उत्तराखण्ड में बहुप्रतीक्षित पंचायत चुनाव संपन्न हो गये हैं, कई जगहों पर पंचायत प्रतिनिधियों ने शपथ ग्रहण भी कर ली है। सरकार के महिलाओं को ५० प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले की परिणिति अब कार्य शुरु करने के बाद सामने आनी शुरु होगी। गांवो के चूल्हे-चौके, खेत-खलिहान, गोठ-पात से बाहर निकली नव निर्वाचित इन महिला प्रधानों के सामने अब मुख्य चुनौती पुरुष प्रधान नौकरशाही और बाबूगिरी से निपटना होगी। इन महिलाओं के सामने एक और चुनौती होगी, सरकारी कार्य के निष्पादन की, सरकारी कार्य की शैली से नितान्त अपरिचित, ग्राम विकास अधिकारी को अपना इमीडियेट बास समझने वाली इन प्रधानों को अब सूचना के अधिकार की बारीकियों को भी समझना होगा, क्योंकि अपनी ग्राम सभा में वे ही लोक सूचना अधिकारी होंगी और ग्राम सभा से जुड़ी सभी सूचनाओं को लेने-देने के लिये वे ही जिम्मेदार भी होंगी।
कमोबेश यही स्थिति जिला पंचायत की सदस्यों की भी है, जैसा मैंने पहले भी कहा था कि जो महिला अपने ही गांव के बुजुर्गों से बोलने में शरमाती रही हो और जिसके लिये जिलाधिकारी का चपरासी ही बहुत बड़ा साहब हो, जिसके लिये जिला मुख्यालय की बाजार “बजार”, जलेबी और चाट खाने की जगह और अदद एक साड़ी और चूड़ी पहनने की जगह रही है, क्या वह वहां जाकर जिलाधिकारी और अन्य सदस्यों के सामने जिला योजना के बजट पर प्लान और नान-प्लान पर बहस कर पायेगी? यह एक यक्ष प्रश्न है, नीति बनाना तो आसान होता है, लेकिन उन पर अमल करना और कराना किसी चुनौती से कम नहीं होती। केन्द्रीय नेतृत्व के इशारे पर सत्तारुढ़ सरकार ने पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिये ५० फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर उन्हें निर्वाचित तो करवा लिया है, लेकिन क्या इन निर्वाचित प्रतिनिधियों को किसी प्रकार का प्रबोधन (ट्रेनिंग) दिये जाने का प्रावधान किया है? क्या उन्हें अपने अधिकार, कर्तव्य और दायित्वों की सही जानकारी है, क्या उन्हें अपने कर्तव्य और दायित्वों के निर्वहन की कोई जानकारी है, क्या इन महिला प्रधानों को यह जानकारी है कि ग्राम प्रधान का बस्ता क्या होता है, भाग-२ रजिस्टर क्या है? इन सभी जानकारियों से इन महिला प्रधानों को अवगत कराया जायेगा या यह महिलायें पहले की ही तरह चूल्हा फूंकती रहेंगी और इनके पति या इन्हें चुनाव लड़ाने वाले लोग ही फरमाबरदार बन इनके साथ ही, ग्राम सभाओं में पहले की ही तरह राज करते रहेंगे?
अब सरकार के साथ-साथ समाज की आधी शक्ति कहे जाने वाले महिला वर्ग की इन पंचायत प्रतिनिधियों का भी शक्ति परीक्षण होना है। जिसे समाज ने अपना प्राथमिक जन प्रतिनिधि बनाया है, जिनके जिम्मे समाज के प्राथमिक तबके, गांव का विकास है।