Poll

क्या पंचायतों में चुनी गयी महिला प्रतिनिधि पुरुषों की अपेक्षा अधिक विकास करवा पायेंगी?

yes
10 (47.6%)
No
7 (33.3%)
Can't Say
4 (19%)

Total Members Voted: 21

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Panchayat Elections In Uttarakhand - उत्तराखंड मे पंचायत चुनाव  (Read 29964 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,

जैसा कि आपको ज्ञात है उत्तराखंड मे पंचायत चुनाव चल रहे है ! यहाँ पर सरकार ने महिलाओ को पंचायत चुनावों में ५० % आरक्षण भी दिया है, तो क्या अब ५० % निर्वाचित महिलायें पंचायत स्तर पर विकास कार्य तेजी से कर पायेंगी?
क्या यह महिलायें पंचायतों के सभी काम-काज स्वयं कर पायेंगी।

Do you think that women will be able to do better development?

regards,


M S Mehta

पंकज सिंह महर

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मेहता जी,
      यह अच्छा विषय है, सरकार ने महिलाओं को पंचायत चुनावों में ५० % आरक्षण तो दे दिया, ठीक है। पिछले चुनावों में भी कुछ सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित थीं, लेकिन कितनी महिलाओं ने अपना कार्य किया, यह विश्लेषण का विषय है। ऎसी महिला जनप्रतिनिधि मात्र हस्ताक्षर करने तक ही सीमित रहीं। शहरी क्षेत्रों मेम तो महिलायें राजनीति में सक्रिय रह्ती हैं, लेकिन मेरी पीड़ा उस पहाड़ की नारी, लछिमा देवी की है, जो अपना नाम लिखना नहीं जानती, जिसे ग्राम प्रधानी का बस्ता स्या होता है, ब्लाक की योजनायें क्या होती हैं भी पता नहीं है, वह पिछली बार भी ग्राम प्रधान थी और उसने अपना ग्राम प्रधान का दायित्व भी निभाया, लेकिन कैसे.......? जहां पर उसके पति ने अंगूठा लगाने को कहा, वहां लगा दिया और कई बार जब वह घास लाने ४ मील गई थी और जरुरी कागजों पर उसका अंगूठा चाहिए था, तो उसके पति ने अपनी ही अंगूठा लगा दिया।
     मेरी चिन्ता उस हरुली देवी के लिये है, जो जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसे यह पता ही नहीं कि जिला पंचायत होती क्या है, आज भी चमोली का जिला मुख्यालय गोपेश्वर उसके लिये "बजार" है, जहां वह अपने पति से साथ चूडि़यां लाने और जलेबी खाने ही जाती थी, जिलाधिकारी आज भी उसके लिये भौत बड़ा सैप है.....तो क्या वह जिला पंचायत में निर्वाचित होकर अपने क्षेत्र की समस्याओं को वहां उठा पायेगी? क्या वह जिला प्लान की बैठकों में प्लान और नान-प्लान के बजट पर बहस कर पायेगी?
 
       सरकार अगर महिलाओं को आगे लाना चाहती है तो पहले उनको शिक्षित तो करे, उनको पता तो चले कि समाज क्या है, क्या उसके अधिकार हैं। मैं एक ऎसी ग्राम प्रधान को जानता हूं जो पिछले ५ साल गांव की प्रधान रही, वह एक अनुसूचित जाति की महिला हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाय कि ब्लाक योजना क्या है, वहां पर बैठक में कौन आता है, कैसे योजना पास होती है, ग्राम प्रधान का बस्ता क्या होता है, ग्राम कल्याण अधिकारी क्या है, तो वह ऎसे मुंह ताकती हैं, जैसे मैंने उनके किसी और भाषा में बात की हो!   तो यह है सच्चाई......देखते हैं इस बार क्या होता है।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भले ही पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जा रहे हैं, लेकिन इन चुनावों में दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उम्मीदवारों से ज्यादा विधायकों और मंत्रियों के लिए इन चुनावों की अहमियत मानी जा रही है। इन चुनावों में दिग्गजों में से किसी की पत्‍‌नी को किसी का निकट संबंधी मैदान में डटा हुआ है। उनके सामने एक प्रकार से दोहरी चुनौती है। एक तरफ अपना जनाधार साबित करना है तो दूसरा यह कि अगर वह किला फतह कर लेते हंै तो पार्टी नेतृत्व को जवाब देने से भी बच जाएंगे, अन्यथा कई किंतु-परंतु आगे भी टेंशन देते रहेंगे। जहां तक राजनैतिक दलों का सवाल है उनके लिए भी चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह वह सीढ़ी से जहां सियासी धरातल तैयार होता है। फिर भला कौन सा ऐसा दल होगा, जो इनमें अपने चहेतों को फिट नहीं करना चाहेगा। इन चुनावों को इसलिए भी गंभीरता से लिया जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों बाद आम चुनाव की रणभेरी बजने वाली है। बुनियादी तंत्र पर जिस पार्टी की पकड़ अच्छी होगी, नि:संदेह आम चुनावों में उसे ज्यादा लाभ मिलेगा। भाजपा और कांग्रेस के लिए तो ये चुनाव एक प्रकार से रिहर्सल हैं। इसमें दो राय नहीं कि इन दलों के लिए चुनाव के नतीजे संजीवनी से कम नहीं होंगे। अभी जितनी मेहनत करेंगे, आगे का रास्ता उतना ही आसान हो जाएगा। पंचायत चुनावों के जिस प्रकार की सियासी तिकड़म चल रही है यह स्वाभाविक भी है, लेकिन चिंताजनक पहलू जो सामने आ रहा है शराब का प्रचलन जिस तेजी से पनप रहा है, वह किसी न किसी रूप में घातक साबित होगा। पंचायत चुनाव का सीधा का अर्थ कि गांव के उस शख्स का चुनाव करना है जिसने विकास की कड़ी रखनी है। अगर बुनियाद इस तरह रखी गई तो लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। किसी भी स्तर के चुनावों में शराब संस्कृति से दूरी बनाना बेहतर होगा। उत्तराखंड में इसलिए भी यहां पहाड़ के बाशिंदे सबसे ज्यादा इसी को लेकर त्रस्त हंै। सालों से इसके खिलाफ वह आवाज भी बुलंद करते आए हैं।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेहता जी,
      यह अच्छा विषय है, सरकार ने महिलाओं को पंचायत चुनावों में ५० % आरक्षण तो दे दिया, ठीक है। पिछले चुनावों में भी कुछ सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित थीं, लेकिन कितनी महिलाओं ने अपना कार्य किया, यह विश्लेषण का विषय है। ऎसी महिला जनप्रतिनिधि मात्र हस्ताक्षर करने तक ही सीमित रहीं। शहरी क्षेत्रों मेम तो महिलायें राजनीति में सक्रिय रह्ती हैं, लेकिन मेरी पीड़ा उस पहाड़ की नारी, लछिमा देवी की है, जो अपना नाम लिखना नहीं जानती, जिसे ग्राम प्रधानी का बस्ता स्या होता है, ब्लाक की योजनायें क्या होती हैं भी पता नहीं है, वह पिछली बार भी ग्राम प्रधान थी और उसने अपना ग्राम प्रधान का दायित्व भी निभाया, लेकिन कैसे.......? जहां पर उसके पति ने अंगूठा लगाने को कहा, वहां लगा दिया और कई बार जब वह घास लाने ४ मील गई थी और जरुरी कागजों पर उसका अंगूठा चाहिए था, तो उसके पति ने अपनी ही अंगूठा लगा दिया।
     मेरी चिन्ता उस हरुली देवी के लिये है, जो जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसे यह पता ही नहीं कि जिला पंचायत होती क्या है, आज भी चमोली का जिला मुख्यालय गोपेश्वर उसके लिये "बजार" है, जहां वह अपने पति से साथ चूडि़यां लाने और जलेबी खाने ही जाती थी, जिलाधिकारी आज भी उसके लिये भौत बड़ा सैप है.....तो क्या वह जिला पंचायत में निर्वाचित होकर अपने क्षेत्र की समस्याओं को वहां उठा पायेगी? क्या वह जिला प्लान की बैठकों में प्लान और नान-प्लान के बजट पर बहस कर पायेगी?
 
       सरकार अगर महिलाओं को आगे लाना चाहती है तो पहले उनको शिक्षित तो करे, उनको पता तो चले कि समाज क्या है, क्या उसके अधिकार हैं। मैं एक ऎसी ग्राम प्रधान को जानता हूं जो पिछले ५ साल गांव की प्रधान रही, वह एक अनुसूचित जाति की महिला हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाय कि ब्लाक योजना क्या है, वहां पर बैठक में कौन आता है, कैसे योजना पास होती है, ग्राम प्रधान का बस्ता क्या होता है, ग्राम कल्याण अधिकारी क्या है, तो वह ऎसे मुंह ताकती हैं, जैसे मैंने उनके किसी और भाषा में बात की हो!   तो यह है सच्चाई......देखते हैं इस बार क्या होता है।

Mahar Ji,

This is indeed a good step taken by the Govt but situation that the most of the women candidates are Illiterate they even they don't know their state name and CM name. This was watching in ETV news a few days ago.


Risky Pathak

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Sir Jee,

Sabhi Gaanv Ki Haalat Aisi Hi Hai....

Sarkaar Ne Apni Taraf se to Striyo ko 50 percent chunaav me bhaagidaari de di. Par Gram Pradhaan ka sara karya unke pati hi dekhte hai. Asal Me Jo Gram Pradhan Hai Uska istemaal to bas angutha lgaane ke liye kiya jata hai.

Acha 1 baat or gaanv ke logo se jab pucho ki graam pradhaan kaun hai to unhe..... Uske Pati ka hi naam yaad aata hai....

Risky Pathak

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Gram pradhaan election is like a KAUTHIG in Villages.

Last time In March 2003, i was at my hometown at the time of election.

During Elections, all people use to talk about next Gram Pradhaan.
The candidates visit every house and asking for their votes.

You will hear these kinda voice every where.

"Ko Jeetol Ko Jeetol............ Bhan Da Jeetol... Bhan Daa Jeetol..."

Lets Watch Is Time Kon Sa Daa Jeetta Hai.

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड में पंचायत चुनाव का दौर चल रहा है. राजनीति के गिरते स्तर पर हरीश चन्द्र डोर्बी जी की एक कविता


ब्लाक प्रमुखोक चुनाव ऐ गैईं
सुकिल टोपि क मुनाव ऐ गैईं
मैंके जितावो-मैके जितावो हैरे
अच्याल हमार गोवु कै बहार ऐरे
गोनु में क्वै पानि ल्याओ नै ल्याओ
सभापति क मुखम पाणि ऐगो
ब्लाक प्रमुखोक चुनाव ऐगो...

एक जा प्रमुख पन्द्रह जै उम्मीदवार है गई
यस लगाण छ जस हमार नेता लै बिरोजगार है गई
जाग-जाग कें मीटिंग हैरे, अपाण-अपाण सेटिंग हैरे
उम्मीदवारो के कि करूं- कि करूं हैरे
तात्ते खूं जल मरूं हैरे........

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखण्ड में पंचायत चुनाव का दौर चल रहा है. राजनीति के गिरते स्तर पर हरीश चन्द्र डोर्बी जी की एक कविता


ब्लाक प्रमुखोक चुनाव ऐ गैईं
सुकिल टोपि क मुनाव ऐ गैईं
मैंके जितावो-मैके जितावो हैरे
अच्याल हमार गोवु कै बहार ऐरे
गोनु में क्वै पानि ल्याओ नै ल्याओ
सभापति क मुखम पाणि ऐगो
ब्लाक प्रमुखोक चुनाव ऐगो...

एक जा प्रमुख पन्द्रह जै उम्मीदवार है गई
यस लगाण छ जस हमार नेता लै बिरोजगार है गई
जाग-जाग कें मीटिंग हैरे, अपाण-अपाण सेटिंग हैरे
उम्मीदवारो के कि करूं- कि करूं हैरे
तात्ते खूं जल मरूं हैरे........

Very true ....

This poem is very suiting at present senario in UK.. Secondly, in my opinion, Govt has taken a good step towards wormen empowernment by giving them higher reservation but in many village candidates illiterate.

Day before in ETV news, when the reporter asked a women candidate what the name of our state and CM, she could not give the reply. Under such circusmtances, the developmental proceedings related to village etc will get hampered.

What is going on there is husbands of these womens are looking after all the work and the women are just like a stamp. So it is not going be benefited at a larger level.

पंकज सिंह महर

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गेम किट से नैया पार की जुगत

पंकज भट्ट, विकासनगर पंचायत चुनाव में इस बार स्पो‌र्ट्स सामग्री की खासी डिमांड है। जी हां! आप सोच में पड़ गए होंगे, लेकिन यह सच है। युवा वर्ग ने इस बार नई परंपरा शुरू की है। वह उसी प्रत्याशी का प्रचार कर रहे हैं, जो उन्हें पसंदीदा खेलों की सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं। युवाओं की इस मांग को प्रत्याशी भी हाथों-हाथ ले रहे हैं और ऑन स्पॉट उनकी डिमांड पूरी कर रहे हैं। प्रत्याशियों द्वारा बड़ी तादाद में खेल सामग्री खरीदने से दुकानदार भी चांदी काट रहे हैं। चुनाव में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में प्रत्याशी अपनी ओर से कोई ऐसी चूक नहीं करना चाहते, जिससे युवा वर्ग नाखुश हो। वह युवाओं को खुश करने के लिए उनकी डिमांड हर कीमत पर पूरी करने के प्रयासों में जुटे हैं। गांवों में युवा वर्ग विभिन्न पदों पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के प्रचार से पूर्व उनसे पसंदीदा खेल सामग्रियों की डिमांड कर रहा है। ऐसा पहली मर्तबा है, जब युवा वर्ग इस तरह की मांग कर रहा है। इससे पहले चुनाव में ऐसा कभी देखने को नहीं मिला। युवा चुनावी दौर में प्रत्याशियों की मजबूरी को देखते हुए मौज उड़ा रहे हैं। वे डिमांड पूरी होने पर प्रत्याशी के प्रचार में जी-जान से जुट रहे हैं। युवाओं की इस मांग से चुनावी माहौल गरमाया हुआ है और दुकानदारों की खेल आइटमों की खासी बिक्री हो रही है। आजकल मार्केट में खेल सामग्री के रेट भी आसमान छूते नजर आ रहे हैं। तीन सौ का बल्ला पांच सौ रुपये में मिल रहा है। विकासनगर में एक स्पो‌र्ट्स सामग्री के विक्रेता का कहना है कि उसकी दुकान से प्रत्याशी आर्डर देकर खेल सामग्री खरीद रहे हैं, लेकिन डिमांड इतनी ज्यादा है कि कि पूरी नहीं कर पा रहे हैं। पिछले कई दिनों से क्रिकेट की 30 से लेकर 40 किट प्रतिदिन बिक्री हो रही हैं। ऐसे ही विभिन्न क्षेत्रों में अन्य दुकानदारों के पास क्रिकेट सहित वॉलीबाल, फुटबाल, हॉकी व बैडमिंटन आदि के आर्डरों की भरमार है। अब तक जौनसार-बावर क्षेत्र में लगभग तीन लाख रुपये से भी ज्यादा की खेल सामग्री की बिक्री का अनुमान है। क्षेत्र व जिला पंचायत के कई प्रत्याशियों का कहना है कि दुकानदारों ने खेल सामग्री महंगी कर दी है। बाबूगढ़ क्षेत्र में चुनाव प्रचार कर रही युवा वर्ग की टीम से जब पूछा गया, तो उसका कहना था उन्हें क्रिकेट की तीन किटें उपलब्ध कराई गई हैं। इसके अलावा फुटबाल व हॉकी की भी दो-दो किट दी गई हैं, इसलिए वे अमुक प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार में जुटे हैं।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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i believe today is voting there for gram pradhan.

 

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