़ पर मार्च से अक्टूबर तक लगातार मिर्च लगी रहती हैं। बहरहाल, यह अद्भुत पेड़ कई विशेषताएं लिए हुए पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5859472.html

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श्रीधान विधि से दोगुना हुआ धान का उत्पादन



श्रीधान विधि को अपनाने वाले किसानों का उत्पादन इस बार परंपरागत विधि की तुलना में दोगुना पाया गया। इस वर्ष सूखे की भयंकर स्थिति के बाद भी श्रीधान विधि के यह परिणाम उत्साहजनक हैं।

राइंका गौचर में आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि व्यापार संघ अध्यक्ष ताजवर सिंह भंडारी ने किसानों के बीच प्रचलित इस विधि को अपनाने की जरूरत पर बल दिया। ्रग्रामीण एवं महिला विकास संस्थान गौचर द्वारा जनपद में पिछले दो वर्षो से श्रीधान कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं।

इस विधि को अपनाने वाले किसानों को उत्पादन का बेहतर लाभ प्राप्त हो रहा है। कार्यक्रम में लोक विज्ञान संस्थान देहरादून के विषय विशेषज्ञ विजय नेगी, कृषि विभाग के प्रेम प्रकाश शैली व उद्यान विभाग के सीपी चमोला ने श्रीधान विधि की उपयोगिता को देखते हुए इसे विभागीय समन्वय से अधिकाधिक किसानों तक पहुंचाने पर बल दिया। कार्यशाला में सभासद प्रकाश शैली, ताजवर कनवासी, जगदीश प्रसाद, सुरेन्द्र मल व श्रीधान विधि अपनाने वाले कृषकों ने अपने अनुभवों के आधार पर इस विधि की चर्चा की।



 कार्यशाला के दौरान श्रीधान विधि व परंपरागत विधि से रोपित खेतों की क्रॉप कटिंग कर तुलनात्मक परिणाम प्रस्तुत किये गये जिसके आधार पर इस विधि से धान उत्पादन दोगुना पाया गया। इस विधि से पुआल का उत्पादन भी परंपरागत विधि की तुलना में डेढ़ गुना अधिक पाया गया। कार्यक्रम में संस्था प्रमुख बीपी बमोला, जलागम प्रबंधक बीके रावत, सभासद रजनी लिंगवाल, लीला देवी, अनिल नेगी, सुरेशी देवी, कीरत नेगी, दीपक बिष्ट, देवेन्द्र बत्र्वाल सहित 80 से अधिक लोग मौजूद थे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5861818.html

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खेतीखान का दसवां दीप महोत्सव शुरू


Oct 11, 09:58 pm



लोहाघाट (चंपावत)। खेतीखान का दसवां दीप महोत्सव आकर्षक झांकियों के साथ शुरू हो गया है। इस दौरान पिथौरागढ़ से पहुंची छोलिया नृत्य की टीम ने अलग अंदाज में नृत्य के साथ रंग जमाया। वहीं स्थानीय शिक्षण संस्थाओं के कलाकारों ने लोक संस्कृति पर आधारित झांकी निकाल कर दर्शकों का मन जीत लिया। मुख्य अतिथि पूर्व जिला पंचायत सदस्य पूरन सिंह फत्र्याल ने झांकी का उद्घाटन करते हुए कहा कि लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए यह महोत्सव मील का पत्थर साबित हो रहा है।
उन्होंने आयोजन समिति को 10 हजार रूपये व चार दरियां देने की घोषणा की। खेतीखान के मल्ली बाजार से निकली झांकी में नवोदय पर्वतीय कलाकेन्द्र पिथौरागढ़ के कलाकारों ने कुमाऊं का प्रसिद्ध छोलिया नृत्य विभिन्न अदाओं व सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चों ने श्रवण कुमार का दृश्य, जीआईसी ने रामलीला, विद्यामंदिर ने कृष्ण सुदर्शन चक्र, यूनिवर्सल पब्लिक स्कूल ने हिमालय में शिववास तथा पहाड़ की महिलाओं की दिनचर्या, जीजीआईसी की छात्राओं ने नव दुर्गा के रूपों की आकर्षक झांकी निकाली। दोपहर बाद निकली झांकियों को देखने के लिए दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों से हजारों महिला पुरूष व बच्चे पहुंचे हुए थे।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5856710.html

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उत्तराखंड में कम हो रही है कोदा, झंगोरा की महक

 
उत्तराखंड में कोदा, झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे, पृथक राज्य आंदोलन में चर्चित रही इन पंक्तियों की सार्थकता रफ्ता-रफ्ता बेरंग होती जा रही है। पहाड़ की पारंपरिक खेती में शुमार कोदा और झंगोरा के उत्पादन का ग्राफ घट रहा है। इसकी प्रमुख वजह विपणन की समस्या तथा पलायन माने जा सकते हैं।



एक जमाने में पहाड़ की पारंपरिक खेती की रीढ़ कोदा व झंगोरा (चसवल की तरह का एक उत्पाद) ही माना जाता था। गांवों में लगभग हर परिवार इनकी खेती करता था।

 इनके उत्पादन से न सिर्फ परिवार चलता था, बल्कि कोदा का दूंण (उपहार) देने की रस्म अदायगी भी कई पारंपरिक उत्सवों का हिस्सा थी। करीब दो दशक पूर्व भी विवाह में कन्या पक्ष की ओर वर पक्ष को कोदे का दूंण दिए जाने की परंपरा थी। इसके अलावा कोदा एवं झंगोरा पौष्टिकता के लिहाज से भी किफायती होते है। कोदा एवं झंगोरा उदर रोगों में भी लाभदायी माना जाता है।

पहाड़ में मार्च-अप्रैल में कोदा एवं झंगोरा बोया जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोदा एवं झंगोरा कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देने की विशेषता रखते है। इसके अलावा पुदीना की चटनी और घी के साथ कोदे की रोटी के स्वाद का दूर-दूर तक कोई सानी नहीं माना जाता है। गढ़वाल का पारंपरिक पकवान बाड़ी व पल्यों भी कोदे से बनाया जाता है।

 दूसरी ओर, झंगोरा से बरी खीर के स्वाद का भी कोई जवाब नहीं है। पहाड़ों से पलायन के साथ ही विपणन की सुविधा न होने से कोदा एवं झंगोरा की खेती के प्रति काश्तकारों का रुझान कम हो होने लगा है। सांख्यिकी विभाग के आंकड़े खुद इस बात की तस्दीक कर रहे हैं।

 इनके मुताबिक, वर्ष 2003-04 में गढ़वाल मंडल में एक लाख छह हजार 661 मीट्रिक टन कोदे का उत्पादन हुआ था, जो 2004-05 में घटकर 92 हजार 894 मीट्रिक टन रह गया। वर्ष 2005-06 में गढ़वाल मंडल में कोदे का कोदा का उत्पादन 85 हजार 67 मीट्रिक टन ही रहा। इसके अलावा झंगोरा का उत्पादन भी कम हो रहा है।

 गढ़वाल मंडल में वर्ष 2003-04 में 67 हजार 211 मीट्रिक टन झंगोरा की खेती हुई, जबकि वर्ष 2004-05 में यह घटकर 59 हजार 282 मीट्रिक टन रह गया और वर्ष 2005-06 में मंडल भर में 55 हजार 573 मैट्रिक टन ही झंगोरे का उत्पादन हुआ।

चकबंदी प्रणेता गरीब सिंह गरीब व राज्य आंदोलन से जुडे़ बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा का कहना है कि विपणन की व्यवस्था न होने से काश्तकारों का ध्यान पारंपरिक खेती से हट रहा है।

 मुख्य कृषि अधिकारी वीके यादव कहते हैं कि मौसम की अनिश्चितता से कोदा एवं झंगोरा के फसल की निश्चितता नहीं रही।
 जंगली जानवरों के फसल नष्ट करने से भी किसानों का रुझान पारंपरिक खेती से हटा है। उन्होंने कोदा व झंगोरा के लिए विपणन की समुचित व्यवस्था न होने की बात भी स्वीकारी।

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तंबाकू के खिलाफ चलाएंगे जनजागरण अभियान


श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल तम्बाकू के दुष्परिणामों के प्रति जनता को सचेत करने को राउमावि खोला कड़ाकोट के छात्र जनजागरण अभियान चलाएंगे। इसके लिए विद्यालय के छात्रों की टीम गठित की गई है।

इस टीम में दसवीं कक्षा के अरविंद सिंह, दीपक सिंह, दिनेश सिंह, कु. अजीता, आशा, गुड्डी, कक्षा 9 की कु. उत्तरा, सरिता, रक्षा, आरती, कक्षा 8 की कु. पिंकी, किशन सिंह को शामिल किया गया है।

 तंबाकू के दुष्परिणाम विषय पर विद्यालय में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रधानाचार्य अचलानंद नौटियाल ने कहा कि तम्बाकू के दुष्परिणामों के प्रति अभियान चलाने में छात्र-छात्राओं का प्रभावी योगदान हो सकता है।

 छात्र घर-घर जाकर तम्बाकू से सेवन से होने वाली हानियों और रोगों के बारे में बताएं। इसे एक सामाजिक अभियान के रूप में चलाना होगा। शिक्षक सुमित्रानंदन यादव ने कहा कि समाज हित में तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम को सफल बनाना जरूरी है।

 तम्बाकू सेवन के प्रति छात्रों को भी सतर्क रहने की जरूरत है। इस अवसर पर विद्यालय के छात्रों ने समीपवर्ती सभी गांवों में यह जनजागरण अभियान व्यापक रूप से चलाने का संकल्प भी लिया। विद्यालय के शिक्षक चिंतामणि उनियाल, रघुराज सिंह, मनोज ममगांई, दुर्गेश सती, सतीश बलूनी, मंगाराम सैनी, हीरा सिंह राणा, अनिल कुशवाहा, राम सिंह, आनंद सिंह ने भी विचार व्यक्त करते हुए तम्बाकू सेवन के दुष्परिणामों के प्रति सचेत किया।

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खेतों को सिंचित करने की योजना नहीं चढ़ी परवान

अस्सी और नब्बे के दशक में पहाड़ में खेतों को सिंचित करने के लिए बनाई गई हाईड्रम योजनाएं हांफ गई है। जनपद टिहरी में पचास प्रतिशत से अधिक योजनाएं पूरी तरह बंद पड़ी हुई है।

पहाड़ में कृषि प्रकृति की मेहरबानी पर आश्रित रही है। जिस वर्ष वर्षा कम होती है उस साल फसल पूरी तरह चौपट हो जाती है। दरअसल, पहाड़ में खेतों तक पानी पहुंचाकर उन्हें सिंचित करना कठिन काम है। यही कारण है कि यहां अधिकतर खेती असिंचित है। इसे देखते हुए सरकार ने अस्सी व नब्बे के दशक में हाईड्रम योजनाएं बनाई और यह कार्य वर्ष 2005 तक भी चलता रहा।

 लेकिन यह योजनाएं अपने लक्ष्य पर खरी नहीं उतर पा रही है और अब भी खेत सूखे हुए हैं। इन योजनाओं के निर्माण करने वाले लघु सिंचाई विभाग पर काश्तकार व जनप्रतिनिधि आरोप लगाते रहे हैं कि योजना का निर्माण मानक के अनुसार नहीं हुआ।

 भिलंगना क्षेत्र के काश्तकार रमनदीप का कहना है कि लघु सिंचाई अस्सी के दशक से अब तक योजनाओं के निर्माण व मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर चुका है, लेकिन काश्तकारों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। जनपद टिहरी में लघु सिंचाई की हाईड्रम योजनाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। जनपद में इस समय कुल 53 हाइड्रम योजना है, जिसमें से 28 पूरी तरह बंद है। वही विभाग का दावा है कि 25 योजनाओं से काश्तकारों को लाभ मिल रहा है। यही स्थिति इन योजनाओं की यूनिट की भी है।

 129 यूनिट में से 75 बंद हैं, जबकि 54 चालू हालत में है। सबसे अधिक योजनाएं भिलंगना व जौनपुर में बंद पड़ी हुई है। इस बारे में विभाग के अधिशासी अभियंता एसके भास्कर का कहना है कि पानी की कमी व तकनीकि कारणों से योजनाएं बंद हुई है।

 

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