Author Topic: Politics In Uttarkhand - उत्तराखंड की राजनीति  (Read 119642 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत ही शर्म की बात है यह.... अगर सत्य है तो



Devbhoomi,Uttarakhand

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अगर ये सच है तो निशंक को चुलू भर पानीइ  में डूबकर कर मर जाना चाहिए,हा तभी निशंक आठवीं पास नेता को उत्तराखंड का शिक्षा मंत्री बनाया

इसमें भी विदेशी ताकतों का हाथ है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड में पूर्व बीजेपी विधायक को मंत्री का दर्जा0Nov 21, 2012, 09.00AM IST भाषा॥ देहरादून : उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए अपनी विधान सभा सीट खाली करने वाले पूर्व बीजेपी विधायक और कुमाऊं मंडल विकास निगम के निदेशक और अध्यक्ष किरण मंडल को मंत्री पद का दर्जा दे दिया।
 सूत्रों ने बताया कि पर्यटन विभाग की ओर से जारी किए गए आदेश के अनुसार मंडल को मंत्री पद का दर्जा उनके निगम में कार्यभार संभालने की तिथि से प्रभावी होगा। उन्होंने बताया कि मंत्री पद के दर्जे से जुड़ी सारी सुविधाएं भी उन्हें उनका कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से ही मिलेंगी।
 बहुगुणा के ऊधमसिंह नगर जिले के सितारगंज विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने जाने के बाद मंडल को जुलाई में पर्यटन को बढ़ावा देने वाले राज्य सरकार के उपक्रम कुमाऊं मंडल विकास निगम के निदेशक और अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया था। अपनी सीट मुख्यमंत्री के लिए खाली करने और उन्हें राज्य विधानसभा में विधायक के रूप में पहुंचाने के लिए 'इनाम के तौर पर' मंडल की इस महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति की गई।
 इस साल की शुरुआत में मुख्यमंत्री पद संभालने के समय बहुगुणा टिहरी से लोकसभा सांसद थे और उन्हें 6 महीने में विधानसभा के लिए निर्वाचित होना था। बहुगुणा के लिए विधानसभा सीट मंडल ने खाली की। मंडल के इस्तीफा देने के बाद जुलाई में हुए सितार गंज उपचुनाव में बहुगुणा बीजेपी को रेकॉर्ड वोटों से पराजित कर विधानसभा में पहुंचे।
 विधानसभा चुनावों के दौरान विपक्षी बीजेपी से सिर्फ एक सीट ज्यादा जीतने वाली कांग्रेस की उपचुनाव में विजय ने सदन में उसकी स्थिति थोड़ी बेहतर कर दी। बहुगुणा की जीत ने जहां कांग्रेस की संख्या 33 पहुंचा दी, वहीं बीजेपी को 30 पर सीमित कर दिया।

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड गठन से पूर्व के सभी वासी मूल निवासी देहरादून/ब्यूरो | Last updated on: December 8, 2012 1:06 PM IST
           उत्तराखंड गठन के पूर्व से राज्य में रहने वाले सभी बाशिंदों को राज्य का मूल निवासी माना जाएगा। संसदीय कार्यमंत्री इंदिरा हृद्येश ने विधायक आदेश चौहान के सवाल पर यह बात कही। मंत्री के जवाब का विपक्ष ने भी स्वागत किया। हालांकि स्थायी निवास और जाति प्रमाण पत्र को लेकर गठित कैबिनेट की उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट अभी सरकार को नहीं सौंपी है।

पक्ष-विपक्ष के विधायकों ने इस बात पर हैरानी भी जताई कि उपसमिति की रिपोर्ट आने से पहले ही सरकार ने यह फैसला ले लिया। सदन में सुबह प्रश्नकाल के दौरान चौहान ने हरिद्वार में श्रम कानूनों के तहत पंजीकृत बाहरी लोगों की संख्या के बारे में श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल से जानकारी मांगी। इस पर संसदीय कार्यमंत्री ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि राज्य में बाहर वाला कोई नहीं है।

इंदिरा हृद्येश ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की ओर इशारा करते हुए कहा कि नेता सदन ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। जिन जिलों में स्थायी निवास और जाति प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगी है, वहां के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया जा रहा है कि प्रमाणपत्र जारी किए जाएं।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट भी अपने पूर्व (17 सितंबर, 12) के आदेश में स्पष्ट कर चुका है कि राज्य गठन के पहले से (नौ नवंबर 2000 से) यहां रह रहे सभी लोगों को उत्तराखंड का स्थायी निवासी माना जाएगा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि स्थायी निवास और मूल निवास में कोई अंतर नहीं है। इसके बाद मुख्यमंत्री बहुगुणा ने स्पष्ट किया था कि सरकार हाईकोर्ट के आदेश का पालन करेगी। 

उपसमिति की नहीं आई रिपोर्ट
मूल निवास के मुद्दे पर हाईकोर्ट के आदेश के सभी पक्षों की व्यवहारिकता जानने के लिए कैबिनेट की उपसमिति का गठन किया गया था। समिति में इंदिरा हृद्येश, दिनेश अग्रवाल, सुरेंद्र राकेश व सुरेंद्र नेगी को शामिल किया गया था। समिति को हाईकोर्ट के आदेश के परिपेक्ष्य में एक अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी, जिसमें व्यवहारिक व कानूनी बिंदुओं पर विस्तार से एक्सरसाइज की गई हो। उपसमिति ने सरकार को अभी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।

 

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