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Panchayat Elections In Uttarakhand - उत्तराखंड मे पंचायत चुनाव

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


दोस्तों,

जैसा कि आपको ज्ञात है उत्तराखंड मे पंचायत चुनाव चल रहे है ! यहाँ पर सरकार ने महिलाओ को पंचायत चुनावों में ५० % आरक्षण भी दिया है, तो क्या अब ५० % निर्वाचित महिलायें पंचायत स्तर पर विकास कार्य तेजी से कर पायेंगी?
क्या यह महिलायें पंचायतों के सभी काम-काज स्वयं कर पायेंगी।

Do you think that women will be able to do better development?

regards,


M S Mehta

पंकज सिंह महर:
मेहता जी,
      यह अच्छा विषय है, सरकार ने महिलाओं को पंचायत चुनावों में ५० % आरक्षण तो दे दिया, ठीक है। पिछले चुनावों में भी कुछ सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित थीं, लेकिन कितनी महिलाओं ने अपना कार्य किया, यह विश्लेषण का विषय है। ऎसी महिला जनप्रतिनिधि मात्र हस्ताक्षर करने तक ही सीमित रहीं। शहरी क्षेत्रों मेम तो महिलायें राजनीति में सक्रिय रह्ती हैं, लेकिन मेरी पीड़ा उस पहाड़ की नारी, लछिमा देवी की है, जो अपना नाम लिखना नहीं जानती, जिसे ग्राम प्रधानी का बस्ता स्या होता है, ब्लाक की योजनायें क्या होती हैं भी पता नहीं है, वह पिछली बार भी ग्राम प्रधान थी और उसने अपना ग्राम प्रधान का दायित्व भी निभाया, लेकिन कैसे.......? जहां पर उसके पति ने अंगूठा लगाने को कहा, वहां लगा दिया और कई बार जब वह घास लाने ४ मील गई थी और जरुरी कागजों पर उसका अंगूठा चाहिए था, तो उसके पति ने अपनी ही अंगूठा लगा दिया।
     मेरी चिन्ता उस हरुली देवी के लिये है, जो जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसे यह पता ही नहीं कि जिला पंचायत होती क्या है, आज भी चमोली का जिला मुख्यालय गोपेश्वर उसके लिये "बजार" है, जहां वह अपने पति से साथ चूडि़यां लाने और जलेबी खाने ही जाती थी, जिलाधिकारी आज भी उसके लिये भौत बड़ा सैप है.....तो क्या वह जिला पंचायत में निर्वाचित होकर अपने क्षेत्र की समस्याओं को वहां उठा पायेगी? क्या वह जिला प्लान की बैठकों में प्लान और नान-प्लान के बजट पर बहस कर पायेगी?
 
       सरकार अगर महिलाओं को आगे लाना चाहती है तो पहले उनको शिक्षित तो करे, उनको पता तो चले कि समाज क्या है, क्या उसके अधिकार हैं। मैं एक ऎसी ग्राम प्रधान को जानता हूं जो पिछले ५ साल गांव की प्रधान रही, वह एक अनुसूचित जाति की महिला हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाय कि ब्लाक योजना क्या है, वहां पर बैठक में कौन आता है, कैसे योजना पास होती है, ग्राम प्रधान का बस्ता क्या होता है, ग्राम कल्याण अधिकारी क्या है, तो वह ऎसे मुंह ताकती हैं, जैसे मैंने उनके किसी और भाषा में बात की हो!   तो यह है सच्चाई......देखते हैं इस बार क्या होता है।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भले ही पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जा रहे हैं, लेकिन इन चुनावों में दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। उम्मीदवारों से ज्यादा विधायकों और मंत्रियों के लिए इन चुनावों की अहमियत मानी जा रही है। इन चुनावों में दिग्गजों में से किसी की पत्‍‌नी को किसी का निकट संबंधी मैदान में डटा हुआ है। उनके सामने एक प्रकार से दोहरी चुनौती है। एक तरफ अपना जनाधार साबित करना है तो दूसरा यह कि अगर वह किला फतह कर लेते हंै तो पार्टी नेतृत्व को जवाब देने से भी बच जाएंगे, अन्यथा कई किंतु-परंतु आगे भी टेंशन देते रहेंगे। जहां तक राजनैतिक दलों का सवाल है उनके लिए भी चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह वह सीढ़ी से जहां सियासी धरातल तैयार होता है। फिर भला कौन सा ऐसा दल होगा, जो इनमें अपने चहेतों को फिट नहीं करना चाहेगा। इन चुनावों को इसलिए भी गंभीरता से लिया जा रहा है कि आने वाले कुछ महीनों बाद आम चुनाव की रणभेरी बजने वाली है। बुनियादी तंत्र पर जिस पार्टी की पकड़ अच्छी होगी, नि:संदेह आम चुनावों में उसे ज्यादा लाभ मिलेगा। भाजपा और कांग्रेस के लिए तो ये चुनाव एक प्रकार से रिहर्सल हैं। इसमें दो राय नहीं कि इन दलों के लिए चुनाव के नतीजे संजीवनी से कम नहीं होंगे। अभी जितनी मेहनत करेंगे, आगे का रास्ता उतना ही आसान हो जाएगा। पंचायत चुनावों के जिस प्रकार की सियासी तिकड़म चल रही है यह स्वाभाविक भी है, लेकिन चिंताजनक पहलू जो सामने आ रहा है शराब का प्रचलन जिस तेजी से पनप रहा है, वह किसी न किसी रूप में घातक साबित होगा। पंचायत चुनाव का सीधा का अर्थ कि गांव के उस शख्स का चुनाव करना है जिसने विकास की कड़ी रखनी है। अगर बुनियाद इस तरह रखी गई तो लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। किसी भी स्तर के चुनावों में शराब संस्कृति से दूरी बनाना बेहतर होगा। उत्तराखंड में इसलिए भी यहां पहाड़ के बाशिंदे सबसे ज्यादा इसी को लेकर त्रस्त हंै। सालों से इसके खिलाफ वह आवाज भी बुलंद करते आए हैं।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

--- Quote from: Pankaj/पंकज सिंह महर on August 29, 2008, 01:53:20 PM ---मेहता जी,
      यह अच्छा विषय है, सरकार ने महिलाओं को पंचायत चुनावों में ५० % आरक्षण तो दे दिया, ठीक है। पिछले चुनावों में भी कुछ सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित थीं, लेकिन कितनी महिलाओं ने अपना कार्य किया, यह विश्लेषण का विषय है। ऎसी महिला जनप्रतिनिधि मात्र हस्ताक्षर करने तक ही सीमित रहीं। शहरी क्षेत्रों मेम तो महिलायें राजनीति में सक्रिय रह्ती हैं, लेकिन मेरी पीड़ा उस पहाड़ की नारी, लछिमा देवी की है, जो अपना नाम लिखना नहीं जानती, जिसे ग्राम प्रधानी का बस्ता स्या होता है, ब्लाक की योजनायें क्या होती हैं भी पता नहीं है, वह पिछली बार भी ग्राम प्रधान थी और उसने अपना ग्राम प्रधान का दायित्व भी निभाया, लेकिन कैसे.......? जहां पर उसके पति ने अंगूठा लगाने को कहा, वहां लगा दिया और कई बार जब वह घास लाने ४ मील गई थी और जरुरी कागजों पर उसका अंगूठा चाहिए था, तो उसके पति ने अपनी ही अंगूठा लगा दिया।
     मेरी चिन्ता उस हरुली देवी के लिये है, जो जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसे यह पता ही नहीं कि जिला पंचायत होती क्या है, आज भी चमोली का जिला मुख्यालय गोपेश्वर उसके लिये "बजार" है, जहां वह अपने पति से साथ चूडि़यां लाने और जलेबी खाने ही जाती थी, जिलाधिकारी आज भी उसके लिये भौत बड़ा सैप है.....तो क्या वह जिला पंचायत में निर्वाचित होकर अपने क्षेत्र की समस्याओं को वहां उठा पायेगी? क्या वह जिला प्लान की बैठकों में प्लान और नान-प्लान के बजट पर बहस कर पायेगी?
 
       सरकार अगर महिलाओं को आगे लाना चाहती है तो पहले उनको शिक्षित तो करे, उनको पता तो चले कि समाज क्या है, क्या उसके अधिकार हैं। मैं एक ऎसी ग्राम प्रधान को जानता हूं जो पिछले ५ साल गांव की प्रधान रही, वह एक अनुसूचित जाति की महिला हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाय कि ब्लाक योजना क्या है, वहां पर बैठक में कौन आता है, कैसे योजना पास होती है, ग्राम प्रधान का बस्ता क्या होता है, ग्राम कल्याण अधिकारी क्या है, तो वह ऎसे मुंह ताकती हैं, जैसे मैंने उनके किसी और भाषा में बात की हो!   तो यह है सच्चाई......देखते हैं इस बार क्या होता है।

--- End quote ---

Mahar Ji,

This is indeed a good step taken by the Govt but situation that the most of the women candidates are Illiterate they even they don't know their state name and CM name. This was watching in ETV news a few days ago.

Risky Pathak:
Sir Jee,

Sabhi Gaanv Ki Haalat Aisi Hi Hai....

Sarkaar Ne Apni Taraf se to Striyo ko 50 percent chunaav me bhaagidaari de di. Par Gram Pradhaan ka sara karya unke pati hi dekhte hai. Asal Me Jo Gram Pradhan Hai Uska istemaal to bas angutha lgaane ke liye kiya jata hai.

Acha 1 baat or gaanv ke logo se jab pucho ki graam pradhaan kaun hai to unhe..... Uske Pati ka hi naam yaad aata hai....

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