उत्तराखंड गठन से पूर्व के सभी वासी मूल निवासी
देहरादून/ब्यूरो | Last updated on: December 8, 2012 1:06 PM IST
उत्तराखंड गठन के पूर्व से राज्य में रहने वाले सभी बाशिंदों को राज्य का मूल निवासी माना जाएगा। संसदीय कार्यमंत्री इंदिरा हृद्येश ने विधायक आदेश चौहान के सवाल पर यह बात कही। मंत्री के जवाब का विपक्ष ने भी स्वागत किया। हालांकि स्थायी निवास और जाति प्रमाण पत्र को लेकर गठित कैबिनेट की उपसमिति ने अपनी रिपोर्ट अभी सरकार को नहीं सौंपी है।
पक्ष-विपक्ष के विधायकों ने इस बात पर हैरानी भी जताई कि उपसमिति की रिपोर्ट आने से पहले ही सरकार ने यह फैसला ले लिया। सदन में सुबह प्रश्नकाल के दौरान चौहान ने हरिद्वार में श्रम कानूनों के तहत पंजीकृत बाहरी लोगों की संख्या के बारे में श्रम मंत्री हरीश दुर्गापाल से जानकारी मांगी। इस पर संसदीय कार्यमंत्री ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि राज्य में बाहर वाला कोई नहीं है।
इंदिरा हृद्येश ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की ओर इशारा करते हुए कहा कि नेता सदन ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है। जिन जिलों में स्थायी निवास और जाति प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगी है, वहां के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया जा रहा है कि प्रमाणपत्र जारी किए जाएं।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट भी अपने पूर्व (17 सितंबर, 12) के आदेश में स्पष्ट कर चुका है कि राज्य गठन के पहले से (नौ नवंबर 2000 से) यहां रह रहे सभी लोगों को उत्तराखंड का स्थायी निवासी माना जाएगा। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि स्थायी निवास और मूल निवास में कोई अंतर नहीं है। इसके बाद मुख्यमंत्री बहुगुणा ने स्पष्ट किया था कि सरकार हाईकोर्ट के आदेश का पालन करेगी।
उपसमिति की नहीं आई रिपोर्टमूल निवास के मुद्दे पर हाईकोर्ट के आदेश के सभी पक्षों की व्यवहारिकता जानने के लिए कैबिनेट की उपसमिति का गठन किया गया था। समिति में इंदिरा हृद्येश, दिनेश अग्रवाल, सुरेंद्र राकेश व सुरेंद्र नेगी को शामिल किया गया था। समिति को हाईकोर्ट के आदेश के परिपेक्ष्य में एक अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी, जिसमें व्यवहारिक व कानूनी बिंदुओं पर विस्तार से एक्सरसाइज की गई हो। उपसमिति ने सरकार को अभी रिपोर्ट नहीं सौंपी है।