Author Topic: उप्र के इलाके उत्तराखण्ड में जोड़ने का मामला - Merger of some parts of UP in UK  (Read 12895 times)

jagmohan singh jayara

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उत्तराखंड राज्य मांगने का स्वपन था....उत्तराखंडी, उत्तराखंड लौटें और जन्मभूमि पर ही अपना और उत्तराखंड का विकास करें.  अगर महानगरों में बसे उत्तराखंडी भी उत्तराखंड प्रशासनिक सेवाओं में सम्मिलित हों और अपने राज्य का ईमानदारी से विकास करें....इससे बढ़कर क्या "सोने पर सुहागा" हो सकता है.  विकसित उत्तराखंडी आज महानगरों में रच बस गए हैं..शायद उन्हें उत्तराखंड की ओर जाने की जरूरत भी नहीं.  जो उत्तराखंड में रहेगा....उसका श्रृंगार  करेगा........उसका ही वहां अधिकार है.  उत्तराखंड हर प्रवासी उत्तराखंडी को पुकार रहा है...अब  तो लौट आओ...चाहे वो उत्तराखंडी सीमा के निकटवर्ती  भू-भाग में रहता हो.     

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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It looks like that Uttarakhand is becoming a stage for all crude politicians.  Is there any sense in all that? Uttarakhand is formed on development of pahari people.  It is clearly mentioned that Pahari means not that the person of pahari origin, means people only living up in the hills.  Since there problems are altogether different from the people of the other part of state.  But sadly it was not happened, problems of pahari people are not taken well.  Now a new trend is also started that villages of Bijnor and Saharanpur are also included in Uttarakhand and what is the need of the a new state, why should'nt we call it Uttar Pradesh. 
All the national polytical parties never taken Uttrakhand people seriously and the only regional pary Uttarakhand Kranti Dal never taken seriously by the people of the state as there leaders are not having any coordination and structure of the party, there more leaders than members in the party.  In the above circumstances the situation of specially pahari people is worsen and there is no hope of any improvement in the future
There are many other issues related to jal, jungle aur jameen of Pahari people which are not solved or taken seriously by the political parties, all of our rivers are getting dry and even furtile land becoming barren.  But the politicians are busy with new slogans and people are after them as they have no clue about their future.

Devbhoomi,Uttarakhand

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यूपी के गांवों को नहीं होने देंगे शामिल

गोपेश्वर (चमोली)। यूकेडी के केंद्रीय प्रवक्ता सतीश सेमवाल ने कहा कि उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती गांवों को उत्तराखंड में शामिल किए जाने का कड़ा विरोध किया जाएगा। इस मामले में नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत के बयान का कड़ा विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि यदि उनको यूपी की ज्यादा चिंता हो रही है, तो वे उत्तराखंड की राजनीति को छोड़कर यूपी में राजनीति करें।

जिला मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती गांवों को उत्तराखड राज्य में किसी भी स्थिति में मिलने नहीं दिया जाएगा, चाहे उनके दल को इसके विरोध में सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई क्यों न लड़नी पड़े। उन्होंने कहा कि सैद्धांतिक व व्यवहारिक तौर पर दल ऐसे हर प्रस्ताव को विरोध करेगा, जिसमें राज्य का नुकसान हो। उनका कहना है कि हालिया परिसीमन से जहां पर्वतीय क्षेत्रों की 6 विधानसभा सीटें कम हुई हैं वहीं विकास की दर भी दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।

 ऐसे में यूपी के एक हिस्से को यहां मिलाने से राज्य पर वित्तीय संकट गहराने के साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों के सर्वागीण विकास की परिकल्पना भी समाप्त हो जाएगी।

उन्होंने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वे और कांग्रेस पार्टी कभी भी पृथक राज्य के पक्ष में नहीं रही और अब नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत उत्तराखंड के विकास की चिंता करने के बजाए यूपी पर ध्यान केन्द्रित किए हुए हैं।



source dainik jagran

Rawat_72

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saharanpur bhale hee shamil ho naa ho par insme koi do rai nahi kee wahan badi tadat mein uttarakhandi rahate hai.. aur jab udhamsingh nagar wale jo pahale uttarakhand mein shamil nahi hona chahate thay par ab uski almost free kee bijli par mauj kar rahe hai, toh apne khud ke uttarakhand bhai bahanon ko uttrakhand mein shamil kiye jane par apati nahi honi chahiye.

सुधीर चतुर्वेदी

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उत्तराखंडी तो अन्य जगहों  मे भी रहते है तो क्या कल को उन जगहों   के लोग भी उसमे शामिल होना चाहेंगे तो क्या हम उनको भी  ले लेंगे साफ बात है नहीं तो फिर किसी और को  को क्यों लेंगे आज उनके यहाँ विकाश नहीं हो रहा है तो इसमे उत्तराखंड की क्या गलती | उत्तराखंड का मतलब पहाड़ है और पहाड़ का मतलब साफ है सिर्फ उत्तराखंड , रही बात उधम सिंह नगर (रुद्रपुर ) की तो ये मत भूलिये की खटीमा कांड वही हुआ था राज्य बनाने के लिये और टनकपुर, बनबसा और चकरपुर की जनता भी उत्तराखंड बनाने के पक्ष   मे थे  ये सभी उस समय उधम सिंह नगर के हिस्से थे |
           जब राज्य का आन्दोलन चला था तो सबको मालूम है की राज्य प्राप्ति के लिये संघर्ष पहाड़ वालो ने किया क्यों किया ? क्योंकि उत्तार प्रदेश मे रहते हुये पहाड़ो का विकाश नहीं हो पा रहा था इसलिये ये मांग थी | बार - बार पहाड़ के लोगो को छला जाता है चाहे वह राजधानी का मुद्दा हो या परिसीमन का हर बार नुकसान पहाड़ का होता है | जो उत्तराखंडी है उन सब का उत्तराखंड मे स्वागत है पर विलय नहीं होना चाहिये |  

सुधीर चतुर्वेदी

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                            Ek Khabar Yai Bhi ..................................

184 ग्रामों को उत्तराखंड में शामिल कराने की मांग जायज : रावत (Dec14/09 , Source : Dainik Jagran)

अफजलगढ़ (बिजनौर)। उत्तराखंड विस में प्रतिपक्ष के नेता एवं कांग्रेस विधायक डा. हरक सिंह रावत ने बिजनौर जिले के 61 ग्राम पंचायतों के 184 गांवों को उत्तराखंड में शामिल कराने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन को जायज ठहराया है। उन्होंने इसके लिए कांग्रेस की ओर से सीमावर्ती उत्तराखंड संघर्ष समिति को पुरजोर समर्थन देने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को वह उत्तराखंड विस में भी उठाएंगे, जिससे कि उत्तराखंड गठन के दौरान संघर्ष करने वाले हजारों ग्रामवासियों को इसका लाभ मिल सके।

कांग्रेस विधायक एवं उत्तराखंड विस प्रतिपक्ष के नेता डा. रावत ग्राम कादाराबाद स्थित बीएसए इंटर कालेज में संघर्ष समिति द्वारा रविवार की दोपहर 12 बजे से आहूत एक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती उत्तराखंड संघर्ष समिति तब तक चुप नहीं बैठेगी जब तक बिजनौर जिले के ब्लाक अफजलगढ़, नजीबाबाद व कोतवाली देहात की 61 ग्राम पंचायतों के 184 गांवों को उत्तराखंड में शामिल कर लिया नहीं जाता। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को वह विस सभा में उठाने से नहीं चूकेंगे। संघर्ष समिति के केंद्रीय संयोजक मनमोहन दुधपुड़ी ने कहा कि भले ही छोटे प्रदेशों की मांग की जा रही हो, लेकिन उनका मकसद सिर्फ उत्तराखंड के लिए संघर्ष करने वाले बिजनौर जिले के हजारों ग्रामवासियों को उन्हें न्याय दिलाने का है। उन्होंने कहा कि बिजनौर जिले में रहकर इन ग्रामवासियों की समस्याओं का समाधान होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि इन ग्रामों के हजारों लोगों के लिए उत्तराखंड में यूपी से ज्यादा सहूलियतें व रोजगार की संभावनाएं हैं। सभा में प्रदेश संगठन मंत्री यतेन्द्र यामिनी, मील ध्यानी, भूपेन्द्र रावत आदि ने भी विचार रखे। जबकि सभा में चौधरी बलजीत सिंह, मलकीत सिंह, कुंदन सिंह, सुखदेव सिंह, बलदेव सिंह, परवीन सिंह, चन्द्रपाल सिंह,अनिल कुमार, वेदपाल सिंह, विजयभान सिंह आदि मौजूद रहे। अध्यक्षता सरदार रघुवीर सिंह व संचालन मदन सिंह रावत ने किया।
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हेम पन्त

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रुद्रपुर (जिला उधम सिंह नगर) की सीमा से लगे तहसील बिलासपुर, जिला रामपुर के कुछ गांवों के लोग भी अपने इलाके को उत्तराखण्ड की मांग करने लगे हैं. यह इलाके उधम सिंह नगर जिला मुख्यालय से सिर्फ 2-3 किमी के फासले पर स्थित हैं. एक दिलचस्प बात यह भी है कि रुद्रपुर का रेलवे स्टेशन भी रामपुर जिले में पड़ता है.

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड राज्य मांगे जाने की अवधारणा पर्वतीय राज्य तक ही थी, यहां के पहाड़ी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से अलग राज्य की मांग थी। लेकिन कुछ सत्ता लोलुप लोगों (नेताओं) ने इसके भौगोलिक मानचित्र से छेड़्छाड़ की, जिसका परिणाम विगत परिसीमन के दौरान सामने आया कि पर्वतीय क्षेत्रों से 9 विधान सभा क्षेत्र कम हो गये। मतलब पहाड़ी क्षेत्रो की जनता 9 विधायक निधियों से मरहूम हो गई।
जब अन्य मैदानी और सघन आबादी वाले क्षेत्र जोड़े जायेंगे तो फिर स्थिति और गंभीर हो जायेगी। पृथक पर्वतीय राज्य की अवधारणा ही समाप्त हो जायेगी। वोटों के लिये उत्तराखण्ड के वर्तमान स्वरुप से अब और छेड़छाड़ करना उचित नहीं होगा। यदि ऐसा होता है तो यह उत्तराखण्ड के भविष्य के लिये आत्मघाती और अत्यधिक घातक सिद्ध होगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I fully endorse the views of Mahar da.

There is another issue of "parisiman" also. I am not in favour this this at all. Even during these 9 yrs, hill areas village still seem to be neglected in terms of development.

उत्तराखण्ड राज्य मांगे जाने की अवधारणा पर्वतीय राज्य तक ही थी, यहां के पहाड़ी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से अलग राज्य की मांग थी। लेकिन कुछ सत्ता लोलुप लोगों (नेताओं) ने इसके भौगोलिक मानचित्र से छेड़्छाड़ की, जिसका परिणाम विगत परिसीमन के दौरान सामने आया कि पर्वतीय क्षेत्रों से 9 विधान सभा क्षेत्र कम हो गये। मतलब पहाड़ी क्षेत्रो की जनता 9 विधायक निधियों से मरहूम हो गई।
जब अन्य मैदानी और सघन आबादी वाले क्षेत्र जोड़े जायेंगे तो फिर स्थिति और गंभीर हो जायेगी। पृथक पर्वतीय राज्य की अवधारणा ही समाप्त हो जायेगी। वोटों के लिये उत्तराखण्ड के वर्तमान स्वरुप से अब और छेड़छाड़ करना उचित नहीं होगा। यदि ऐसा होता है तो यह उत्तराखण्ड के भविष्य के लिये आत्मघाती और अत्यधिक घातक सिद्ध होगा।

सुधीर चतुर्वेदी

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                                वे उत्तराखंड में मिलना चाहते हैं

लेखक : सूरज कुकरेती

 पौड़ी जनपद में कोटद्वार की दक्षिणी सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर की तहसील नगीना, नजीबाबाद, अफजलगढ़ क्षेत्र के 100 से अधिक गाँव उत्तराखण्ड में शामिल होने के लिए पिछले तीन-चार महीनों से आंदोलित हैं। यहाँ के लोगों ने सीमावर्ती संघर्ष समिति का गठन कर 14 जून 2009 को हुंकार रैली का आयोजन कर कोटद्वार स्थित बी.ई.एल. मैदान में एक बड़ी जनसभा की और उप जिलाधिकारी के माध्यम से केन्द्र सरकार, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड सरकार को ज्ञापन प्रेषित कर उत्तराखण्ड राज्य में शामिल करने की माँग की। ज्ञापन में कहा गया कि जनपद बिजनौर के नजीबाबाद तहसील से गुजरने वाली पूर्वी गंगनहर की लगभग 25 किमी. लम्बी पट्टी, जो कि नगीना तहसील होते हुए कालागढ़ तक है, को उत्तराखण्ड में मिलाया जाये। सभा को भागवत शर्मा, मनमोहन दुदपुड़ी, फौजाराम एडवोकेट, मो. आरिफ खान, दर्शन सिंह रावत, डी.एन. खुगसाल, स. परमजीत सिंह पम्मा, अमर जीत सिंह आदि के अलावा कोटद्वार क्षेत्र के विधायक शैलेन्द्र रावत तथा कोटद्वार नगरपालिकाध्यक्ष श्रीमती शशि नैनवाल ने भी संबोधित किया।

संघर्ष समिति ने पुनः 16 अगस्त को विशाल रैली निकाल कोटद्वार तहसील में धरना-प्रदर्शन के बाद आमरण अनशन शुरू किया। एक सप्ताह तक भूख हड़ताल पर बैठने वालों में घनानन्द कुकशाल, भरपूर सिंह, ज्ञानी जोगेन्द्र सिंह, केदार दत्त घिल्डियाल, शिवानन्द, वीरसिंह, शिवसिह रावत, मिलकराज, दिगम्बर प्रकाश डबराल, खालसा बलकार सिंह, किसन सिंह, जीत सिंह, फौजाराम, कल्याण सिंह, निर्मल सिंह, गजेन्द्र सिंह आदि शामिल थे। अनशनकारियों के स्वास्थ्य में गिरावट आने पर कोटद्वार के विधायक शैलेन्द्र सिंह रावत ने अफजलगढ़ (उ.प्र.) के पूर्व विधायक व बसपा नेता इन्द्रदेव सिंह को अनशनकारियों के बीच आमंत्रित किया। इन दोनों नेताओं ने संघर्ष समिति को विश्वास में लेकर अपनी सरकारों से उनकी माँगें मनवाने का वायदा किया। इन्द्रदेव सिंह ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के समय अव्यावहारिक सीमांकन करने से करीब एक सौ गाँव उत्तराखण्ड में मिलाये जाने से वंचित रह गये। सामाजिक, सांस्कृतिक रूप से जुड़े इन गांवों का उत्तराखण्ड से पूर्व से ही जुड़ाव रहा है। इन गांवों की जरूरतें- बिजली,पानी, स्वास्थ्य चिकित्सा, खरीददारी आदि उत्तराखण्ड से ही पूरी होती है। पूर्वी गंगनहर से ऊपर का हिस्सा 1952 से उत्तराखण्ड में शामिल था। इन दोनों नेताओं के प्रयासों से आंदोलनकारियों ने जूस पीकर अपना अनशन वापस ले लिया।



Source : Nainital Samachar

 

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