Author Topic: Agriculture,in Uttarakhand,उत्तराखण्ड में कृषि,कृषि सम्बन्धी समाचार  (Read 104896 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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मशरूम उत्पादन बदलेगा किसानों की तस्वीर
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कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों की माली हालत बदलने के लिए मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयास कर रहा है। केन्द्र स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को प्रेरित करने के लिए गांवों में मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण चला रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी डा. एएस जीना ने बताया कि मशरूम उत्पादन पहाड़ के किसानों की माली हालत में बड़ा बदलाव ला सकता है। इस क्षेत्र में संभावनाओं को देखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा गांवों में मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

किसानों को उत्पादन की नवीनतम तकनीक सिखाई जा रही है। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में बटन, ढिंगरी और दूधिया प्रजाति के मशरूम उत्पादन की अच्छी संभावनाएं हैं। इसके लिए 14 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत पड़ती है। जो पर्वतीय क्षेत्रों का औसत तापमान है।

मशरूम का उत्पादन गेहूं के  भूसे, लकड़ी के बूरादे, धान के पुआल में हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मशरूम पौष्टिक होता है। इसमें विटामिन सी, बी, कैल्शियम, फास्पोरस, पोटेशियम, कार्बोहाइड्रेट आदि पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। घर पर इसका उत्पादन करने में 15-20 रुपए प्रति किलो तक की लागत आती है। बाजार में इसका मूल्य 70 रूपये किलो तक है। केन्द्र प्रभारी ने बताया कि अब तक कई गांवों में प्रशिक्षण आयोजित किये जा चुके हैं।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8420382.html

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काणाताल में खुलेगा कृषक ट्रेनिंग सेंटर
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नई टिहरी। कृषि, उद्यान एवं जिले के प्रभारी मंत्री त्रिवेंद्र रावत ने चंबा-मसूरी फलपट्टी के काणाताल में कृषक ट्रेनिंग सेंटर का शिलान्यास करते हुए कहा कि इससे किसानों की समस्या का समाधान हो सकेगा।


उन्होंने कहा कि दो करोड़ की लागत से बनने वाले इस ट्रेनिंग सेंटर से किसानों को कृषि और पशुपालन की ट्रेनिंग दी जा सकेगी। साथ ही काश्तकार कृषि, उद्यानीकरण, बीज और पशुपालन की जानकारी भी प्राप्त कर सकेंगे। दुग्ध संघ अध्यक्ष धन सिंह ने कहा कि कृषकों के कई गोष्ठियां आयोजित की जाती रही हैं। इसमें क्षेत्रीय काश्तकारों की भागीदारी कम रहती है।

इसमें उनकी भागीदारी शतप्रतिशत करने के लिए सरकार ने ट्रेनिंग हॉल और दस कमरों के अतिथिगृह निर्माण की स्वीकृति दी है। उन्होंने कृषक ट्रेनिंग सेंटर का नाम टिहरी सांसद रहे स्व. महाराजा मानवेंद्र शाह के नाम पर रखने के निर्देश हैं।

 इस मौके पर गिरवीर रमोला, प्रधान जगदंबा बेलवाल, मंगला रमोला, भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष नूर अहमद, फल पट्टी के अध्यक्ष वीरेंद्र नेगी सहित कई लोग मौजूद थे।

Source Amarujala

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किवी के फल उत्पादकों को नहीं मिल रहा बाजार
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न्यूजीलैंड के फल के नाम से जाने वाले फल किवी का जनपद में उत्पादन तो हो रहा है परंतु बाजार न मिलने से अन्य काश्तकार इस फल के उत्पादन में रूचि नहीं ले पा रहे हैं। जिस कारण इस फल को यहां की आय का प्रमुख आधार नहीं बनाया जा सका है।

जनपद में वर्ष 2003 में उद्यान विभाग ने जहां पर उत्पादन की जलवायु को उपयुक्त पाया वहां के काश्तकारों को इसके लिए प्रेरित किया। उनके प्रोत्साहन से शामा, कौसानी, देवलधार में काश्तकारों ने इसका उत्पादन किया। किवी के फल उत्पादन में विशेष ध्यान यह रखनी होती है इसमें नर व मादा दोनों पेड़ लगाए जाते हैं। इस फल की खास बात यह है कि यह फल विटामिन्स से लवरेज फल होता है तथा इसे बंदर व अन्य जंगली जानवर नुकसान नहीं कर सकते हैं। साथ ही लम्बे समय तक यह खराब नहीं हो पाता है। कौसानी के पिंगलकोट में किवी के फल की दिल्ली व अन्य बाजारों में आसानी से 200 रुपये प्रति किग्रा तक मिल जाती है परंतु यहां पर काश्तकारों को इसकी कीमत 50 रुपये प्रति किग्रा भी नहीं मिल पा रहा है। काश्तकार बलवंत सिंह व मदन सिंह कठायत बताते हैं कि उनके द्वारा इस फल के विपणन के लिए कई बार प्रयास किये गये, परंतु इसके बाद भी उन्हें बाजार नहीं मिल पा रहा है। उनका मानना है कि विपणन के लिए विभाग को विशेष प्रयास करने चाहिए।

विभाग करेगा हरसंभव सहयोग

जिला उद्यान अधिकारी डा नरेंद्र कुमार ने कहा है कि वे किवी फल के उत्पादन बढ़ाने व विपणन के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। उन्होने कहा कि जनपद में किवी के उत्पादन की कमी होने के कारण दिल्ली आदि क्षेत्र से सीधे खरीददार नहीं पा रहे हैं। कहा कि फिलहाल रवि बाजार, उत्तरायणी मेले व होटलों में सम्पर्क कर उत्पादक इसे बेच सकते हैं जिसमें भी विभाग पूर्ण सहयोग करेगा।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8685003.html

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कृषक क्लस्टर विकास योजना का उठाएं लाभ
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रेशम फार्म लक्ष्मीपुर में रेशम की खेती करने वाले लोगों के लिए आयोजित गोष्ठी में क्लस्टर विकास योजना की जानकारी दी गई। विभागीय अधिकारियों ने कहा कि कृषक इस योजना का लाभ उठाएं।

गोष्ठी में क्लस्टर विकास केंद्र कालसी के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह ने कहा कि योजना अंतर्गत किसानों को केंद्र एवं राज्य सरकार आर्थिक सहायता प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि विकासनगर ब्लॉक के 150 रेशम कीट पालकों को कीटपालन गृह बनाने के लिए 40 हजार रुपये केंद्रीय रेशम बोर्ड और 5000 रुपये राज्य रेशम विभाग उत्तराखंड ने दिए हैं।

कीटपालन उपकरण के लिए प्रति इकाई बीस हजार रुपये उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि शहतूती पौधरोपण योजना अंतर्गत कृषकों को 300 शहतूत के पौधे लगाने होते हैं, इन पौधों के रोपण और रखरखाव के लिए किसानों को लागत की 90 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8976500.html

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घट रहे खेत , बढ़ रहे किसान !


   कोटद्वार व आसपास के क्षेत्रों में 'कृषि' भूमि लगातार घट रही है। स्थिति यह है कि सरकारी दस्तावेजों में भले ही क्षेत्र में कृषि जोत भले ही सैकड़ों हेक्टेयर हो, लेकिन हकीकत पूरी तरह उलट।

हैरानी की बात तो यह है कि 'कृषि' जोत तेजी से कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रही है, लेकिन क्षेत्र में काश्तकारों की संख्या कम नहीं हो रही। क्षेत्र में 'किसान क्रेडिट' कार्ड को लेकर हो रही मारामारी को देख तो कुछ यही नजर आता है।

कृषि विभाग के रिकार्ड को खंगालें तो आज भी विभागीय दस्तावेजों में कोटद्वार- भाबर की तीन न्याय पंचायतों की 31 ग्रामसभाओं में करीब ढाई हजार हेक्टेयर कृषि भूमि है, लेकिन यदि धरातल पर देखें तो स्वयं कृषि अधिकारी भी मानते हैं पूरे क्षेत्र में करीब एक हजार हेक्टेयर भूमि पर भी पूरी खेती नहीं होती। पिछले 50 वर्षो से भूमि का बंदोबस्त न हो पाया है।


दरअसल, सरकारी रिकार्ड में आज भी वही कृषि भूमि दर्ज है, जो 1960 के बंदोबस्त के दौरान थी। सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि क्षेत्र में कृषि लगातार घट रही है, लेकिन 'काश्तकार' लगातार बढ़ रहे हैं।
क्या है किसान क्रेडिट कार्ड योजना

केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक व राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के संयुक्त तत्वावधान में चलती है 'किसान क्रेडिट कार्ड' ऋण योजना। योजना के तहत काश्तकार को उनकी 'जोत' के मुताबिक रबी व खरीफ की फसलों के लिए अल्प ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है।

ऋण देने के लिए अधिकतम सीमा 50 हजार तय है। इतना ही नहीं, कार्ड धारकों को 'व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा पैकेज' का लाभ भी दिया जाता है। क्रेडिट कार्ड की अवधि पांच वर्ष की है व प्रत्येक छमाही फसल पर काश्तकार पुराना ऋण अदा कर नया ऋण ले सकता है।
क्या हो रहा है खेल


Jagran news

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रुद्रप्रयाग में खुलेगा कृषि विवि व मेडिकल कालेज
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रुद्रप्रयाग : प्रदेश के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि रुद्रप्रयाग जिले के जखोली ब्लाक मुख्यालय में कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा तथा मुख्यालय में मेडिकल कालेज खोला जाएगा, इसके लिए प्रमुख सचिव को निर्देश दे दिए गए हैं। प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ ही मंडी परिषद रुद्रप्रयाग जिले को गोद लेकर यहां विकास कार्य करेगी।

मंत्री बनने के बाद यहां पहुंचे कृषि मंत्री हरक सिंह रावत ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय को शीघ्र जनता की सुविधानुसार नए स्थान पर स्थापित किया जाएगा, इसके लिए प्रथम स्थान रुद्रप्रयाग शहर के बीच में स्थित आर्मी क्षेत्र है जबकि दूसरी प्राथमिकता भटवाड़ीसैड़ हैं।

 श्री रावत ने कहा कि जखोली ब्लाक मुख्यालय में शीघ्र कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा। इसके लिए प्रमुख सचिव कृषि को निर्देशित कर दिया गया है। जिले को मंडी परिषद की ओर से गोद लिया जाएगा, जिसके तहत यहां के रास्ते व अन्य विकास संबंधी कार्य किए जाएंगे।

 जिला मुख्यालय में सैनिक स्कूल भी खोला जाएगा। उप नल के तहत जिले के यहां के भूतपूर्व सैनिकों व अन्य को रोजगार मुहैया कराया जाएगा। साथ ही पूरे प्रदेश में जैविक व व्यवसायिक खेती को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके तहत मंडुवा, तिलहन, अरबी, अदरक, हल्दी की खेती पर विशेष जोर दिया जाएगा।


Dainik jagran

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वैज्ञानिक तकनीकों का किसानों को करें हस्तांतरण

लोहाघाट : डीएम श्रीधर बाबू अद्दांकी ने कृषि एवं अनुसंधान केंद्र सुई में जाकर वैज्ञानिकों द्वारा सब्जी पर किए जा रहे प्रयोगों व अन्य कार्यक्रमों का निरीक्षण किया। उन्होंने प्रक्षेत्र भ्रमण कर संरक्षित खेती के अतंर्गत पॉलीहाउस में शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा आदि की फसलें देखी।

उन्होंने केंद्र के प्रभारी अधिकारी को वैज्ञानिक तकनीकों का हस्तांतरण किसानों के खेतों में करने के निर्देश दिए तथा इस दिशा में केंद्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। जिलाधिकारी ने वर्षा आधारित जल संचयन तकनीकि को उपयोगी बताते हुए कहा कि सिंचाई के साधन न होने से पर्वतीय अंचलों में इस प्रकार के तरीके वरदान साबित हो सकते हैं। उनका कहना था कि जिस उद्देश्य से यहां केवीके की स्थापना की गई है

 उसके अनुरूप वैज्ञानिक स्थानीय जलवायु के अनुरूप शाक सब्जी के बीज विकसित कर किसानों की बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं। डीएम ने मशरूम उत्पादन, मत्स्य पालन, गृह वाटिका व प्रकाश प्रपंच का भी अवलोकन किया। उनके साथ आइटीबीपी के कमांडेंट नरेंद्र सिंह व अन्य अधिकारी भी मौजूद थे।



Source Dainik Jagran

Hisalu

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