Author Topic: Agriculture,in Uttarakhand,उत्तराखण्ड में कृषि,कृषि सम्बन्धी समाचार  (Read 44269 times)

lpsemwal

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कृषि के बारे मिएँ यदि कोई नया विचार सदसोयों के पास हो तो कृपया साथ कम करने के लिए अपने विचार पोस्ट करें.

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कृषि भूमि में गैस लाइन बिछाने का विरोध
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काशीपुर: गैस व खनिज पाइप लाइन कृषि भूमि पर बिछाने के निर्णय पर आपत्ति जताते हुए काश्तकारों ने तहसील में प्रदर्शन किया। साथ ही गैल (गैस आथॉरिटी ऑफ इंडिया लि.) के अधिकारियों के समक्ष आपत्ति दर्ज कराकर कृषि योग्य भूमि को छोड़कर अन्य भूमि में बिछाने की मांग की।

बुधवार को ग्राम बरखेडा पांडे, गिरध्याई मुंशी, खाईखेडा, बांसखेड़ी, कटैया, बरखेड़ी आदि के दर्जनों किसान तहसील परिसर में एकत्र हुए। काश्तकारों ने मुरादाबाद से रुद्रपुर तक बिछाई जा रही 145 किमी लंबी पाइप लाइन कृषि भूमि के बीच से बिछाए जाने पर आपत्ति जताई। साथ ही प्रदर्शन किया।

काश्तकारों ने गैल के सक्षम प्राधिकारी द्वारा भूमि के प्रयोग के अधिकार का अर्जन अधिनियम के तहत भेजे नोटिस के जवाब में सक्षम प्राधिकारी बीएस ओझा के समक्ष विरोध जताया। काश्तकारों ने कहा कि यहां भूमि की सिचाई बोरिंग के माध्यम से होती है, लेकिन उनकी जो भूमि गैस पाइप लाइन के अ‌र्न्तगत आ रही है, उस भूमि पर कुआं, ट्यूबवेल, बोरिंग आदि नहीं किया जा सकता, जिससे भूमि बंजर हो जायेगी। साथ ही उपयोगिता भी शून्य हो जायेगी। उन्होंने पाइप लाइन सड़क किनारे, रेल पटरी या नदी के किनारे से बिछाने की मांग की है। गेल से सक्षम प्राधिकारी श्री ओझा ने बताया कि इसके लिये क्षेत्र के 15 गांवों में पहले सर्वे किया जा चुका है। काश्तकारों की आपत्तियों को कंपनी के अधिकारियों के समक्ष रखा जायेगा। यदि आवश्यकता हुई तो पुन: सर्वे किया जा सकता है।

इस मौके पर गुरमेल सिंह, लाजपत सेतिया, रघुवीर सिंह, सलीम, रईस अहमद, अशरफ अली, रमेश चंद्र, महेश चंद्र, सुभाष चौधरी, राजीव ठाकुर, वीरेंद्र सिंह, हरजीत सिंह आदि मौजूद थे।

Source dainik jagran

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नागणी की बासमती का नहीं कोई जवाब
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 टिहरी जनपद की हेंवलघाटी क ो धान की खेती के लिए जाना जाता है, यहां धान की दर्जनों किस्मों को ग्रामीण उगाते आ रहे है। हर धान की अपनी अलग विशेषता है, खासकर नागणी की बासमती के तो कहने ही क्या। नागणी की बासमती तो दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।

नागणी की बासमती की कई बिशेषताएं है। इसका चावल जहां स्वादिष्ट होता है, वहीं चारा-पुआल पशुओं की पहली पसन्द है। इसका दाना लंबा बारीक बाहर से लाल तथा अन्दर सफेद होता है। इसकी खीर, बुखणा, चिवड़ा और अरसे सबसे ज्यादा पसंद किये जाते हैं। त्योहार के मौके पर भी इसके भात को पसंद किया जाता है। सामान्य तौर पर जहां बासमती का उत्पादन अन्य की अपेक्षा कम होता है, वहीं नागणी की बासमती का उत्पादन अधिक होता है। इसका 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन होता है। धान की किस्मों पर लंबे समय से काम कर रहे बीज बचाओ आंदोलन के संयोजक विजय जड़धारी का कहना है, कि नागणी की बासमती की दर्जनों विशेषता है। तभी तो आज भी किसान उसे उतना ही पसंद करते है, जितना पहले करते थे। उन्होंने बताया कि यह बासमती धानों में सर्वोत्तम धान है। इसके मांड को काफी पसंद किया जाता है। एक समय था जब नागणी में एक क्षेत्र विशेष खेरसेरा में केवल नागणी की बासमती उगायी जाती थी, यहां दूसरा धान नही उगाते थे। पुराने लोगों का कहना है कि टिहरी रियासत के राजा अपने खास मेहमानों के लिए नागणी की बासमती मंगाते थे। आज इसे मिश्रित रूप से उगाया जाता है। खास बात यह है कि यह कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देती है। हालांकि जब से लोगों ने रासायनिक खादों का प्रयोग शुरू किया है, तब से इसकी खुशबु कम हो गयी है।

काश्तकार सिंगररूप सिंह का कहना है कि खेतों से आ रही खुशबु ही बता देती है, कि यहां बासमती है। इसके अलावा पकाने पर व खाते समय भी खुशबु आकर्षित करती है। लोगों का कहना है, कि यह देहरादून की बासमती से किसी मायने में कम नही है। नागणी के लोग दूसरे धान तो उगाते ही है,लेकिन साथ में बासमती उगाना नही भूलते है। आजकल जहां धान की नई-नई किस्में किसानों को उगाने के लिए दी जा रही है, वहीं नागणी की बासमती का क्रेज अपनी जगह बरकरार है।

पर्वतीय परिसर रानीचौरी के वैज्ञानिक डॉ. एम दत्ता का कहना कि नागणी की बासमती जैसी क ई प्रजातियां है, जिनके बारे में लोग जानते नही है। इनमें दूसरे की अपेक्षा अधिक पौषक तत्व पाये जाते है। उन्होंने कहा कि ऐसी प्रजातियां ही लंबे समय तक चलन में रहती है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6840486.html

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न बाबा न, ढैंचा बीज तौबा-तौबा
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बीज डिमांड से कतरा रहे अधिकारी, किसानों का अनुदान से मोहभंग

- वितरण घोटाले में फंसे अधिकारियों को नोटिस जारी

-कारण बताओ नहीं तो होगी रिकवरी

 हल्द्वानी: कुमाऊं मंडल में कृषि विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को ढैंचा का भूत सता रहा है। विगत वर्ष बीज वितरण के आरोप में घिरे अधिकारियों का तो तत्काल प्रभाव से स्थानांतरण कर दिया गया था। अब शासन स्तर पर आरोपियों को पुन: कारण बताओ नोटिस जारी किये गये हैं। कारण न बताने पर रिकवरी करने की चेतावनी दी गयी है। जिसे लेकर विभाग में हड़कंप मचा है।

बताते चलें कि सत्र शुरू हो गया है। ऐसे में इस बार अभी तक औसत के अनुसार ढैंचा वितरण नहीं हो रहा है। जिसकी वजह है कि विगत वर्ष घोटाले के बाद किसानों की आंख खुली और अनुदान पर दिये जाने वाले इस बीज से किसानों और अधिकारियों ने तौबा कर ली। विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो गत वर्ष 9000 कुंतल ढैंचा बीज वितरण किया गया था, लेकिन इस बार हजार कुंतल की भी विभाग से डिमांड नहीं की जा सकी। किसान रवींद्र मोहन शर्मा, आनन्द सिंह बिष्ट, जोगिंदर पाल कहते हैं कि बार-बार हो रही जांच से किसान परेशान हो चुके है। दूसरी तरफ यह बीज बाजार में खुले रूप से 19 रुपये किलो के भाव से बिक रहा है। जब कि सरकारी ने अनुदान पर पिछले वर्ष 23 रुपये किलो के भाव से किसानों को दिया था। बताते चलें कि इस मामले में ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिले के लगभग 60 लोगों में मुख्य कृषि अधिकारी, सहायक कृषि अधिकारी, न्याय पंचायत स्तर के कर्मचारी शामिल है। राजस्व और कृषि विभाग की टीम ने जांच की है। जिसमें बड़ी अनियमितिता सामने आई है कि 19 रुपये किलो के बीज की खरीददारी सरकारी आंकड़ों में 41 रुपये दिखा दी गयी थी। जांच पूरी होने पर आरोपों से घिरे अधिकारियों को शासन ने नोटिस जारी किया है। कहा गया है कि कारण बताओ नहीं तो सीधे रिकवरी होगी। संयुक्त कृषि निदेशक पवन कुमार ने बताया कि इस मामले की जांच हो चुकी है। शासन से कारण बताओ नोटिस जारी हुआ है। जवाब के आधार पर चार्ज सीट तैयार होगी।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7219082.html

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कृषि कुंभ में भाग लेकर नई तकनीक से जुडें किसान
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गोविन्द वल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर परिसर में 9 से 12 मार्च तक कृषि कुंभ का 89 वां आयोजन किया जाएगा। जिसमें कृषकों को कृषि से संबंधित विभिन्न जानकारियां दी जाएंगी। इस अवसर पर कृषि के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकि का लाभ उठाने का अह्वान किया।

राज्य कृषि प्रबंधन एवं प्रसार प्रशिक्षण संस्थान उत्तराखंड के निदेशक डॉ वाईपीएस डबास ने बताया कि यह अखिल भारतीय पंतनगर किसान मेला एवं कृषि उद्योग प्रदर्शनी राज्य के कृषकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने बताया कि चार दिनों तक चलने वाले राष्ट्रीय स्तर के इस कृषि मेले में कृषक जहां खेती के नवीनतम वैज्ञानिक पद्धतियों से रूबरू होंगे। वहीं खेती को आकर्षक एवं लाभ परक बनाए जाने के लिए देश भर से जुटे कृषि विशेषज्ञ विभिन्न विषयों पर प्रभावी रूप से जानकारी देंगे। उन्होंने यह भी बताया कि इस अवसर पर प्रमुख कार्यक्रमों के तहत अनुसंधान केन्द्रों पर परीक्षणों व प्रदर्शनों का अवलोकन, खरीफ की फसलों की नवीनतम प्रजातियों के बीज की बिक्री, साक भाजी एवं फलों के उत्तम बीज व पौधों की बिक्री उन्नत किसानोपयोगी तकनीकि यंत्रों का प्रदर्शन कृषि समस्याओं के निराकरण के लिए विशेषज्ञो की पहल पर विशेष जोर दिया जाएगा। प्रदर्शनी में पशु प्रदर्शनी एवं प्रतियोगिता, जुताई प्रतियोगिता एवं किसान गोष्ठियों के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। डबास ने राज्य के कृषकों एवं कृषि महकमों के अधिकारियों से राष्ट्रीय स्तर के कृषि मेले में अधिक से अधिक संख्या में भाग लेने की अपील करते हुए कृषि के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकि का लाभ उठाने का अह्वान किया।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7387320.html

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गूल मरम्मत न होने से फसलों पर मंडराया खतरा

 


सात माह बीतने के बाद भी अगलाड़ नदी के मुख्य बाजार से लगी सैकड़ों हेक्टेयर सिंचाई भूमि के लिए गूल न होने से काश्तकारों के सामने नगदी फसल का संकट पैदा हो गया है। काश्तकारों ने प्रशासन से शीघ्र सिंचाई गूल निर्माण की मांग की।


गौरतलब है कि पिछले सितंबर में आई दैवीय आपदा से विकासखंड जौनपुर के तहत अगलाड़ नदी से सिंचाई गूल बह गई थी। तब से अभी तक गूल का निर्माण नहीं किया गया, जिस कारण सात माह से सिंचाई का संकट बना है। थत्यूड़ क्षेत्र नगदी फसलों में आलू व मटर का उत्पादन में अग्रणी माना जाता है, लेकिन सिंचाई के अभाव से किसानों को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही आजीविका का संकट गहराने लगा है।



मुख्य बाजार के आस-पास लगभग 40 गांव की सिंचाई भूमि है, जो ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य साधन है। ग्राम खेड़, बंगसील, मोलधार के किसान मदन सिंह रावत, जगत सिंह, लाखी सिंह आदि का कहना है कि सात माह बीतने के बाद भी सिंचाई गूल नहीं बन बनाई है। उन्होंने लघु सिंचाई विभाग पर आरोप लगाया कि सिंचाई भूमि के बजाय बिना सिंचाई भूमि पर गूलों का निर्माण किया जा रहा है।
   
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7493608.html

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बारिश आम, लीची, गेहूं की फसल के लिए घातक
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कृषि वैज्ञानिक रविवार को दिनभर हुई बारिश को आम, लीची, गेहूं की फसल के लिए नुकसान दायक व कद्दूवर सब्जियों और चारा फसलों के लिए फायदेमंद मान रहे हैं। तापमान गिरने से फल बनने की प्रक्रिया प्रभावित होने के कारण आम, लीची आदि फल बाजार में देर से आएंगे। वहीं गेहूं की फसल के लिए भी बारिश घातक है।

बदलने मौसम ने इस बार कृषि और हार्टीकल्चर वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता के बल डाल दिए हैं। मौसम ठंडा होने के कारण अभी तक आम व लीची के पेड़ों पर फूल खिलने का सिलसिला जारी है, जबकि अप्रैल माह में फल बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी। कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के प्रभारी अधिकारी डॉ. एसएस सिंह का कहना है कि बारिश ज्यादातर फसलों के लिए नुकसानदायक है। इससे फसलों में कीड़े व बीमारी का प्रकोप बढ़ेगा।

 आम व लीची में अभी तक फूल ही बन रहे हैं। नमी बढ़ने से आम में पाउडरी मिल्डयू, भुनगा कीट और लीची में एनथेकनाज बीमारी का प्रकोप बढ़ जाएगा। एनथेकनाज में पत्तियों पर सफेद दाग पड़ने शुरू हो जाते हैं, जो फल नहीं बनने देता। कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय सिंह का कहना है कि कद्दूवर की सब्जियों खीरा, ककड़ी और चारा फसल बरसीम आदि फसल को छोड़कर बारिश अन्य फसलों के लिए नुकसानदेय है।

 तापमान कम होने से गन्ने का अंकुरण भी प्रभावित होगा। यदि तापमान में और ज्यादा गिरावट होती है तो कद्दूवर की फसलों में भी फूल नहीं बन पाएगा, सामान्य तौर पर कद्दूवर की सब्जियों की फसलों के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तक तापमान की जरूरत होती है। इस बारिश से गेहूं, मसूर, जौं, गन्ना की फसलों को नुकसान पहुंचा है। वहीं चारे की फसल बरसीम व अगेती मक्की फसल के लिए बारिश फायदेमंद है।


Source Dainik Jagran

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देश का पहला विशेष कृषि जोन पौड़ी में बनेगा
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प्रदेश की नई कृषि नीति को नए सिरे से मंजूरी दे दी गई। इसमें पर्वतीय और प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखा गया है। देश का पहला विशेष कृषि जोन (एसएजेड) इसके साथ ही उत्तराखंड के पौड़ी के लाखौली गांव में अस्तित्व में आ गया। कृषि सचिव ओम प्रकाश के अनुसार जो भी गांव स्वैच्छिक चकबंदी अपनाएगा वह खुद ही एसएजेड का दरजा हासिल करेगा। उसे ढेरों सुविधाएं भी हासिल होंगी।


प्रदेश की अपनी नई कृषि नीति को वजूद मे आने में पांच साल लग गए। इससे पहले भी दो बार इस मसौदे को कैबिनेट की बैठक में लाया गया था। एक बार ड्राफ्ट को ही पुनगर्ठित करना पड़ा। प्रदेश में यूं तो 2001 में ही कृषि नीति घोषित कर दी गई थी। लेकिन पहाड़ की अपनी विशिष्टता और चुनौतियों से भरे परिवेश को इसमें तवज्जो नहीं मिल पाई थी। इसके बाद  से लगातार नई कृषि नीति की बात की जा रही थी।

नई कृषि नीति का ड्राफ्ट 2007 में तैयार कर लिया गया था। 2008 में यह मसौदा कैबिनेट की बैठक में रखा भी गया पर मंजूरी नहीं मिल पाई। इसके बाद एक बार फिर से नई कृषि नीति का ड्राफ्ट कैबिनेट केसामने आया पर इस समय भी इसे तवज्जो नहीं मिल पाई। हाल यह रहा कि एक बार तो नई कृषि नीति का प्रारूप ही गायब हो गया। इसे फिर से तैयार किया गया। आखिरकार चुनाव से कुछ समय पहले ही इस नीति को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है।

एसएजेड के फायदे
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साज क्षेत्र में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता। 24 घंटे बिजली की आपूर्ति। एक बार मुफ्त भूमि परीक्षण। प्राथमिकता के आधार पर मंडियों, संग्रह केंद्र, प्रसंस्करण केंद्र, बीज उत्पादन पर जोर।

स्वैच्छिक चकबंदी वाले गांव खुद ही साज में शामिल हो जाएंगे। इन गांवों में प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को प्रशिक्षण, स्वामित्व वाली भूमि के पास की भूमि खरीद पर स्टांप डूटी माफ।

स्वैच्छिक चकबंदी अपनाने वाले गांवों के लिए दस साल की दीर्घकालिक योजना तैयार की जाएगी। तीन साल के अंतर्गत कोर प्लान और पेरिफेरल प्लान तैयार किया जाएगा।


 

Amarujala news
 

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कृषि सुरक्षा पर देवभूमि की सतर्क पहल
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अगले पांच वर्ष में राज्य में कृषि विकास दर को चार प्रतिशत करने का लक्ष्य है। मैदानी व पहाड़ी क्षेत्रों के खेतों की उर्वर क्षमता में आ रही गिरावट के कारण लक्ष्य हासिल करने को बागवानी व पशुपालन पर अधिक भरोसा जताया जा रहा है। मिश्रित खेती के साथ ही दलहन व तिलहन पर ज्यादा जोर रहेगा। कृषि विकास के पंचवर्षीय राज्य स्तरीय प्लान का होमवर्क पूरा हो गया है और जल्द ही इसे केंद्रीय योजना आयोग को भेज दिया जाएगा।

केंद्रीय योजना आयोग ने देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए सभी राज्यों को कृषि विकास दर बढ़ाने के सशर्त निर्देश दिए हैं। जो राज्य विकास दर बढ़ाने में कामयाब होगा, उसे केंद्र से मिलने वाली सुविधाओं में प्रमुखता मिलेगी। फिसड्डी रहने वाले राज्य को इस मामले में नुकसान उठाना पड़ सकता है।

उत्तराखंड ने भी कृषि विकास के चार प्रतिशत के लक्ष्य को प्राप्त करने की योजना तैयार की है। ग्राम पंचायत से लेकर राज्य स्तर तक का प्लान तैयार है। केवल इसे फाइनल टच देने की कसरत बाकी है। इसमें पशुपालन, डेरी, कृषि, उद्यान, मत्स्य आदि को भी शामिल किया गया है। कृषि विकास दर के मामले में उत्तराखंड के सामने बड़ी चुनौती है। वर्ष 2004 तक राज्य में कृषि विकास दर दो प्रतिशत के आसपास रही।

वर्तमान में यह दो प्रतिशत से कम है। पिछले दस वर्षो में मैदानी व पहाड़ी खेतों की उर्वरकता में कमी आई है। मैदानी क्षेत्रों में रसायनिक खादों से नुकसान पहुंचा है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में पशुओं की कमी के चलते जैविक खाद का मामूली उपयोग हुआ।

 राज्य में 85 प्रतिशत से अधिक खेती इंद्रदेव के भरोसे हैं। जोतें काफी छोटी हैं। 88 प्रतिशत जोतें एक हेक्टेयर के करीब हैं। ऐसे में असिंचित भूमि, परती भूमि तथा अनुपयोगी भूमि का बेहतर उपयोग ही कृषि विकास दर को बढ़ाने वाला रहेगा।

राज्य की चुनौतियों के दृष्टिगत कृषि का पांच वर्ष का स्टेट प्लान राष्ट्रीय ग्राम्य विकास संस्थान के सहयोग से बनाया गया है। प्लान में बागवानी व पशुपालन के विस्तार को अधिक महत्व मिला है। कलस्टर सिस्टम को भी प्रमुखता दी गई है। कांट्रेक्ट फार्मिग की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।

 असिंचित क्षेत्रों में दलहन व तिलहन के उत्पादन पर विशेष जोर है। कृषि उत्पादों की मार्केटिंग के लिए भी नई योजना शामिल की गई है। स्टेट प्लान के मसौदे पर विशेषज्ञों के साथ बैठक भी हो चुकी है। स्टेट प्लान का ड्राफ्ट अंतिम चरण में है और जल्द ही इसे स्वीकृति के लिए केंद्रीय योजना आयोग को भेज दिया जाएगा।

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अतिवृष्टि से माल्टा की फसल चौपट काश्तकार मायूस



 



   नई टिहरी, : इस वर्ष प्रदेश में दैवीय आपदा के कारण फसलों को खासा नुकसान पहुंचा है, जिस कारण काश्तकारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
माल्टा की पैदावार के लिए प्रसिद्ध प्रखंड भिलंगना में बारिश के कारण इस बार फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। माल्टा उत्पादन यहां के स्थानीय लोगों के रोजगार का मुख्य जरिया भी है, लेकिन बारिश ने माल्टा की पैदावार को खासा नुकसान पहुंचाया है।



प्रखंड के कोटी पल्यूणी, गौरिया, भटवाड़ी, सेमल्थ, चौंरा, दोणी, घुत्तू, बौंसला आदि क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में माल्टा की नकदी फसल होती है। सीजन पर लोगों की इससे बीस हजार से लेकर 70 हजार रुपये तक की आमदनी होती है। मल्टा के फल के अलावा इसका जूस व अचार बाजार में बेचा जाता है।



इस बार माल्टा की फसल अतिवृष्टि व ओलावृष्टि के चलते चौपट हो गई, जिस कारण क्षेत्र के काश्तकारों को लाखों रुपये का नुकसान हो गया। काश्तकार दयाराम कोटनाला, ओमप्रकाश भट्ट, बनवारी लाल, रामप्रसाद नौटियाल का कहना है कि सीजन में प्रत्येक काश्तकार माल्टा से करीब 70 हजार रुपए तक कमा लेता है,


  लेकिन इस बार फसल चौपट हो गई है। काश्तकारों ने आम, सेब व आलू की फसल की भांति इस फसल बीमा करने की मांग की है, ताकि काश्तकारों को आर्थिक नुकसान न उठाना पड़े।
   
Source Dainik jagran

 

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